अप्रैल 05, 2024, शुक्रवार

पास्का का अठवारा

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📒 पहला पाठ :प्रेरित-चरित 4:1-12.

1) पेत्रुस और योहन लोगों से बोल ही रहे थे कि याजक, मन्दिर-आरक्षी का नायक और सदूकी उनके पास आ धमके।

2) वे क्रुद्ध थे, क्योंकि प्रेरित जनता को शिक्षा दे रहे थे और ईसा का उदाहरण दे कर मृतकों के पुनरूत्थान का प्रचार कर रहे थे।

3) सन्ध्या हो चली थी, इसलिए उन्होंने उन को गिरफ्तार कर रात भर के लिए बन्दीगृह में डाल दिया।

4) जिन्होंने उनका प्रवचन सुना था, उन में बहुतों ने विश्वास किया। पुरुषों की संख्या अब लगभग पाँच हजार तक पहुँच गयी।

5) दूसरे दिन येरुसालेम में शासकों, नेताओं और शास्त्रियों की सभा हुई।

6) प्रधान याजन अन्नस, कैफस, योहन, सिकन्दर और महायाजक-वर्ग के सभी सदस्य वहाँ उपस्थित थे।

7) वे पेत्रुस तथा योहन को बीच में खड़ा कर इस प्रकार उन से पूछताछ करने लगे, "तुम लोगों ने किस सामर्थ्य से या किसके नाम पर यह काम किया है?"

8) पेत्रुस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर उन से कहा, "जनता के शासकों और नेताओ"!

9) हमने एक लँगड़े मनुष्य का उपकार किया है और आज हम से पूछताछ की जा रही है कि यह किस तरह भला-चंगा हो गया है।

10) आप लोग और इस्राइल की सारी प्रजा यह जान ले कि ईसा मसीह नाज़री के नाम के सामर्थ्य से यह मनुष्य भला-चंगा हो कर आप लोगों के सामने खड़ा है। आप लोगों ने उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया, किन्तु ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से पुनर्जीवित किया।

11) वह वही पत्थर है, जिसे आप, कारीगरों ने निकाल दिया था और जो कोने का पत्थर बन गया है।

12) किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मुक्ति नहीं मिल सकती; क्योंकि समस्त संसार में ईसा नाम के सिवा मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हमें मुक्ति मिल सकती है।"

📚 सुसमाचार : योहन 21:1-14

1) बाद में ईसा तिबेरियस के समुद्र के पास, अपने शिष्यों को फिर दिखाई दिये। यह इस प्रकार हुआ।

2) सिमोन पेत्रुस, थोमस जो यमल कहलाता था, नथनाएल, जो गलीलिया के काना का निवासी था, ज़ेबेदी के पुत्र और ईसा के दो अन्य शिष्य साथ थे।

3) सिमोन पेत्रुस ने उन से कहा, "मैं मछली मारने जा रहा हूँ"। वे उस से बोले, "हम भी तुम्हारे साथ चलते हैं"। वे चल पडे और नाव पर सवार हुये, किन्तु उस रात उन्हें कुछ नहीं मिला।

4) सबेरा हो ही रहा था कि ईसा तट पर दिखाई दिये; किन्तु शिष्य उन्हें नही पहचान सके।

5) ईसा ने उन से कहा, "बच्चों! खाने को कुछ मिला?" उन्होने उत्तर दिया, "जी नहीं"।

6) इस पर ईसा ने उन से कहा, "नाव की दाहिनी ओर जाल डाल दो और तुम्हें मिलेगा"। उन्होंने जाल डाला और इतनी मछलियाँ फस गयीं कि वे जाल नहीं निकाल सके।

7) तब उस शिष्य ने, जिसे ईसा प्यार करते थे, पेत्रुस से कहा, "यह तो प्रभु ही हैं"। जब पेत्रुस ने सुना कि यह प्रभु हैं, तो वह अपना कपड़ा पहन कर- क्योंकि वह नंगा था- समुद्र में कूद पडा।

8) दूसरे शिष्य मछलियेां से भरा जाल खीचतें हुये डोंगी पर आये। वे किनारे से केवल लगभग दो सौ हाथ दूर थे।

9) उन्होंने तट पर उतरकर वहाँ कोयले की आग पर रखी हुई मछली देखी और रोटी भी।

10) ईसा ने उन से कहा, "तुमने अभी-अभी जो मछलियाँ पकडी हैं, उन में से कुछ ले आओ।

11) सिमोन पेत्रुस गया और जाल किनारे खीचं लाया। उस में एक सौ तिरपन बड़ी बड़ी मछलियाँ थी और इतनी मछलियाँ होने पर भी जाल नहीं फटा था।

12) ईसा ने उन से कहा, "आओ जलपान कर लो"। शिष्यों में किसी को भी ईसा से यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि आप कौन हैं। वे जानते थे कि वह प्रभु हैं।

13) ईसा अब पास आये। उन्होंने रोटी ले कर उन्हें दी और इसी तरह मछली भी।

14) इस प्रकार ईसा मृतकों में से जी उठने के बाद तीसरी बार अपने शिष्यों के सामने प्रकट हुये।

📚 मनन-चिंतन

पेत्रुस औैर योहन के कार्यों को देखकर कुछ और सदूकी उन पर क्रुद्ध हो गये। वे उन्हें बन्दीग्रह में ड़ाल देते हैं। लेकिन फिर भी वे हताश नहीं होते बल्कि और अधिक उत्साह से प्रभु येसु के बारे में प्रवचन देते हैं। बहुत से लोगों ने उनकी बातों पर विश्वास किया। पेत्रुस पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर बोलने लगा, “किसी दूसरे द्वारा मुक्ति नहीं मिल सकती, क्योंकि समस्त संसार में येसु नाम के सिवा मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया हैं, जिसके द्वारा हमें मुक्ति मिल सकती हैं।”

शिष्य लोग येसु की मृत्यु के बाद अपने अपने व्यवसाय मे जुट़ जाते हैं। अधिकतर मछवारे थे, इसलिए वे मछलियां पकड़ने चले जाते हैं। येसु उन्हें समुद्र के पास दिखाई देते हैं, वे फिर से उन्हें पहचानने में असमर्थ थें। वे प्रभु के आदेश पर जाल डालते हैं और बहुत मछलियां जाल में फस जाती हैं। उसके बाद येसु ने उनके साथ भोजन किया।

क्या हम मुक्ति पाने के लिए तैयार हैं?आइये, हम प्रभु के आदेश अनुसार जीवन जीये।

- फादर साइमन मोहता (इंदौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

Seeing the actions of Peter and John, some other Sadducees became angry with them. They put them in prison. But still, they do not get disappointed but preach about Lord Jesus with more enthusiasm. Many people believed his words. Peter, filled with the Holy Spirit, began to speak, "Salvation cannot come by anyone else, because there is no other name given to men in the whole world by which we can be saved except the name of Jesus."

The disciples go about their business after the death of Jesus. Most were fishermen, so they go fishing. Jesus appears to them near the sea, again unable to recognize him. They cast nets on the commands of the Lord and many fishes get caught in the nets. After that Jesus dined with them.

Are we ready to be set free? Come, let us live according to the commands of the Lord.

-Fr. Simon Mohta (Indore Diocese)

📚 मनन-चिंतन -2

संत पेत्रुस कहते हैं, ’’मैं मछली मारने जा रहा हू। अन्य शिष्यों ने कहा, ’’हम भी तुम्हारे साथ चलते है।’’ लेकिन इसमें अजीब बात क्या है! क्योंकि वे तो पेशेवर मछुवारे थे तथा मछली उनका काम था। लूकस 5:1-10 में हम पढते कि किस प्रकार पेत्रुस और उसके साथी मछलियों के आश्चर्यजनक रूप से पडके जाने के से विस्मित थे। उस अवसर पर प्रभु ने उसने कहा था, ’’अब से तुम मनुष्यों को पकडा करोगे।’’ उस समय वे अपनी नाव एवं जाल छोडकर ईसा के पीछे हो लिये थे। अब इतना अधिक ईश्वरीय अनुभव पाने के बावजूद भी वे अपने पेशे की तरफ वापस लौट रहे थे। यह कितनी बर्बादी! जो कुछ भी ईसा ने उन्हें सिखलाया था वह व्यर्थ हो गया था। ईसा उन्हें मनुष्यों के मछुआरे बनाना चाहते थे किन्तु वे साधारण मछुआरे ही बने रहना चाहते थे। इसलिये ईसा पुनः तिबेरियस के तट पर उन्हें अपनी प्रतिज्ञा याद दिलाने आते हैं।

यह मनुष्य की साधारण प्रवृत्ति होती है कि वह अपने अतीत के जीवन में लौट जाये क्योंकि जो जीवन या कार्य हम करते आये हैं उन्हें करना आसान होता है। पेत्रुस येसु के पुनरूत्थान के बाद भी साधारण मछुआरे बने रहना चाहते थे क्योंकि यह उनके लिये आसान काम था। मनुष्यों के मछुआरे बनने के लिये उन्हें अपनी बुलाहट में दृढ़ बने रहना था जो कि काम कठिन काम था। पुराने परंपरागत जीवन जीने का प्रलोभन हमारे जीवन में सदैव बना रहता है।

इब्राहिम राष्ट्रों के पिता बनने बुलाये गये थे तथा इसके साथ अनेक प्रतिज्ञाये की गयी थी। उनसे अपने पिता का घर छोडकर एक अनजान देश जाने को कहा गया जो ईश्वर उन्हें भविष्य में दिखायेगा। अपनी इस यात्रा के दौरान उन्हें अनेक उतार-चढाव वाले अनुभवों से गुजरना पडा। कभी-कभी वे हताश भी हो गये होगे किन्तु उन्होंने कभी भी वापस जाने की नहीं सोची। वे जानते थे कि ईश्वर ने जो प्रतिज्ञायें की है वे लगभग असंभव है फिर भी वे अडिग बने रहेक्योंकिवे जानते थे जिस ईश्वर ने उन्हें बुलाया है वह सत्यप्रतिज्ञ है। इसलिये इब्राहिम का विश्वास आदर्श तथा दोषमुक्त माना गया।

इसके विपरीत जब इस्राएली मरूभूमि में थे तब वे बात-बात पर मिस्र देश वापस लौटने की बात करते थे। जब भी संकट आता था वे ईश्वर के सामर्थ्य को भूल कर पुराने जीवन में लौटना चाहते थे। ईश्वर प्रजा बनने के लिये उन्हें धैर्य, दृढता तथा विश्वास की आवश्यकता थी।

’’मैं मछली मारने जा रहा हूं’’ की मानसिकता हमारे जीवन की अभिन्न अंग है। हम जीवन के कठिन दौर से गुजरते है, तथा जीवन चौराहे पर खडा प्रतीत होता है। ऐसी परिस्थितियों में हमें ईश्वर के हमारे जीवन में किये महान कार्यों को याद रखना चाहिये कि कैसे ईश्वर ने हमारी विपत्तियों को अवसरों में बदल दिया था। रेगिस्तान में रेतीले तूफान के दौरान शुतुरमुर्ग रेत में अपने सिरों ढक लेते हैं वे जानते हैं कि तूफान सदा के लिये नहीं बना रहता है। जीवन के तूफानों का सामना धैर्य से करे और ईश्वर में दृढ रहें।

- फादर रोनाल्ड मेलकम वॉन


📚 REFLECTION

Peter says, “I am going fishing’ and others said, ‘we are coming with you’. What was so strange about it! After all they were fishermen by profession and they needed to do it to make a living. Luke 5:1-10 presents us a scenario where Peter and his companions had witnessed the miraculous catch of fish. That was the moment of truth in Peter and the disciples’ life. And there Jesus had promised to make them the fishers of men. At that time, they had left their nets and boats behind and followed Jesus.

After all these great events in their life they were going back to their profession of fishing. What a waste! Yes, indeed it was a step backward. Jesus wanted to make them ‘Fishers’ of Men’ but they wanted to remain mere ordinary fishermen. So, the Lord comes to remind them the promise by the sea of Tiberius.

There is always a tendency to go back to the past, the old way of life, because it is easier to do the things that we have grown used to. Peter thought of going back even after seeing the risen Lord because it was easier to be ordinary fishermen than the fishers of men. To be fishers of men they needed to adhered to the divine call which goes against the human arithmetic calculation of loss and profit. There is a constant temptation to livein convenient human standards than following the divine calling.

Abraham was called to be the father of the nations and many others promises like that. He was asked to leave his ancestral land and belongings and go to an unknown land which God will show him. during his long journey he had innumerable experiences some of them could have been very frustrating ones also. He always had a chance to go back to the land he came from but never even tried to do it. He knew in his heart that the promises that God made are near-impossible but he is a faithful God. So, Abraham’s faith is counted blameless.

On the contrary the people in the desert quite often expressed their desire to go back to the Egypt the land of slavery. Whenever a crisis appeared, they forgot everything God did to them. They were prompt to be a slave rather than people of God. To be people of God they needed to be patience, strong and determined in their belief that God has called to be the people of God and he would not let them perish.

The “I am going fishing” syndrome is part and parcel of everyone’s life. We all experience the thin patch of life; life appears to be on the crossroads. In those difficult times we need to remember the great experience of the past when God had turned your difficulties into opportunities. His saving hand had always kept you safe in the midst of storm. It is said that during the sand storms the ostrich buries their heads in the sands because they know that storms do not last forever.

-Fr. Ronald Melcom Vaughan

📚 मनन-चिंतन -3

आज हम मृतको में से जी उठने के बाद येसु द्वारा अपने शिष्यो को दर्शन देने की तीसरी घटना को पाते हैं। जो पाठ आज हम सुनते हैं वह पेत्रुस के बुलाहट के परिदृश्य से मिलता जुलता है। जब येसु ने पेत्रुस को बुलाया उस समय पेत्रुस बहुत हताश था क्योंकि रात भर मेहनत करने पर भी उसके जाल में मछली नहीं फसीं। वह तो जब येसु द्वारा कहे जाने पर उसने जाल डाला तब बहुत सारी मछलियॉं उसके जाल में फस गयी। इस तरह येसु ने पेत्रुस को मनुष्य के मछुए बनने के लिए बुलाया।

आज का सुसमाचार येसु के पुुनरुत्थान के बाद की घटना को बताता है। पेत्रुस दूसरे शिष्यों के साथ मिलकर अपने पुराने काम की ओर लौट जाता है जहॉं से येसु ने उसे बुलाया था। वे मछलियॉं नहीं पकड़ पाते हैं और येसु की बात सुनने के बाद उन्हें मछलियॉं मिल जाती हैं। इसके द्वारा योहन पहचान जाते है कि वह प्रभु है और पेत्रुस येसु के पास दौड़ पड़ता है। यद्यपि येसु ने पेत्रुस को बुलाया परंतु पेत्रुस उस समय तक मनुष्यों के मछुआ बनने की अपनी बुलाहट को नहीं समझ पाया था। इसलिए वह अपने पुराने काम में लौट जाता है। परंतु पवित्र आत्मा ग्रहण करने के बाद पेत्रुस येसु द्वारा जिस कार्य के लिए बुलाया गया था उसमें आगे बढ़ जाता है। पुुनरुत्थान के बाद शिष्यों के लिए वह समय प्रार्थना करने और प्रतिज्ञात सहायक का इंतजार करने समय था।

कभी कभी हम भी ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने के बाद अपने पुराने जिंदगी में लौट जाते हैं। हमें प्रार्थना और सहायक का हमारे जीवन पर नियंत्रण लेने की प्रतीक्षा को मॉं मरियम और शिष्यों से सीखना चहिए। हमें बपतिस्मा द्वारा पवित्र आत्मा प्राप्त होता है तथा दृढकरण द्वारा वह पूर्णता तक पहुॅंता हैं। परंतु हमें पवित्र आत्मा को हमारे जीवन मे कार्य करने के लिए उसे जागृत करने की आवश्यकता हैं और इसके लिए हमें ईश्वर की प्रतीक्षा और प्रार्थना करने की जरूरत है।

आईये हम अधिक समय प्रार्थना तथा प्रभु की प्रतीक्षा में व्यतीत करें जिससे हम पेनतेकोस्त के दिन पवित्र आत्मा के फलों और वरदानों को अपने जीवन में अनुभव कर सकें। आमेन

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

Today we hear the third incident where Jesus is revealing himself to the disciples after rising from dead. The passage we hear today is similar to the scene of Peter’s call. When Jesus called Peter, Peter was distressed because he worked whole night for the fish but could not get the catch. Only when he put the net after listening to Jesus He caught plenty of fishes. This is the way Jesus called Peter to be the fisher of men.

Today’s gospel tells the incident after the resurrection of Jesus. Peter along with other disciples goes back to the old job from where Jesus called them. They were not able to catch the fishes but after listening to Jesus they caught the fishes. With this John recognized that he is the Lord and Peter ran to Jesus. Though Jesus called Peter but Peter did not understand his call fully to be a fisher of men. That is why he went back to his old job. But after receiving the Holy Spirit, Peter went forward for what he was called to be the fisher of men. After Resurrection it was the time for the disciples to pray and wait for the promised helper.

Sometimes we also go back to the old way of life after receiving his grace. We should learn from Mother Mary and disciples to pray and wait for the helper to take control over our lives. We receive Holy Spirit in baptism and it is being confirmed during the time of confirmation. But we need to awaken the Holy Spirit to work in our lives for this we need to pray and wait on the Lord.

Let us spend more time in praying and waiting on the Lord so that we may experience the fruits and gifts of the Holy Spirit during the time of Pentecost. Amen

-Fr. Dennis Tigga