सोमवार, 29 जनवरी, 2024

वर्ष का चौथा सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ: समुएल का दुसरा ग्रन्थ 15:13-14, 30;16:5-13a

13) एक दूत दाऊद को यह सूचना देने आया कि इस्राएलियों ने अबसालोम का पक्ष लिया है।

14) इस पर दाऊद ने येरुसालेम में रहने वाले अपने सब सेवकों से कहा, ‘‘चलो! हम भाग चलें, नहीं तो हम अबसालोम के हाथ से नहीं बच सकेंगे। हम शीघ्र ही चले जायें। कहीं ऐसा न हो कि वह अचानक पहुँच कर हमारा सर्वनाश करे और शहर के निवासियों को तलवार के घाट उतार दे।"

5) जब दाऊद बहूरीम पहुँचा, तो साऊल के वंश का एक व्यक्ति दौड़ता हुआ उसके पास आया। वह गेरा का शिमई नामक पुत्र था। वह कोसते हुए नगर से निकला

6) और दाऊद और उसके सेवकों पर पत्थर फेंकता जा रहा था, यद्यपि दाऊद के दायें और बायें सैनिक और अंगरक्षक चलते थे।

7) शिमई कोसते हुए चिल्लाता था, ‘‘दूर हो, रे हत्यारे! दूर हो, रे नीच!

8) तूने साऊल का राज्य छीन लिया, इसलिए प्रभु ने साऊल के घराने के सारे रक्त का बदला तुझे चुकाया है और तेरे पुत्र अबसालोम के हाथ में राज्य दिया है। रे हत्यारे! तू अपनी करनी का फल भोग रहा है।’’

9) सरूया के पुत्र अबीशय ने राजा से कहा, ‘‘यह मुर्दा कुत्ता मेरे राजा और स्वामी को क्यों कोस रहा है? कृपया मुझे आज्ञा दें कि मैं जा कर उसका सिर उड़ा दूँ।’’

10) राजा ने उत्तर दिया, ‘‘सरूया के पुत्रों! इससे तुमको क्या? यदि वह इसलिए दाऊद को कोसता है कि प्रभु ने उसे ऐसा करने की प्रेरणा दी है, तो कौन पूछ सकता है कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?’’

11) इसके बाद दाऊद ने अबीशय और अपने सेवकों से यह कहा, ‘‘मैंने जिस पुत्र को जन्म दिया, वही मुझे मारना चाहता है, तो यह बेनयामीनवंशी ऐसा क्यों न करे? उसे कोसने दो, क्योंकि प्रभु ने उसे ऐसा करने की प्रेरणा दी है।

12) हो सकता है कि प्रभु मेरी दुर्गति देखकर आज के अभिशाप के बदले मुझे फिर सुख-शान्ति प्रदान करे।’’

13) इसलिए दाऊद और उसके अनुयायी आगे बढ़ते जाते थे। उधर शिमई अभिशाप देता, पत्थर फेंकता और धूल उड़ाता हुआ उसके दूसरी ओर की पहाड़ी की ढलान पर जा रहा था।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 5:1-20

1) वे समुद्र के उस पार गेरासेनियों के प्रदेश पहुँचे।

2) ईसा ज्यों ही नाव से उतरे, एक अपदूतग्रस्त मनुष्य मक़बरों से निकल कर उनके पास आया।

3) वह मक़बरों में रहा करता था। अब कोई उसे जंजीर से भी नहीं बाँध पाता था;

4) क्योंकि वह बारम्बार बेडि़यों और जंजीरों से बाँधा गया था, किन्तु उसने ज़ंजीरों को तोड़ डाला और बेडि़यों को टुकड़े-टुकड़े कर दिया था। उसे कोई भी वश में नहीं रख पाता था।

5) वह दिन रात निरन्तर मक़बरों में और पहाड़ों पर चिल्लाता और पत्थरों से अपने को घायल करता था।

6) वह ईसा को दूर से देख कर दौड़ता हुआ आया और उन्हें दण्डवत् कर

7) ऊँचें स्वर से चिल्लाया, ’’ईसा! सर्वोच्च ईश्वर के पुत्र! मुझ से आप को क्या? ईश्वर के नाम पर प्रार्थना है- मुझे न सताइए।’’

8) क्योंकि ईसा उस से कह रहे थे, ’’अशुद्ध आत्मा! इस मनुष्य से निकल जा’’।

9) ईसा ने उस से पूछा, ’’तेरा नाम क्या है?’’ उसने उत्तर दिया, ’’मेरा नाम सेना है, क्योंकि हम बहुत हैं’’,

10) और वह ईसा से बहुत अनुनय-विनय करता रहा कि हमें इस प्रदेश से नहीं निकालिए।

11) वहाँ पहाड़ी पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था।

12) अपदूतों ने यह कहते हुए ईसा से प्रार्थना की, ’’हमें सूअरों में भेज दीजिए। हमें उन में घुसने दीजिए।’’

13) ईसा ने अनुमति दे दी। तब अपदूत उस मनुष्य से निकल कर सुअरों में जा घुसे और लगभग दो हज़ार का वह झुण्ड तेज़ी से ढाल पर से समुद्र में कूद पड़ा और उस में डूब कर मर गया।

14) सूअर चराने वाले भाग गये। उन्होंने नगर और बस्तियों में इसकी ख़बर फैला दी। लोग यह सब देखने निकले।

15) वे ईसा के पास आये और यह देख कर भयभीत हो गये कि वह अपदूतग्रस्त, जिस में पहले अपदूतों की सेना थी, कपड़े पहने शान्त भाव से बैठा हुआ है।

16) जिन्होंने यह सब अपनी आँखों से देखा था, उन्होंन लोगों को बताया कि अपदूतग्रस्त के साथ क्या हुआ और सूअरों पर क्या-क्या बीती।

17) तब गेरासेनी ईसा से निवेदन करने लगे कि वे उनके प्रदेश से चले जायें।

18) ईसा नाव पर चढ़ ही रहे थे कि अपदूतग्रस्त ने बड़े आग्रह के साथ यह प्रार्थना की- ’’मुझे अपने पास रहने दीजिए’’।

19) उसकी प्रार्थना अस्वीकार करते हुए ईसा ने कहा, ’’अपने लोगों के पास अपने घर जाओ और उन्हें बता दो कि प्रभु ने तुम्हारे लिए क्या-क्या किया है और तुम पर किस तरह कृपा की है’’।

20) वह चला गया और सारे देकापोलिस में यह सुनाता फिरता कि ईसा ने उसके लिए क्या-क्या किया था और सब लोग अचम्भे में पड़ जाते थे।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में येसु कई बुरी आत्माओं से ग्रस्त एक व्यक्ति से मिलते हैं। यह आदमी कब्रों के बीच अलग-थलग और प्रताड़ित रहता था। कल्पना कीजिए कि उसने कितना दर्द और कष्ट सहा होगा। येसु घटनास्थल पर आते हैं। वह व्यक्ति, परमेश्वर के पुत्र की उपस्थिति को महसूस करते हुए, येसु के पास दौड़ आता है और उनके पैरों पर गिर जाता है। उसके चारों ओर फैले अंधकार के बावजूद, वह व्यक्ति जानता था कि येसु प्रकाश और चंगाई ला सकता है। आगे जो होता है वह सचमुच उल्लेखनीय है। येसु, करुणा और अधिकार के साथ, अशुद्ध आत्माओं को उस व्यक्ति को छोड़ने का आदेश देते हैं। आशुद्धात्माओं की एक सेना को बाहर निकाला जाता है और सूअरों के झुंड में भेज दिया जाता है, जो फिर समुद्र में चले जाते हैं और डूब जाते हैं। एक बार सताया हुआ आदमी अब बैठा है, कपड़े पहने है, और अपने सही दिमाग में है।

p>यह मुलाकात हमें कई बातें सिखाती है। सबसे पहले, यह हमें बुराई पर येसु की असीम शक्ति को दर्शाता है। कोई अंधकार इतना गहरा नहीं है, कोई भी संघर्ष इतना बड़ा नहीं है कि उस पर विजय पाना येसु के लिए संभव न हो। अपने जीवन में, जब हम चुनौतियों का सामना करते हैं या अभिभूत महसूस करते हैं, तो हम येसु की ओर मुड़ सकते हैं, इस विश्वास के साथ कि वह चंगाइ और पुनर्स्थापन ला सकते हैं। दूसरे, चंगा हुए व्यक्ति की प्रतिक्रिया पर ध्यान दें। कब्रों के बीच अपने पृथक जीवन में वापस जाने के बजाय, वह येसु के साथ रहना चाहता है। हालाँकि, येसु ने उसे अपने लोगों के पास वापस जाने और ईश्वर ने उसके लिए जो किया है उसकी खुशखबरी साझा करने का निर्देश दिया। यह हमें याद दिलाता है कि येसु के साथ हमारी मुलाकातें सिर्फ हमारे लाभ के लिए नहीं हैं, वे दूसरों के साथ साझा करने के लिए हैं। अंत में, वह व्यक्ति जो एक बार अशुद्धात्माओं के वश में हो गया था और टूट गया था, अब पूर्ण हो गया है और बहाल हो गया है। यह इस आशा की बात करता है कि येसु हममें से प्रत्येक को नवीनीकरण तथा एक नई शुरुआत का मौका प्रदान करता है।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

p>We witness a powerful encounter between Jesus and a man possessed by many evil spirits. This man lived among the tombs, isolated and tormented. Imagine the pain and suffering he must have endured. But then, Jesus arrives on the scene. The man, sensing the presence of the Son of God, runs to Jesus and falls at His feet. Despite the darkness that surrounded him, the man knew that Jesus could bring light and healing. What happens next is truly remarkable. Jesus, with compassion and authority, commands the unclean spirits to leave the man. A legion of demons is cast out and sent into a herd of pigs, which then rush into the sea and drown. The once tormented man is now sitting, clothed, and in his right mind.

p>This encounter teaches us several things. Firstly, it shows us the boundless power of Jesus over evil. No darkness is too deep, no struggle too great for Him to overcome. In our own lives, when we face challenges or feel overwhelmed, we can turn to Jesus, confident that He can bring healing and restoration. Secondly, notice the response of the healed man. Instead of going back to his isolated life among the tombs, he desires to be with Jesus. However, Jesus instructs him to go back to his people and share the good news of what God has done for him. This reminds us that our encounters with Jesus are not just for our benefit they are meant to be shared with others. Lastly, the man once possessed and broken, is now whole and restored. It speaks to the hope that Jesus offers each one of us a chance for renewal, a fresh start.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

आज के सुसमाचार में येसु कई बुरी आत्माओं से ग्रस्त एक व्यक्ति से मिलते हैं। यह आदमी कब्रों के बीच अलग-थलग और प्रताड़ित रहता था। कल्पना कीजिए कि उसने कितना दर्द और कष्ट सहा होगा। येसु घटनास्थल पर आते हैं। वह व्यक्ति, परमेश्वर के पुत्र की उपस्थिति को महसूस करते हुए, येसु के पास दौड़ आता है और उनके पैरों पर गिर जाता है। उसके चारों ओर फैले अंधकार के बावजूद, वह व्यक्ति जानता था कि येसु प्रकाश और चंगाई ला सकता है। आगे जो होता है वह सचमुच उल्लेखनीय है। येसु, करुणा और अधिकार के साथ, अशुद्ध आत्माओं को उस व्यक्ति को छोड़ने का आदेश देते हैं। आशुद्धात्माओं की एक सेना को बाहर निकाला जाता है और सूअरों के झुंड में भेज दिया जाता है, जो फिर समुद्र में चले जाते हैं और डूब जाते हैं। एक बार सताया हुआ आदमी अब बैठा है, कपड़े पहने है, और अपने सही दिमाग में है। यह मुलाकात हमें कई बातें सिखाती है। सबसे पहले, यह हमें बुराई पर येसु की असीम शक्ति को दर्शाता है। कोई अंधकार इतना गहरा नहीं है, कोई भी संघर्ष इतना बड़ा नहीं है कि उस पर विजय पाना येसु के लिए संभव न हो। अपने जीवन में, जब हम चुनौतियों का सामना करते हैं या अभिभूत महसूस करते हैं, तो हम येसु की ओर मुड़ सकते हैं, इस विश्वास के साथ कि वह चंगाइ और पुनर्स्थापन ला सकते हैं। दूसरे, चंगा हुए व्यक्ति की प्रतिक्रिया पर ध्यान दें। कब्रों के बीच अपने पृथक जीवन में वापस जाने के बजाय, वह येसु के साथ रहना चाहता है। हालाँकि, येसु ने उसे अपने लोगों के पास वापस जाने और ईश्वर ने उसके लिए जो किया है उसकी खुशखबरी साझा करने का निर्देश दिया। यह हमें याद दिलाता है कि येसु के साथ हमारी मुलाकातें सिर्फ हमारे लाभ के लिए नहीं हैं, वे दूसरों के साथ साझा करने के लिए हैं। अंत में, वह व्यक्ति जो एक बार अशुद्धात्माओं के वश में हो गया था और टूट गया था, अब पूर्ण हो गया है और बहाल हो गया है। यह इस आशा की बात करता है कि येसु हममें से प्रत्येक को नवीनीकरण तथा एक नई शुरुआत का मौका प्रदान करता है।

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


We witness a powerful encounter between Jesus and a man possessed by many evil spirits. This man lived among the tombs, isolated and tormented. Imagine the pain and suffering he must have endured. But then, Jesus arrives on the scene. The man, sensing the presence of the Son of God, runs to Jesus and falls at His feet. Despite the darkness that surrounded him, the man knew that Jesus could bring light and healing. What happens next is truly remarkable. Jesus, with compassion and authority, commands the unclean spirits to leave the man. A legion of demons is cast out and sent into a herd of pigs, which then rush into the sea and drown. The once tormented man is now sitting, clothed, and in his right mind. This encounter teaches us several things. Firstly, it shows us the boundless power of Jesus over evil. No darkness is too deep, no struggle too great for Him to overcome. In our own lives, when we face challenges or feel overwhelmed, we can turn to Jesus, confident that He can bring healing and restoration. Secondly, notice the response of the healed man. Instead of going back to his isolated life among the tombs, he desires to be with Jesus. However, Jesus instructs him to go back to his people and share the good news of what God has done for him. This reminds us that our encounters with Jesus are not just for our benefit they are meant to be shared with others. Lastly, the man once possessed and broken, is now whole and restored. It speaks to the hope that Jesus offers each one of us a chance for renewal, a fresh start.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)

📚 मनन-चिंतन -02

आज के सुसमाचार में हम अशुध्दात्मा से बुरी तरह से प्रभावित एक व्यक्ति को पाते हैं। वह कब्रों के बीच रहता था। वह हिंसक और बेकाबू था। वह खुद को और दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता रहता था। उसने लोगों में डर पैदा कर दिया। यह घटना बताती है कि शैतान कितना हानिकारक है। शैतान हमें मौत की ओर ले जाता है। येसु उसे हत्यारा कहते हैं। "वह तो प्रारम्भ से ही हत्यारा था। उसने कभी सत्य का साथ नहीं दिया, क्योंकि उस में कोई सत्य नहीं है।" (योहन 8:44)। वह नुकसान पहुँचाता है और मारता है और जीवन देने वाले और रक्षा करने वाले ईश्वर का विरोध करता है। येसु के लिए यह आदमी उन दो हजार सूअरों से अधिक मूल्यवान है, जिनका दुष्टात्माओं की सेना द्वारा विनाश किया गया था। यह घटना हमें बताती है कि अशुध्द आत्माएं कितनी हानिकारक होती हैं और इसलिए हमें सतर्क रहना चाहिए। आइए हम संत पौलुस की चेतावनी पर ध्यान दें "आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामर्थ्य से बल ग्रहण करें, आप ईश्वर के अस्त्र-शस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों; क्योंकि हमें निरे मनुष्यों से नहीं, बल्कि इस अन्धकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों और आकाश के दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पड़ता है। इसलिए आप ईश्वर के अस्त्र-शस्त्र धारण करें, जिससे आप दुर्दिन में शत्रु का सामना करने में समर्थ हों और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें।” (एफेसियों 6:10-13)

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s Gospel we find a terribly affected demoniac. He lived among tombs. He was violent and uncontrollable. He tried to harm himself and others. He instilled fear in people. The episode shows how harmful Satan is. Satan leads to death. Jesus calls him a murder. “He was a murderer from the beginning and does not stand in the truth, because there is no truth in him” (Jn 8:44). He harms and kills and is opposed to God who gives life and protects. For Jesus this man is more precious than the two thousand pigs who were led to destruction by the legion of evil spirits. This incident tells us how harmful evil spirits are and so we need to be alert and watchful. Let us heed to warning of St. Paul “be strong in the Lord and in the strength of his power. Put on the whole armor of God, so that you may be able to stand against the wiles of the devil. For our struggle is not against enemies of blood and flesh, but against the rulers, against the authorities, against the cosmic powers of this present darkness, against the spiritual forces of evil in the heavenly places. Therefore take up the whole armor of God, so that you may be able to withstand on that evil day, and having done everything, to stand firm.” (Eph 6:10-13)

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन- 03

गेरासेनियों के क्षेत्र में एक अशुद्ध आत्मा से पीडित व्यक्ति शैतान द्वारा सताया जा रहा था। उसकी स्थिति दयनीय थी क्योंकि वह कब्रों में रहता था और बहुत हिंसक थे। वह येसु की उपस्थिति पर ध्यान देता है। शैतान ने उस खतरे को माना जो येसु ने उसकी उपस्थिति के लिए प्रस्तुत किया था। अशुद्ध आत्माओं को येसु ने सूअरों के झुंड में भगा दिया था। शैतान की विनाशकारी शक्ति हमारे सामने तब अधिक प्रकट होती है जब अशुद्ध आत्माएं दो हज़ार सूअरों के झुंड में प्रवेश करती हैं और फिर सुअरों का झुंठ चट्टान पर चढ़कर नीचे पानी में गिर कर डूब जाता है। जिस व्यक्ति को शैतान की गुलामी से छुड़ाया गया, अब वह येसु से याचना करने लगा कि वे उसे उनके साथ रहने दें। लेकिन येसु उसे अपने लोगों के बीच प्रभु के शक्तिशाली कार्यों की घोषणा करने का मिशन सौंप देते हैं। हर कोई जो येसु की मुक्ति की शक्ति का अनुभव करता है, उसे प्रभु के शक्तिशाली कार्यों की घोषणा करना चाहिए।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

The man with an unclean spirit in the territory of the Gerasenes was being tortured by the devil. His condition was pathetic as he lived in the tombs and was very violent. He takes note of the presence of Jesus. The devil perceived the threat Jesus posed to his presence. The unclean spirits were cast away by Jesus into the herd of pigs. The destructive power of the devil is manifested when the unclean spirits entered into the herd of two thousand pigs that then charged down the cliff into the lake and drowned. The man was released from the possession. Now he begs Jesus to allow him to stay with him. But Jesus gives him the mission to proclaim the mighty works of the Lord among his people. Everyone who experiences the liberative power of Jesus needs to proclaim the mighty works of the Lord.

-Fr. Francis Scaria