अप्रैल 18, 2024, गुरुवार

पास्का का तीसरा सप्ताह

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📒 पहला पाठ :प्रेरित-चरित 8:26-40

26) ईश्वर के दूत ने फि़लिप से कहा, "उठिए, येरुसालेम से गाज़ा जाने वाले मार्ग पर दक्षिण की ओर जाइए"। यह मार्ग निर्जन है।

27) वह उठ कर चल पड़ा। उस समय एक इथोपियाई ख़ोजा, येरुसालेम की तीर्थयात्रा से लौट रहा था। वह इथोपिया की महारानी कन्दाके का उच्चाधिकारी तथा प्रधान कोषाध्यक्ष था।

28) वह अपने रथ पर बैठा हुआ नबी इसायस का ग्रन्थ पढ़ रहा था।

29) आत्मा ने फि़लिप से कहा, "आगे बढि़ए और रथ के साथ चलिए"।

30) फि़लिप दौड़ कर उसके पास पहुँचा और उसे नबी इसायस का ग्रन्थ पढ़ते सुन कर पूछा, "आप जो पढ़ रहे हैं, क्या उसे समझते हैं?"

31) उसने उत्तर दिया, "जब तक कोई मुझे न समझाये, तो मैं कैसे समझूँगा?" उसने फि़लिप से निवेदन किया कि वह चढ़ कर उसके पास बैठ जाये।

32) वह धर्मग्रन्थ का यह प्रसंग पढ़ रहा था-

33) वह मेमने की तरह वध के लिए ले जाया गया। ऊन करतने वाले के सामने चुप रहने वाली भेड़ की तरह उसने अपना मुख नहीं खोला। उसे अपमान सहना पड़ा, उसके साथ न्याय नहीं किया गया। उसकी वंशावली की चर्चा कौन कर सकेगा? उसका जीवन पृथ्वी पर से उठा लिया गया है।

34) खोजे ने फि़लिप से कहा, "आप कृपया मुझे बताइए, नबी किसके विषय में यह कह रहे हैं? अपने विषय में या किसी दूसरे के विषय में?"

35) आत्मा ने फि़लिप से कहा, "आगे बढि़ए और रथ के साथ चलिए"।

36) (36-37) यात्रा करते-करते वे एक जलाशय के पास पहुँँचे। खोजे ने कहा, “यहाँ पानी है। मेरे बपतिस्मा में क्या बाधा है?“

38) उसने रथ रोकने का आदेश दिया। तब फिलिप और खोज़ा, दोनों जल में उतरे और फि़लिप ने उसे बपतिस्मा दिया।

39) जब वे जल से बाहर आये, तो ईश्वर का आत्मा फि़लिप को उठा ले गया। खोज़े ने उसे फिर नहीं देखा; फिर भी वह आनन्द के साथ अपने रास्ते चल पड़ा।

40) फि़लिप ने अपने को आज़ोतस में पाया और वह कैसरिया पहुँचने तक सब नगरों में सुसमाचार का प्रचार करता रहा।

📚 सुसमाचार : योहन 6:44-51

44) कोई मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा, उसे आकर्षित नहीं करता। मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूंगा।

45) नबियों ने लिखा है, वे सब-के-सब ईश्वर के शिक्षा पायेंगे। जो ईश्वर की शिक्षा सुनता और ग्रहण करता है, वह मेरे पास आता है।

46) "यह न समझो कि किसी ने पिता को देखा है; जो ईश्वर की ओर से आया है, उसी ने पिता को देखा है

47) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- जो विश्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है।

48) जीवन की रोटी मैं हूँ।

49) तुम्हारे पूर्वजों ने मरुभूमि में मन्ना खाया, फिर भी वे मर गये।

50) मैं जिस रोटी के विषय में कहता हूँ, वह स्वर्ग से उतरती है और जो उसे खाता है, वह नहीं मरता।

51) स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई वह रोटी खायेगा, तो वह सदा जीवित रहेगा। जो रोटी में दूँगा, वह संसार के लिए अर्पित मेरा मांस है।"

📚 मनन-चिंतन

हमारे समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं जो प्रभु को जानने की चाह रखते हैं और प्रभु के पास आना चाहते हैं। उनमें से कई लोग प्रभु के वचनों को पढ़ते भी हैं, लेकिन समझ नही पाते हैं। एथोपियाई खोजा भी नबी इसायाह का ग्रन्ध पढ़ रहा था, लेकिन वह समझ नही पा रहा था। पवित्र आत्मा फिलिप को उनकी सहायता के लिए भेजते हैं, फिलिप उसे सब कुछ समझाता है, खोजा तुरंत विश्वास कर बपतिस्मा ग्रहण करता और आनंद के साथ अपने रास्ते चल पड़ता है।

प्रभु येसु कहते हैं, “वे सब के सब ईश्वर की शिक्षा पायेंगे। जो उसे सुनता और ग्रहण करता है, वह मेरे पास आता है।” जो विश्वास करता है उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। स्वयं प्रभु येसु हमारे जीवन की रोटी बन गये, और जो उसे खाऐगा वह सदा जीवित रहेगा क्योंकि उसका मांस और रक्त हमें जीवन प्रदान करते हैं। आइये, हम प्रभु को और भी अधिक गहराई से जानने का प्रयत्न करें।

- फादर साइमन मोहता (इंदौर धर्मप्रांत)


📚 REFLECTION

There are many people in our society who want to know God and want to come close to God. Many of them even read the words of the Lord, but do not understand. The Ethiopian eunuch was also reading the book of the prophet Isaiah, but he could not understand. The Holy Spirit sends Philip to help him , Philip explains everything to him, the eunuch immediately believes and is baptized and goes on his way with joy.

Lord Jesus says, “All of them will be taught by God. He who hears and accepts it, comes to me. He who believes has eternal life. The Lord Jesus himself became the bread of our life, and whoever eats it will live forever because it is his flesh and blood that give us life. Come, let us try to know the Lord more deeply.

-Fr. Simon Mohta (Indore Diocese)

📚 मनन-चिंतन- 2

पहला पाठ, दो लोगों के बीच एक उत्साहजनक और प्रेरक मुलाकात की बात करता है। फिलिप, प्रभु के एक दूत की प्रेरणा के नेतृत्व में, और पवित्र आत्मा से भरा हुआ, इथियोपियाई अधिकारी के पास जाता है और पवित्रशास्त्र को उनके साथ साझा करता है। एक निमंत्रण है, एक खुलापन है, एक जिज्ञासा है और एक साझाकरण है। इस मुलाकात में, फिलिप यीशु के बारे में खुशखबरी की घोषणा करता है। कोई केवल यह मान सकता है कि फिलिप की उद्घोषणा से इथियोपियाई इतना प्रभावित हुआ था, कि पानी देखकर, वह बपतिस्मा लेने की इच्छा व्यक्त करता है। इस आदमी के दिल में उस पल में पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा लेने की इच्छा थी। और वह आनन्दित हुआ। और इसी तरह जब भी हम अपने स्वयं के बपतिस्मे को याद करते हैं, और हम में से प्रत्येक के लिए इसका क्या अर्थ होता है, हम भी आनन्दित होते हैं। हम ईश्वर के प्यारे बच्चे हैं – अनंत काल से हमसे प्यार करते हैं, और प्रभु का आत्मा मुझ में निवास करता है। आइए आनन्दित हों!

- फादर पायस लकड़ा


📚 REFLECTION

Jesus in today’s gospel says: “No one can come to me unless the Father who sent me draws him,” (v.44). Through this gospel verse it is very clear to me that Jesus talks about conversion. This contains a hint also as to how God proceeds in His efforts to bring about a conversion of all. He proceeds by an inward attraction or drawing of the sinner. In other words, conversion is the initiative of God. God starts the conversion. It is not we who looks for Him. It is always He who looks for us and brings us to conversion. But of course He needs our cooperation. It is because it is up to us if and when we go to Jesus when the Father calls. Then Jesus can work in us.

This verse too can mean faith. The Father has called us to believe in Christ and in His Church.

This verse again can mean a call to holiness. Everybody is called to be holy. No one can even think about holiness apart from God since God Himself is the source of all holiness, as somebody said. We partake in His holiness. We are made in His image. We must be humble and recognize that apart from God we can do nothing.

Again, Jesus says, “no one can come to me, unless the Father draws him.”

-Fr. Pius Lakra

📚 मनन-चिंतन - 2

सुसमाचार की घोषणा द्वारा कई लोगो ने अपना जीवन बदलकर बपतिस्मा द्वारा येसु को अपना मसीहा और ईश्वर के रूप में अपनाया। आज हमारे समक्ष इथोपियाई अधिकारी द्वारा येसु के नाम पर बपतिस्मा ग्रहण करने का सुन्दर घटना है। इथोपियाई खोजा येरुसालेम की तीर्थयात्रा कर वापस लौट रहा था। यह इथोपियाई अधिकारी येरुसालेम मंदिर और यहोवा के प्रति आराधना और चढ़ावे से बहुत प्रभावित था। इस्राएल के ईश्वर को अधिक जानने और समझने के लिए वह धर्मग्रंथ पढ़ते हुए जा रहा था परंतु वह उनको समझ नहीं पाया। उसी दौरान पवित्र आत्मा ने फिलिप को प्रेरित किया कि वह उस इथोपियाई अधिकारी का साथ दे तथा नबी इसायाह के ग्रंथ के विषय में उसे समझायें जो येसु के बारे में लिखा गया था।

फिलिप को सुनने के बाद इथोपियाई अधिकारी ने येसु में विश्वास किया और बपतिस्मा लिया। इथोपियाई अधिकारी के परिवर्तन में फिलिप ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रोमियों के नाम संत पौलुस का पत्र 10ः14-15 में फिलिप के इस कार्य के विषय में बहुत अच्छी तरह से बताया है, ‘‘यदि उन्होने उसके विषय में कभी सुना नहीं, तो उस में विश्वास कैसे कर सकते हैं? यदि कोई प्रचारक न हो, तो वे उसके विषय में कैस सुन सकते है? और यदि वह भेजा नहीं जाये, तो कोई प्रचारक कैसे बन सकता है? धर्मग्रन्थ में लिख है- शुभ सन्देश सुनाने वालों के चरण किते सुन्दर लगते हैं।’’

जब तक किसी को प्रचार के लिये भेजा न जाये, कोई भी येसु को जान नहीं पायेगा तथा उस पर विश्वास कर पायेगा। आज के प्रथम पाठ में हम पाते है कि फिलिप पवित्र आत्मा की प्रेरणा द्वारा इथोपियाई अधिकारी के पास प्रचार के लिए भेजा गया। पुनरुत्थान और पेन्तेकोस्त के बाद सबसे पहले प्रेरितो को प्रचार के लिए बुलाया गया। आज के दिनों में समय समय पर पवित्र आत्मा न केवल पुरोहितो एवं धर्मबहनों को सुसमाचार प्रचार के लिए बुलाती है परंतु लोकधर्मियों को भी प्रचार के लिए बुलाती है।

सुसमाचार प्रचार पवित्र आत्मा का कार्य है। आज बहुत लोग ख्रीस्तीय होंगे परंतु बहुत कम सुसमाचार प्रचारक है। अधिकतर लोग सोचते हैं कि प्रचार का कार्य पुरोहितों एवं धर्मबहनों का हैं परंतु ऐसा नही हैद्ध जिन्होने भी पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा ग्रहण किया है वे सब अपने स्तर पर पवित्र आत्मा की प्रेरणा द्वारा प्रचार करने के लिए बुलाये गये है।

आईये हम पवित्र आत्मा की प्रेरणा के लिए प्रार्थना करें जिससे हम अपने जीवन को प्रचार करने हेतु अपने स्तर से कोशिश कर सकें। आमेन

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

The proclamation of the good news led many to change their lives and accept Jesus as their Messiah and God through baptism. Today we have a beautiful incident of an Ethopian officer getting baptized in the name of Jesus. Ethopian officer came to Jerusalem for pilgrimage and was on the way back to his home. Officer had been fascinated by the Jerusalem temple and the worship and sacrifices offered to Yahweh. Being influenced by the Israelite God he was reading the scriptures to understand God and His work but was failed to get the meanings of the scripture. Meanwhile Spirit inspired Philip to accompany Ehopian officer and explain the scripture of Isaiah which is written about Jesus.

After listening to Philip Ethopian officer believed in Jesus and got baptized. Philip played an important role in the conversion of Ethopian officer. Romans 10:14-15 is very well said of Philip, “How are they to believe in one of whom they have never heard? And how are they to hear without someone to proclaim him? And how are they to proclaim him unless they are sent? As it is written, ‘How beautiful are the feet of those who bring good news!’”

Unless the people are being sent to proclaim, nobody will come to know about Jesus and will not able to believe in him. In today’s first reading we find Philip was being sent by the inspiration of the Holy Spirit to proclaim Jesus to Ehopian officer. After Resurrection and Pentecost first and foremost the apostles were called to proclaim. Now time to time Holy Spirit inspires not only Priests and sisters but also many lay people to proclaim the gospel.

Proclamation is the work of Holy Spirit. Today many are Christians but few are there to proclaim gospel. Many think that the proclamation is the work of Priests and Religious but it is not so, all those who are baptized in the name of Father, Son and the Holy Spirit has to proclaim in their own way by the inspiration of the Holy Spirit.

Let’s ask the inspiration of Holy Spirit that we may understand how each one can give our lives for the proclamation. Amen

-Fr. Dennis Tigga