प्रभु येसु के वर्तमान आगमन के 6 निश्चित रूप

हम जानते हैं कि हमारे प्रभु जीवित हैं और रोज हम से मिलने आते हैं। ज्यादात्तर हम इस आगमन को संस्कारों तथा पवित्र वचन तक ही सीमित मानते हैं। संस्कारों के द्वारा प्रभु हमारे पास आते हैं। इसलिए हमें संस्कारों को विश्वास के साथ अच्छी तैयारी के बाद भक्तिभाव से ग्रहण करना चाहिए। यूखारिस्तीय संस्कार में येसु को ग्रहण करने के लिए जिस आध्यात्मिक तैयारी की जरूरत है, इस पर पवित्र ग्रन्थ हमारा ध्यान आकर्षित करता है। सन्त पौलुस कहते हैं, “जो अयोग्य रीति से वह रोटी खाता या प्रभु का प्याला पीता है, वह प्रभु के शरीर और रक्त के विरुद्ध अपराध करता है। अपने अन्तःकरण की परीक्षा करने के बाद ही मनुष्य वह रोटी खाये और वह प्याला पीये। जो प्रभु का शरीर पहचाने बिना खाता और पीता है, वह अपनी ही दण्डाज्ञा खाता और पीता है। यही कारण है कि आप में बहुत-से लोग रोगी और दुर्बल हैं और कुछ लोग मर गये हैं।” (1 कुरिन्थियों 11:27-30)

इसी प्रकार पवित्र वचन के रूप में भी प्रभु हमारे पास आते हैं। शब्द ईश्वर हैं (देखिए योहन 1:1)। प्रभु अपने प्रवचनों में हमें यह समझाते हैं कि प्रभु का सन्देश जीवन देता है और उसे हमें विनम्रता के साथ ग्रहण करना चाहिए।

यदि हम पवित्र वचन को ध्यान से पढ़ेंगे तो हमें यह ज्ञात होगा कि प्रभु न सिर्फ पवित्र वचन तथा संस्कारों के द्वारा हमारे पास आते हैं, बल्कि संस्कार और पवित्र वचन हमें अपने दैनिक जीवन में प्रभु से मुलाकात करने के लिए तैयार करते हैं। इस सिलसिले में पवित्र वचन हमें बताता है कि प्रभु येसु हमारे पास भूखे, प्यासे, नंगे, बेघर (परदेशी), बीमार तथा कैदी बन कर आते हैं। जो प्रभु संस्कारों तथा पवित्र वचन के द्वारा हमारे पास आते हैं, वहीं प्रभु जरूरतमंदों का रूप धारण कर हमारे पास आते हैं। अगर हम उस प्रभु को पहचान कर प्रेम के साथ स्वीकार कर उनकी सेवा करेंगे तो वे हमें अंतिम न्याय के दिन “धन्य” तथा पिता परमेश्वर के “कृपापात्र” घोषित करेंगे। लेकिन अगर हम इन रूपों में आने वाले प्रभु को पहचान कर उनकी सेवा करने में असमर्थ होंगे तो सिंहासन पर विराजमान प्रभु हमें “शापित” कह कर नरकदंड देंगे (देखिए मत्ती 25:31-46)।

अगर हम येसु की उपस्थिति को संस्कारों तथा पवित्र वचन तक ही सीमित रखेंगे, तो यह प्रभु येसु की शिक्षा का ही उल्लंघन होगा। आज की दुनिया में हमें बच्चों और बूढ़ों पर विशेष ध्यान देना होगा। सन्त पापा फ्रांसिस ने रोम में परिवारों की परिषद को संबोधित करते हुए 25 अक्टूबर 2013 को कहा, “बच्चे और वयोवृद्ध समाज के दो खम्बे हैं, अतिसंवेदनशील और भूले हुए भी हैं। ... जो समाज बच्चों और वयोवृद्धों को त्याग देता और उन्हें अधिकारहीन कर देता है, वह अपनी ही जड़ो को काट देता और अपने भविष्य को अन्धकारपूर्ण बना देता है। जब कभी एक बच्चे को त्याग दिया जाता है और वयोवृद्ध को अधिकारहीन किया जाता है, तो समाज में न केवल अन्याय होता है, बल्कि समाज की असफलता की पुष्टि भी होती है। ... कलीसिया जो बच्चों और वयोवृद्धों की देखरेख करता है विश्वासियों की पीढ़ियों की माता बनती है तथा समाज की सेवा करती है ताकि प्रेम, अंतरंगता तथा एकता की भावनाएं सबों को ईश्वर के मातृत्व और पितृत्व को समझने में सहायता दे सकें।”

हमारे देश में वर्तमान में महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार की घटनाएँ बढ़ती जा रही है। इस दुनिया में अत्याचार, शोषण और गरीबी के कारण जो भी पीड़ित है, उन सब में येसु हमारे पास आते हैं। आइए दृढ़संकल्प करें कि हम उस येसु की शीघ्र ही प्रेम तथा नम्रता के साथ सेवा करेंगे।

-फ़ादर फ़्रांसिस स्करिया


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