बुधवार, 03 जनवरी, 2024

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📒 पहला पाठ: योहन का पहला पत्र 2:29-3:6

29) यदि तुम जानते हो कि वह निष्पाप हैं, तो यह भी समझ लो कि जो धर्माचरण करता है, वह ईश्वर की सन्तान है।

1) पिता ने हमें कितना प्यार किया है! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उसने ईश्वर को नहीं पहचाना है।

2) प्यारे भाइयो! अब हम ईश्वर की सन्तान हैं, किन्तु यह अभी तक प्रकट नहीं हुआ है कि हम क्या बनेंगे। हम इतना ही जानते हैं कि जब ईश्वर का पुत्र प्रकट होगा, तो हम उसके सदृश बन जायेंगे; क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे, जैसा कि वह वास्तव में है।

3) जो उस से ऐसी आशा करता है, उसे वैसा ही शुद्ध बनना चाहिए, जैसा कि वह शुद्ध है।

4) जो पाप करता है, वह ईश्वर की आज्ञा भंग करता है; क्योंकि पाप तो आज्ञा का उल्लंघन है।

5) तुम जानते हो कि मसीह पाप हरने के लिए प्रकट हुए। उन में कोई पाप नहीं है।

6) जो उन में निवास करता है, वह पाप नहीं करता। जो पाप करता है, उसने उन्हें नहीं देखा है और वह उन्हें नहीं जानता।

📙 सुसमाचार : सन्त योहन 1:29-34

29) दूसरे दिन योहन ने ईसा को अपनी ओर आते देखा और कहा, ‘‘देखो-ईश्वर का मेमना, जो संसार का पाप हरता है।

30) यह वहीं हैं, जिनके विषय में मैंने कहा, मेरे बाद एक पुरुष आने वाले हैं। वह मुझ से बढ़ कर हैं, क्योंकि वह मुझ से पहले विद्यमान थे।

31) मैं भी उन्हें नहीं जानता था, परन्तु मैं इसलिए जल से बपतिस्मा देने आया हूँ कि वह इस्राएल पर प्रकट हो जायें।’’

32) फिर योहन ने यह साक्ष्य दिया, ‘‘मैंने आत्मा को कपोत के रूप में स्वर्ग से उतरते और उन पर ठहरते देखा।

33) मैं भी उन्हें नहीं जानता था; परन्तु जिसने मुझे जल से बपतिस्मा देने भेजा, उसने मुझ से कहा था, ‘तुम जिन पर आत्मा को उतरते और ठहरते देखोगे, वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देते हैं’।

34) मैंने देखा और साक्ष्य दिया कि यह ईश्वर के पुत्र हैं।’’

📚 मनन-चिंतन

योहन बपतिस्ता येसु के बारे में बात करना जारी रखता है, और उसे ईश्वर का मेमना बताता है जो दुनिया के पापों को दूर करता है। योहन, जो पानी से बपतिस्मा देता है, इस बात पर जोर देता है कि येसु पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देगा। योहन यह भी पुष्टि करता है कि ईश्वर का आत्मा येसु पर निवास करता है, और वह गवाही देता है कि पिता ने येसु को अपने प्रिय पुत्र के रूप में प्रकट किया है। इन प्रमाणों के बावजूद, येसु को कई लोगों से अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से बंद और जिद्दी दिल वाले जो पवित्र आत्मा का विरोध करते हैं। हममें से जिन्होंने अपना दिल खोल दिया है, योहन की घोषणाएँ दिव्य प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में येसु में हमारे विश्वास को मजबूत करती हैं। यह स्वीकार किया गया है कि कभी-कभी, हम येसु को पूरी तरह से स्वीकार करने में रुक सकते हैं। हालाँकि, हमें आभारी होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि येसु हमेशा हमें अपनी ओर वापस ले जाते हैं। पर्याप्त सबूत और गवाही के बावजूद भी, बंद दिल वाले लोग अभी भी येसु को अस्वीकार कर सकते हैं। पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के प्रति ग्रहणशील होने के महत्व पर जोर देते हुए, जिद्दी दिलों और विश्वास के लिए खुले लोगों के बीच विरोधाभास खींचा गया है।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

John the Baptist continues to speak about Jesus, describing Him as the Lamb of God who takes away the sins of the world. John, who baptizes with water, emphasizes that Jesus will baptize with the Holy Spirit. John also affirms that the Spirit of God rests upon Jesus, and he testifies that the Father has revealed Jesus as His beloved son. Despite these credentials, Jesus faces rejection from many, especially those with closed and obstinate hearts that resist the Holy Spirit. For those of us who have opened our hearts, John’s declarations strengthen our faith in Jesus as the divine Lord and Savior. It’s acknowledged that at times, we may pause in accepting Jesus fully. However, we are encouraged to be thankful that Jesus always guides us back to Himself. Even with ample proof and testimony, those with closed hearts may still reject Jesus. The contrast is drawn between the obstinate hearts and those open to faith, emphasizing the importance of being receptive to the Holy Spirit’s guidance.

-Fr. Paul Raj

📚 मनन-चिंतन-2

उत्पत्ति 22 में इसहाक के सवाल "होम का मेमना कहाँ है?" का इब्राहीम ने जवाब दिया, " बेटा! ईश्वर होम के मेमने का प्रबन्ध कर देगा"। जब संत योहन बपतिस्ता येसु की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "देखो, ईश्वर का मेमना" इब्राहीम के वे शब्द येसु में पूरे होते हैं। प्रभु येसु ही वह मेमना जिसका प्रबंध प्रभु ने किया।

निर्गमन ग्रन्थ, अध्याय 12 में हम यहूदी लोगों के पास्का भोज के बारे में पढ़ते हैं जिसे उन्होंने मिस्र छोड़ने से पहले मनाया था। उन्होंने हरेक परिवार में एक निर्दोष मेमने का वध किया और अपने घरों की चौखट और दरवाजे पर मेमने का रक्त पोत दिया। जब प्रभु ने मिस्रियों को मारा, तब वे मेमने का रक्त देख कर उन घरों के आगे निकल गये और उन्होंने विध्वंसक को उन घरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। येसु नया पास्का मेमना है जिसका खून हमें बचाता है।

लेवी ग्रन्थ, अध्याय16 में हम बलि के बकरे के बारे में पढ़ते हैं। प्रभु ने आज्ञा दी, “हारून अपने दोनों हाथ उस जीवित बकरे के सिर पर रख कर, इस्राएलियों के सारे कुकर्मों और सब प्रकार के अपराधों को स्वीकार कर, उन्हें उसके सिर पर डाल दे और फिर पहले से निर्धारित व्यक्ति के द्वारा उसे रेगिस्तान में पहुँचा दे।” (लेवी 16:21) प्रभु येसु वह मेमना है जो दुनिया के पापों को हर लेता है।

निर्गमन 29:34-46 में प्रभु ने इस्राएलियों को रोज सुबह और शाम को एक मेमने का बलिदान चढ़ाने की आज्ञा दी। येसु को एक एकल मेमने के रूप में देखा जा सकता है, जो इस्राएलियों द्वारा प्रतिदिन मंदिर में अर्पित किए जाने वाले सभी मेमनों को प्रतिस्थापित करता है । जब संत योहन बपतिस्ता येसु को 'ईश्वर का मेमना' कहते हैं, तो हम उन्हें अर्थ की इन सभी परतों में समझ सकते हैं। यह हमारे लिए प्रभु येसु के महान बलिदान के महत्व पर मनन करने के लिए हमें आमंत्रित करता है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In Genesis 22 in reply to Isaac’s question “where is the lamb for a burnt offering?” Abraham said, “God himself will provide the lamb for a burnt offering my son”. When St. John the Baptist pointed to Jesus and said, “Look, there is the lamb of God” those words of Abraham came true in Jesus.

In Exodus, chapter 12 we read about the Passover of the Jewish People which they celebrated before they left Egypt. They slaughtered a lamb without blemish and smeared the blood of the lamb on the doorposts and lintels of their houses. The Lord passed over those houses and did not allow the destroyer to enter those house while he struck down the Egyptians. Jesus is the new Paschal lamb whose blood saves us.

In Leviticus 16 we read about a scapegoat. Aaron was commanded by the Lord to “lay both his hands on the head of the live goat and confess over it all the iniquities of the people of Israel, and all their transgressions, all their sins, putting them on the head of the goat, and sending it on away into the wilderness by means of someone designated for the task.” (Lev 16:21) Jesus is the lamb that takes away the sins of the world.

In Exodus 29:38-46 the Lord commanded the Israelites to offer a lamb in the morning and another in the evening on a daily basis. Jesus can also be seen as one single lamb to replace all the sacrificed daily by the Israelites. When St. John the Baptist calls Jesus ‘the lamb of God’, we can understand him in all these layers of meaning. This calls us to reflect over the significance of the great sacrifice of Jesus for us.

-Fr. Francis Scaria