सोमवार, 15 जनवरी, 2024

सामान्य काल का दूसरा सप्ताह

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📒 पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 15:16-23

16) समूएल ने साऊल से कहा, ‘‘बहुत हुआ। मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि प्रभु ने कल रात मुझ से क्या कहा।’’ इस पर साऊल ने उत्तर दिया, ‘‘बताइये।’’

17) समूएल ने कहा, ‘‘तुम भले ही अपने को छोटा समझते थे, फिर भी तुम इस्राएली वंशों के अध्यक्ष हो और प्रभु ने इस्राएल के राजा के रूप में तुम्हारा अभिशेक किया है।

18) प्रभु ने तुम्हें यह आदेश दे कर भेजा था, ‘जाओ और उन पापी अमालेकियों का संहार करो और उन से तब तक लड़ते रहो, जब तक उनका सर्वनाश न हो।’

19) तुमने क्यों प्रभु की आज्ञा का उल्लंघन किया और लूट के माल पर झपट कर वह काम किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है?’’

20) इस पर साऊल ने समूएल से कहा, ‘‘मैंने प्रभु की आज्ञा का पालन किया। प्रभु ने जहाँ मुझे भेजा, मैं वहाँ गया और अमालेकियों का संहार कर अमालेक के राजा अगाग को यहाँ ले आया।

21) लेकिन जनता के लूट के माल में से सर्वोत्तम भेड़ों और बैलों को संहार से बचा कर ले लिया, जिससे वे उन्हें आपके प्रभु ईश्वर को बलि चढ़ायें।’’

22) समूएल ने उत्तर दिया, ‘‘क्या होम और बलिदान प्रभु को इतने प्रिय होते हैं, जितना उसके आदेश का पालन? नहीं! आज्ञापालन बलिदान से कहीं अधिक उत्तम है और आत्मसमर्पण भेड़ों की चरबी से बढ़ कर है;

23) क्योंकि विद्रोह जादू-टोने की तरह पाप है और आज्ञाभंग मूर्तिपूजा के बराबर है। तुमने प्रभु का वचन अस्वीकार किया, इसलिए प्रभु ने तुम को अस्वीकार किया - तुम अब से राजा नहीं रहोगे।’’

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 2:18-22

18) योहन के शिष्य और फ़रीसी किसी दिन उपवास कर रहे थे। कुछ लोग आ कर ईसा से बोले, ’’योहन के शिष्य और फ़रीसी उपवास कर रहे हैं। आपके शिष्य उपवास क्यों नहीं करते?’’

19) ईसा ने उत्तर दिया, ’’जब तक दुल्हा साथ है, क्या बाराती शोक मना सकते हैं? जब तक तक दुल्हा उनके साथ हैं, वे उपवास नहीं कर सकते हैं।

20) किन्तु वे दिन आयेंगे, जब दुल्हा उनसे बिछुड़ जायेगा। उन दिनों वे उपवास करेंगे।

21) ’’कोई पुराने कपड़े पर कोरे कपड़े का पैबन्द नहीं लगाता। नहीं तो नया पैबन्द सिकुड़ कर पुराना कपड़ा फाड़ देता है और चीर बढ़ जाती है।

22) कोई पुरानी मशकों में नयी अंगूरी नहीं भरता। नहीं तो अंगूरी मशकों फाड़ देती है और अंगूरी तथा मशकें, बरबाद हो जाती हैं। नयी अंगूरी को नयी मशको में भरना चाहिए।’’

📚 मनन-चिंतन

मारकुस का सुसमाचार, अध्याय 2, पद-संख्याएं 18-22 कहती हैं, फरीसी, जो धार्मिक रीति-रिवाजों का कड़ाई से पालन करने के लिए जाने जाते हैं, उपवास के बारे में येसु से सवाल करते हैं। येसु ने उन्हें एक विवाह भोज के दृष्टान्त के साथ उत्तर दिया। वह खुद को दूल्हे के रूप में प्रस्तुत करते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि जब शिष्य उनके साथ हैं, तो शिष्यों के लिए यह खुशी का समय है, शोक का नहीं। वह नई अंगूरी और नई मशकों की बात कर ते हुए बताते हैं कि पुरानी मशकों में नई अंगूरी डालने से वे फट जाएंगी। सबसे पहले, येसु ने फरीसियों की आध्यात्मिकता की समझ को चुनौती दी। वह हमें यह देखने के लिए आमंत्रित करते हैं कि विश्वास केवल नियमों और परंपराओं का पालन करने के बारे में नहीं है बल्कि उसके साथ-साथ एक गतिशील रिश्ते के बारे में है। शादी के मेहमानों की तरह, हमें दूल्हे, येसु की उपस्थिति में आनंद मनाने के लिए बुलाया गया है। नई अंगूरी और नई मशकों का उल्लेख परिवर्तन और नवीनीकरण का संदेश सुझाता है। येसु कुछ नवीनता और परिवर्तन लाते हैं। यह उनकी शिक्षाओं के प्रति खुले रहने, सोचने के कठोर तरीकों को छोड़ने और उनके संदेश की ताजगी को अपनाने का आह्वान है। येसु हमें याद दिलाते हैं कि उनकी कृपा की पूर्णता प्राप्त करने के लिए, हमें उनके अनुकूल बनना चाहिए, उन्हें हमारे दिलों में नई अंगूरी भरने देना चाहिए, जिससे हम उनके परिवर्तनकारी प्रेम को धारण करने के लिए सक्षम नई मशक बन सकें।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

The Gospel of Mark, chapter 2, verses 18-22. says, the Pharisees, known for their strict observance of religious customs, question Jesus about fasting. Jesus responds with a metaphor about a wedding feast. He relates Himself to the bridegroom and emphasizes that while the disciples are with Him, it is a time of joy, not mourning. He introduces the idea of new wine and new wineskins, explaining that pouring new wine into old wineskins would cause them to burst. Firstly, Jesus challenges the Pharisees’ understanding of spirituality. He invites us to see that faith is not just about following rules and traditions but about a dynamic relationship with Him. Like the wedding guests, we are called to rejoice in the presence of the Bridegroom, Jesus. The mention of new wine and new wineskins suggests a message of change and renewal. Jesus brings something new and transformative. It’s a call to be open to His teachings, to let go of rigid ways of thinking, and to embrace the freshness of His message. Jesus reminds us that to receive the fullness of His grace, we must be willing to adapt, to let Him pour new wine into our hearts, making us new wineskins capable of holding His transformative love.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

येसु की शिक्षाएँ निस्संदेह क्रांतिकारी थीं। उन्हें स्वीकार करने के लिए उनके समय के लोगों को एक नई मानसिकता और एक नई मूल्य प्रणाली अपनानी पड़ी। केवल दिखावटी परिवर्तनों की वकालत करने के बजाय, येसु ने पूरी तरह से नवीनीकरण का आह्वान किया। फिलिप्पियों 2:5 में संत पौलुस कहते हैं, "आप लोग अपने मनोभावों को ईसा मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें।" मसीही जीवन जीने के लिए हमें मसीह की मानसिकता तथा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। संत पौलुस के मनपरिवर्तन के बाद उनके जीवन में आए भारी परिवर्तन को देखें। उनका पूरा दृष्टिकोण और मानसिकता मसीह के साथ उनकी मुलाकात के बाद बदल गई। वे उत्पीड़क से शिष्य में बदल गये। निकोदेमुस के साथ बातचीत में, येसु कहते हैं, "मैं आप से यह कहता हूँ - जब तक कोई दुबारा जन्म न ले, तब तक वह स्वर्ग का राज्य नहीं देख सकता" (योहन 3:3)। येसु हमारे जीवन में व्यापक और प्रभावशाली परिवर्तन की मांग करते हैं। एज़ेकिएल 36:26 में, प्रभु कहते हैं, "मैं तुम लोगों को एक नया हृदय दूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निाकल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूँगा।” प्रभु हम सब से हृदय और आत्मा के परिवर्तन की माँग करते हैं।

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

The teachings of Jesus were, no doubt, revolutionary. To accept them, the people of his time needed a new mindset and a new value system. Instead of advocating mere cosmetic changes, Jesus called for a thorough renewal. In Phil 2:5 St. Paul says, “Let the same mind be in you that was in Christ Jesus”. We need to have the mind and outlook of Christ to live a Christian life. Look at the drastic change in the life St. Paul after his conversion. His whole outlook and vision changed after his encounter with Christ. It was a movement from persecutor to disciple. In conversation with Nicodemus, Jesus tells, “Very truly, I tell you, no one can see the kingdom of God without being born from above” (Jn 3:3). Jesus demands drastic and comprehensive change in our lives. In Ezek 36:26, the Lord says, “A new heart I will give you, and a new spirit I will put within you; and I will remove from your body the heart of stone and give you a heart of flesh”. A change of heart and of the Spirit is what the Lord demands from everyone of us.

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन -3

एक महिला ने केरल एक्सप्रेस ट्रेन से एर्नाकुलम की यात्रा करने की योजना बनाई थी। वह विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर ट्रेन का इंतजार कर रही थी। ट्रेन एक घंटे देरी से पहुंची। उसने अंदर जाकर अपनी सीट की तलाश की। उस सीट पर किसी ने पहले ही कब्जा कर लिया था। उस व्यक्ति के साथ वाद-विवाद में उसको मालूम पड़ा कि जिस ट्रेन में उसने प्रवेश किया था, वह नई दिल्ली जाने वाली केरल एक्सप्रेस थी, न कि एर्नाकुलम की ओर जाने वाली। बाहर आ कर पूछताछ में उसे पता चला कि एर्नाकुलम की ओर जाने वाली केरल एक्सप्रेस ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 1 से सही समय पर ही रवाना हो गयी थी। एर्नाकुलम की ओर जाने वाली केरल एक्सप्रेस और नई दिल्ली की ओर जाने वाली केरल एक्सप्रेस – दोनों के समय में ज़्यादा अंतर नहीं था। वह महिला गलत प्लेटफॉम पर खडी थी जबकि उनकी गाडी सही समय पर प्लाट्फॉम नंबर 1 से रवाना हो चुकी थी। परिणामस्वरूप वह उस दिन यात्रा नहीं कर सकी। इस महिला की तुलना हम संत योहन बपतिस्ता के कुछ शिष्य और फरीसियों से कर सकते हैं। वे एक अनुष्ठान या रिवाज के रूप में उपवास कर रहे थे। आम तौर पर धार्मिक लोग ईश्वर के करीब आने और पवित्रता में बढ़ने के लिए उपवास करते हैं। अब येसु, ईश्वर का पुत्र उनके बीच में थे। यह उनकी उपस्थिति का जश्न मनाने और आनंद लेने का समय था, लेकिन फरीसी और योहन के कुछ शिष्य उपवास कर रहे थे, और उस उपहार को प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे, जिसके लिए वे प्रार्थना कर रहे थे। हमें हर समय और हर जगह ईशर और उसकी उपस्थिति के लिए खुला रहना चाहिए।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

A lady had planned to travel to Ernakulam by Kerala Express train. She was waiting for the train on Platform Number 3 at Vijaywada Railway Station. The train arrived one hour late. She got in and looked for her seat. Someone had already occupied that seat. While arguing with that person she realized that the train she got in was Kerala Express bound for New Delhi, not the one going towards Ernakulam. On inquiry she came to know that the train that was bound for Ernakulam had come at the right time on platform number 1 and had departed long ago. In her worries she had not verified the details of the train. As a result she missed her train and could not travel on that day. Some of the disciples of St. John the Baptist and the Pharisees were fasting as a ritual or a custom. Normally in religious circles people fast to come closer to God and to grow in holiness. Now Jesus, the Son of God was in their midst. It would have been a time to feast and enjoy his presence, but the Pharisees and John’s disciples kept fasting as a ritual without being able to receive the gift they have been praying for. Let us be open to God and his presence everywhere and at all times.

-Fr. Francis Scaria