गुरुवार, 29 फरवरी, 2024

चालीसे का दूसरा सप्ताह

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📒 पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 17:5-10

5) प्रभु यह कहता है: “धिक्कार उस मनुय को, जो मनुय पर भरोसा रखता है, जो निरे मनुय का सहारा लेता है और जिसका हृदय प्रभु से विमुख हो जाता है!

6) वह मरुभूमि के पौधे के सदृश है, जो कभी अच्छे दिन नहीं देखता। वह मरुभूमि के उत्तप्त स्थानों में- नुनखरी और निर्जन धरती पर रहता है।

7) धन्य है वह मनुय, जो प्रभु पर भरोसा रखता है, जो प्रभु का सहारा लेता है।

8) वह जलस्रोत के किनारे लगाये हुए वृक्ष के सदृश हैं, जिसकी जड़ें पानी के पास फैली हुई हैं। वह कड़ी धूप से नहीं डरता- उसके पत्ते हरे-भरे बने रहते हैं। सूखे के समय उसे कोई चिंता नहीं होती क्योंकि उस समय भी वह फलता हैं।“

9) मनुय का हृदय सब से अधिक कपटी और अविश्वसनीय हैं। उसकी थाह कौन ले सकता है?

10) “मैं प्रभु, मनुय का हृदय और अन्तरतम जानता हूँ। मैं हर एक को उसके आचरण और उसके कर्मों का फल देता हूँ“।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 16:19-31

19) ‘‘एक अमीर था, जो बैंगनी वस्त्र और मलमल पहन कर प्रतिदिन दावत उड़ाया करता था।

20) उसके फाटक पर लाज़रूस नामक कंगाल पड़ा रहता था, जिसका शरीर फोड़ों से भरा हुआ था।

21) वह अमीर की मेज़ की जूठन से अपनी भूख मिटाने के लिए तरसता था और कुत्ते आ कर उसके फोड़े चाटा करते थे।

22) वह कंगाल एक दिन मर गया और स्वर्गदूतों ने उसे ले जा कर इब्राहीम की गोद में रख दिया। अमीर भी मरा और दफ़नाया गया।

23) उसने अधोलोक में यन्त्रणाएँ सहते हुए अपनी आँखें ऊपर उठा कर दूर ही से इब्राहीम को देखा और उसकी गोद में लाज़रूस को भी।

24) उसने पुकार कर कहा, ‘पिता इब्राहीम! मुझ पर दया कीजिए और लाज़रुस को भेजिए, जिससे वह अपनी उँगली का सिरा पानी में भिगो कर मेरी जीभ ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूँ’।

25) इब्राहीम ने उस से कहा, ‘बेटा, याद करो कि तुम्हें जीवन में सुख-ही-सुख मिला था और लाज़रुस को दुःख-ही-दुःख। अब उसे यहाँ सान्त्वना मिल रही है और तुम्हें यन्त्रणा।

26) इसके अतिरिक्त हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गत्र्त अवस्थित है; इसलिए यदि कोई तुम्हारे पास जाना भी चाहे, तो वह नहीं जा सकता और कोई भ़ी वहाँ से इस पार नहीं आ सकता।’

27) उसने उत्तर दिया, ’पिता! आप से एक निवेदन है। आप लाज़रुस को मेरे पिता के घर भेजिए,

28) क्योंकि मेरे पाँच भाई हैं। लाज़रुस उन्हें चेतावनी दे। कहीं ऐसा न हो कि वे भी यन्त्रणा के इस स्थान में आ जायें।’

29) इब्राहीम ने उस से कहा, ‘मूसा और नबियों की पुस्तकें उनके पास है, वे उनकी सुनें‘।

30) अमीर ने कहा, ‘पिता इब्राहीम! वे कहाँ सुनते हैं! परन्तु यदि मुरदों में से कोई उनके पास जाये, तो वे पश्चात्ताप करेंगे।’

31) पर इब्राहीम ने उस से कहा, ‘जब वे मूसा और नबियों की नहीं सुनते, तब यदि मुरदों में से कोई जी उठे, तो वे उसकी बात भी नहीं मानेंगे’।’

📚 मनन-चिंतन

लूकस 16:19-31 से आज का सुसमाचार हमें अमीर और लाजर के दृष्टान्त पर विचार करने की चुनौती देता है। इस कहानी में, येसु ने विलासिता में रहने वाले धनी व्यक्ति और घावों से ढके एक गरीब व्यक्ति जो उसकी मेज से गिरे टुकड़ों के लिए भी तरसने वाले लाज़रुस के बीच एक स्पष्ट अंतर की ज्वलंत तस्वीर चित्रित की है। लाज़रुस के प्रति धनी व्यक्ति की उदासीनता ज़रूरतमंद लोगों के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी के बारे में एक गहरी आध्यात्मिक सच्चाई को प्रतिबिंबित करती है। चालीसा हमें बुलाता है कि हम अपने दिल की जाँच करें और समझें कि हम अपनी आशिषों का उपयोग कैसे करते हैं। क्या हम भौतिक सुख-सुविधाओं से भस्म हो जाते हैं, या हम अपने बीच हाशिए पर पड़े लोगों को पहचानते हैं?

येसु करुणा की पुकार को नज़रअंदाज़ करने के नतीजे पर प्रकाश डालता है। अमीर आदमी, मृत्यु के बाद, खुद को ईश्वर से अलग पाता है, पीड़ा में अलग-थलग पाता है। यह आत्म-केंद्रित जीवन के खिलाफ एक शक्तिशाली चेतावनी के रूप में कार्य करता है। चालीसा हमें पश्चाताप करने, स्वार्थ से दूर होने और प्यार और दया पर केंद्रित जीवन को गले लगाने के लिए आमंत्रित करता है। जब हम इस चालीसा काल के दौरान उपवास और प्रार्थना करते हैं, तो हमें अपने आस-पास के लाज़रुस को नहीं भूलना चाहिए। दयालुता और दान के कार्य जीवन को बदल सकते हैं। चालीसा काल खुद को ईश्वर और दूसरों की ओर फिर से उन्मुख करने का एक अवसर है। प्रार्थना, उपवास, और क्षमा के माध्यम से, हम अपने दिलों को मसीह की शिक्षाओं के साथ संरेखित करते हैं, जो हमें अपने पड़ोसियों से अपने जैसा प्यार करने के लिए कहता है। यूखारिस्त में, हम येसु का सामना करते हैं, जो निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है। आइए हम विनम्रता के साथ वेदी के पास जाएं, दान में अपनी विफलताओं के लिए क्षमा मांगें। यह ऋण रूपांतरण का समय हो सकता है, जहां हम करुणा में बढ़ते हैं और गरीबों और हाशिए के लोगों के चेहरे पर मसीह को पहचानते हैं।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today’s Gospel reading from Luke 16:19-31 challenges us to reflect on the parable of the rich man and Lazarus. In this story, Jesus paints a vivid picture of a stark contrast between the wealthy man who lived in luxury and Lazarus, a poor man covered in sores, longing for even the crumbs that fell from the rich man’s table. The rich man’s indifference to Lazarus mirrors a deeper spiritual truth about our responsibility to those in need. Lent calls us to examine our hearts and discern how we use our blessings. Are we consumed by material comforts, or do we recognize the marginalized in our midst?

Jesus highlights the consequence of neglecting the call to compassion. The rich man, after death, finds himself separated from God, isolated in torment. This serves as a powerful warning against self-centered living. Lent invites us to repent, turn away from selfishness, and embrace a life centered on love and mercy. As we fast and pray during this Lenten season, let us not forget the Lazarus around us. Acts of kindness and charity can transform lives. Lent is an opportunity to reorient ourselves towards God and others. Through prayer, fasting, and almsgiving, we align our hearts with the teachings of Christ, who calls us to love our neighbors as ourselves. In the Eucharist, we encounter Jesus, who embodies selfless love. Let us approach the altar with humility, seeking forgiveness for our failures in charity. May this Lent be a time of conversion, where we grow in compassion and recognize Christ in the faces of the poor and marginalized.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

अमीर और लाज़रुस के दृष्टांत में अमीर का पाप चूक का पाप था। संत याकूब कहते हैं, “जो मनुष्य यह जानता है कि उसे क्या करना चाहिए, किन्तु नहीं करता, उसे पाप लगता है” (याकूब 4:17)। आज का दृष्टान्त यह नहीं कहता कि लाज़रुस ने धनी व्यक्ति से सहायता माँगी और उसने मना कर दिया। वह सिर्फ यह कहता है, धनी व्यक्ति के “फाटक पर लाज़रूस नामक कंगाल पड़ा रहता था, जिसका शरीर फोड़ों से भरा हुआ था। वह अमीर की मेज़ की जूठन से अपनी भूख मिटाने के लिए तरसता था और कुत्ते आ कर उसके फोड़े चाटा करते थे।" एक जरूरतमंद व्यक्ति पास में था और धनी व्यक्ति उसकी ओर ध्यान नहीं दे सका और आवश्यक सहायता के साथ उस व्यक्ति तक नहीं पहुंच सका। हम कितनी बार इस तरह के पाप के दोषी हैं! अक्सर हम जरूरतमंद लोगों से मिलते हैं और उनकी पीडा के सामने अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। संत योहन क्रिसोस्तम कहते हैं, "इसका क्या फायदा है कि तुम मसीह की मेज को सोने के प्यालों से अलंकृत करोगे, जब वे खुद भूख से मर रहे हैं? पहले, भूखे को भोजन दो; फिर उनकी मेज को सजाने के लिए उस साधन का उपयोग करो जिसे तुमने तैयार किया है। सोने का प्याला बनवाओगे, पर एक प्याला पानी नहीं दोगे? अगर तुम मसीह को पहनने के लिए आवश्यक कपड़े नहीं दोगे, परन्तु सोने के धागों से बुने हुए कपड़े मेज पर बिछाओगे तो क्या फायदा? इससे क्या लाभ है?”

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

The sin of the rich man in the parable of the rich man and Lazarus was one of omission. St. James says, “Anyone, then, who knows the right thing to do and fails to do it, commits sin.” (Jam 4:17). The parable does not say that Lazarus asked the rich man for help and he refused. It simply says, “And at his gate lay a poor man named Lazarus, covered with sores, who longed to satisfy his hunger with what fell from the rich man’s table; even the dogs would come and lick his sores”. A person in need was in the vicinity and the rich man failed to take note of him and reach out to him with the necessary assistance. How often are we guilty of this kind of sin! Oftentimes we come across people in need and close our eyes to their misery. St. John Chrysostom says, “Of what use is it to weigh down Christ’s table with golden cups, when he himself is dying of hunger? First, fill him when he is hungry; then use the means you have left to adorn his table. Will you have a golden cup made but not give a cup of water? What is the use of providing the table with cloths woven of gold thread, and not providing Christ himself with the clothes he needs? What profit is there in that?”

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन - 3

अमीर और लाजरूस का दृष्टांत हमारे सांसारिक तथा मृत्यु उपरांत जीवन पर प्रकाश डालता है। ध्यान देने योग्य बात इन दोनों जीवनों के बीच का संबंध है। इन दोनों, अमीर और लाजरूस के सांसारिक जीवन का, उनके मृत्यु उपरांत जीवन पर गहरा प्रभाव पडता है। अधिकांश समय हम नहीं सोचते कि हमें अपने जीवन तथा उसके सभी दानों, धन और संसाधनों के उपयोग का लेखा जोखा ईश्वर को देना पडेगा।

संत मत्ती के सुसमाचार 25:14-30 में अशर्फियों के दृष्टांत के द्वारा येसु लगभग इसी सच्चाई को दिखाना चाहते हैं कि हम दिये हुये उपहारों का कैसे उपयोग करते हैं। तीसरे सेवक जिसने कुछ नहीं किया था, को निक्कमा कहकर निंदित किया गया जबकि प्रथम दो सेवकों को उनकी उपयोगिता के कारण सराहा गया। अमीर ने लाजरूस के विरूद्ध कुछ भी गलत नहीं किया था। लेकिन वह अपनी विलासिता में इतना खो गया था कि उसने अपने द्वार पर पडे भूखे और लाचार लाजरूस पर कभी ध्यान नहीं दिया। उसने अपनी संपत्ति तथा संसाधनों का उपयोग लाजरूस के लिये नहीं किया।

लेकिन मृत्यु उपरांत उनकी अवस्थाओं में बदलाव आ जाता है। लाजरूस को स्वर्गीक आराम मिलता है किन्तु अमीर कभी न बुझने वाली आग में जलता है। ऐसी स्थिति में अमीर की भलाई के लिये कुछ भी करना असंभव होता है। येसु हमें चेताते हुये सिखाना चाहते हैं कि हमें अपने सांसारिक जीवन और प्रदत्त संसाधनों के उपयोग के प्रति सचेत रहना चाहिये। जिस तरह इन दोनों का मृत्यु पश्चात जीवन उनके सांसारिक जीवन से प्रभावित होता हैं उसी प्रकार हमारी मृत्यु के बाद का जीवन भी हमारे भलाई और बुराई के कार्यों से प्रभावित होगा। हमें अपने जीवन तथा संसाधनों के द्वारा दूसरों के लिये दया और परोपकार के कार्य करना चाहिये।

- फादर रोनाल्ड वाँन


📚 REFLECTION

The parable of the rich man and Lazarus speaks about life here on earth and life after death. The point to be noted is the interconnection between these two. The life after death was hugely impacted by the way these two men their life on earth. Very often we do not think that we have to give an account of our life its gifts, health, wealth and their usage to God.

In the parable of the Talents (Mt. 25:14-30) Jesus highlighted this reality of using the resources to produce something. The third servant was condemned because of his inaction and unresponsiveness to the things at his disposal. While the first two servants were praised for their work. The rich man did no wrong to Lazarus but he was fully submerged into lavish life style and in eating and drinking. He failed to see the hungry Lazarus covered with sores and misery at his door step. He never tried to use his resources to assuage his suffering.

However, there is a drastic reversal of fortunes after death. Lazarus is comforted by heavenly care while rich is condemned to everlasting agony in hell. At this point nothing could change their position. Through this parable Jesus wants to us to beware of our life here. Just as the life of these two individuals after death are very much tied to their experiences of wealth and poverty in this life so will be case with us. We need to show mercy and compassion to the needy and use life and resources at our disposal to comfort them.

-Fr. Ronald Vaughan