मंगलवार, 09 जनवरी, 2024

सामान्य काल का पहला सप्ताह

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📒 पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 1 :9-20

9) किसी दिन जब अन्ना का परिवार षिलो में भोजन कर चुका था, तो वह उठ कर प्रभु के मन्दिर गयी। उस समय याजक एली मन्दिर के द्वार के पास अपने आसन पर बैठा हुआ था। ।

10) अन्ना दुःखी हो कर प्रभु से प्रार्थना करती थी और आँसू बहाती हुई

11) उसने यह प्रतिज्ञा की, ‘‘विश्वमण्डल के प्रभु! यदि तू अपनी दासी की दयनीय दशा देख कर उसकी सुधि लेगा, यदि तू अपनी दासी को नहीं भुलायेगा और उसे पुत्र प्रदान करेगा, तो मैं उसे जीवन भर के लिए प्रभु को अर्पित करूँगी और कभी उसके सिर पर उस्तरा नहीं चलाया जायेगा।

12) जब वह बहुत देर तक प्रभु से प्रार्थना करती रही, तो एली उसका मुख देखने लगा।

13) और धीमे स्वर से बोलती थी। उसके होंठ तो हिल रहे थे, किन्तु उसकी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। इसलिए एली को लगा कि वह नषे में है।

14) उसने उस से कहा, ‘‘कब तक नषे में रहोगी! जाओ और नषा उतरने दो।’’

15) अन्ना ने यह उत्तर दिया, ‘‘महोदय! ऐसी बात नहीं है। मैं बहुत अधिक दुःखी हूँ। मैंने न तो अंगूरी पी और न कोई दूसरी नशीली चीज़। मैं प्रभु के सामने अपना हृदय खोल रही थी।

16) अपनी दासी को बदचलन न समझें- मैं दुःख और शोक से व्याकुल हो कर इतनी देर तक प्रार्थना करती रही।’’

17) एली ने उस से कहा, ‘‘शान्ति ग्रहण कर जाओ। इस्राएल का प्रभु तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करे!’’

18) इस पर अन्ना यह उत्तर दे कर चली गयी, ‘‘आपकी कृपा- दृष्टि आपकी दासी पर बनी रहे।’’ उसने भोजन किया और उसकी उदासी दूर हो गयी।

19) दूसरे दिन वे सबेरे उठे और प्रभु की आराधना करने के बाद रामा में अपने घर लौट गये। एल्काना का अपनी पत्नी अन्ना से संसर्ग हुआ और प्रभु ने उसे याद किया।

20) अन्ना गर्भवती हो गयी। उसने पुत्र प्रसव किया और यह कह कर उसका नाम समूएल रखा, ‘‘क्योंकि मैंने उस को प्रभु से माँगा है।’’

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:21-28

21) ईसा सभागृह गये और शिक्षा देते रहे।

22) लोग उनकी शिक्षा सुनकर अचम्भे में पड़ जाते थे; क्योंकि वे शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।

23) सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया,

24) ’’ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं- ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।’’

25) ईसा ने यह कहते हुए उसे डाँटा, ’’चुप रह! इस मनुष्य से बाहर निकल जा’’।

26) अपदूत उस मनुष्य को झकझोर कर ऊँचे स्वर से चिल्लाते हुए उस से निकल गया।

27) सब चकित रह गये और आपस में कहते रहे, ’’यह क्या है? यह तो नये प्रकार की शिक्षा है। वे अधिकार के साथ बोलते हैं। वे अशुद्ध आत्माओं को भी आदेश देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानते हैं।’’

28) ईसा की चर्चा शीघ्र ही गलीलिया प्रान्त के कोने-कोने में फैल गयी।

📚 मनन-चिंतन

हम येसु को विश्राम के दिन सभागृह में प्रवेश करते हुए पाते हैं, और लोग उसकी शिक्षा से आश्चर्यचकित हो जाते हैं। शास्त्रियों के विपरीत, येसु एक अद्वितीय अधिकार के साथ बोलते हैं जो उन्हें सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता है। उनके शब्दों में एक दिव्य प्रभाव है जो लोगों के दिलों में गूंजता है। जैसा कि येसु सिखाते हैं, अशुद्ध आत्मा से ग्रस्त एक व्यक्ति सभागृह की शांति को बाधित करता है। शैतान येसु को पहचानता है और घोषणा करता है, “ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं?" यहाँ तक कि दुष्टात्माएँ भी ईश्वर के परमपावन, येसु के अधिकार को स्वीकार करती हैं। इस अशांति के जवाब में, येसु ने अशुद्ध आत्मा को उस व्यक्ति से निकल जाने का आदेश दिया, और तुरंत, वह व्यक्ति मुक्त हो गया। लोग न केवल येसु की आधिकारिक शिक्षा से बल्कि बुरी आत्माओं पर उसकी शक्ति से भी चकित हैं। वे यह पहचानने लगते हैं कि येसु केवल एक उल्लेखनीय शिक्षक नहीं हैं। वह उस अंधकार के विरुद्ध एक शक्ति है जो मानवता को गुलाम बनाता है। आइए येसु के अधिकार को पहचानें। उनकी शिक्षाएँ केवल शब्द नहीं हैं। वे दिव्य सत्य का भार रखते हैं। जब हम उनके शब्दों को सुनते हैं और उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं, तो हम एक परिवर्तनकारी शक्ति का अनुभव करते हैं जो हमें पाप की जंजीरों से मुक्त कर देती है। आइए हम आध्यात्मिक लड़ाइयों की वास्तविकता को स्वीकार करें। जिस प्रकार प्रभु येसु ने अशुद्ध आत्मा का सामना किया, उसी प्रकार हमें भी चुनौतियों और प्रलोभनों का सामना करना पड़ सकता है। फिर भी, हमारे मार्गदर्शक और रक्षक के रूप में येसु के साथ, हमारे पास अपने जीवन में अंधकार की ताकतों पर काबू पाने का अधिकार है। हमें पाप के बंधन से मुक्त करने का उनका अधिकार और क्षमता हमारे दिलों को विस्मय और कृतज्ञता से भर देना चाहिए। जैसे ही हम अपने दैनिक जीवन में येसु से मुलाकात करते हैं, हम उनकी परिवर्तनकारी शक्ति के प्रति खुले रहें और ईश्वर के पवित्र अधिकार के गवाह बनें।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

We find Jesus entering the synagogue on the Sabbath, and the people are astonished by His teaching. Unlike the scribes, Jesus speaks with a unique authority that captivates those who hear Him. His words carry a divine weight that resonates with the hearts of the people. As Jesus teaches, a man possessed by an unclean spirit disrupts the peace of the synagogue. The evil spirit recognizes Jesus, declaring, “What have you to do with us, Jesus of Nazareth? Have you come to destroy us?” Even the demons acknowledge the authority of Jesus, the Holy One of God.In response to this disturbance, Jesus commands the unclean spirit to leave the man, and immediately, the man is set free. The people are amazed, not only by Jesus’ authoritative teaching but also by His power over evil spirits. They begin to recognize that Jesus is not just a remarkable teacher. He is a force against the darkness that enslaves humanity. let’s recognize the authority of Jesus. His teachings are not mere words. They carry the weight of divine truth. When we listen to His words and follow His teachings, we experience a transformative power that sets us free from the chains of sin. let’s acknowledge the reality of spiritual battles. Just as Jesus confronted the unclean spirit, we, too, may face challenges and temptations. Yet, with Jesus as our guide and protector, we have the authority to overcome the forces of darkness in our lives. His authority and ability to free us from the bondage of sin should fill our hearts with awe and gratitude. As we encounter Jesus in our daily lives, may we be open to His transformative power and be witnesses to the authority of the Holy One of God.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

येसु न केवल ईश्वर के राज्य का प्रचार करने आये बल्कि उसका निर्माण करने के लिए भी आये। येसु ने अपने सार्वजनिक जीवन के दौरान ईश्वर के राज्य का उद्घाटन किया। जब ईश्वर के राज्य का निर्माण होता है, तो शैतान के राज्य का विनाश हो जाता है। इसलिए दुष्ट आत्मा ने येसु से पूछा, "क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं?" जैसे प्रकाश अंधकार को दूर करता है, वैसे ही ईश्वर की उपस्थिति शैतान को दूर करती है। बुराई को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है भलाई करना। प्रेरित-चरोत 10:38 में संत पेत्रुस इस बारे में बताता है कि कैसे येसु ने गाँव-गाँव, शहर-शहर घूम कर भलाई की। कभी-कभी लोग बुराई को बुराई से दूर करने की कोशिश करते हैं। लेकिन येसु हमें बुराई पर अच्छाई से विजय पाना सिखाते हैं। इसलिए येसु ने कहा, "अपने शत्रुओं से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिए प्रार्थना करो" (मत्ती 5:44)। आइए हम भलाई करने और स्वर्गराज्य के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हों। शैतान का राज्य अपने आप नष्ट हो जाएगा।

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus came not only to preach the Kingdom of God but also to build it. Jesus inaugurated the Kingdom of God during his public life. When the Kingdom of God is built, the kingdom of the devil is destroyed. That is why the evil spirit asked Jesus, “Have you come to destroy us?” Just like light dispels darkness, the presence of God dispels the devil. The best way to overcome evil is to go about doing good. In Acts 10:38 St. Peter speaks about how Jesus went about doing good. Sometimes people try to overcome evil with evil. But Jesus teaches us to overcome evil with good. That is why Jesus said, “Love your enemies and pray for those who persecute you” (Mt 5:44). Let us be committed to doing good and building the kingdom. The kingdom of the devil will be automatically destroyed.

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन - 03

आज के सुसमाचार में सुनते हैं कि येसु कफ़रनाहुम के सभागृह में प्रवेश करते हैं। जब वे वहाँ प्राधिकार के साथ शिक्षा दे रहे थे तब अशुद्ध आत्मा से पीड़ित एक व्यक्ति चिल्लाने लगा, “ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं- ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।” इस घटना में कई सच्चाइयाँ हमारे सामने आती हैं। सबसे पहले, शैतान डर के साथ येसु की उपस्थिति को पहचानता है। दूसरी बात, शैतान जानता है कि येसु के पास उसका सर्वनाश करने की शक्ति है। तीसरा, शैतान जानता है कि येसु ईश्वर हैं। ‘परमपावन पुरुष’ एक ऐसा नाम है जो पुराने विधान में ईश्वर के लिए ही उपयोग किया जाता है। संत याकूब कहते हैं, "तुम विश्वास करते हो कि केवल एक ईश्वर है। अच्छा करते हो। दुष्ट आत्मा भी ऐसा विश्वास करते हैं, किन्तु काँपते रहते हैं” (याकूब 2:19)। केवल ज्ञान हमें बचा नहीं सकता। शैतान भी सच्चाई जानता है। हम सत्य को जानते हुए भी उस सत्य को नापसंद या अस्वीकार कर सकते हैं। शैतान सच्चाई जानता है, लेकिन उसे खारिज कर देता है। वह झूठ को सच कहना पसंद करता है। येसु उसे झूठा और झूठ का पिता कहते हैं (देखें – योहन 8:44) क्योंकि वह सच्चाई का विरोध करता है। मोक्ष पाने के लिए, हमें सच्चाई को स्वीकार करने और उसे जीने की आवश्यकता है। हमारा शिष्यत्व बौद्धिक ज्ञान के स्तर पर नहीं रह सकता है, इसे हमें येसु के साथ एक प्रेमपूर्ण संबंध के रूप में विकसित करना चाहिए। आइए हम प्रभु से यह वर मांगें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s Gospel passage we hear about Jesus entering the Synagogue in Capernaum. When he was teaching there with authority a man with an unclean spirit started shouting, “What do you want with us, Jesus of Nazareth? Have you come to destroy us? I know who you are: the Holy One of God!” Many truths come to light in this incident. First of all, the devil recognizes the presence of Jesus with fear. Secondly, the devil is aware that Jesus has the power to destroy him. Thirdly, the devil knows that Jesus is God. ‘Holy One’ is name used for God. St. James says, “You believe that God is one; you do well. Even the demons believe and shudder” (Jam 2:19). Knowledge alone cannot save us. Even the devil knows the truth. We may know the truth, but may dislike or reject that truth. The devil knows the truth, but rejects it. He prefers lies to truth. Jesus calls him a liar and father of lies (cf. Jn 8:44) because he is opposed to the truth. To be saved, we need to accept the truth and live the truth. Our discipleship cannot remain at the level of the intellectual knowledge, it has to grow into a loving union with Jesus. Let us ask the Lord for this grace.

-Fr. Francis Scaria