मई 28, 2024, मंगलवार

सामान्य काल का आठवाँ सप्ताह

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📒 पहला पाठ : पेत्रुस का पहला पत्र 1:10-16

10) यही मुक्ति नबियों के चिन्तन तथा अनुसंधान का विषय थी। उन्होंने आप लोगों को मिलने वाले अनुग्रह की भविष्यवाणी की।

11) उनमें मसीह का आत्मा विद्यमान था और वे मसीह के दुःखभोग तथा इसके बाद आने वाली महिमा की भविष्यवाणी करते थे। नबी यह जानना चाहते थे कि आत्मा किस समय और किन परिस्थितियों की ओर संकेत कर रहा है।

12) उन पर प्रकट किया गया था कि वे जो सन्देश सुनाते थे, वह उनके लिए नहीं, बल्कि आप लोगों के लिए था। अब सुसमाचार के प्रचारक, स्वर्ग से भेजे हुए पवित्र आत्मा की प्रेरणा से, आप लोगों को वही सन्देश सुनाते हैं। स्वर्गदूत भी इन बातों की पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक हैं।

13) इसलिए आप लोग सतर्क और संयमी बने रहें और उस अनुग्रह पर पूरा भरोसा रखें, जो ईसा मसीह के निकट होने पर आप को प्राप्त होगा।

14) आप आज्ञाकारी सन्तान बन कर अपनी वासनाओं के अनुसार आचरण नहीं करें, जैसा कि पहले किया करते थे, जब आप लोगों को ज्ञान नहीं मिला था।

15) आप को जिसने बुलाया, वह पवित्र है। आप भी उसके सदृश अपने समस्त आचरण में पवित्र बनें;

16) क्योंकि लिखा है- पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।

📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:28-31

28) तब पेत्रुस ने यह कहा, ’’देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़ कर आपके अनुयायी बन गये हैं।’’

29) ईसा ने कहा, ’’मैं तुम से यह कहता हूँ- ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिए घर, भाई-बहनों, माता-पिता, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया हो

30) और जो अब, इस लोक में, सौ गुना न पाये- घर, भाई-बहनें, माताएँ, बाल-बच्चे और खेत, साथ-ही-साथ अत्याचार और परलोक में अनन्त जीवन।

31) बहुत-से लोग जो अगले हैं, पिछले हो जायेंगे और जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे।’’

📚 मनन-चिंतन

जब पेत्रुस धनी युवक को अपने धन के प्रति लगाव के कारण उदास होकर जाते हुए देखता है और प्रभु येसु को धन पर शिक्षा देते हुए सुनता है, तो वह यह कहते हुए अपना पक्ष रखता है, “देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़ कर आपके अनुयायी बन गये हैं।” इस पर प्रभु येसु उन लोगों को सौ गुना आशीर्वाद देने का वादा करता है जो उनके लिए और सुसमाचार के लिए सब कुछ और हर किसी को पीछे छोड़ देते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि ख्रीस्तीय शिष्यत्व एक लाभ का धंधा नहीं माना जाना चाहिए, और वे कहते हैं कि उनके शिष्यों को तमाम आशीषों के साथ ही साथ ‘उत्पीड़न’ भी मिलेगा। उत्पीड़न ख्रीस्तीय जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है, और प्रभु येसु के अनुसार, इसे एक आशीर्वाद माना जाना चाहिए: संत मत्ती 5 में यह 8 धन्यताओं मेसे एक है - धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।

मसीहियों को आश्वस्त किया जा सकता है कि वे जिस उत्पीड़न का सामना करते हैं, वह ईश्वर और येसु के प्रति उनकी विश्वासयोग्यता का प्रमाण है। संत पापा फ्राँसिस कहते हैं, यदि एक ख्रीस्तीय को जीवन में कोई कठिनाई नहीं होती है और सब कुछ ठीक-ठाक चलता है, तो ये समझना चाहिए कि उनके ख्रीस्तीय होने में कुछ तो गड़बड़ है।

- फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत


📚 REFLECTION

When Peter sees the rich young man going away sad because of his attachment to wealth and hears Jesus teaching on riches and wealth, he defends his case by saying, See we have left everything and followed you.” To this, Jesus promises hundredfold blessings to those who leave everything and everyone behind for his sake and for the sake of the Gospel. However, he also mentions that Christian discipleship should not be considered a profitable enterprise, and adds the words “with persecution” along with the other blessings. Persecution is an inevitable part of Christian life, and according to Jesus, it should be considered a blessing: “Blessed are you when others revile you and persecute you and utter all kinds of evil against you falsely on my account.” Jesus and his disciples faced persecution just like the Prophets of God before him. Christians can be assured that the persecution they face is a proof of their faithfulness to God and Jesus. Pope Francis remarked, ‘When a Christian faces no difficulty in life and everything goes well, then something isn’t right.’

-Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese

📚 मनन-चिंतन-2

येसु हमें सेवा करके महान बनने, पाने के लिए खोने, लेने के लिए देने और जीने के लिए मरने का पाठ पढ़ाते हैं। वे हमें बलिदान का मूल्य सिखाते हैं। त्याग के तत्व के बिना कुछ भी महान हासिल नहीं किया जा सकता है। किसी भी बलिदान के लिए कुछ कारण होना चाहिए। बलिदानों के लिए ईश्वर का राज्य सबसे अच्छा कारण है। येसु ने अपने शिष्यों को ईश्वर के राज्य के लिए सारी सांसारिक संपत्ति और संसाधनों का त्याग करने की चुनौती दी। शिष्यों ने अपने घरों, रिश्तेदारों, व्यवसायों और धन को ईश्वर के राज्य के लिए छोड़ दिया। वास्तविक बलिदान कुछ पाने के मन से नहीं, बल्कि प्रेम के लिए किए जाते हैं। यह उस प्रकार का प्रेम है जिसे प्रभु ईश्वर प्रकट करते हैं। "ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता हे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे। (योहन 3:16)। हमें ईश्वर के इस प्रेम का अनुकरण करना चाहिए जो बलिदान करता है। येसु ने अपने प्रेम के खातिर दुख उठाया और मर गये। हमें ईश्वर तथा दूसरों के प्रति प्रेम के लिए बलिदान करना सीखना होगा।

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus teaches us the lesson of serving to master, losing to gain, giving to receive and dying to live. He teaches us the value of sacrifice. Nothing great can be achieved without an element of sacrifice. Yet there should be a cause for sacrifice. The kingdom of God is the best cause for sacrifices. Jesus challenges his disciples to sacrifice all earthly wealth and resources for the sake of the kingdom of God. The disciples left their homes, relatives, professions and wealth for the sake of the Kingdom of God. Real sacrifices are done not with a mind of gaining anything, but out of love. This is the kind of love that God manifests. “For God so loved the world that he gave his only Son, so that everyone who believes in him may not perish but may have eternal life” (Jn 3:16). We need to imitate this love of God which makes sacrifices. Jesus suffered and died out of love. We need to learn to make sacrifices out of love for God and for others.

-Fr. Francis Scaria