रविवार, 28 जनवरी, 2024

वर्ष का चौथा सामान्य रविवार

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पहला पाठ :विधि-विवरण ग्रन्थ18:15-20

15) तुम्हारा प्रभु ईश्वर तुम्हारे बीच, तुम्हारे ही भाइयों में से, तुम्हारे लिए मुझ-जैसा एक नबी उत्पन्न करेगा-तुम लोग उसकी बात सुनोगे।

16) जब तुम होरेब पर्वत के सामने एकत्र थे, तुमने अपने प्रभु-ईश्वर से यही माँगा था। तुम लोगों ने कहा था अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी हमें फिर सुनाई नहीं पडे़ और हम फिर भयानक अग्नि नहीं देखे। नहीं तो हम मर जायेंगे।

17) तब प्रभु ने मुझ से यह कहा, लोगों का कहना ठीक ही है।

18) मैं उनके ही भाइयों मे से इनके लिए तुम-जैसा ही नबी उत्पन्न करूँगा। मैं अपने शब्द उसके मुख मे रखूँगा और उसे जो-जो आदेश दूँगा, वह तुम्हें वही बताएगा।

19) वह मेरे नाम पर जो बातें कहेगा, यदि कोई उसकी उन बातों को नहीं सुनेगा, तो मैं स्वंय उस मनुष्य से उसका लेखा लूँगा।

20) यदि कोई नबी मेरे नाम पर ऐसी बात कहने का साहस करेगा, जिसके लिए मैंने उसे आदेश नहीं दिया, या वह अन्य देवताओं के नाम पर बोलेगा, तो वह मर जायेगा।’

दूसरा पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 7:32-35

32) मैं तो चाहता हूँ कि आप लोगों को कोई चिन्ता न हो। जो अविवाहित है, वह प्रभु की बातों की चिन्ता करता है। वह प्रभु को प्रसन्न करना चाहता है।

33) जो विवाहित है, वह दुनिया की बातों की चिन्ता करता है। वह अपनी पत्नी को प्रसन्न करना चाहता है।

34) उस में परस्पर-विरोधी भावों का संघर्ष है जिसका पति नहीं रह गया और जो कुँवारी है, वे प्रभु की बातों की चिन्ता करती है। तो विवाहित है, वह दुनिया की बातों की चिन्ता करती हैं, और अपने पति को प्रसन्न करना चाहती है।

35) मैं आप लोगों की भलाई के लिए यह कह रहा हूँ। मैं आपकी स्वतन्त्रता पर रोक लगाना नहीं चाहता। मैं तो आप लोगों के सामने प्रभु की अनन्य भक्ति का आदर्श रख रहा हूँ।

सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:21b-28

21) वे कफ़नाहूम आये। जब विश्राम दिवस आया, तो ईसा सभागृह गये और शिक्षा देते रहे।

22) लोग उनकी शिक्षा सुनकर अचम्भे में पड़ जाते थे; क्योंकि वे शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।

23) सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया,

24) ’’ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं- ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।’’

25) ईसा ने यह कहते हुए उसे डाँटा, ’’चुप रह! इस मनुष्य से बाहर निकल जा’’।

26) अपदूत उस मनुष्य को झकझोर कर ऊँचे स्वर से चिल्लाते हुए उस से निकल गया।

27) सब चकित रह गये और आपस में कहते रहे, ’’यह क्या है? यह तो नये प्रकार की शिक्षा है। वे अधिकार के साथ बोलते हैं। वे अशुद्ध आत्माओं को भी आदेश देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानते हैं।’’

28) ईसा की चर्चा शीघ्र ही गलीलिया प्रान्त के कोने-कोने में फैल गयी।

📚 मनन-चिंतन

येसु अपने 72 शिष्यों को एक मिशन पर भेजते हैं, और यह हमारे लिए विचार करने के लिए सुंदर सबक हैं। पहली बात, येसु उन्हें जोड़ों में भेजते हैं। यह हमें साथीदारी और प्रेम का संदेश फैलाने के लिए साथ काम करने की महत्ता के बारे में सिखाता है। हमें अकेले सफर नहीं करना चाहिए हमारा विश्वास एक साझा अनुभव है। जब शिष्य अपने मिशन पर निकलते हैं, तो येसु उन्हें आदेश देते हैं कि वे कोई पैसे का थैला, कोई पिटारी, और कोई चप्पल न लें। यह अजीब लग सकता है, लेकिन यह ईश्वर की व्यवस्था पर निर्भरता पर जोर देता है। शिष्यों को ईश्वर के प्रबन्ध पर पूरी तरह से भरोसा करने के लिए कहा जाता है, जो सुसमाचार फैलाने के लिए आवश्यक सादगी और विश्वास को दर्शाता है। येसु आगे कहते हैं, “जो भी घर तुम प्रवेश करो, पहले कहो, इस घर को शांति।” यह हमें याद दिलाता है कि हमारा मिशन केवल एक संदेश पहुंचाने के बारे में नहीं है बल्कि हम जहां भी जाएं, वहाँ ईश्वर की शांति लाने के बारे में भी है। हमारे शब्द और कार्य ईश्वर की शांति के साधन होने चाहिए, एक दुनिया में जो अक्सर अशांति से भरी होती है। इसके अलावा, येसु शिष्यों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे जो कुछ उनके सामने रखा जाता है, उसे खाएं, जो कृतज्ञता और स्वीकार की भावना पर जोर देता है। यह हमें दूसरों की मेहमाननवाजी की कद्र करना और उनकी दयालुता में ईश्वर के आशीर्वाद को पहचानना सिखाता है। मसीह के शिष्य होने के नाते, हम जहां भी जाते हैं, उम्मीद और उद्धार का संदेश लेकर जाते हैं। हमारा मिशन है कि हम अपने शब्दों, कार्यों, और जो प्यार हम बांटते हैं, के माध्यम से दूसरों को ईश्वर के राज्य के करीब लाएं। येसु के शब्द हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने मिशन को खुशी और प्यार के साथ अपनाएं, जानते हुए कि परमेश्वर का राज्य नजदीक है।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

p>Jesus and His disciples find themselves in a boat, crossing the Sea of Galilee. Suddenly, a fierce storm arises, and the waves crash against the boat. The disciples are terrified, fearing for their lives. Meanwhile, Jesus is peacefully sleeping in the boat. The disciples, in their panic, wake Jesus, asking if He cares that they are perishing. In response, Jesus stands up and speaks to the wind and the sea, saying, ‘Peace! Be still!’ Miraculously, the wind ceases, and there is a great calm. This incident holds a beautiful lesson for us. Life, at times, can be like a stormy sea. Challenges, uncertainties, and difficulties may surround us, causing fear and anxiety. In those moments, we may feel like the disciples, wondering if God is aware of our struggles. But here’s the reassuring truth, Jesus is with us in the boat of life. Even though the storms may rage, His presence brings peace. Amid the chaos, He can speak to the storms of our hearts, saying, ‘Peace! Be still!’ It’s a reminder that no matter how turbulent life gets, Jesus is in control. He can bring calm to our fears, clarity to our confusion, and peace to our troubled hearts. We just need to trust Him, even when it seems like He’s asleep in the boat. May we trust in His power to calm the storms and find peace in His loving presence.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

हम येसु को गलीलिया के समुद्र के किनारे एक नगर कफ़र्नाहूम में सभागृह में प्रवेश करते हुए पाते हैं। जो आगे की घटना है, वह काफी असाधारण है। येसु शिक्षा देना शुरू करते हैं, और लोग हैरान हो जाते हैं। लिखने वालों के विपरीत, येसु ऐसे अधिकार के साथ शिक्षा देते हैं जो दिलों और दिमागों को आकर्षित करती है। जब येसु शिक्षा देते हैं, तो एक अशुद्ध आत्मा वाला आदमी चिल्लाता है, येसु को ईश्वर के परम पावन पुरुष होने का पहचानता है। येसु, अपने अधिकार के साथ, अशुद्ध आत्मा को फटकारते हुए और उस आदमी को ठीक करते हुए आदेश देते हैं। लोग येसु के शब्दों से ही नहीं बल्कि उनकी शक्ति से भी हैरान होते हैं, जो चंगाई और मुक्ति लाने में सक्षम है। यह क्षण येसु के बारे में एक गहरी सच्चाई को प्रकट करता है। वह केवल एक बुद्धिमान शब्दों वाला शिक्षक नहीं है, वह सब पर अधिकार रखने वाला ईश्वर का पुत्र है, यहाँ तक कि अंधेरे की शक्तियों पर भी। येसु की प्राधिकरण आध्यात्मिक क्षेत्र तक फैलती है। जो पाप और अंधेरे से बंधे हैं, वे उन्हें भी आजादी देते हैं। लोगों की प्रतिक्रिया आश्चर्य और विस्मय का मिश्रण है। वे पहचानते हैं कि येसु अलग हैं, उनकी एक अनोखा अधिकार है जो उन्हें अलग करता है। यह अधिकार केवल शब्दों के बारे में नहीं है। यह परिवर्तन और मुक्ति के बारे में भी है। यह आज के लिए, हमारे लिए क्या मतलब रखता है? यह हमें याद दिलाता है कि येसु एक दूर के अतीत का चेहरा नहीं है, बल्कि एक जीवित और वर्तमान का प्राधिकरण और चंगाई का स्रोत है। हमारे अपने जीवन में, येसु अपने वचन के माध्यम से अधिकार के साथ बोलते हुए और हमारे टूटे हुए को ठीक करते हुए जारी हैं। जब हम चुनौतियों और संघर्षों का सामना करते हैं, तो आइए हम येसु की ओर मुड़ें, जिनके पास हमें ठीक करने और मुक्त करने का अधिकार हैं। आइए हम उनके शब्दों को अपने दिल में घुसने दें और परिवर्तन लाएं। हम, कफ़रनाहूम के लोगों की तरह, येसु के अधिकार और शक्ति से हैरान हों, जो हमारे जीवन में चमत्कार करते रहते हैं। प्रभु आपको आशीर्वाद दें और आपके दिलों को उनके अधिकार और चंगाई की प्रेरणा देने वाली उपस्थिति से भर दें।

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


We find Jesus entering the synagogue in Capernaum, a town by the Sea of Galilee. What happens next is quite extraordinary. Jesus begins to teach, and the people are astonished. Unlike the scribes, Jesus teaches with authority that captivates hearts and minds. As Jesus teaches, a man with an unclean spirit cries out, recognizing Jesus as the Holy One of God. Jesus, with his authoritative command, rebukes the unclean spirit and heals the man. The people are amazed not just by Jesus’ words but by His power to bring about healing and liberation. This moment reveals a profound truth about Jesus. He is not just a teacher with wise words, He is the Son of God with authority over all, even the forces of darkness. Jesus’ authority extends to the spiritual realm, bringing freedom to those bound by sin and darkness. The response of the people is a mix of awe and amazement. They recognize that Jesus is different, He has a unique authority that sets Him apart. This authority is not just about words. It is about transformation and liberation. What does this mean for us today? It reminds us that Jesus is not a distant figure from the past, but a living and present source of authority and healing. In our own lives, Jesus continues to speak with authority through His Word and bring healing to our brokenness. As we face challenges and struggles, let’s turn to Jesus, the one with the authority to heal and set us free. Let’s allow His words to penetrate our hearts and bring about transformation. May we, like the people in Capernaum, be astonished by the authority and power of Jesus, who continues to work wonders in our lives. May the Lord bless you and fill your hearts with the awe-inspiring presence of His authority and healing.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)

मनन-चिंतन - 3

निर्गमन ग्रन्थ, अध्याय 3 में हमे देखते हैं कि ईश्वर ने जलती हुई झाडी में से मूसा को दर्शन दिया और उन्हें मिस्र देश में फिराऊन के पास जा कर इस्राएलियों छुडाने का आदेश दिया। तब उन्होंने मूसा से कहा, “मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैंने तुम को भेजा है, तुम्हारे लिए इसका प्रमाण यह होगा कि जब तुम इस्राएल को मिस्र से निकाल लाओगे, तो तुम लोग इस पर्वत पर प्रभु की आराधना करोगे (निर्गमन 3:12)। मिस्र देश से निकलने के ठीक तीन महीने बाद इस्राएली सीनई की मरुभूमि पहुँचे। प्रभु ईश्वर के आदेश के अनुसार मूसा ने इस्राएली लोगों को ईश्वर से मिलने के लिए एकत्रित किया। लेकिन इस्राएली लोग बहुत डरे हुए थे। निर्गमन 20:18-21 में हम पढ़ते हैं, “जब सब लोगों ने बादलों का गरजन, बिजलियाँ, नरसिंगे की आवाज़ और पर्वत से निकलता हुआ धुआँ देखा, तो वे भयभीत होकर काँपने लगे। वे कुछ दूरी पर खड़े रहे और मूसा से कहने लगे, “आप हम से बोलिए और हम आपकी बात सुनेंगे, किन्तु ईश्वर हम से नहीं बोले, नहीं तो हम मर जायेंगे।” मूसा ने लोगों को उत्तर दिया, ''डरो मत; क्योंकि ईश्वर तो तुम्हारी परीक्षा लेने आया है, जिससे तुम्हारे मन में उसके प्रति श्रद्धा बनी रहे और तुम पाप न करो। लोग दूर ही खड़े रहे, परन्तु मूसा उस सघन बादल के पास पहुँचा, जिसमें ईश्वर था।“

डरे सहमे लोगों को देख कर ईश्वर अपने आप को एक साधारण मनुष्य के रूप में प्रकट करने की बात करते हैं। इसलिए आज के पाठ में मूसा लोगों से कहते हैं, “तुम्हारा प्रभु ईश्वर तुम्हारे बीच, तुम्हारे ही भाइयों में से, तुम्हारे लिए मुझ-जैसा एक नबी उत्पन्न करेगा - तुम लोग उसकी बात सुनोगे। जब तुम होरेब पर्वत के सामने एकत्र थे, तुमने अपने प्रभु-ईश्वर से यही माँगा था। तुम लोगों ने कहा था अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी हमें फिर सुनाई नहीं पडे़ और हम फिर भयानक अग्नि नहीं देखे। नहीं तो हम मर जायेंगे। तब प्रभु ने मुझ से यह कहा, लोगों का कहना ठीक ही है। मैं उनके ही भाइयों मे से इनके लिए तुम-जैसा ही नबी उत्पन्न करूँगा। मैं अपने शब्द उसके मुख मे रखूँगा और उसे जो-जो आदेश दूँगा, वह तुम्हें वही बताएगा। वह मेरे नाम पर जो बातें कहेगा, यदि कोई उसकी उन बातों को नहीं सुनेगा, तो मैं स्वंय उस मनुष्य से उसका लेखा लूँगा।” (विधि-विवरण 18:15-19) प्रेरितों ने लोगों को सिखाया कि प्रभु येसु ही वह मूसा-जैसा नबी हैं (देखिए प्रेरित-चरित 3:22-23)। मसीह के विषय में नबी इसायाह ने भविष्यवाणी की थी, “यह न तो चिल्लायेगा और न शोर मचायेगा, बाजारों में कोई भी इसकी आवाज नहीं सुनेगा। यह न तो कुचला हुआ सरकण्डा ही तोड़ेगा और न धुआँती हुई बत्ती ही बुझायेगा। यह ईमानदारी से धार्मिकता का प्रचार करेगा।” (इसायाह 42:2-3)

हमारे ईश्वर एक श्रध्दालु ईश्वर है। वे हमारे कल्याण में रुचि रखते हैं। वे अपने आप को हमारे लिए उपगम्य (accessible), सुगम्य तथा मिलनसार बनाते हैं ताकि हम उनके पास जा सकें। दुनिया भर के गिरजाघरों के प्रकोशों में पवित्र परम प्रसाद में प्रभु रोटी के रूप में उपस्थित रहते हैं। पाप-स्वीकार संस्कार में उडाऊ पुत्र के प्रेममय पिता के समान पिता ईश्वर हमेशा उपस्थित रहते हैं। ईश्वर सर्वव्यापी है, वे सब जगह उपस्थित रहते हैं। जो कोई उनकी खोज करता है, वह उन्हें अवश्य ही पायेगा। नबी यिरमियाह से प्रभु ने कहा, “यह उस प्रभु की वाणी है, जिसने पृथ्वी बनायी, उसका स्वरूप गढ़ा और उसे स्थिर किया। उसका नाम प्रभु है। यदि तुम मुझे पुकारोगे, तो मैं तुम्हें उत्तर दूँगा और तुम्हें वैसी महान् तथा रहस्यमय बातें बताऊँगा, जिन्हें तुम नहीं जानते।” (यिरमियाह 33:2-3) यिरमियाह 29:12-14 में वचन कहता है, “जब तुम मुझे पुकारोगे और मुझ से प्रार्थना करोगे, तो मैं तुम्हारी प्रार्थना सुनूँगा। जब तुम मुझे ढूँढ़ोगे, तो मुझे पा जाओगे। यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूँढ़ोगे, तो मैं तुम्हे मिल जाऊँगा“- यह प्रभु की वाणी है- “और मैं तुम्हारा भाग्य पलट दूँगा।”

जब लोग प्रेम से मिल-जुल कर रहते हैं, तब ईश्वर न केवल उससे प्रसन्न होते हैं, बल्कि वे वहाँ अपने आप को प्रकट भी करते हैं। प्रभु येसु कहते हैं, “जहाँ दो या तीन मेरे नाम इकट्टे होते हैं, वहाँ में उनके बीच उपस्थित रहता हूँ” (मत्ती 18:20)। स्तोत्रकार कहता है, “वह उन सबों के निकट है, जो उसका नाम लेते हैं, जो सच्चे हृदय से उस से विनती करते हैं। जो उस पर श्रद्धा रखते हैं, वह उनका मनोरथ पूरा करता है। वह उनकी पुकार सुन कर उनका उद्धार करता है।” (स्तोत्र 145:18-19) प्रभु दीन-दुखियों के करीब हैं। “प्रभु दुहाई देने वालों की सुनता और उन्हें हर प्रकार के संकट से मुक्त करता है। प्रभु दुःखियों से दूर नहीं है। जिनका मन टूट गया, प्रभु उन्हें संभालता है।” (स्तोत्र 34:18-19)

प्रभु येसु सबके करीब थे और करीब है। उनकी संगति में लोग शांति और आनन्द महसूस करते हैं। बच्चे भी उन से मिलने आते थे। परन्तु शैतान और उसके दूत बेचैन होते हैं। यही आज का सुसमाचार हमें बताता है। प्रभु येसु सब को विश्राम प्रदान करते हैं। वे कहते हैं, “थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ। इस तरह तुम अपनी आत्मा के लिए शान्ति पाओगे, क्योंकि मेरा जूआ सहज है और मेरा बोझ हल्का।” (मत्ती 11:28-30)

आइए, हमारे बीच हमारे जैसे बन कर आने वाले ईश्वर की हम प्यार भरे हृदयों से आराधना करें।

- फादर फ्रांसिस स्करिया