मई 27, 2024, सोमवार

सामान्य काल का आठवाँ सप्ताह

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📒 पहला पाठ : पेत्रुस का पहला पत्र 1:3-9

3) धन्य है ईश्वर, हमारे प्रभु ईसा मसीह का पिता! मृतकों में से ईसा मसीह के पुनरुत्थान द्वारा उसने अपनी महती दया से हमें जीवन्त आशा से परिपूर्ण नवजीवन प्रदान किया।

4) आप लोगों के लिए जो विरासत स्वर्ग में रखी हुई है, वह अक्षय, अदूषित तथा अविनाशी है।

5) आपके विश्वास के कारण ईश्वर का सामर्थ्य आप को उस मुक्ति के लिए सुरक्षित रखता है, जो अभी से प्रस्तुत है और समय के अन्त में प्रकट होने वाली है।

6) यह आप लोगों के लिए बड़ेे आनन्द का विषय है, हांलांकि अभी, थोड़े समय के लिए, आपको अनेक प्रकार के कष्ट सहने पड़ रहे हैं।

7) यह इसलिए होता है कि आपका विश्वास परिश्रमिक खरा निकले। सोना भी तो आग में तपाया जाता है और आपका विश्वास नश्वर सोने से कहीं अधिक मूल्यवान है। इस प्रकार ईसा मसीह के प्रकट होने के दिन आप लोगों को प्रशंसा, सम्मान तथा महिमा प्राप्त होगी।

8) (8-9) आपने उन्हें कभी नहीं देखा, फिर भी आप उन्हें प्यार करते हैं। आप अब भी उन्हें नहीं देखते, फिर भी उन में विश्वास करते हैं। जब आप अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात् अपनी आत्मा की मुक्ति प्राप्त करेंगे, तो एक अकथनीय तथा दिव्य उल्लास से आनन्दित हो उठेंगे।

📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:17-27

17) ईसा किसी दिन प्रस्थान कर ही रहे थे कि एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और उनके सामने घुटने टेक कर उसने यह पूछा, ’’भले गुरु! अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’

18) ईसा ने उस से कहा, ’’मुझे भला क्यों कहते हो? ईश्वर को छोड़ कोई भला नहीं।

19) तुम आज्ञाओं को जानते हो, हत्या मत करो, व्यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, किसी को मत ठगो, अपने माता-पिता का आदर करो।’’

20) उसने उत्तर दिया, ’’गुरुवर! इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ’’।

21) ईसा ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने उस से कहा, ’’तुम में एक बात की कमी है। जाओ, अपना सब कुछ बेच कर ग़रीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी। तब आ कर मेरा अनुसरण करों।“

22) यह सुनकर उसका चेहरा उतर गया और वह बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।

23) ईसा ने चारों और दृष्टि दौड़ायी और अपने शिष्यों से कहा, ’’धनियों के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा!

24) शिष्य यह बात सुन कर चकित रह गये। ईसा ने उन से फिर कहा, ’’बच्चों! ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है!

25) सूई के नाके से हो कर ऊँट निकलना अधिक सहज है, किन्तु धनी का ईश्वर के राज्य में प्रवेश़्ा करना कठिन है?’’

26) शिष्य और भी विस्मित हो गये और एक दूसरे से बोले, ’’तो फिर कौन बच सकता है?’’

27) उन्हें स्थिर दृष्टि से देखते हुए ईसा ने कहा, ’’मनुष्यों के लिए तो यह असम्भव है, ईश्वर के लिए नहीं; क्योंकि ईश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है’’।

📚 मनन-चिंतन

धनी युवक अपने धन में आसक्त था, उसका धन उसके लिए उसकी सुरक्षा, पहचान और आराम बन गया था। आज हमारे सामने यह सवाल उठता है कि हमारे जीवन के केंद्र में क्या अथवा कौन है? प्रभु येसु हमें अपनी प्राथमिकताओं का मूल्यांकन करने और विचार करने की चुनौती देते हैं कि क्या हम ऐसी किसी भी चीज़ को छोड़ने के लिए तैयार हैं जो उनके साथ हमारे संबंधों में बाधा डाल सकती है। प्रभु ने धनी युवक को अपने धन का त्याग कर उनका अनुसरण करने के लिए कहा। हमें भी मसीह का अनुसरण करने के लिए बलिदान करना चाहिए, अपनी महत्वाकांक्षाओं, आरामदायक ज़िन्दगी, और यहाँ तक कि उन सम्बन्धों को भी छोड़ देना चाहिए जो हमारे आत्मिक विकास में बाधा डालते हैं।

हम जो त्याग व बलिदान करने को तैयार हैं, उस पर मनन चिंतन करना अति महत्वपूर्ण है। धन हमें यह सोचने के लिए प्रेरित या फिर मजबूर कर सकता है कि जिंदगी में हमें ईश्वर की जरूरत नहीं है। प्रभु येसु ने चेतावनी दी है कि धनवानों के लिए ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना कठिन है। इस जाल से बचने के लिए, हमें विनम्र रहना चाहिए और धन और संपत्ति के साथ अपने संबंधों पर विचार करना चाहिए। हमारे दैनिक जीवन में, इन सत्यों पर मनन करने से हमें ईश्वर के साथ अपने संबंध को गहरा करने, अपनी प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन करने और मसीह के अनुयायियों के रूप में अधिक विश्वासयोग्यता से जीने में मदद मिल मिलेगी।

- फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत


📚 REFLECTION

The rich young ruler was attached to his wealth, making it his security, identity, and comfort. This raises the question of what holds such central places in our lives. Jesus challenges us to evaluate our priorities and consider whether we're willing to let go of anything that might hinder our relationship with Him. Jesus asked the rich young ruler to sacrifice and follow Him. We too must sacrifice to follow Christ, giving up ambitions, comforts, or even relationships that hinder our spiritual growth. Reflecting on what we're willing to sacrifice is crucial.

Wealth can deceive us into thinking we don't need God. Jesus cautioned that it's hard for the wealthy to enter the Kingdom of God. To avoid this trap, we must remain humble and reflect on our relationship with wealth and possessions.

In our daily lives, reflecting on these principles can help us deepen our relationship with God, reevaluate our priorities, and live more faithfully as followers of Christ.

-Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese

📚 मनन-चिंतन-2

अमीर होने का मतलब सिर्फ बहुत सारा पैसा होना नहीं है। इसका अर्थ है दूसरों की तुलना में बहुत अधिक धन होना और विशेष रूप से आवश्यकता से अधिक धन होना। धन व्यक्ति को ईश्वरविहीन और हृदयहीन बना सकता है। मूर्ख धनी के दृष्टांत में, धनी मूर्ख ने प्राप्त धन के लिए ईश्वर का आभारी होने के बजाय खुद को अपने धन का केंद्र बना लिया। मूर्ख धनी अपने दृष्टिकोण में ईश्वरविहीन था। अमीर ब्यक्ति और लाज़रुस के दृष्टांत में, धनी ब्यक्ति ने लाजरूस से आंखें मूंद लीं, जो उसके दरवाजे पर उसकी मदद की प्रतीक्षा कर रहा था। धनी व्यक्ति हृदयहीन था। धनवान युवक ईश्वर से प्रेम करता था, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपने धन से और भी अधिक प्रेम करता था। जबकि उसे आज्ञाओं का पालन करने में गर्व था, उसने अनजाने में पहली आज्ञा को तोड़ा था।वह ईश्वर में केंद्रित नहीं था। जाहिर है, उसके जीवन में एक और ईश्वर था। शायद वह केवल इस बारे में जानकारी मांग रहा था कि कैसे अनन्त जीवन प्राप्त किया जाए, जबकि येसु उसे अनन्त जीवन का निमंत्रण दे रहा था। धनी व्यक्ति अपने पाखंड का पूरी तरह से पर्दाफाश कर चुका था।

- फादर संजय कुजूर एस.वी.डी


📚 REFLECTION

To be rich is not just to have a lot of money. It is to have a lot more money than others and especially to have more money than one needs. Wealth can make one Godless and heartless. In the parable of the rich fool, instead of being grateful to God for the wealth received, the rich fool made oneself the center of his wealth. The rich fool was Godless in his approach. In the parable of the rich man and Lazarus, the rich man turned a blind eye to Lazarus lay waiting for his help at his door step. The rich man was heartless. The rich young man loved the Lord but it seems he loved his riches even more. While he took pride in keeping the commandments, he had inadvertently broken the first commandment. He was not focused in God. Obviously, he had another god in his life. The young man was perhaps merely seeking information on how to obtain eternal life while Jesus was offering him an invitation to eternal life. The rich man was totally exposed of his hypocrisy.

-Fr. Sanjay Kujur SVD