अप्रैल 09, 2024, मंगलवार

पास्का का दूसरा सप्ताह

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📒 पहला पाठ : प्रेरित-चरित 4:32-37

32) विश्वासियों का समुदाय एक हृदय और एकप्राण था। कोई भी अपनी सम्पत्ति अपनी ही नहीं समझता था। जो कुछ उनके पास था, उस में सबों का साझा था।

33) प्रेरित बड़े सामर्थ्य से प्रभु ईसा के पुनरुत्थान का साक्ष्य देते रहते थे और उन सबों पर बड़ी कृपा बनी रहती थी।

34) उन में कोई कंगाल नहीं था; क्योंकि जिनके पास खेत या मकान थे, वे उन्हें बेच देते और कीमत ला कर

35) प्रेरितों के चरणों में अर्पित करते थे। प्रत्येक को उसकी आवश्यकता के अनुसार बाँटा जाता था।

36) यूसुफ नामक लेवी-वंशी का जन्म कुप्रुस में हुआ था। प्रेरितों ने उसका उपनाम बरनाबस अर्थात् सान्त्वना-पुत्र रखा था।

37) उसकी एक जमीन थी। उसने उसे बेच दिया और उसकी कीमत ला कर प्रेरितों के चरणों मं अर्पित कर दी।

📚 सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 3:7-15

7) आश्चर्य न कीजिए कि मैंने यह कहा- आप को दुबारा जन्म लेना है।

8) पवन जिधर चाहता, उधर बहता है। आप उसकी आवाज सुनते हैं, किन्तु यह नहीं जानते कि वह किधर से आता और किधर जाता है। जो आत्मा से जन्मा है, वह ऐसा ही है।’’

9) निकोदेमुस ने उन से पूछा, ‘‘यह कैसे हो सकता है?’’

10) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ‘‘आप इस्राएल के गुरु हैं और ये बातें भी नहीं समझते!

11) मैं आप से यह कहता हूँ- हम जो जानते हैं, वही कहते हैं और हमने जो देखा है, उसी का साक्ष्य देते हैं; किन्तु आप लोग हमारा साक्ष्य स्वीकार नहीं करते।

12) मैंने आप को पृथ्वी की बातें बतायीं और आप विश्वास नहीं करते। यदि मैं आप को स्वर्ग की बातें बताऊँ, तो आप कैसे विश्वास करेंगे?

13) मानव पुत्र स्वर्ग से उतरा है। उसके सिवा कोई भी स्वर्ग नहीं पहुँचा।

14) जिस तरह मूसा ने मरुभूमि में साँप को ऊपर उठाया था, उसी तरह मानव पुत्र को भी ऊपर उठाया जाना है,

15) जिससे जो उस में विश्वास करता है, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे।’’

📚 मनन-चिंतन

प्रारंभिक कलीसिया में विश्वासी एकजुट़ एवं एक मत थे। सभी एक दुसरे से प्रेम करते एवं एक दूसरे की सहायता करते थे। इसलिए सभी विश्वासी एक हृदय और एक प्राण थे। उन्होंने अपना सब कुछ बेचकर कलीसिया के लिए समर्पित कर दिया। जो कुछ भी उनके पास था, उन्होंने एक दुसरे के साथ उसका साझा किया। सच्चे विश्वासी की एक पहचान है कि वह अपना सब कुछ प्रभु के चरणों पर समर्पित कर देता है।

निकोदेमुस को प्रभु की बातों पर पूर्ण समर्पण की जरूरत थी। जो कोई भी प्रभु में विश्वास करेगा वह अंनत जीवन प्राप्त करेगा। निकोदेमुस ने अपना विश्वास प्रभु पर रखा और कहा, “आप ईश्वर की ओर से आये हुए गुरू हैं।” क्या हम हमारा जीवन प्रभु को समर्पित करते हैं? आइये, हम अपना भरोसा प्रभु पर बनाये रखें।

- फादर साइमन मोहता (इंदौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

The believers in the early church were united and of one mind. Everyone loved each other and helped each other. So, all the believers were one heart and one soul. They sold everything and dedicated it to the church. Whatever they had, they shared with each other. One identity of a true believer is that he surrenders everything at the feet of the Lord.

Nicodemus needed complete submission to the word of the Lord. Whoever believes in the Lord will have eternal life. Nicodemus puts his faith in the Lord and said, "You are a teacher from God." Do we dedicate our life to the Lord? Come, let us keep our trust in the Lord.

-Fr. Simon Mohta (Indore Diocese)

📚 मनन-चिंतन -2

निकोदेमुस येसु के पास आता है। यह रोचक बात है क्योंकि निकोदेमुस जैसा प्रतिष्ठित व्यक्ति येसु के पास कुछ सिखने आता है। निकोदेमुस फरीसियों के अभिजात वर्ग से था तथा स्वयं भी अव्वल दर्जे का शिक्षक था। इतनी साख होने के बावजूद भी वह येसु के पास आता है। निकोदेमुस खुद शिक्षक होकर भी येसु को ईश्वर के पास के आये शिक्षक, गुरू कहता है। येसु के महान कार्यों को देखकर वह समझ जाता है कि येसु एक धार्मिक व्यक्ति थे। वह येसु के बारे में पूरी तरह से नहीं जानता था किन्तु वह उनके कार्यों के कारण उनकी ओर खींचा चला आता है।

निकोदेमुस का मनोभाव या रूख हमें उसके ईश्वर के प्रति खुलेपन तथा तत्परता को दर्शाता है। येसु स्वयं यहूदियों से कहते हैं वे उनके कार्यों को देखे और परखे कि वे ईश्वर की सहायता से है या मानवीय स्रोत से, ’’मुझ पर विश्वास नहीं करने पर भी तुम कार्यों पर ही विश्वास करो, जिससे यह जान जाओ और समझ लो कि पिता मुझ में है और मैं पिता में हूं।’’ (योहन 10:38) जब योहन बपतिस्ता यह जानता चाहता था कि क्या येसु ही मसीह है या फिर वे किसी और की प्रतीक्षा करे तब येसु केवल अपने कार्यों का उल्लेख करते हुये कहते हैं, ’’उन्होंने योहन के शिष्यों से कहा, ’जाओ, तुमने जो सुना और देखा है, उसे योहन को बता दो - अंधे देखते हैं, लंगडे चलते हैं, कोढी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुर्दे जिलाये जाते हैं, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है।’’ (लूकस 7:22)

येसु के कार्य स्वर्ग राज्य के आने के चिन्ह थे। हमें कार्यों की गंभीरता को गहराई से समझना तथा उन पर विश्वास करना चाहिये। हमें अपने दैनिक जीवन चर्या के छोट-बडे कार्यों में ईश्वर की उपस्थिती को देखना तथा महसूस कहते हुये विश्वास में गहरा बनाना चाहिये। ईश्वर हमारे जीवन में अपने मुक्ति के कार्यों के द्वारा हमें उनमें विश्वास करने के लिये आमंत्रित करते हैं।

- फादर रोनाल्ड मेलकम वॉन


📚 REFLECTION

Nicodemus comes to Jesus. It is quite interesting to know that a person of Nicodemus’s repute came to Jesus to learn something from him. Nicodemus belonged to the elite class of Pharisees, besides, ‘Sanhedrin’ and a high-quality teacher. Yet inspite of all these credentials he came to Jesus. Nicodemus being a teacher calls teacher a teacher but one who came from God. He knows that Jesus is a godly man because of the mighty works Jesus had been performing. He didn’t have the full identity of Jesus but he was drawn towards him by the great works of the Lord.

Nicodemus’ attitude tells us about his openness and willingness to see God in the works of Jesus. Jesus himself tells the Jews to look at his work and judge for themselves whether they are from God or from human source, “But if I do them, even though you do not believe me, believe the works, so that you may know and understand that the Father is in me and I am in the Father.’ (John 10:38) When John the Baptist inquired if Jesus was the Messiah, Jesus merely pointed out the works that he was doing for John to believe, “And he answered them, ‘Go and tell John what you have seen and heard: the blind receive their sight, the lame walk, the lepers are cleansed, the deaf hear, the dead are raised, the poor have good news brought to them.” (Luke 7:22)

Works of Jesus were the signs of the coming of the Kingdom. We need to understand the gravity of the works and believe. Even in our daily life we ought to realise the presence of God by the small and big happenings that take place and come to a greater faith. God through his saving and providential acts in our life invites us to come to faith in him.

-Fr. Ronald Melcom Vaughan

📚 मनन-चिंतन -3

येसु और निकोदेमुस के बीच का वार्तालाप पवित्र आत्मा के ज्ञान को हमारे सामने प्रस्तुत करता है। येसु कहते है कि पवित्र आत्मा पवन की तरह है, पवन जिधर चाहता, उधर बहता है। आप उसकी आवाज सुनते हैं, किन्तु यह नहीं जानते कि वह किधर से आता और किधर जाता है। जो आत्मा से जन्मा है, वह ऐसा ही है। कहने का तात्पर्य यह है कि पवित्र आत्मा कहॉं से आकर मनु-ुनवजयय में प्रवेश करता है यह हम नहीं जाने सकते परंतु एक व्यक्ति पवित्र आत्मा की उपस्थिति को अपने जीवन में अनुभव जरूर कर सकता है या फिर पवित्र आत्मा के कार्यो द्वारा हम उसे जान सकते हैं।

निकोदेमुस इस्राएल का एक गुरु था जो ग्रंथों एवं दिव्य चीजों के वि-ुनवजयाय में सिखाया करता था परंतु वह भी पवित्र आत्मा के वि-ुनवजयाय में जानने में असमर्थ रहता है। ग्रंथों और दिव्य चीज़ो के वि-ुनवजयाय में ज्ञान अर्थहीन हो जाता जब तक हम उस दिव्य रहस्योें का अनुभव न कर लें। अक्सर हम अधिकतर समय दिव्य सच्चाईं को जानने के लिए अपनी बुद्धि और अपनी क्षमता पर निर्भर रहते हैं; परंतु इस पर भी हम उस वास्तविकता को नही जान पाते है। निकोदेमुस के समान हमें येसु के पास जाकर उन दिव्य सच्चाई को सम-हजयने के लिए येसु से प्रार्थना करना चाहिए।

आईये हम येसु के पास जायें न केवल उन दिव्य रहस्यों को सम-हजयने के लिए, परंतु उन दिव्य रहस्यांे का अनुभव करने के लिए भी; क्योकि जब तक हम पवित्र आत्मा का अनुभव नहीं करेंगे तब तक यह शिक्षा मात्र सिद्धांत और धारणा बन कर रह जायेगी।

आईये हम येसु से प्रार्थना करें कि वे हमारे भीतर पवित्र आत्मा को जागृत करें जिससे हम चीजों को उस प्रकार देख सकें जैसे ईश्वर देखते हैं, हम उस प्रकार विचार कर सकें जैसे ईश्वर विचार करते है तथा हम उस प्रकार प्रेम कर सकें जैसे ईश्वर करते हैं। इस आशी-ुनवजया के लिए हम प्रार्थना करें। आमेन

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

The conversation between Jesus and Nicodemus brings forth the knowledge of Holy Spirit. Jesus tells that Holy Spirit comes like that of wind as nobody knows where the wind comes from and where it is going but we can hear only the sound of the wind as we can feel the wind so also is with the person who is born of Holy Spirit. It means to say we may not know from where the Holy Spirit comes and enters the person but one can only feel the presence of Holy Spirit or people may come to know only by the works of the Holy Spirit. Nicodemus was the teacher who used to teach about the Scriptures and divine things but He too was not able to understand about the Holy Spirit. The knowledge about the scripture and the divine things becomes useless unless we experience those divine mysteries.

Most of the times we rely on our own efforts and knowledge in order to understand the divine realities, but we may not be able to understand the reality. Like Nicodemus we need to go to Jesus in order to understand the reality.

Let us strive to Jesus not only to understand the divine realities but to experience that divine reality because unless we experience that Holy Spirit the teachings will remain mere theories and concept. Let us ask Jesus to awaken our Holy Spirit so as to see the things as God sees, to think as God thinks and to love as God loves. Let’s pray for this grace. Amen

-Fr. Dennis Tigga