आध्यात्मिक मन्ना

बप्तिस्मा संस्कार के वरदान एवं हमारी जिम्मेदारियाँ

फ़ादर बी.जॉनसन मरिया


johnson Maria बप्तिस्मा शब्द का वास्तविक अर्थ होता है – डुबोना या डुबाकर बाहर निकालना. अर्थात हम बप्तिस्मा में प्रभु की मृत्यु के सहभागी होते हैं और उनके पुनरुत्थान की महिमा में भागीदार बनने के योग्य बन जाते हैं. हमारे बप्तिस्मा द्वारा हमें कई वरदान मिलते हैं तथा उनके साथ ही कुछ जिम्मेदारियाँ मिलती हैं. उनमें कुछ वरदानों व जिम्मेदारियों के बारे में थोड़ा सा चिन्तन प्रस्तुत है.

पापों की क्षमा: आधुनिक आध्यात्मिक संसार की सबसे बड़ी चिंता यह है की दुनिया पाप के प्रति संवेदना को खोती जा रही है. लोगों को गलत कार्य करने में कुछ भी गलत नहीं लगता. ‘सब चलता है’ का दृष्टिकोण सामान्य होता जा रहा है. लोग तरह-तरह के पापों में अन्जाने में ही पड़े रहते हैं. बप्तिस्मा हमारे सब तरह के पापों को धो डालता है, विशेष रूप से हमारे आदि पाप को. बप्तिस्मा के बाद हम पापमुक्त होकर नये प्राणी बन जाते हैं. नवजीवन के इस वरदान के साथ हमरी हमारी ज़िम्मेदारी भी हमें मिल जाती है, वह है – उस निष्पाप जीवन को बनाये रखने की ज़िम्मेदारी. हम अपने में झाँककर देखें कि क्या कभी हमने खुद को पापों से दूर रखने की जरा सी भी कोशिश की है? क्या फिर से हम पापों में गिरकर उन्हीं में पड़े रहते हैं?

ईश्वर के प्रिय बच्चे: बप्तिस्मा से हम ईश्वर की प्रिय सन्तान बन जाते हैं, यानि की हमारे पिता ईश्वर के कुछ गुण हममें ज़रूर होते हैं. इसका मतलब है कि हमें अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में ईश्वरीय गुणों को अपनाना है, उन्हें अपने जीवन में उतारकर दूसरों के सामने अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करना है. क्या हमने कभी ईश्वर का प्रिय बेटा या बेटी बनने की कोशिश की है?

एक ही कलीसिया के अंग: ख्रीस्तीय समुदाय या कलीसिया प्रभु का शरीर है. अर्थात कलीसिया का प्रत्येक सदस्य मिलकर प्रभु के शरीर का निर्माण करता है. लेकिन कुछ लोग अपने विश्वास में कमज़ोर पड़ जाते हैं और कलीसिया से दूर चले जाते हैं, चर्च आना बन्द कर देते हैं. यानि प्रभु के इस कलीसियारूपी शरीर के कुछ अंग शिथिल पड़ जाते हैं, निष्क्रिय हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में दूसरे अंगों का कर्तव्य है कि उन शिथिल पड़े अंगों में फिर से नयी स्फूर्ति भर दें. यानि कि कलीसिया के सदस्यों का कर्तव्य है जिन लोगों ने किन्हीं कारणों से चर्च आना बन्द कर दिया है तो उनमें पुन: नये विश्वास का संचरण करना. अन्त में यही प्रार्थना है कि ईश्वर हमें हमारे बप्तिस्मा के वरदानो/प्रतिज्ञाओं व जिम्मेदारियों को समझने एवं निभाने की शक्ति एवं कृपा प्रदान करे.


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