नवंबर 11

टोर्स के संत मार्टिन

टोर्स के संत मार्टिन का जन्म सवारिया, पन्नोनिया, वर्तमान हंगरी, में 316 या 336 को हुआ। इनके पिता सेना में बडे अधिकारी थे। जब इनकी नियुक्ति इटली में हुयी तो वे परिवार समेत इटली में बस गये।

दस वर्ष की आयु में मार्टिन ने ख्राीस्तीय विश्वास अपनाया। पंद्रह वर्ष की आयु में मार्टिन को अनिवार्य रूप से सेना में भर्ती होना पडा। सैनिक के रूप में एक बार उन्हें एक अर्धनग्न भिखारी मिला। उसके पास कपडे नहीं थे तथा ठण्ड से कांप रहा था। युवा मार्टिन ने अपना कोट आधा काटकर उस भिखारी को ढका। उस रात को मार्टिन ने सपने में देखा की प्रभु उससे कह रहे थे, ’’मार्टिन एक नवशिष्य ने मुझे कपडे पहनाये।’’

बीस वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपने अधिकारियों को स्पष्ट रूप से बता दिया कि वे सेना में रहकर किसी भी लडाई में भाग नहीं लेंगे। एक बार जब उन्होंने लडाई में भाग लेने से इंकार कर दिया तो उन्हें कायर तथा डरपोक कह कर जेल में डाला गया। इस पर मार्टिन ने अपनी स्पष्टता बताते हुये कहा, वे लडाई में निहत्थे जायेगे जिससे यह साबित हो सके कि वे कायर नहीं। इस बात पर सभी तैयार हो गये। किन्तु उस युद्ध के पहले ही युद्धविराम का समझौता हो गया।

युद्ध सेवा से मुक्ति पाकर वे ख्राीस्त में अपना जीवन बिताना चाहते थे। वे टोर्स गये जहॉ हिलेरी ने उनका मार्गदर्शन तथा अध्ययन कराया। हिलेरी ने बाद में मार्टिन को थोडी जमीन दी जहॉ पर 361 में उन्होंने एक मठ की स्थापना की। मठ के द्वारा उन्होंने अनेको को ख्राीस्त मार्ग की शिक्षा दी। जब 371मेंटोर्स को एक धर्माध्यक्ष की आवश्यकता पडी तो उन्होंने अनिच्छुक मार्टिन को इस पद पर बैठाया।

धर्माध्यक्ष के रूप में उन्होंने धर्माप्रांत में पल्लियों की स्थापना की। वे हर वर्ष कम से कम एक बार हर पल्ली का दौरा करते थे। धर्म के विरूद्ध फैली सभी भ्रामक और झूठी धारणाओं का उन्होंने खण्डन किया तथा सारी वफादारी तथा जोश के साथ येसु के सुसमाचार को फैलाया। इन सब कार्यों के बावजूद भी मार्टिन प्रार्थना का एकांकी जीवन जीने की गहरी इच्छा रखते थे। इस उददेश्य हेतु 372 में उन्होंने मारमोटीयर में मठ की स्थापना की तथा वहॉ उन्होंने अपना शेष जीवन बिताया तथा अनेक लोग उनके भक्तिमय तथा तपस्वी जीवन से प्रेरणा पाकर उनके शिष्य बने।

संत गरीबों, सैनिकों, दर्जियों, दाखरस बनाने वालों के संरक्षक संत है। संत मार्टिन का जीवन हमें साहस की प्रेरणा देता है। उन्होंने ख्राीस्त की शिक्षा का पालन करने के लिये लडाई में लोगों को मारने से मना किया। उन्होंन गरीबों के कल्याण के लिये व्यापक कार्य किये तथा अपने जीवन के द्वारा ख्राीस्त के गवाह बने।


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