मई 25, 2024, शनिवार

सामान्य काल का सातवाँ सप्ताह

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पहला पाठ : याकूब का पत्र 5:13-20

13) यदि आप लोगों में कोई कष्ट में हो, तो वह प्रार्थना करे। कोई प्रसन्न हो, तो भजन गाये।

14) कोई अस्वस्थ हो, तो कलीसिया के अध्यक्षों को बुलाये और वे प्रभु के नाम पर उस पर तेल का विलेपन करने के बाद उसके लिए प्रार्थना करें।

15) वह विश्वासपूर्ण प्रार्थना रोगी को बचायेगी और प्रभु उसे स्वास्थ्य प्रदान करेगा। यदि उसने पाप किया है, तो उसे क्षमा मिलेगी।

16) इसलिए आप लोग एक दूसरे के सामने अपने-अपने पाप स्वीकार करें और एक दूसरे के लिए प्रार्थना करें, जिससे आप स्वथ हो जायें। धर्मात्मा की भक्तिमय प्रार्थना बहुत प्रभावशाली होती है।

17) एलियस हमारी ही तरह निरे मनुष्य थे। उन्होंने आग्रह के साथ इसलिए प्रार्थना की कि पानी नहीं बरसे और साढ़े तीन वर्ष तक पृथ्वी पर पानी नहीं बरसा।

18) उन्होंने दुबारा प्रार्थना की। स्वर्ग से पानी बरसा और पृथ्वी पर फसल उगने लगी।

19) मेरे भाइयो! यदि आप लोगों में कोई सच्चे मार्ग से भटके और कोई दूसरा उसे वापस ले आये,

20) तो यह समझें कि जो किसी पापी को कुमार्ग से वापस ले आता है, वह उसकी आत्मा को मृत्यु से बचाता है और बहुत-से पाप ढाँक देता है।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:13-16

13) लोग ईसा के पास बच्चों को लाते थे, जिससे वे उन पर हाथ रख दें; परन्तु शिष्य लोगों को डाँटते थे।

14) ईसा यह देख कर बहुत अप्रसन्न हुए और उन्होंने कहा, ’’बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें मत रोको, क्योंकि ईश्वर का राज्य उन-जैसे लोगों का है।

15) मैं तुम से यह कहता हूँ- जो छोटे बालक की तरह ईश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में प्रवेश नहीं करेगा।’’

16) तब ईसा ने बच्चों को छाती से लगा लिया और उन पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में हमें प्रभु येसु केद्वारा बच्चों का स्वागत किये जाने और उन्हें ईश्वर के राज्य के योग्य उमीदवारों के उदाहरण स्वरुप पेश किये जाने का वर्णन मिलता है। प्रभु आज हमें हमारी इस विश्वास यात्रा में विनम्रता और सादगी के महत्व की याद दिलाते हैं। बच्चे वास्तव में किसी प्रकार के संदेह और जटिलताओं से अप्रभावित तथा ईश्वर के प्रति एक स्वाभाविक विश्वास और खुलेपन का प्रदर्शन करते हैं। ईश्वर के साथ अपने संबंधों को विश्वास, खुलेपन और सादगी की को भावना स्वीकार करना हम बच्चों से सीख सकते हैं।

आज का वचन हमें दूसरों के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। क्या हम कभी-कभी दूसरों को प्रभु येसु के पास आने से रोकते हैं? यह सन्दर्भ हमें चुनौती देता है कि हम अपने हृदयों की जाँच करें और उम्र, पृष्ठभूमि या स्थिति की परवाह किए बिना सभी के लिए स्वागत योग्य वातावरण बनाएँ। आइये हम बच्चों जैसा विश्वास रखें, समावेशी मनोभाव रखें, व दूसरों के प्रति करुणावान बनें और औरों के लिए प्रभु येसु के पास आने के माध्यम बने न कि बाधा।

- फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत


📚 REFLECTION

In today’s Gospel we find Jesus welcoming children and setting them as examples of worthy candidates for God’s kingdom. The Lord reminds us today of the importance of humility and simplicity in our journey of faith. Children are truly unaffected by any kind of doubt and complexities and demonstrate a natural faith and openness to God.

We can learn from children to accept our relationship with God as a sense of trust, openness and simplicity. Today's verse prompts us to reflect on our attitude toward others. Do we sometimes stop others from coming to Jesus? This passage challenges us to examine our hearts and create a welcoming environment for everyone, regardless of age, background, or situation. Let us have childlike faith, inclusiveness, compassion for others, and be a means for others to come to Jesus, not a hindrance.

-Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese