मई 30, 2024, गुरुवार

सामान्य काल का आठवाँ सप्ताह

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पहला पाठ : पेत्रुस का पहला पत्र 2:2-5,9-12

2) (2-3) आप लोगों ने अनुभव किया है कि ईश्वर कितना भला है, इसलिए नवजात शिशुओं की तरह शुद्ध आध्यात्मिक दूध के लिए तरसते रहें, जो मुक्ति प्राप्त करने के लिए आपका पोषण करेगा।

ईश्वरीय प्रजा का याजकत्व

4) प्रभु वह जीवन्त पत्थर हैं, जिसे मनुष्यों ने तो बेकार समझ कर निकाल दिया, किन्तु जो ईश्वर द्वारा चुना हुआ और उसकी दृष्टि में मूल्यवान है।

5) उनके पास आयें और जीवन्त पत्थरों का आध्यात्मिक भवन बनें। इस प्रकार आप पवित्र याजक-वर्ग बन कर ऐसे आध्यात्मिक बलिदान चढ़ा सकेंगे, जो ईसा मसीह द्वारा ईश्वर को ग्राह्य होंगे।

9) परन्तु आप लोग चुने हुए वंश, राजकीय याजक-वर्ग, पवित्र राष्ट्र तथा ईश्वर की निजी प्रजा हैं, जिससे आप उसके महान् कार्यों का बखान करें, जो आप लोगों को अन्धकार से निकाल कर अपनी अलौकिक ज्योति में बुला लाया।

10) पहले आप ’प्रजा नहीं’ थे, अब आप ईश्वर की प्रजा हैं। पहले आप ’कृपा से वंचित’ थे, अब आप उसके कृपापात्र हैं।

11) प्यारे भाइयो! आप परदेशी और प्रवासी हैं, इसलिए मैं आप से अनुरोध करता हूँ कि आप शारीरिक वासनाओं का दमन करें, जो आत्मा के विरुद्ध संघर्ष करती हैं।

12) गैर-मसीहियों के बीच आप लोगों का आचरण निर्दोष हो। इस प्रकार जो अब आप को कुकर्मी कह कर आपकी निन्दा करते हैं, वे आपके सत्कर्मों को देख कर ईश्वर के आगमन के दिन उसकी स्तुति करेंगे।

सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:46-52

32) वे येरुसालेम के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे। ईसा शिष्यों के आगे-आगे चलते थे। शिष्य बहुत घबराये हुए थे और पीछे आने वाले लोग भयभीत थे। ईसा बारहों को फिर अलग ले जा कर उन्हें बताने लगे कि मुझ पर क्या-क्या बीतेगी,

33) ’’देखो, हम येरुसालेम जा रहे हैं। मानव पुत्र महायाजकों और शास्त्रियों के हवाले कर दिया जायेगा। वे उसे प्राणदण्ड की आज्ञा सुना कर गै़र-यहूदियों के हवाले कर देंगे,

34) उसका उपहास करेंगे, उस पर थूकेंगे, उसे कोड़े लगायेंगे और मार डालेंगे; लेकिन तीसरे दिन वह जी उठेगा।’’

35) ज़ेबेदी के पुत्र याकूब और योहन ईसा के पास आ कर बोले, ’’गुरुवर ! हमारी एक प्रार्थना है। आप उसे पूरा करें।’’

36) ईसा ने उत्तर दिया, ’’क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?’’

37) उन्होंने कहा, ’’अपने राज्य की महिमा में हम दोनों को अपने साथ बैठने दीजिए- एक को अपने दायें और एक को अपने बायें’’।

38) ईसा ने उन से कहा, ’’तुम नहीं जानते कि क्या माँग रहे हो। जो प्याला मुझे पीना है, क्या तुम उसे पी सकते हो और जो बपतिस्मा मुझे लेना है, क्या तुम उसे ले सकते हो?’’

39) उन्होंने उत्तर दिया, ’’हम यह कर सकते हैं’’। इस पर ईसा ने कहा, ’’जो प्याला मुझे पीना है, उसे तुम पियोगे और जो बपतिस्मा मुझे लेना है, उसे तुम लोगे;

40) किन्तु तुम्हें अपने दायें या बायें बैठने देने का अधिकार मेरा नहीं हैं। वे स्थान उन लोगों के लिए हैं, जिनके लिए वे तैयार किये गये हैं।’’

41) जब दस प्रेरितों को यह मालूम हुआ, तो वे याकूब और योहन पर क्रुद्ध हो गये।

42) ईसा ने उन्हें अपने पास बुला कर कहा, ’’तुम जानते हो कि जो संसार के अधिपति माने जाते हैं, वे अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और सत्ताधारी लोगों पर अधिकार जताते हैं।

43) तुम में ऐसी बात नहीं होगी। जो तुम लोगों में बड़ा होना चाहता है, वह तुम्हारा सेवक बने

44) और जो तुम में प्रधान होना चाहता है, वह सब का दास बने;

45) क्योंकि मानव पुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने और बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने आया है।’’

📚 मनन-चिंतन

बारथेमेयुस, शारीरिक रूप से अंधा होने के बावजूद, भी प्रभु येसु को को मसीहा के रूप में देखता था। यह हमें याद दिलाता है कि हमें अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति और कार्य को समझने के लिए भौतिक दृष्टि की आवश्यकता नहीं है। बारथेमेयुस की तरह जिसने भारी भीड़ के बावज़ूद भी येसु को देखा, हमें विकर्षणों, और बाधाओं से परे अपने दैनिक जीवन में ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करना सीखना चाहिए। बारथेमेयुस हमें अटूट विश्वास के बारे में सिखाता है। लोगों के द्वारा हतोत्साहित किये जाने के बावजूद, वह प्रभु येसु को पुकारने में लगा रहा। इसी तरह, हमें प्रार्थना में बने रहना चाहिए और प्रार्थना का उत्तर देने के लिए ईश्वर की विश्वासयोग्यता पर भरोसा रखना चाहिए।

जब येसु ने बारथेमेयुस को बुलाया, तो उसने तुरंत अपना वस्त्र फैंकते हुए इसका जवाब जवाब दिया। यह हर उस चीज़ को पीछे छोड़ने का प्रतीक है जो हमें येसु से स्वत्रंत रूप में मिलने में बाधा बनती है। आज के वचन द्वारा हमें ऐसा करने और अपने संदेहों, आशंकाओं और विकर्षणों को दूर करने की चुनौती दी जाती है। प्रभु येसु के बुलावे का पूरे दिल से जवाब देने पर, हम दोनों शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टि का अनुभव कर सकते हैं। जब हम विश्वास के साथ येसु की खोज करते हैं, तो वह हमारे जीवन में उनके कार्यों को देखने के लिए हमारी आँखें खोलते है, तथा हममें परिवर्तन, चंगाई और उनके राज्य के रहस्य समझने की स्पष्टता लाते हैं। तो, आइए आज हम बारथेमेयुस के उदाहरण को अपनाएं। हम उन सभी चीज़ों को जो हमारी आध्यात्मिक दृष्टि में बाधा डालती है उन्हें अलग रखते हुए, दृढ विश्वास के साथ प्रभु येसु की तलाश करें, ऐसा करने से हमारी आँखें हर दिन हमारे जीवन में उनकी उपस्थिति, उनके प्रेम और उनकी शक्ति देख सके।

- फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत


📚 REFLECTION

Bartimaeus, despite being physically blind, saw Jesus as the Messiah. This reminds us that we don't need physical sight to perceive God's presence and work in our lives. Like Bartimaeus who saw Jesus through the crowd, we should learn to sense God's presence in our daily lives by looking beyond distractions and obstacles. Bartimaeus teaches us about unwavering faith. Despite discouragement, he persisted in calling out to Jesus. Similarly, we should persist in prayer and trust in God's faithfulness to respond.

When Jesus called Bartimaeus, he immediately responded by throwing off his cloak. This symbolizes leaving behind anything that might hinder us from encountering Jesus fully. We are challenged to do the same and let go of our doubts, fears, and distractions. By responding to Jesus' call wholeheartedly, we can experience physical and spiritual sight. When we seek Jesus with faith, He opens our eyes to see His work in our lives, bringing transformation, healing, and clarity.

So, let’s embrace Bartimaeus’s example. Let’s seek Jesus with persistent faith, casting aside anything that hinders our vision of Him. As we do, may our eyes be opened to see His presence, His love, and His power at work in our lives each day.

-Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese