अप्रैल 08, 2024, सोमवार

प्रभु के शरीर्धारण का सन्देश - समारोह

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📒 पहला पाठ : इसायाह 7:10-14;8:10

7:10) प्रभु ने फिर आहाज़ से यह कहा,

11) “चाहे अधोलोक की गहराई से हो, चाहे आकाश की ऊँचाई से, अपने प्रभु-ईश्वर से अपने लिए एक चिन्ह माँगो“।

12) आहाज़ ने उत्तर दिया, “जी नहीं! मैं प्रभु की परीक्षा नहीं लूँगा।“

13) इस पर उसने कहा, “दाऊद के वंश! मेरी बात सुनो। क्या मनुष्यों को तंग करना तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है, जो तुम ईश्वर के धैर्य की भी परीक्षा लेना चाहते हो?

14) प्रभु स्वयं तुम्हें एक चिन्ह देगा और वह यह है - एक कुँवारी गर्भवती है। वह एक पुत्र को प्रसव करेगी और वह उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।

8:10) योजना बनाओ - वह असफ़ल होगी; विचार - विमर्श करो - वह व्यर्थ होगा; क्योंकि ईश्वर हमारे साथ है।

4) सांडों तथा बकरों का रक्त पाप नहीं हर सकता,

5) इसलिए मसीह ने संसार में आ कर यह कहा: तूने न तो यज्ञ चाहा और न चढ़ावा, बल्कि तूने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया है।

6) तू न तो होम से प्रसन्न हुआ और न प्रायश्चित्त के बलिदान से;

7) इसलिए मैंने कहा - ईश्वर! मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ, जैसा कि धर्मग्रन्थ में मेरे विषय में लिखा हुआ है।

8) मसीह ने पहले कहा, "तूने यज्ञ, चढ़ावा, होम या या प्रायचित्त का बलिदान नहीं चाहा। तू उन से प्रसन्न नहीं हुआ", यद्यपि ये सब संहिता के अनुसार ही चढ़ाये जाते हैं।

9) तब उन्होंने कहा, "देख, मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ"। इस प्रकार वह पहली व्यवस्था को रद्द करते और दूसरी का प्रवर्तन करते हैं।

10) ईसा मसीह के शरीर के एक ही बार बलि चढ़ाये जाने के कारण हम ईश्वर की इच्छा के अनुसार पवित्र किये गये हैं।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 1:26-38

26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,

27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।

28) स्वर्गदूत मे उसके यहाँ अन्दर आ कर उससे कहा, “प्रणाम, प्रभु की कृपापात्री! प्रभु आपके साथ है।"

29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।

30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, "मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।

31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।

32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,

33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।"

34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, "यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।"

35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;

37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।"

38) मरियम ने कहा, "देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।" और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।

📚 मनन-चिंतन

प्रभु ईश्वर जो भी कहता है उसे पूरा करता है। उसके मुख से निकला हर एक शब्द उसके उद्देश्य को पूरा करता है। वह अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने वाला ईश्वर हैं। उसने आहाज़ से कहा, “वह उन्हें एक चिन्ह देगा और यह है एक कुवारी गर्भवती होगी। वह पुत्र प्रसव करेगी और उसका नाम एम्मानुएल रखेगी। जिसका अर्थ हैं प्रभु हमारे साथ हैं।

यह एम्मानुएल स्वयं प्रभु येसु ख्रीस्त हैं, जो हमारे लिए एक बली बन कर आये। उन्होंने स्वयं को हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए बली चढ़ाया। यह ऐसी बली है जो सदा के लिए चढ़ायी गयी, जिसके द्वारा सभी प्रवित्र एवं शुद्ध किये गये। माँ मरियम ने इस इम्मानुएल को इस संसार में लाने हेतु ईश्वर की ईच्छा को पूरा करने के लिए तैयार हो जाती हैं। जैसे प्रभु येसु कहते हैं, “देख मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ”, वैसे ही माँ मरियम अपने आप को ईश्वर की ईच्छा पूरी करने के लिए हाँ कहती हैं, “देखिए! मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये”। आज जब हम प्रभु येसु के शरीरधारण के रहस्य का त्योहार मनाते हैं, हम प्रभु से विनय करें कि उनकी कृपा से हम भी प्रभु की इच्छा को हमेशा सहर्ष स्वीकार कर पायें।

- फादर साइमन मोहता (इंदौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

Whatever the Lord God says is accomplished. Every word that comes out of his mouth serves its purpose. He is the God who fulfils his promise. In Isaiah 7:14 we read, “Therefore the Lord himself will give you a sign. Look, the young woman is with child and shall bear a son, and shall name him Immanuel.”

This Emmanuel is the Lord Jesus Christ himself, who came as the lamb of sacrifice for us. He offered himself as an atonement for our sins. It is such a sacrifice that was offered forever, by which all were sanctified and purified. Mother Mary gets ready to fulfil God's will to bring this Immanuel into this world. Just as Lord Jesus says, “Look I have come to do your will”, similarly Mother Mary says ‘yes’ to do God's will, “Look! I am the handmaid of the Lord. Let it be done to me according to your word”. Today, as we celebrate the mystery of the Incarnation of the Lord Jesus, let us ask the Lord that by His grace we too may always accept the Lord's will with joy.

-Fr. Simon Mohta (Indore Diocese)

📚 मनन-चिंतन -2

आज हमें स्वर्गदूत गबिएल द्वारा कुँवारी मरियम को शब्द के देहधारण के शुभ सन्देश दिये जाने पर मनन-चिंतन करने का आह्वान किया गया है। यह पर्व मानवजाति को बचाने के लिए मसीह को भेजने के ईश्वर की प्रतिज्ञा की पूर्ति का प्रतीक है। इस दिन मरियम ने प्रभु के लिए अपना दिल खोल दिया और मानवजाति की मुक्ति के दिव्य प्रस्ताव के सामने 'हां' कहा। मरियम ने प्रभु को हां कहा, जिन्होंने उनके जीवन में महान कार्य किये। क्या हम ईश्वर को 'हां' कहते हैं जो हमारे दैनिक जीवन में महान कार्य करते रहते हैं? क्या मैं ईश्वर को अपने निजी जीवन में, अपने निजी स्थान में प्रवेश करने देता हूँ? क्या मैं प्रभु को 'हां' कह सकता हूं, भले ही मुझे उनकी मांगों के बारे में सब कुछ समझ में न आए? इब्राहीम ने मंजिल और रास्ता जाने बिना अपना घर और गांव छोड़ दिया। वे उन पर भरोसा करते थे जिसने उन्हें बुलाया था। मूसा और इस्राएल के लोगों को मिस्र से निकलने के मार्ग का मानचित्र नहीं दिया गया था। लेकिन उनका मानना था कि उनके साथ चलने वाले प्रभु यह सब जानते हैं। यूसुफ नहीं जानता था कि जब वह कुएं में फेंका जाएगा और बाद में उसके भाइयों द्वारा बेच दिया जाएगा तो वह कहां पहुंचेगा। फिर भी उसे विश्वास था कि ईश्वर उसके साथ है। क्या मैं प्रभु को 'हाँ' कहने को तैयार हूँ?

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today we are called upon to reflect upon the instance of the announcement of the good tidings of the Incarnation by angel Gabriel to Mary. The feast of the Annunciation marks the fulfillment of God’s promise to send the Messiah to save humanity. On this day Mary opened her heart to God and said ‘yes’ to the divine offer of salvation. Mary said yes to God who intervened in her life. Do we say ‘yes’ to God who intervenes in our day-to-day life? Do I allow God to enter into my personal life, into my personal space? Can I say ‘yes’ to God even when I do not understand everything about his demands? Abraham left his home and his village without knowing the destination and the way. He trusted in the one who called him. Moses and the people of Israel did not have the route-map when they left Egypt. But they believed that God who walked with them knew it all. Joseph did not know where he would end up when he was thrown into the well and later sold by his brothers. Yet he believed that God was with him. Am I willing to say ‘yes’ to the Lord?

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन - 3

एक प्रचलित लोकप्रिय धारणा है कि जो कुछ भी हम 25 मार्च की मध्यरात्रि को ईश्वर से प्रार्थना में मांगेंगे ईश्वर हमें प्रदान करेंगे। 25 मार्च येसु के गर्भागमन का पर्व ईश्वर के मरियम के गर्भ में आने का क्षण है। यह मरियम के ईश्वर के दूत को उनकी योजना के प्रति हॉ करने के कारण संभव हुआ। इसलिये यह त्यौहार हमारे ईश्वर को हॉ कहने का भी पर्व है। मरियम के हॉ कहने के कारण समस्त मानव जाति के लिये ईश्वर की मुक्ति योजना का प्रांरभ हुआ। यह पर्व हमें सिखाता है कि जब हम ईश्वर को हॉ कहते तो इससे असख्ंय लोगों का कल्याण होता है।

बाइबिल में ऐसे अनेक लोग है जो उतने योग्य नहीं थे किन्तु उन्होंने ईश्वर की योजना को हॉ कहकर स्वयं तथा दूसरों की मुक्ति के द्वार खोले। जब नूह से ईश्वर ने पोत बनाने को कहा तो उन्होंने हॉ कहा। इब्राहिम अपने पुत्र का बलिदान चढाने को तैयार हो गये। युसूफ ने ईश्वर की इच्छानुसार अपने भाइयों को माफ किया। मूसा फिराउन के पास जाने को तैयार हुये। रेहाब ने इस्राएलियों को बचाया, दाउद ने गोलियत से लडने में हामी भरी। दानिएल ने दूसरे देवताओं की आराधना से इंकार किया, मरियम ने ईशपुत्र की माता बनना स्वीकारा। शिष्य अपना सबकुछ छोड कर येसु के पीछे हो लिये तथा पौलुस ने गैर-यहूदियों को सुसमाचार सुनाना स्वीकार किया।

हम भी ईश्वर को हॉ कहना चाहते हैं किन्तु ईश्वर को हॉ कहने का मतलब है अपनी इच्छाओं और योजनाओं को ना कहना। हम कठिन या विषम परिस्थतियों में भी कैसे ईश्वर को हॉ कह सकते है? यदि तो सबसे कठिन और जाटिल काम होता है। जब तक हमारी इच्छानुसार जीवन जाता है तब तक ईश्वर के अनुसार चलना आसान होता है किन्तु जब ईश्वर चाहते हैं कि हम अपना परिचित तथा आरामदायक जीवन छोड कर कुछ नया, विशेष एवं कठिन करे तथा आंखों की दृष्टि से नहीं बल्कि विश्वास की दृष्टि से जीये तो स्थिति चुनौतीपूर्ण हो जाती है। किन्तु ईश्वर को हॉ कहना हमारे जीवन को बदल सकता है। ईश्वर का पुरस्कार भी महान होता है। ईश्वर को हॉ कहने पर ईश्वर हमारी रक्षा करते, हमारा प्रबंध करते तथा अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करते हैं। हमारी माता मरियम अपने ईश्वर की योजना के अनुसार जीये जीवन से हमारा उत्साह बढाती तथा हमें प्रेरणा देती है।

- फादर रोनाल्ड वाँन


📚 REFLECTION

There is popular belief that whatever we ask at the stroke of midnight in prayer of 25th March at feast of annunciation you would receive from God. It was the moment God became man in womb of Mary. However, I have a different stand towards this belief. I believe annunciation is a time when we should not be asking God any favor bur rather seeking to do what God wants us to do. The feast is the memorial of the great Yes to the Lord Mary said to the Angel. Mary’s yes set into effect the grand economy of God’s salvation. The feast teaches us that saying ‘yes’ to God always unleashes immeasurable goodness to all. Mary was neither the first one who had said yes to God against all odds nor the last.

There are many ordinary, flawed, messed up, scared, and insecure people in the Bible who said yes to God not knowing what it would mean for their lives.

Noah said YES when God asked him to build the ark.

Abraham said YES when God asked him to sacrifice his only son.

Joseph said YES when God asked him to forgive his brothers who beat and sold him into slavery.

Moses said YES when God told him to go to Pharaoh and ask him to let the Israelites go.

Rahab said yes when asked to hide the Israelite spies and risk her own life and the lives of her family.

David said YES when God asked him to fight the giant Goliath with only a slingshot and a few stones.

Esther said YES when Mordecai told her to go to the king to save her people.

Daniel said YES when God told him not to bow down and worship other idols.

Mary said YES when the angel told her she would carry God’s son, Jesus.

The disciples said YES when Jesus asked them to leave everything behind and follow him.

Paul said YES when God asked him to deliver the good news of Jesus to the Gentiles.

We too want to say yes to God! But saying yes to what God asks may include saying no to what you want and to what others think is best…how do you say yes when it’s hard to do? This is when things get complicated! It is so easy to go along with God’s plan when it suits your needs, but what about when God’s “asking” requires us to risk too much, leave our comfort zones, or walk by blind faith? Saying yes to God is a bold declaration.

It may be difficult.

It may be unpopular.

It may be uncomfortable.

But saying ‘yes’ to God is also rewarding and life-changing, moment! Don’t forget that saying yes is just the beginning of the story. God provided for, protected, and fulfilled His promises to each person who stepped out in faith and boldly followed God’s directions.

Mary Our Mother set a beautiful and an ideal example for all her children to emulate. Let us take courage and inspiration from her journey of faith.

-Fr. Ronald Vaughan