शनिवार, 24 फरवरी, 2024

चालीसा काल का पहला सप्ताह

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📒 पहला पाठ : विधि-विवरण 26:16-19

16) "आज तुम्हारा प्रभु-ईश्वर इन नियमों तथा आज्ञाओं का पालन करने का आदेश दे रहा है। तुम उन पर चलते रहोगे और सारे हृदय और सारी आत्मा से इनका पालन करते रहोगे।

17) आज तुम्हें प्रभु से यह आश्वासन मिला की वह तुम्हारा अपना ईश्वर होगा - बशर्ते तुम उसके मार्ग पर चलो, उसके नियमों, आदेशों तथा आज्ञाओं का पालन करो और उसकी बातों पर ध्यान दो।

18) तुमने प्रभु को यह आश्वासन दिया कि तुम उसकी अपनी प्रजा होगे, जैसा कि उसने तुम से कहा है, बषर्ते तुम उसकी सभी आज्ञाओं का पालन करो।

19) उसने जितने राष्ट्र बनाये, उन सब से अधिक तुम्हें सम्मान, ख्याति तथा महिमा प्रदान करेगा और तुम प्रभु की पवित्र प्रजा होगे, जैसा कि उसने तुम से कहा है।"

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 5:43-48

(43) "तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने बैरी से बैर।

(44) परन्तु में तुम से कहता हूँ- अपने शत्रुओं से प्रेम करों और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।

(45) इस से तुम अपने स्वर्गिक पिता की संतान बन जाओगे; क्योंकि वह भले और बुरे, दोनों पर अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है।

(46) यदि तुम उन्हीं से प्रेम करत हो, जो तुम से प्रेम करते हैं, तो पुरस्कार का दावा कैसे कर सकते हो? क्या नाकेदार भी ऐसा नहीं करते ?

(47) और यदि तुम अपने भाइयों को ही नमस्कार करते हो, तो क्या बडा काम करते हो? क्या गै़र -यहूदी भी ऐसा नहीं करते?

(48) इसलिए तुम पूर्ण बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।

📚 मनन-चिंतन

आज का सुसमाचार पाठ, मत्ती 5:43-48 हमें एक क्रांतिकारी प्रेम को अपनाने की चुनौती देता है, जो हमारे आराम के क्षेत्रों से परे है। येसु हमें सिखाते हैं कि हमें जो प्यार करते हैं, उन्हें प्यार करना आसान है, लेकिन वह हमें अपने दुश्मनों को प्यार करने और उनके लिए प्रार्थना करने का आह्वान करते हैं। इस दुनिया में जो अक्सर अंतरों से बांटी जाती है, येसु हमें विरोध और द्वेष की दीवारों को तोड़ने और प्यार को उन तक भी बढ़ाने का निमंत्रण देते हैं, जो हमारे विरोधी हो सकते हैं। इस चालीसा काल में, जब हम पास्का पर्व की ओर यात्रा कर रहे हैं, आइए हम चिंतन करें कि हम अपने जीवन में मसीह का प्रेम कैसे अभिव्यक्त कर सकते हैं। येसु के शब्द भयावह लग सकते हैं, लेकिन वे कृपा और करुणा का एक गहरा संदेश लेकर आते हैं। जब हम अपने दुश्मनों को प्यार करते हैं, तो हम अपने स्वर्गीय पिता के असीम प्रेम का अनुकरण करते हैं। चालीसा आत्मनिरीक्षण का समय है, जो हमें अपनी पक्षपात और रंजिश का सामना करने के लिए प्रेरित करता है। जब हम चालीसा काल के दौरान उपवास, प्रार्थना और दान करते हैं, तो आइए हम दोष लगाने के कार्य और पक्षपात से भी उपवास करें। आइए इस मौसम को एक परिवर्तनशील यात्रा बनाएं, जहां हम ईश्वर की भेदभावहीन दया का प्रेम उगाते हैं। छोटे-छोटे कृपा के कार्यों के माध्यम से, हम अंतरों को कम कर सकते हैं और अपने समुदायों में एकता को बढ़ावा दे सकते हैं। पूर्णता के आह्वान को अपनाते हुए, येसु हमें निर्दोष होने की उम्मीद नहीं करते, बल्कि प्रेम में पूर्ण होने की। यह पूर्णता सभी के प्रति प्यार बढ़ाने में निहित है, जैसे हमारा स्वर्गिक पिता करता है। आइए हम अपने शब्दों और कार्यों के प्रति सचेत रहें, सुनिश्चित करते हुए कि वे मसीह ने हमें दिखाए गए प्रेम को विकीर्ण करते हैं।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today’s Gospel reading from Matthew 5:43-48 challenges us to embrace a radical love that transcends our comfort zones. Jesus teaches us that it’s easy to love those who love us, but He calls us to a higher standard to love our enemies and pray for those who persecute us. In a world often divided by differences, Jesus invites us to break down the walls of animosity and extend love even to those who may oppose us. This Lenten season, as we journey towards Easter, let us reflect on how we can embody Christ’s love in our lives. Jesus’ words may seem frightening, but they carry a profound message of mercy and compassion. When we love our enemies, we imitate the boundless love of our Heavenly Father. Lent is a time for self-examination, prompting us to confront our prejudices and resentments. As we fast, pray and give alms during Lent, let us also fast from judgment and prejudice. Let this season be a transformative journey, where we cultivate a love that mirrors God’s indiscriminate kindness. Through small acts of kindness, we can bridge gaps and foster unity in our communities.

In embracing the call to perfection, Jesus doesn’t expect us to be flawless but to be perfect in love. This perfection lies in extending love to all, just as our Father in heaven does. Let us be mindful of our words and actions, ensuring they radiate the love that Christ has shown us.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

येसु हमें उत्तम प्रेम की ओर ले जाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम अपने स्वर्गिक पिता की तरह सर्वोत्तम प्रेम का अभ्यास करें। पूर्ण प्रेम सक्रिय और क्षमाशील है। येसु ने अपने पिता से इस प्रकार के प्रेम का अनुभव किया। प्रभु येसु ने इसी प्रकार का प्रेम किया था। इसलिए वे कह सके, “जिस प्रकार पिता ने मुझ को प्यार किया है, उसी प्रकार मैंने भी तुम लोगों को प्यार किया है। तुम मेरे प्रेम से दृढ बने रहो।" (योहन 15:9)। येसु चाहते हैं कि हम भी इसी प्रकार के प्रेम का अभ्यास करें। इसलिए वे कहते हैं, "मैं तुम लोगों को एक नयी आज्ञा देता हूँ- तुम एक दूसरे को प्यार करो। जिस प्रकार मैंने तुम लोगों को प्यार किया, उसी प्रकार तुम एक दूसरे को प्यार करो।” (योहन 13:34) येसु हमें आह्वान करते हैं कि हम अपने शत्रुओं से प्रेम करें और उन लोगों के लिए प्रार्थना करें जो हमें सताते हैं। संत पौलुस ने इस शिक्षा को बहुत अच्छी तरह से ग्रहण किया। रोमियों 12:20-21 में संत पौलुस कहते हैं, "... इसलिए, यदि आपका शत्रु भूखा है, तो उसे खिलायें और यदि वह प्यासा है, तो उसे पिलायें क्योंकि ऐसा करने से आप उसके सिर पर जलते अंगारों का ढेर लगायेंगे। आप लोग बुराई से हार न मानें, बल्कि भलाई द्वारा बुराई पर विजय प्राप्त करें।” आइए हम येसु की मिसाल पर चलना सीखें।

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus wants to lead us to perfect love. He wants us to practice perfect love like our Heavenly Father. Perfect love is a proactive and forgiving love. This is the kind of love that Jesus experienced from his Father. This is the kind of love Jesus practiced. So he could say, “As the Father has loved me, so I have loved you; abide in my love” (Jn 15:9). This is the kind of love that Jesus wants us to practice. Hence he says, “I give you a new commandment, that you love one another. Just as I have loved you, you also should love one another.” (Jn 13:34) Jesus calls us to love our enemies and pray for those who persecute us. St. Paul captured this teaching very well. In Rom 12:20-21 St. Paul says, “… if your enemies are hungry, feed them; if they are thirsty, give them something to drink; for by doing this you will heap burning coals on their heads.” Do not be overcome by evil, but overcome evil with good.” Let us learn to imitate Jesus.

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन - 3

आज के सुसमाचार में येसु ईश्वर के स्वाभाव को प्रकट करते हैं। ईश्वर सृष्टिकर्ता है और जो कुछ उन्होंने बनाया वह उन्हें प्यार करता है। ईश्वर उदासीन, आवेशी तथा प्रतिक्रियावादी नहीं है। जब हम गलती भी करते हैं तो भी वह हमसे प्यार करते रहता है। येसु इसी बात को बताते हुये कहते हैं, ’’क्योंकि वह भले और बुरे, दोनों पर अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है।’’ (मत्ती 5:45) हमारी वर्तमान भली और बुरी अवस्था से दूर ईश्वर सभी पर अपनी आशीष बरसाता है। ईश्वर का व्यवहार हमारे व्यवहार पर निर्भर नहीं करता। उनका प्रेम शर्तो और मुद्दों पर आधारित नहीं है। वह रोजाना हम पर अपनी आशिष बरसाता है।

ईश्वर हमारी भलाई के लिये हमें सुधारने का प्रयत्न भी करते हैं जिसे कुछ लोग सजा भी मानते हैं। किन्तु यह हमारी वृहद भलाई के लिये ही होता है जैसा कि इब्रानियों के नाम पत्र कहता है, “क्योंकि प्रभु जिसे प्यार करता है, उसे दण्ड देता है और जिसे पुत्र मानता है, उसे कोड़े लगाता है। आप जो कष्ट सहते हैं, उसे पिता का दण्ड समझें, क्योंकि वह इसका प्रमाण है, कि ईश्वर आप को पुत्र समझ कर आपके साथ व्यवहार करता है। और कौन पुत्र ऐसा है, जिसे पिता दण्ड नहीं देता?’’ (इब्रानियों 12:6-7)

किन्तु मनुष्य ईश्वर के समान सोच नहीं रखता। हम परहितेच्छा से व्यवहार नहीं करते हैं। हम हमारे नफे-नुकसान के बारे में ज्यादा सोचते हैं। जो हमें प्यार करते हैं हम उन्हें प्यार करते हैं तथा जो हमारा भला करते हैं हम उनका भला करने की सोचते हैं। किन्तु येसु हमें ईश्वर स्वाभाव में सहभागी बनने का न्यौता देते हुये कहते हैं, ’’अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।’’ (मत्ती 5:44) जब हम इस प्रकार का व्यवहार करते हैं तो वास्तव में ईश्वर के समान ही व्यवहार करते हैं। हमारे कार्य ईश्वरीय कार्य बन जाते हैं। इस तरह के कार्य हमारी सोच को ईश्वर की सोच की ओर अग्रसित करते हैं और अंत में हम ईश्वर के प्रतिरूप बन जाते हैं। येसु भी यही कहते हैं, ’’पूर्ण बनो, जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।’’

- फादर रोनाल्ड वाँन


📚 REFLECTION

In today’s gospel Jesus reveals us God’s nature. God is the creator and he loves all that he created. God is not moody, impulsive or reactionary. He loves us even when we do wrong. Jesus goes on to point out that God "makes his sun to rise on the evil and on the good, and sends rain on the just and on the unjust.” (Mt.5:45) God pours out blessing on all, regardless of our present state of goodness or evil. God does not look to us to decide how to behave towards us. His love is not dependent on our behaviour or our attitude towards him. His love is unconditional. He continues to shower his blessings upon us daily.

Of course, he corrects us (or some may call it punishment) not to destroy us but to discipline us. Letter to the Hebrews testifies, “For the Lord disciplines those whom he loves, and chastises every child whom he accepts. Endure trials for the sake of discipline. God is treating you as children; for what child is there whom a parent does not discipline?” (Hebrews 12:6-7) However human beings are not like that. We human beings do not behave benevolently. We calculate and measure our actions. We do favours to those who are good and love those to love us. Lord invites us to share in the nature of God by loving our enemies and praying for those who persecute uस. When we do this, we actual act as God acts. Our actions become godly actions. These actions lead to think like God and ultimately transform us into the true image and likeness of God. That’s what Jesus tells us, “Be perfect as your heavenly father is perfect.”

-Fr. Ronald Vaughan