मंगलवार, 17 जनवरी, 2024

सामान्य काल का दूसरा सप्ताह

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📒 पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 17:32-33, 37, 40-51

32) दाऊद ने साऊल से कहा, ‘‘उस फ़िलिस्ती के कारण कोई भी हिम्मत न हारे। आपका यह सेवक उससे लड़ने जायेगा।’’

33) इस पर साऊल ने यह उत्तर दिया, ‘‘तुम उस फ़िलिस्ती से लड़ने नहीं जा सकते। तुम तो अभी किशोर हो और वह लड़कपन से ही वीर योद्धा है।’’

37) प्रभु ने मुझे सिंह और भालू के पंजे से बचा लिया। वह मुझे उस फ़िलिस्ती के हाथ से भी बचायेगा।’’ इस पर साऊल ने दाऊद से कहा, ‘‘जाओ। प्रभु तुम्हारे साथ हो।’’

40) तब दाऊद ने अपनी लाठी हाथ में ली और नाले से पाँच चिकने पत्थर चुन कर अपनी चरवाहे की झोली के जेब में रख लिये। तब वह हाथ में ढेलवाँस लिये फ़िलिस्ती की ओर बढ़ा।

41) फ़िलिस्ती भी धीरे-धीरे दाऊद की ओर बढ़ा। उसका ढालवाहक उसके आगे-आगे चलता था।

42) फिलिस्ती ने दाऊद को देखा और उस पर आँखें दौड़ा कर उसका तिरस्कार किया, क्योंकि वह किशोर था (उसका रंग गुलाबी और शरीर सुडौल था) ।

43) फ़िलिस्ती ने दाऊद से कहा, ‘‘क्या तुम मुझे कुत्ता समझे हो, जो लाठी लिये मुझ से लड़ने आये?’’ और वह अपने देवताओं का नाम ले कर दाऊद को कोसने लगा।

44) इसके बाद उसने दाऊद से कहा, ‘‘मेरे पास आओ और मैं आकाश के पक्षियों और जंगल के जानवरों को तुम्हारा माँस खिलाऊँगा।’’

45) दाऊद ने फ़िलिस्ती को यह उत्तर दिया, ‘‘तुम तलवार, भाला और बरछी लिये मुझ से लड़ने आ रहे हो। मैं तो विश्वमण्डल के प्रभु, इस्राएली सेनाओं के ईश्वर के नाम पर तुम से लड़ने आ रहा हूँ, जिसे तुमने चुनौती दी है।

46) ईश्वर आज तुम को मेरे हवाले कर देगा। मैं तुम को पछाड़ कर तुम्हारा सिर काट डालूँगा और आज ही आकाश के पक्षियों और जंगल के जानवरों को फ़िलिस्तियों की लाशें खिलाऊँगा, जिससे सारी दुनिया यह जान जायेगी कि इस्राएल का अपना ईश्वर है।

47) और यहाँ का सारा समुदाय यह जान जायेगा कि प्रभु तलवार या भाले द्वारा नहीं बचाता। प्रभु ही युद्ध का निर्णय करता है और वह तुम लोगों को हमारे हवाले कर देगा।’’

48) जब फ़िलिस्ती फिर आगे बढ़ने लगा, तो दाऊद उसका सामना करने के लिए दौड़ पड़ा।

49) दाऊद ने झोली में हाथ डाल कर एक पत्थर निकाल लिया, उसे ढेलवाँस में लगाया और फ़िलिस्ती के माथे पर मार दिया। वह पत्थर उसके माथे में गड़ गया और वह मुँह के बल भूमि पर गिर पड़ा।

50) इस प्रकार दाऊद ढेलवाँस और पत्थर द्वारा फ़िलिस्ती पर विजयी हुआ। उसने फ़िलिस्ती को पछाड़ा और मार डाला, यद्यपि उसके हाथ में तलवार नहीं थी।

51) दाऊद फ़िलिस्ती के पास दौड़ा आया उसने फ़िलिस्ती की तलवार म्यान से निकाली और उस से उसका सिर काट कर उसे मार डाला। फ़िलिस्ती लोग यह देख कर कि उनका अपना वीर योद्धा मार डाला गया, भाग खडे़ हुए।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 3:1-6

1) ईसा फिर सभागृह गये। वहाँ एक मनुष्य था, जिसका हाथ सूख गया था।

2) वे इस बात की ताक में थे कि ईसा कहीं विश्राम के दिन उसे चंगा करें, और वे उन पर दोष लगायें।

3) ईसा ने सूखे हाथ वाले से कहा, ’’बीच में खड़े हो जाओ’’।

4) तब ईसा ने उन से पूछा, ’’विश्राम के दिन भलाई करना उचित है या बुराई, जान बचाना या मार डालना?’’ वे मौन रहे।

5) उनके हृदय की कठोरता देख कर ईसा को दुःख हुआ और वह उन पर क्रोधभरी दृष्टि दौड़ा कर उस मनुष्य से बोले, ’’अपना हाथ बढ़ाओ’’। उसने ऐसा किया और उसका हाथ अच्छा हो गया।

6) इस पर फ़रीसी बाहर निकल कर तुरन्त हेरोदियों के साथ ईसा के विरुद्ध परामर्श करने लगे कि हम किस तरह उनका सर्वनाश करें।

📚 मनन-चिंतन

हम येसु और सूखे हाथ वाले एक आदमी के बीच एक शक्तिशाली मुलाकात देखते हैं। येसु सभागृह में प्रवेश करते हैं, और वहाँ उन्हें सूखे हाथ वाला एक आदमी मिलता है। फरीसियों ने, जो वहाँ उपस्थित थे, बारीकी से देखा, ईश्वर के प्रेम और करुणा के लिए खुले हृदय से नहीं, बल्कि निर्णय और आलोचना की दृष्टि से। येसु, सदैव दयालु और अपने आस-पास के लोगों की जरूरतों के प्रति जागरूक, उस व्यक्ति को देखते हैं और फरीसियों से एक प्रश्न पूछते हैं, "विश्राम के दिन भलाई करना उचित है या बुराई, जान बचाना या मार डालना?" उनका प्रश्न विश्राम दिवस के बारे में उनकी कठोर समझ को चुनौती देता है और उन्हें जीवन और चंगाई लाने के लिए ईश्वर के कानून के वास्तविक उद्देश्य से रूबरू कराता है। मुरझाया हुआ हाथ किसी शारीरिक बीमारी से कहीं अधिक का प्रतीक है। यह हमारे जीवन के किसी भी पहलू का प्रतिनिधित्व करता है जो सूख सकता है या टूट सकता है। येसु न केवल हमारे भौतिक शरीरों को बल्कि हमारे दिलों और आत्माओं को भी ठीक करना और पुनर्स्थापित करना चाहते हैं। आइए येसु के चंगाई के स्पर्श के लिए अपने हृदय खोलें। आइए हम उनकी करुणा का अनुकरण करने और ईश्वर के प्रेम की सच्ची भावना को अपनाने का प्रयास करें, जिससे यह हमारे जीवन और हमारे आस-पास के लोगों के जीवन को बदल सके।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

We witness a powerful encounter between Jesus and a man with a withered hand. Jesus enters the synagogue, a place of worship, and there He finds a man with a withered hand. The Pharisees, who were present, watched closely, not with hearts open to God’s love and compassion, but with judgment and criticism. Jesus, ever compassionate and aware of the needs of those around Him, looks at the man and poses a question to the Pharisees, “Is it lawful on the Sabbath to do good or to do harm, to save life or to kill?” His question challenges their rigid understanding of the Sabbath and confronts them with the true purpose of God’s law – to bring life and healing. The withered hand symbolizes more than a physical ailment. It represents any aspect of our lives that may be withered or broken. Jesus desires to heal and restore not just our physical bodies but our hearts and spirits. Let us open our hearts to the healing touch of Jesus. Let’s strive to emulate His compassion and embrace the true spirit of God’s love, allowing it to transform our lives and the lives of those around us.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -2

विश्राम दिवस पर चंगाई एक बार फिर से यहूदी नेताओं को नाराज करती है। प्रभु येसु भालाई करते रहते हैं। भलाई करने के लिए हर समय और हर दिन शुभ होता है। भलाई करना और जीवन को बचाना हमेशा अच्छा होता है। विश्राम के दिन भलाई करना और भी अधिक सार्थक है। वह ईश्वर को समर्पित दिन है। प्रभु सभी अच्छाइयों का स्रोत है। यह अच्छा है कि लोग विश्राम के दिन कई तरह से प्रभु की भलाई का अनुभव करें और उनकी भलाई के लिए उनकी स्तुति करें। फरीसी कानूनों और कर्मकांडों के बारे में बहुत अधिक चिंतित थे। इस कारण वे प्रेम, दया और करुणा पर जोर देने में सक्षम नहीं थे। उन्होंने ईश्वर को मात्र एक न्यायाधीश और अनुशासक के रूप में प्रस्तुत किया और लोगों को एक दयालु ईश्वर का अनुभव करने के लिए सक्षम बनाने में विफल रहे। येसु ईश्वर को एक अच्छा चरवाहा, एक दयालु चिकित्सक और एक प्रेममय पिता के रूप में प्रकट करने के लिए आये थे। आइए हम प्रभु के इस दयालु चेहरे को दूसरों के सामने पेश करने का प्रयास करें।

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Once again healing on Sabbath irks the Jewish leaders. Jesus keeps doing good. Every time and every day is auspicious for doing good. It is always noble to do good and save life, and even more meaningful to do good on Sabbath, a day dedicated to God, the source of all goodness. It is good that people experience the goodness of the Lord in many ways on Sabbath and praise the Lord for his goodness. The Pharisees were too much concerned about laws and rituals. They were not any more able to stress on love, mercy and compassion. They presented God to be a mere judge and disciplinarian and failed to enable the people to experience a merciful God. Jesus came to reveal God as the good shepherd, a compassionate physician and a loving father. Let us try to present this merciful face of God to others.

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन -3

आज एक बार फिर हम देखते हैं कि येसु विश्राम दिवस के बारे में गलत धारणाओं को सुधारना चाहते हैं। येसु के अनुसार विश्राम दिवस पर कोई भी अच्छा काम किया जा सकता है। येसु ने विश्राम के दिन एक सूखे हाथ वाले को चंगा किया। फरीसी चाहते थे कि वे विश्राम दिवस समाप्त होने का इंतज़ार करें क्योंकि विश्राम के दिन काम करना मना था। लेकिन येसु किसी भी अच्छे काम को स्थगित करना पसंद नहीं करते हैं। ईश्वर का वचन कहता है, “पुत्र! यदि यह तुम्हारी शक्ति के बाहर न हो, तो जिसके आभारी हो, उसका उपहार करो। यदि तुम दे सकते हो, तो अपने पड़ोसी से यह न कहो, "चले जाओ! फिर आना! मैं तुम्हे कल दूँगा।" (सूक्ति 3: 27-28)। हमारे समाज में हम कई बार सुनते हैं, "न्याय में देरी करना, न्याय से वंचित करना है"। येसु नहीं चाहते कि हम पड़ोसी के लिए किसी अच्छे काम में विलंभ करें। जो नियत है, उसे न देना और देने में देर करना – दोनों पाप हैं। पवित्रग्रन्थ कहता है, "किसी अभागे, कंगाल मज़दूर का शोषण नहीं करोगे, चाहे वह तुम्हारा देश-भाई हो या तुम्हारे किसी नगर में रहने वाला प्रवासी। उसने जिस दिन मज़दूरी की है, तुम उसी दिन उसे उसकी मज़दूरी सूर्यास्त के पहले दे दोगे। वह दरिद्र है, वह उसकी प्रतीक्षा कर रहा है; क्योंकि यदि वह तुम्हारे विरुद्ध प्रभु से दुहाई करेगा, तो तुम दोषी माने जाओगे।” (विधि-विवरण 24: 14-15) आइए हम ज़रूरतमंदों तक पहुँचने में देर न करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today, once again we see that Jesus wants to rectify the misconceptions about the celebration of the Sabbath. According to Jesus any good thing can be done on Sabbath. Jesus healed the man with a withered hand on a Sabbath day. The Pharisees would want him to wait for the Sabbath to be over as work was forbidden on the Sabbath. But Jesus does not like to postpone any good work. The Word of God says, “Do not withhold good from those to whom it is due, when it is in your power to do it. Do not say to your neighbor, “Go, and come again, tomorrow I will give it”— when you have it with you” (Prov 3:27-28). In our society we hear it being said, “Justice delayed is justice denied”. Jesus does not want us to delay any good work to the neighbor. Delaying what is due to someone is sinful. The Scripture says, “You shall not withhold the wages of poor and needy laborers, whether other Israelites or aliens who reside in your land in one of your towns. You shall pay them their wages daily before sunset, because they are poor and their livelihood depends on them; otherwise they might cry to the Lord against you, and you would incur guilt.” (Deut 24:14-15) Let us learn to be prompt in reaching out to the needy.

-Fr. Francis Scaria