शुक्रवार, 05 जनवरी, 2024

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📒 पहला पाठ : 1 योहन 3:11-21

11) क्योंकि तुमने जो सन्देश प्रारम्भ से सुना है, वह यह है कि हमें एक दूसरे को प्यार करना चाहिए।

12) हम काइन की तरह नहीं बनें। वह दुष्ट की सन्तान था और उसने अपने भाई की हत्या की। उसने उसकी हत्या क्यों की? क्योंकि उसके अपने कर्म बुरे थे और उसके भाई के कर्म अच्छे।

13) भाइयो! यदि संसार तुम से बैर करे, तो इस पर आश्चर्य मत करो।

14) हम जानते हैं कि हमने मृत्यु से निकल कर जीवन में प्रवेश किया है; क्योंकि हम अपने भाइयों को प्यार करते हैं। जो प्यार नहीं करता, वह मृत्यु में निवास करता है।

15) जो अपने भाई से बैर करता है, वह हत्यारा है और तुम जानते हो कि किसी भी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं होता।

16) हम प्रेम का मर्म इस से पहचान गये कि ईसा ने हमारे लिए अपना जीवन अर्पित किया और हमें भी अपने भाइयों के लिए अपना जीवन अर्पित करना चाहिए।

17) किसी के पास दुनिया की धन-दौलत हो और वह अपने भाई को तंगहाली में देखकर उसपर दया न करे, तो उस में ईश्वर का प्रेम कैसे बना रह सकता है?

18) बच्चो! हम वचन से नहीं, कर्म से, मुख से नहीं, हृदय के एक दूसरे को प्प्यार करें।

19) इसी से हम जान जायेंगे कि हम सत्य की सन्तान हैं और जब कभी हमारा अन्तः करण हम पर दोष लगायेगा, तो हम ईश्वर के सामने अपने को आश्वासन दे सकेंगे;

20) क्योंकि ईश्वर हमारे अन्तःकरण से बड़ा हौ और वह सब कुछ जानता है।

21) प्यारे भाइयो! यदि हमारा अन्तः करण हम पर दोष नहीं लगाता है, तो हम ईश्वर पर पूरा भरोसा रख सकते हैं।


📚 सुसमाचार : योहन 1:43-51

43) दूसरे दिन ईसा ने गलीलिया जाने का निश्चय किया। उनकी भेंट फिलिप से हुई और उन्होंने उस से कहा, "मेरे पीछे चले आओ"।

44) फिलिप बेथसाइदा का, अन्द्रेयस और पेत्रुस के नगर का निवासी था।

45) फिलिप नथानाएल से मिला और बोला, "मूसा ने संहिता में और नबियों ने जिनके विषय में लिखा है, वही हमें मिल गये हैं। वह नाज़रेत-निवासी, यूसुफ के पुत्र ईसा हैं।"

46) नथानाएल ने उत्तर दिया, "क्या नाज़रेत से भी कोई अच्छी चीज़ आ सकती है?" फिलिप ने कहा, "आओ और स्वयं देख लो"।

47) ईसा ने नथानाएल को अपने पास आते देखा और उसके विषय में कहा, "देखो, यह एक सच्चा इस्राएली है। इस में कोई कपट नहीं।"

48) नथानाएल ने उन से कहा, "आप मुझे कैसे जानते हैं?" ईसा ने उत्तर दिया, "फिलिप द्वारा तुम्हारे बुलाये जाने से पहले ही मैंने तुम को अंजीर के पेड़ के नीचे देखा"।

49) नथानाएल ने उन से कहा, "गुरुवर! आप ईश्वर के पुत्र हैं, आप इस्राएल के राजा हैं"।

50) ईसा ने उत्तर दिया, "मैंने तुम से कहा, मैंने तुम्हें अंजीर के पेड़ के नीचे देखा, इसीलिए तुम विश्वास करते हो। तुम इस से भी महान् चमत्कार देखोगे।"

51) ईसा ने उस से यह भी कहा, "मैं तुम से यह कहता हूँ- तुम स्वर्ग को खुला हुआ और ईश्वर के दूतों को मानव पुत्र के ऊपर उतरते-चढ़ते हुए देखोगे"।

📚 मनन-चिंतन

आज का सुसमाचार पाठ हमें सिखाता है कि किस प्रकार ख्रीस्तीय विश्वास एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलता है, ठीक उसी तरह जैसे यह 2,000 साल पहले येसु के साथ शुरू हुआ था। जब नथानिएल को संदेह होता है कि क्या नाज़रेथ से कुछ भी अच्छा हो सकता है, तो फिलिप बस इतना कहता है, "आओ और खुद देख लो।" जब येसु नथानिएल के बारे में कुछ बताते हैं, तो वह आश्चर्यचकित हो जाता है कि वह येसु को "ईश्वर का पुत्र" और "इज़राइल का राजा" कहता है। येसु का लोगों पर इतना शक्तिशाली प्रभाव क्यों पड़ा? नया नियम इस ओर संकेत करता है जब वह कहता है कि येसु ने अपने समय के धार्मिक नेताओं के विपरीत अधिकार के साथ शिक्षा दी। यह अधिकार विभिन्न मुलाकातों में देखा जाता है, जैसे कनानी महिला, बेथसैदा में अंधा आदमी, रोमन शतपति, फरीसी के घर की महिला, ज़केयुस, समारी महिला, बेथेस्दा पूल में बीमार आदमी, क्रूस टंगे ढाकू, और क्रूस के नीचे खडे शतपति। जब लोग येसु से मिलते हैं, तो उनमें कुछ बदलाव आता है। उनकी जो भी गहरी ज़रूरत हो, येसु उसे पूरा करते हैं। फिर, वे अपना अनुभव दूसरों के साथ साझा करते हैं। तब से यह पैटर्न बन गया है कि एक व्यक्ति दूसरे से कहता है, "मैं येसु का अनुसरण करता हूं, और मैं आपको भी ऐसा करने के लिए आमंत्रित करता हूं।" जैसे-जैसे चर्च बढ़ता है, माता-पिता अपने बच्चों को बपतिस्मा के माध्यम से येसु के पास लाते हैं और उनका अनुसरण करने के लिए बड़ा करते हैं। यह सरल लेकिन गहन प्रक्रिया ही वह तरीका रही है जिससे ईसाई धर्म पूरे इतिहास में फैला है। आइए हम एक-से-एक संपर्क के रूप में येसु का सामना करें और अनुभव को दूसरों के साथ साझा करें।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today’s gospel passage teaches us how the Christian faith spreads from person to person, just like it started with Jesus over 2,000 years ago. When Nathanael doubts whether anything good could come from Nazareth, Philip simply says, “Come and see for yourself.” When Jesus reveals something about Nathanael, he is amazed that he calls Jesus the “Son of God” and the “King of Israel.” What makes Jesus have such a powerful impact on people? The New Testament hints at it when it says that Jesus taught with authority, unlike the religious leaders of his time. This authority is seen in various encounters, like with the Canaanite woman, the blind man at Bethsaida, the Roman centurion, the woman at the Pharisee’s home, Zacchaeus, the woman at the well, the sick man at the Bethesda pool, the thief on the cross, and the centurion at the foot of the cross. When people meet Jesus, something changes in them. Whatever their deepest need is, Jesus meets it. Then, they share their experience with others. This has been the pattern since then one person saying to another, “I follow Jesus, and I invite you to do the same.” As the church grows, parents bring their children to Jesus through baptism and raise them to follow him. This simple yet profound process has been the way the Christian faith has spread throughout history. Llet us encounter Jesus as one to one contact and share the experience with others.

-Fr. Paul Raj