दिसंबर 18 - संत फ्लानान

संत फ्लानान सातवी शताब्दी के धर्माध्यक्ष, एक आयरिश सरदार टर्लो के पुत्र, ने रोम की तीर्थयात्रा की जहां संत पिता योहन चतुर्थ ने उन्हें धर्माध्यक्ष दीक्षित किया। अपनी वापसी पर वह किलालो के पहले धर्माध्यक्ष बने और हेब्राइड्स में भी प्रचार किया। उनका पर्व दिवस 18 दिसंबर है।

आयरलैंड और स्कॉटलैंड दोनों संत फ्लानान का सम्मान करते हैं। उन्हें मठवासीयों द्वारा शिक्षित किया गया था, प्रकृति के करीब रहें, रोम की तीर्थ यात्रा के दौरान उन्हें नियुक्त किया गया, उपदेश देने के लिए बहुत से स्थानों पर यात्रांए की, और अनेक चमत्कार भी किए। यह सब उन्हें एक उत्कृश्ट केल्टिक संत बनाता है।

फ्लानान को एक मठवासी ने शिक्षित किया था, जिन्होंने उन्हें खेती भी सिखाई थी। उनके जीवनी लेखक का कहना है कि उन्होंने ‘‘मठवासीओं के लिए जोतना, बोना, काटना, पीसना, पछोरना और सेंकना‘‘ सीखा। रिश्तेदारों की सलाह के खिलाफ, फ्लानान ने समुद्र के रास्ते रोम की तीर्थ यात्रा करने का फैसला किया। केल्टिक साहित्य में अन्य संतों की विद्या के बाद, किंवदंती कहती है कि वह एक पत्थर पर चमत्कारिक रूप से रोम में तैर कर गया। वहां संत पिता ने उन्हें किलालो के पहले धर्माध्यक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया।

फ्लानान ने शिक्षण और उपदेश हेतु यात्रा करके अपने धर्मप्रांत का नेतृत्व किया। उनकी करिश्माई वाक्पटुता ने उनके बुजुर्ग पिता को भी संत कोलमन के तहत एक मठवासी बनने के लिए राजी कर लिया। जब टर्लो ने कोलमन से अपने परिवार को आशीर्वाद देने के लिए कहा, तो मठाधीश ने भविष्यवाणी की कि उनके सात वंशज राजा होंगे। इस डर से कि राजत्व उन पर न पड जाए, फ्लानान ने एक शारीरिक विकृति के लिए प्रार्थना की जो इसे रोक सके। उनकी जीवनी कहती है कि उनका चेहरा दाग-धब्बों और चकत्तों से विकृत हो गया था।

धर्माध्यक्ष के रूप में, फ्लानान ने कभी-कभी छोटे कबीले युद्धों को शांत करने के लिए जबरदस्ती हस्तक्षेप किया। एक बार उन्होंने दो प्रमुखों के बीच एक समझौता किया था, जिसे उनमें से एक ने एक साल बाद दूसरे की भूमि पर आक्रमण कर तथा उसे बर्बाद कर समझौते को तोड दिया। फ्लानान ने लुटेरों के मुखिया को निम्नलिखित कडक अंदाज में संबोधित कियाः ‘‘कितने झूठे आदमी, तुम क्या करने का इरादा रखते हैं? तुमने छल से विश्वास क्यों तोड़ा है? पलट जाओं! पछताओ!‘‘

अविश्वानसी सरदार ने जो हठपूर्वक लूटपाट का इरादा रखता था उत्तर दियाः “यदि मेरे घोड़े की फुर्ती मुझे तुझ से आगे निकलने में समर्थ करे, तो मैं न तो तेरी बाट जोहूंगा और न तेरी बात मानूंगा।” इसलिए फ्लानान ने घोड़े को श्राप दिया और वह मर गया। फिर उन्होंने कहाः ‘‘सबसे विश्वासघाती राजकुमार, क्योंकि तुमने अपने वादे का उल्लंघन किया है और सभी मानव और दिव्य कानूनों को रौंद दिया है, तुम्हारे परिवार में से कोई भी नहीं बचेगा।‘‘

संत के अभिशाप ने डाकू-राजकुमार को भयभीत कर दिया, जिन्होंने खुद को संत फ्लानान के चरणों में गिरा दिया और क्षमा मांगी। संत ने डाकू-प्रमुख को क्षमा करने से इनकार नहीं किया, जो वे हमेशा किसी अपराध और सुधार के वादे के लिए व्यक्त किए गए दुख के प्रति करते थे। लेकिन खुद को दी गई इस क्षमा ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से संतुष्ट नहीं किया। संत की अपनी वंश के विरुद्ध की गई बात के कारण वह बेचौन था। रोते हुए और झुककर, उन्होंने संत फ्लानान को इस प्रकार संबोधित कियाः ‘‘मेरे पिता, आपने अक्सर प्रचार किया है कि सभी अपराधों को पश्चाताप के माध्यम से क्षमा किया जाता है। मैं आपसे विनती करता हूं कि मेरा परिवार मेरे साथ विलुप्त न हो जाए। मेरे बच्चों और वंशजों के खिलाफ की गई भविष्यवाणी को वापस ले लो। और मैं आपको एक वार्षिक शुल्क देने का वादा करता हूं और खुदको एवं मेरे अपनों को आपके व आपके उत्तराधिकारियों की सेवा में हमेशा के लिए समर्पित कर दूंगा।

क्षमा और दया की भावना में, संत ने बच्चों को आशीर्वाद दिया कि वे अपने पिता के पापों के लिए पीड़ित न हों। लेकिन उन्होंने ऐसा इस शर्त पर किया कि वे अपने पिता के वचन का पालन करें। फ्लानान की मृत्यु की सही तारीख ज्ञात नहीं है, लेकिन यह संभवतः सातवीं शताब्दी की अंतिम तिमाही में पडता है।


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