मंगलवार, 30 जनवरी, 2024

वर्ष का चौथा सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ: समुएल का दुसरा ग्रन्थ 18:9-10,14b,24-25a,31-19:3

9) दाऊद के कुछ सेवकों ने संयोग से अबसालोम को देखा। जिस खच्चर पर अबसालोम सवार था, वह एक बड़े बलूत की डालियों के नीचे से निकला और अबसालोम का सिर बलूत में अटक गया। खच्चर आगे बढ़ गया और अबसालोम आकाश और पृथ्वी के बीच लटकता रहा।

10) एक व्यक्ति ने उसे देखा और यह कहते हुए योआब को इसकी सूचना दी, ‘‘मैंने अबसालेाम को एक बलूत से लटकता हुआ देखा।’’

14) उसने हाथ में तीन भाले ले लिये और उन्हें अबसालोम के कलेजे में भोंक दिया, जो अब तक जीवित ही बलूत से लटक रहा था।

24) दाऊद शहर के दो फाटकों के बीच बैठा हुआ था। एक पहरेदार दीवार के पास के द्वारमण्डप की छत पर चढ़ा और उसने दृष्टि दौड़ा कर देखा कि एक व्यक्ति अकेला दौड़ता हुआ आ रहा है। पहरेदार ने राजा को इसकी सूचना दी।

25) राजा ने कहा, ‘‘यदि वह अकेला है, तो उसके पास शुभ समाचार है।’’

31) तब कूशी ने पास आकर कहा, ‘‘मैं अपने स्वामी और राजा के लिए अच्छा समाचार ला रहा हूँ। प्रभु ने आज आपको न्याय दिलाया है और आप को उन सब के हाथ से छुड़ा दिया, जिन्होंने आपके विरुद्ध विद्रोह किया था।’’

32) राजा ने कूशी से पूछा, ‘‘क्या नवयुवक अबसालोम सकुशल है?’’ और कूशी ने उत्तर दिया, ‘‘उस नवयुवक की जो दुर्गति हो गयी है, वही मेरे स्वामी और राजा के सब शत्रुओं को प्राप्त हो और उन सबको भी, जो आपके विरुद्ध षड़यंत्र रचते हैं।’’

1) राजा बहुत व्याकुल हो उठा और द्वारमण्डल के ऊपरी कमरे में जाकर रोने लगा। वह यह कहते हुए इधर-उधर टहलता रहा, ‘‘हाय ! मेरे पुत्र अबसालोम! मेरे पुत्र! मेरे पुत्र अबसालोम! अच्छा होता कि तुम्हारे बदले मैं ही मर गया होता! अबसालोम! मेरे पुत्र! मेरे पुत्र!’’

2) योआब को यह सूचना दी गयी, ‘‘राजा रोते और अबसालोम के लिए शोक मनाते हैं।’’

3) जब लोगों ने यह सुना कि राजा अपने पुत्र के कारण दुःखी है, तो उस दिन समस्त प्रजा के लिए विजयोल्लास शोक में बदल गया।

📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस 5:21-43

21) जब ईसा नाव से उस पार पहॅूचे, तो समुद्र के तट पर उनके पास एक विशाल जनसमूह एकत्र हो गया।

22) उस समय सभागृह का जैरूस नाम एक अधिकारी आया। ईसा को देख कर वह उनके चरणों पर गिर पड़ा

23) और यह कहते हुए अनुनय-विनय करता रहा, ’’मेरी बेटी मरने पर है। आइए और उस पर हाथ रखिए, जिससे वह अच्छी हो जाये और जीवित रह सके।’’

24) ईसा उसके साथ चले। एक बड़ी भीड़ उनके पीछे हो ली और लोग चारों ओर से उन पर गिरे पड़ते थे।

25) एक स्त्री बारह बरस से रक्तस्राव से पीडि़त थी।

26) अनेकानेक वैद्यों के इलाज के कारण उसे बहुत कष्ट सहना पड़ा था और सब कुछ ख़र्च करने पर भी उसे कोई लाभ नहीं हुआ था।

27) उसने ईसा के विषय में सुना था और भीड़ में पीछे से आ कर उनका कपड़ा छू लिया,

28) क्योंकि वह मन-ही-मन कहती थी, ’यदि मैं उनका कपड़ा भर छूने पाऊॅ, तो अच्छी हो जाऊँगी’।

29) उसका रक्तस्राव उसी क्षण सूख गया और उसने अपने शरीर में अनुभव किया कि मेरा रोग दूर हो गया है।

30) ईसा उसी समय जान गये कि उन से शक्ति निकली है। भीड़ में मुड़ कर उन्होंने पूछा, ’’किसने मेरा कपड़ा छुआ?’’

31) उनके शिष्यों ने उन से कहा, ’’आप देखते ही है कि भीड़ आप पर गिरी पड़ती है। तब भी आप पूछते हैं- किसने मेरा स्पर्श किया?’’

32) जिसने ऐसा किया था, उसका पता लगाने के लिए ईसा ने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी।

33) वह स्त्री, यह जान कर कि उसे क्या हो गया है, डरती- काँपती हुई आयी और उन्हें दण्डवत् कर सारा हाल बता दिया।

34) ईसा ने उस से कहा, ’’बेटी! तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है। शान्ति प्राप्त कर जाओ और अपने रोग से मुक्त रहो।’’

35) ईसा यह कह ही रहे थे कि सभागृह के अधिकारी के यहाँ से लोग आये और बोले, ’’आपकी बेटी मर गयी है। अब गुरुवर को कष्ट देने की ज़रूरत ही क्या है?’’

36) ईसा ने उनकी बात सुन कर सभागृह के अधिकारी से कहा, ’’डरिए नहीं। बस, विश्वास कीजिए।’’

37) ईसा ने पेत्रुस, याकूब और याकूब के भाई योहन के सिवा किसी को भी अपने साथ आने नहीं दिया।

38) जब वे सभागृह के अधिकारी के यहाँ पहुँचे, तो ईसा ने देखा कि कोलाहल मचा हुआ है और लोग विलाप कर रहे हैं।

39) उन्होंने भीतर जा कर लोगों से कहा, ’’यह कोलाहल, यह विलाप क्यों? लड़की मरी नहीं, सो रही है।’’

40) इस पर वे उनकी हँसी उड़ाते रहे। ईसा ने सब को बाहर कर दिया और वह लड़की के माता-पिता और अपने साथियों के साथ उस जगह आये, जहाँ लड़की पड़ी हुई थी।

41) लड़की का हाथ पकड़ कर उस से कहा, ’तालिथा कुम’’। इसका अर्थ है- ओ लड़की! मैं तुम से कहता हूँः उठो।

42) लड़की उसी क्षण उठ खड़ी हुई और चलने-फिरने लगी, क्योंकि वह बारह बरस की थी। लोग बड़े अचम्भे में पड़ गये।

43) ईसा ने उन्हें बहुत समझा कर आदेश दिया कि यह बात कोई न जान पाये और कहा कि लड़की को कुछ खाने को दो।

📚 मनन-चिंतन

आज हम विश्वास और चंगाई के विषय पर दो शक्तिशाली कहानियाँ पाते हैं। पहले, एक सभागृह के नेता जैरुस येसु के पास आते हैं, अपनी बीमार बेटी के लिए मदद मांगते हुए। जैरुस, गहरे विश्वास के साथ, यकीन करते हैं कि अगर येसु उनके हाथों को उस पर रखते हैं, तो वह ठीक हो जाएगी। भीड़ में, येसु इस विनती का जवाब देते हुए जैरुस के घर की ओर चल पड़ते हैं। रास्ते में, एक महिला जो बारह साल से एक पुरानी बीमारी से पीड़ित थी, येसु के पास आती है। वह यकीन करती है कि अगर वह केवल उनके वस्त्र के पल्ले को छू लेती है, तो वह ठीक हो जाएगी। एक भीड़ भरे स्थान पर, एक सरल स्पर्श के साथ, उसका विश्वास पूरा होता है, और वह तुरंत ठीक हो जाती है। जब यह होता है, तो कोई जैरुस की बेटी की मौत की खबर लेकर आता है। येसु, हालांकि, जैरुस को विश्वास रखने का प्रोत्साहन देते हैं, उन्हें यह आश्वस्त करते हुए कि उनकी बेटी ठीक होगी। जब वे जैरुस के घर पहुंचते हैं, तो येसु लड़की को हाथ पकड़ते हुए, जीवन के शब्द बोलते हुए उठाते हैं और वह उठ कर खड़ी हो जाती है। आज के हमारे जीवन के लिए हम इन कहानियों से क्या सीख सकते हैं? पहले, जैरुस और पुरानी बीमारी वाली महिला दोनों ही असाधारण विश्वास प्रदर्शित करते हैं। उनका विश्वास जटिल नहीं है, बल्कि येसु की चंगाई-शक्ति में एक सरल भरोसा से चिह्नित है। यह हमें यह सिखाता है कि हमारा विश्वास, चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, एक गहरा प्रभाव डाल सकता है। दूसरे, महिला की कहानी हमें याद दिलाती है कि येसु हमारी पहुंच के बाहर नहीं हैं। हमें भव्य इशारों की जरूरत नहीं है, एक सरल विश्वास का स्पर्श हमें उनकी चंगाई के अनुग्रह से जोड़ता है। हमारा संघर्ष, चाहे वे कितने ही लंबे समय तक बने रहे हों, हम उनकी उपस्थिति में समाधान पा सकते हैं। अंत में, जैरुस की बेटी को मृतकों में से उठाने का कार्य जीवन और मौत पर येसु की शक्ति की गहराई को दर्शाता है। यह हमें उन पर भरोसा करने का प्रोत्साहन देता है, खासकर जब हम लगभग असंभव स्थितियों का सामना करते हैं।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

We encounter two powerful stories intertwined with the theme of faith and healing.

Firstly, a synagogue leader named Jairus approaches Jesus, desperately seeking help for his sick daughter. Jairus, with deep faith, believes that if Jesus lays His hands on her, she will be healed. In the crowd, Jesus responds to this plea and starts the journey to Jairus’ house. On the way, a woman who had been suffering for twelve years from a chronic illness approaches Jesus. She believes that if she can just touch the hem of His garment, she will be healed. In a crowded place, with a simple touch, her faith is rewarded, and she is healed instantly.

As this happens, messengers arrive with the news that Jairus’ daughter has died. Jesus, however, encourages Jairus to have faith, assuring him that his daughter will be well. When they reach Jairus’ home, Jesus takes the girl by the hand, speaks words of life, and she arises from death.

What can we glean from these stories for our lives today?

Firstly, both Jairus and the woman with the chronic illness exhibit extraordinary faith. Their faith isn’t complicated but is marked by a simple trust in the healing power of Jesus. It teaches us that our faith, no matter how small, can have a profound impact. Secondly, the woman’s story reminds us that Jesus is approachable. We don’t need grand gestures, a simple touch of faith connects us to His healing grace. Our struggles, no matter how long they've persisted, can find resolution in His presence. Finally, the raising of Jairus’ daughter from death signifies the depth of Jesus' power over life and death. It encourages us to place our trust in Him, especially when faced with seemingly impossible situations.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

आज हम विश्वास और चंगाई के विषय पर दो शक्तिशाली कहानियाँ पाते हैं। पहले, एक सभागृह के नेता जैरुस येसु के पास आते हैं, अपनी बीमार बेटी के लिए मदद मांगते हुए। जैरुस, गहरे विश्वास के साथ, यकीन करते हैं कि अगर येसु उनके हाथों को उस पर रखते हैं, तो वह ठीक हो जाएगी। भीड़ में, येसु इस विनती का जवाब देते हुए जैरुस के घर की ओर चल पड़ते हैं। रास्ते में, एक महिला जो बारह साल से एक पुरानी बीमारी से पीड़ित थी, येसु के पास आती है। वह यकीन करती है कि अगर वह केवल उनके वस्त्र के पल्ले को छू लेती है, तो वह ठीक हो जाएगी। एक भीड़ भरे स्थान पर, एक सरल स्पर्श के साथ, उसका विश्वास पूरा होता है, और वह तुरंत ठीक हो जाती है। जब यह होता है, तो कोई जैरुस की बेटी की मौत की खबर लेकर आता है। येसु, हालांकि, जैरुस को विश्वास रखने का प्रोत्साहन देते हैं, उन्हें यह आश्वस्त करते हुए कि उनकी बेटी ठीक होगी। जब वे जैरुस के घर पहुंचते हैं, तो येसु लड़की को हाथ पकड़ते हुए, जीवन के शब्द बोलते हुए उठाते हैं और वह उठ कर खड़ी हो जाती है। आज के हमारे जीवन के लिए हम इन कहानियों से क्या सीख सकते हैं? पहले, जैरुस और पुरानी बीमारी वाली महिला दोनों ही असाधारण विश्वास प्रदर्शित करते हैं। उनका विश्वास जटिल नहीं है, बल्कि येसु की चंगाई-शक्ति में एक सरल भरोसा से चिह्नित है। यह हमें यह सिखाता है कि हमारा विश्वास, चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, एक गहरा प्रभाव डाल सकता है। दूसरे, महिला की कहानी हमें याद दिलाती है कि येसु हमारी पहुंच के बाहर नहीं हैं। हमें भव्य इशारों की जरूरत नहीं है, एक सरल विश्वास का स्पर्श हमें उनकी चंगाई के अनुग्रह से जोड़ता है। हमारा संघर्ष, चाहे वे कितने ही लंबे समय तक बने रहे हों, हम उनकी उपस्थिति में समाधान पा सकते हैं। अंत में, जैरुस की बेटी को मृतकों में से उठाने का कार्य जीवन और मौत पर येसु की शक्ति की गहराई को दर्शाता है। यह हमें उन पर भरोसा करने का प्रोत्साहन देता है, खासकर जब हम लगभग असंभव स्थितियों का सामना करते हैं।

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


We encounter two powerful stories intertwined with the theme of faith and healing. Firstly, a synagogue leader named Jairus approaches Jesus, desperately seeking help for his sick daughter. Jairus, with deep faith, believes that if Jesus lays His hands on her, she will be healed. In the crowd, Jesus responds to this plea and starts the journey to Jairus’ house. On the way, a woman who had been suffering for twelve years from a chronic illness approaches Jesus. She believes that if she can just touch the hem of His garment, she will be healed. In a crowded place, with a simple touch, her faith is rewarded, and she is healed instantly. As this happens, messengers arrive with the news that Jairus’ daughter has died. Jesus, however, encourages Jairus to have faith, assuring him that his daughter will be well. When they reach Jairus’ home, Jesus takes the girl by the hand, speaks words of life, and she arises from death. What can we glean from these stories for our lives today? Firstly, both Jairus and the woman with the chronic illness exhibit extraordinary faith. Their faith isn’t complicated but is marked by a simple trust in the healing power of Jesus. It teaches us that our faith, no matter how small, can have a profound impact. Secondly, the woman’s story reminds us that Jesus is approachable. We don’t need grand gestures, a simple touch of faith connects us to His healing grace. Our struggles, no matter how long they've persisted, can find resolution in His presence. Finally, the raising of Jairus’ daughter from death signifies the depth of Jesus' power over life and death. It encourages us to place our trust in Him, especially when faced with seemingly impossible situations.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)

📚 मनन-चिंतन-2

सुसमाचार दो चमत्कारों को प्रस्तुत करता है। दो लोग, जब वे येसु के संपर्क में आए, मृत्यु से जीवन में परिवर्तित हो गए। एक लड़की जिसे येसु ने स्पर्श किया वह मरे हुओं में से जी उठी। दूसरी एक महिला जो येसु को स्पर्श करती है वह जीवित रहते हुए भी चंगाई प्राप्त करती है। जब हम या तो येसु द्वारा स्पर्श किये जाते हैं, या स्वयं येसु तक पहुँचते हैं और स्पर्श करते हैं, तो हम मृत्यु से मुक्त हो जाते हैं। हमें जीवन का उपहार दिया जाता है।येसु जानते थे कि जिस स्पर्श का उसने अनुभव किया वह भीड़ में से कोई उससे टकराने वाला नहीं था। उस दिन येसु ने “विश्वास के स्पर्श”का अनुभव किया। उस दिन ईश्वर की दो बेटियों ने स्पर्श की शक्ति का अनुभव किया। क्या आपको येसु के स्पर्श की आवश्यकता है? येसु को अपने जीवन में प्राथमिकता दें। जरूर वह अपनी महिमा के लिए आपको भी स्पर्श करेगा और अपना उपयोगी बनाएगा ।

- फादर संजय कुजूर एस.वी.डी


📚 REFLECTION

Gospel presents two healings. Two people, when they came in contact with Jesus, were transformed from death to life. One girl who is touched by Jesus is raised from the dead. Another a woman who touches Jesus is healed while still very much alive. When we are either touched by Jesus, or reach out and touch Jesus ourselves, we are delivered from death. We are given the gift of life. Jesus knew that the touch He experienced simply was not someone in the crowd bumping into Him. On that day Jesus had experienced the “touch of faith!” On that day two daughters of God experienced the power of touch. Do you need to be touched by Jesus? Make Jesus a priority in your life. He will touch and use you too for His glory.

-Fr. Sanjay Kujur SVD