मिशन रविवार 2019 के लिये सन्त पापा फ्रांसिस का सन्देश

प्रिय भाईयों और बहनों,

अक्टूबर 2019 के लिए मेरी यही दुआ है कि जब सन्त पापा बेनेडिक्ट 15वें के प्रेरितिक पत्र मैक्सिमम इल्युद (30 नवम्बर 1919) का शताब्दी समारोह मनाते हैं तो कलीसिया अपनी मिशनरी चेतना एवं समर्पण को नवजागृत करे. इसकी दूरदर्शी एवं भविष्यगामी प्रेरिताई की परिकल्पना मुझे पुनः कलीसिया के मिशनरी समर्पण एवं ख्रिस्त जो मरकर जी उठे, उनके सुसमाचार एवं मुक्ति को संसार में पहुँचाने वाले प्रेरितिक कार्य में नवस्फूर्ति के महत्व को समझाती है.

इस सन्देश की विषय-वस्तु वही है जो अक्टूबर मिशनरी माह की विषय-वस्तु है: अभिषिक्त एवं प्रेषित: संसार में ख्रीस्तीय कलीसिया का मिशन. इस माह का यह उत्सव हमें सर्वप्रथम येसु ख्रिस्त में हमारे विश्वास, जो हमें बप्तिस्मा में वरदान स्वरुप प्रदान किया गया है, उसके मिशनरी पहलु की पुनः याद दिलाता है. ईश्वर के साथ हमारा पुत्र सुलभ सम्बन्ध कोई मात्र व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं बल्कि कलीसिया के द्वारा ही दिया हुआ है. पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा ईश्वर के साथ हमारी घनिष्ठता द्वारा हमारा अपने अनेकों भाई-बहनों के साथ एक नये जीवन में जन्म हुआ है. यह दिव्य जीवन कोई विक्रय की वस्तु नहीं है – हम धर्मान्तरण नहीं करते – मिशन का अर्थ है: एक खज़ाना जो दूसरों के साथ बाँटना है, उन तक पहुँचाना और घोषित करना है. हमें यह उपहार मुफ्त में मिला है और और बिना किसी भेद-भाव के इसे मुफ्त में ही दूसरों को देते हैं. ईश्वर चाहता है कि मुक्ति के सर्वव्यापक संस्कार- कलीसिया के प्रेरितिक कार्य द्वारा सब लोग सत्य को पहचान कर मुक्ति प्राप्त करें एवं ईश्वर की करुणा को अनुभव करें. (देखें 1 तिमथी 2:40, लुमेन जेंसियम 48).

कलीसिया इस संसार में एक मिशन पर है. येसु ख्रिस्त में हमारा विश्वास हमें सब वस्तुओं को उनके उचित परिप्रेक्ष्य में देखने के योग्य बनाता है, मानो हम संसार को स्वयं ईश्वर की आँखों एवं ह्रदय से देखते हों. हमारी आशा हमें दिव्य जीवन, जिसके सहभागी हम हैं, उस जीवन के अनन्त क्षितिज के लिए जागृत करती है. सदभावना, जिसे हम अपने संस्कारों एवं परस्पर प्रेम-भाईचारे में पूर्ण अनुभव करते हैं, हमें संसार के कोने-कोने में जाने के लिए प्रेरित करती है (देखें मीका 5:4, मत्ती 28:19, प्रेरित-चरित 1:8, रोमियों 10:8). एक कलीसिया जो संसार के सीमांतों तक जाने के लिए तत्पर है, उसे निरन्तर एवं लगातार मन परिवर्तन की आवश्यकता है. कितने ही सन्त एवं कितने ही विश्वासी महिलाएं एवं पुरुष इस बात के साक्षी हैं कि यह असीम उदारता, यह करुणा में आगे बढ़ना, वास्तव में सम्भव एवं यथार्थ है क्योंकि यह कृतज्ञता, त्याग एवं उपहाररूपी प्रेम द्वारा प्रेरित है. (देखें 2 कुरिन्थियों 5:14-21)! जो व्यक्ति ईश्वर का प्रचार करता है उसे ईश्वरीय व्यक्ति होना पड़ेगा. (देखें मैक्सिमम इल्युद).

यह मिशनरी आदेश हमें व्यक्तिगत रूप से स्पर्श करता है; मैं स्वयं सदैव एक मिशन हूँ; तुम स्वयं सदैव एक मिशन हो, बप्तिस्मा प्राप्त प्रत्येक महिला एवं पुरुष स्वयं एक मिशन है. जो लोग प्रेम करते हैं वे निष्क्रिय नहीं रह सकते; वे स्वयं को न्यौछावर कर देते हैं: वे आकर्षित होते हैं और दूसरों को भी आकर्षित करते हैं; वे स्वयं को दूसरों को देते और जीवन-प्रद सम्बन्ध स्थापित करते हैं. जहाँ तक ईश्वर के प्रेम का सवाल है तो उसके लिए कोई भी बेकार या नगण्य नहीं है. हममें से प्रत्येक व्यक्ति इस संसार के लिए एक मिशन है क्योंकि हममें से प्रत्येक ईश्वर के प्रेम का ही परिणाम है. माता-पिता भले ही प्रेम में विश्वासघात, घृणा एवं झूठ द्वारा धोखा दे दें लेकिन ईश्वर कभी भी जीवन रूपी उपहार को वापस नहीं छीनता है. उसने अनंतकाल से ही अपनी प्रत्येक संतान को अपने दैविक एवं अनन्त जीवन में सहभागी होने के लिये निर्धारित किया है (देखें एफेसियों 1:3-6).

यह जीवन हमें बप्तिस्मा में प्रदान किया जाता है, जो, पाप एवं मृत्यु को वश में करने वाले प्रभु येसु ख्रिस्त में विश्वास का उपहार हमें प्रदान करता है. बप्तिस्मा हमें ईश्वर के प्रतिरूप एवं समानता में पुनर्जीवन प्रदान करता है, एवं हमें ख्रिस्त के शरीर, कलीसिया के अंग बना देता है. इस प्रकार मुक्ति के लिए बप्तिस्मा अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि यह निश्चित करता है कि पिता के घर में हम सदैव एवं सर्वत्र उसके पुत्र-पुत्रियाँ हैं – कोई अनाथ, अजनबी या दास नहीं हैं. एक ख्रीस्तीय व्यक्ति में संस्कार की जो वास्तविकता है- जिसकी पूर्णता यूखरिस्त में मिलती है – वही मन-परिवर्तन एवं मुक्ति की खोज में लगे प्रत्येक महिला-पुरुष की बुलाहट एवं मंजिल बना रहता है, क्योंकि बप्तिस्मा ईश्वर के उपहार की प्रतिज्ञा को पूरा करता है, जो पुत्र ईश्वर में हमें पुत्र-पुत्रियाँ बनाता है. हम अपने सांसारिक माता-पिता की संतान हैं लेकिन बप्तिस्मा में हम समस्त मातृत्व एवं पितृत्व के स्रोत को ही ग्रहण करते हैं: वह व्यक्ति ईश्वर को पिता नहीं मान सकता जो कलीसिया को माता नहीं मानता. (सन्त सिप्रियन, दे. कैथ. ऐकले.,6).

अतः हमारा मिशन ईश्वर के पितृत्व एवं कलीसिया के मातृत्व में सुस्थिर है. पास्का में पुनर्जीवित येसु द्वारा प्रदत्त आदेश, बप्तिस्मा में निहित है: जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा है उसी प्रकार पवित्र आत्मा से पूर्ण, संसार का मेल-मिलाप कराने के लिए मैं तुम्हें भेजता हूँ.( योहन 20:19-23, मत्ती 28:16-20). यह मिशन हमारे ख्रीस्तीय होने की पहचान का ही हिस्सा है, यह हमें सभी स्त्री-पुरुषों को पिता ईश्वर की दत्तक संतानें बनने की बुलाहट की पहचान कराने का दायित्व प्रदान करता है; उन्हें उनकी व्यक्तिगत गरिमा को पहचानने एवं प्रत्येक मनुष्य के गर्भ में गढ़ने से लेकर स्वाभाविक मृत्यु तक, जीवन के मूल्य का महत्व समझने का दायित्व है. आज की उग्र धर्मनिरपेक्षता जो मानव इतिहास में ईश्वर के सक्रीय पितृत्व का सांस्कृतिक तिरस्कार बन जाती है, यह सच्ची मानवीय सदभावना जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए परस्पर आदर की अभिव्यक्ति है, उसमें बाधा है. येसु ख्रिस्त के ईश्वर के बिना प्रत्येक भिन्नता एक घातक संकेत बन जाती है जो किसी यथार्थ, आपसी सहमति, मानव जाति के फलप्रद सहयोग को असंभव बनाती है.

येसु ख्रिस्त में ईश्वर द्वारा प्रस्तावित मुक्ति की सार्वभौमिकता ने ही सन्त पापा बेनेडिक्ट 15वें को समस्त प्रकार की राष्ट्रीयता एवं जातिगत केन्द्रीयता को समाप्त करने, अथवा सुसमाचार प्रचार को उपनिवेशिक शक्तियों के आर्थिक एवं सैन्य हितों में समाहित करने के लिए प्रेरित किया था. अपने प्रेरितिक पत्र मैक्सिमम इल्युद में सन्त पापा ने इंगित किया कि कलीसिया के सार्वभौमिक मिशन के लिए अपने जातिगत समुदाय एवं अपनी राष्ट्रीयता के अपवर्जित एवं संकीर्ण विचार को त्यागना आवश्यक है. येसु ख्रिस्त की मुक्तिमय नवीनता के प्रति सांस्कृतिक एवं समुदाय की उदारता के लिए हर प्रकार की अनावश्यक जातिगत एवं कलीसियाई अंतर्वृत्ति को त्याग देना आवश्यक है. आज भी, कलीसिया को ऐसे स्त्री-पुरुषों की आवश्यकता है जो अपने बप्तिस्मा के अधिकार से अपना घर, परिवार, देश, भाषा एवं स्थानीय समुदाय को पीछे छोड़ देने के आह्वान का उदारतापूर्वक प्रत्युत्तर दें, एवं राष्ट्रों में भेजे जाने के लिए, दुनिया के उन कोनों में जाने के लिए तत्पर रहें जो येसु ख्रिस्त एवं पवित्र कलीसिया के संस्कारों द्वारा अभी तक रूपान्तरित नहीं हुए हैं. ईश वचन की घोषणा द्वारा, सुसमाचार का साक्ष्य देकर और आत्मिक जीवन द्वारा वे मन-परिवर्तन का आह्वान करते हैं, बप्तिस्मा प्रदान करते एवं ख्रीस्तीय मुक्ति प्रदान करते हैं, एवं प्रत्येक व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए, और जिन लोगों के बीच वे भेजे गये हैं, उनमें प्रत्येक धर्मों एवं संस्कृतियों के आदान-प्रदान का ध्यान रखते हैं. मिशियो ऐद जेंतेस जो कलीसिया के लिए सदैव आवश्यक है, इस प्रकार सभी ख्रीस्तीयों में लगातार मन-परिवर्तन की प्रक्रिया के मूलभूत तरीके में योगदान देती है. प्रभु येसु के पास्का घटना में विश्वास; बप्तिस्मा में प्राप्त कलीसियाई मिशन; स्वयं से एवं अपने घर-परिवार से भौगोलिक एवं सांस्कृतिक असम्बधता; पाप से मुक्ति की आवश्यकता और व्यक्तिगत एवं सामाजिक बुराइयों से छुटकारा: इन सभी के लिए उस मिशन की आवश्यकता है जो संसार के सीमांतों तक पहुँचता है.

इस शताब्दी समारोह का दैवीय संयोग अमेज़न की कलीसियाओं की विशेष धर्मसभा के समारोह के साथ होना मुझे इस बात पर बल देने के प्रेरित करता है कि किस प्रकार पवित्र आत्मा के वरदान के साथ प्रभु येसु द्वारा सौंपा मिशन उन जगहों एवं वहाँ के लोगों के लिए समयानुसार उचित एवं आवश्यक है. नया पेंटेकोस्ट कलीसिया के द्वारों को खोल देता है ताकि कोई संस्कृति अपने लिए एवं दूसरों के लिए बाधा न रहे एवं कोई भी व्यक्ति विश्वास की सार्वजानिक सहभागिता से वंचित न रहे. कोई आत्मलीनता में अवरुद्ध न रहे एवं अपने जातिगत एवं धार्मिक सम्बद्धता में सीमित न रहे. प्रभु येसु की पास्का घटना संसार के धर्मों एवं संस्कृतियों की संकीर्ण सीमाओं को तोड़ डालती है एवं स्त्री-पुरुषों के आत्मसम्मान में आगे बढ़ने के लिए, और सभी को सच्चा जीवन प्रदान करने वाले पुनर्जीवित प्रभु के सत्य के प्रति गहन मन-परिवर्तन का आह्वान करती है.

यहाँ मुझे 2007 में ब्राजील के अप्रेचिदा में लैटिन अमेरिका धर्माध्यक्षों की मीटिंग के प्रारम्भ में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16वें के कहे शब्द याद आते हैं. मैं इन्हीं शब्दों को दुहराना और उन्हें आत्मसात करना चाहता हूँ: “लैटिन अमेरिका और कराबियन के राष्ट्रों के लिए ख्रीस्तीय विश्वास को स्वीकार करने का क्या अर्थ है? उनके लिए उसका मतलब था, ख्रिस्त को जानना और स्वीकार करना, वह अज्ञात ईश्वर जिसे उनके पूर्वज अन्जाने में ही अपनी महान धार्मिक परम्परा में खोज रहे थे. ख्रिस्त वह मुक्तिदाता हैं जिनके के लिए वे लोग ख़ामोशी से तरस रहे थे. इसका यह भी मतलब था कि उन्होंने बप्तिस्मा के जल में उस दिव्य जीवन को ग्रहण किया जो उन्हें पवित्र कर, देहधारी वचन द्वारा रोपे गये बीजों को विकसित करते हुए उनकी संस्कृति को फलप्रद बनाने आया था, इस तरह सुसमाचार के पथ में उनका मार्गदर्शन किया. येसु ख्रिस्त के रूप में देहधारण करने में ईश्वर के वचन ने इतिहास और संस्कृति को भी धारण किया. कोलम्बस के पूर्व के धर्मों में ख्रिस्त एवं सार्वभौमिक कलीसिया से अलग कर, उनमें जान फूंकने की कल्पना करना, आगे की ओर बढ़ने का कदम नहीं होगा: वास्तव में वह एक बीते हुए कल में ठहरे हुए इतिहास की एक अवस्था की ओर वापस लौटने वाला कदम होगा.” (उद्घाटन सत्र का भाषण, 13 मई 2007, इन्सेग्नामेंती III, 1 [2007], 855-856).

कलीसिया के मिशन को हम माता मरियम को सौंपते हैं. अपने पुत्र के देहधारण के क्षण से ही धन्य कुँवारी माता ने अपने पुत्र के साथ ही अपनी तीर्थ यात्रा प्रारम्भ की थी. वह येसु के मिशन में पूर्ण रूप से सहभागी थीं, वह मिशन जो कलवारी के क्रूस तले उसका अपना मिशन बन गया: आत्मा और विश्वास में ईश्वर के नये पुत्र-पुत्रियों को जन्म देने एवं कलीसिया की माता के रूप में सहयोग देने का मिशन.

मैं अंत में पोंतिफिकल मिशन सोसायटी, जिसे पूर्व में ही मैक्सिमम इल्युद में एक मिशनरी संसाधन के रूप में प्रस्तावित किया गया है, उसके बारे में संक्षेप में कुछ कहना चाहता हूँ. पोंतिफिकल मिशन सोसायटी सन्त पापा के मिशनरी समर्पण में मिशन की आत्मा- प्रार्थना द्वारा एवं संसार भर के उदार ख्रीस्तीयों के उदार दानों द्वारा सहयोग के व्यापक तंत्र के रूप में कलीसिया की सार्वभौमिकता की सेवा करती है. उनके दान एवं भेंट स्थानीय कलीसियाओं में सुसमाचार प्रचार के सन्त पापा के प्रयासों में (विश्वास प्रचार के लिए पोंतिफिकल सोसायटी), स्थानीय बच्चों के विकास में (प्रेरित सन्त पेत्रुस की पोंतिफिकल सोसायटी), बच्चों में मिशनरी जागरूकता उत्पन्न करने के लिए (मिशनरी बालकपन की पोंतिफिकल सोसायटी) और ख्रीस्तीय विश्वास के मिशनरी पहलू को बढ़ावा देने के लिए (पोंतिफिकल मिशनरी यूनियन) को सहायता प्रदान करते हैं. इन सोसायटियों के लिए अपने सहयोग को नवीन करते हुए मैं विश्वास और आशा करता हूँ अक्टूबर 2019 का विशेष मिशनरी माह मेरे सेवाकार्य में उनके मिशनरी सहयोग के नवीनीकरण में सहायक होगा.

मिशनरी महिला-पुरुषों और उन सभी के लिए जो अपने बप्तिस्मा के अधिकार द्वारा, किसी भी प्रकार के कलीसिया के मिशन में सहभागी हैं, मैं अपनी हार्दिक आशीष देता हूँ.

वैटिकन से, 9 जून 2019, पेन्तेकोस्त का महापर्व. - फ्रांसिस

Hindi Translation: Fr. Johnson B. Maria, Gwalior.


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