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आगमन का दूसरा इतवार

इसायाह 40:1-5,9-11; 2 पेत्रुस 3:8-14; मारकुस 1:1-8

फादर शैल्मोन अंथोनी


ईश्वर प्यार है और इस प्यार को प्रकट करते हुए ईश्वर ने मनुष्य को रूप दिया। सृष्टिकर्ता प्रभु ने उसको अपने ही प्रतिरूप में बना कर इस दुनिया में भेजा ताकि मनुष्य, ईश्वर की सन्तान के रूप में पृथ्वी पर एक निर्दोष एवं निष्कलंक जीवन बिताए।

इतना ही नहीं, प्रभु ने उनके द्वारा बनायी हुई सब सृष्ट वस्तुओं पर मनुष्य को अधिकार दिया और कहा – “फलो-फूलो। पृथ्वी पर फैल जाओ और उसे अपने अधीन कर लो। समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर विचरने वाले सब जीव-जन्तुओं पर शासन करो।“ (उत्पत्ति 1:28) ताकि वह औचित्य और न्याय से संसार का शासन करे और निष्कपट हृदय से निर्णय दे (प्रज्ञा 9:3)

लेकिन मनुष्य ने ईश्वर की इच्छा के विपरीत पापमय जीवन बिताना और सृष्ट वस्तुओं का गलत इस्तेमाल करना शुरू किया। मानव-जाति के गरिमामय जीवन का पतन देख कर ईश्वर ने समय-समय पर अपने नबियों एवं धर्मात्माओं द्वारा मानव को पापमय जीवन त्याग कर एक पवित्र जीवन अपनाने के लिए प्रेरित किया। लेकिन सारा परिश्रम नाकाम रहा। इस कारण से मॉ से भी ज्यादा प्यार करने वाले प्रभु मानव को पापों से बचाने के लिए इनसान बन कर इस संसार में आये। इस महत्वपूर्ण घटना की याद दिलाने वाला पर्व मनाने के लिए हम तैयारी में लगे हुए हैं।

आज के तीनों पाठ हम से जो इस पर्व की तैयारी में लगे हुए हैं, यह आग्रह करते हैं कि अगर हमें मुक्तिदाता येसु मसीह को स्वीकार करना है तो अपना मार्ग सीधा करना होगा। ईश्वर जो स्वयं मार्ग हैं और हमें मार्ग दिखाने वाले हैं उस ईश्वर को हमारे जीवन में प्रवेश करने के लिए हमारे जीवन की ओर आने का मार्ग सीधा करने के लिए आज के तीनों पाठ हम से आग्रह करते हैं। कहने का मतलब यह है कि इस आगमन काल में हम गंभीरता से हमारे आध्यात्मिक जीवन की परिस्थिति की ओर निष्पक्ष रूप से देखें और येसु द्वारा बताये गये आदर्श जीवन के साथ तुलना करते हुए हम जॅाच कर देखें और जो अंतर है उसका हल करे। जो परिवर्तन या सुधार हमारे जीवन में अनिवार्य है वह जीवन में लाते हुए इस आगमन काल के लिए अपने आपको तैयार करें। क्योंकि हम ऎसा जीवन बिता रहे है कि हम यह नहीं जानते कि कल हमारा क्या हाल होगा। हमारा जीवन एक कुहरा मात्र है - वह एक क्षण दिखाई दे कर लुप्त हो जाता है।(याकूब 4:14)

जब तक हम अपने जीवन का मार्ग सीधा नहीं करते हैं तब तक हम प्रभु को अपने जीवन में स्वीकार कर नहीं कर पायेंगे और प्रभु के सेवक भी नहीं बन पायेंगे। नबी इ्सायाह के जीवन में एक समय था जब ईश्वर के लिए उनके जीवन में न तो पूर्ण रूप से मार्ग ही तैयार नहीं था और न ही रास्ता सीधा नहीं था। लेकिन वे ईश्वर से प्रार्थना करके अनुग्रह प्राप्त करते हैं। नबी इसायाह ने ईश्वर से कहा- “हाय! हाय! मैं नष्ट हुआ; क्योंकि मैं तो अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हॅू, अशुद्ध होंठों वाले मनुष्यों के बीच रहता हूँ”। वचन कहता है तुरन्त एक सराफीम अंगार से इसायाह के होंठों को स्पर्श करते हुए उनका पाप दूर करता है और अधर्म मिटाता है। (इसायाह 6:5-7) नबी इसायाह के समान, योहन बपतिस्ता भी निर्जन प्रदेश में प्रार्थना एवं उपवास में समय बिताते हुए उनके जीवन में प्रभु के लिए मार्ग तैयार करते हैं। इस के बाद ही वे दोनों, लोगों से आग्रह करते हैं कि वे भी प्रभु को स्वागत करने के लिए मार्ग तैयार करें; उसके पथ सीधे कर दें।

आज के पहले पाठ में नबी इसायाह बाबुल निर्वासन में जो लोग हैं उनको आश्वासन देते हुए कहते हैं कि ईश्वर शीघ्र ही उनका उद्धार करने वालें हैं और नवजीवन देने वाले हैं। लेकिन दिन आने से पहले सबको अपने आपको शुद्ध करके तैयार रहना होगा। दूसरे पाठ में भी संत पेत्रुस, प्रभु येसु के द्वितीय आगमन की प्रतीक्षा में रहने वाले विश्वासियों से, एक नये आकाश तथा एक नयी पृथ्वी की प्रतीक्षा करने वाले लोगों से कहते हैं कि वे पवित्र तथा भक्ति पूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए, उत्सुकता से ईश्वर के दिन की प्रतीक्षा करें। (1पेत्रुस 3:11.13)

आईए हम भी प्रभु को स्वीकार करने के लिए अपने आपको तैयार करें। हमारे जीवन की अवस्था जो कुछ भी हो हम उसको ईश्वर के पास लायें। हमारे पाप सिंदूर की तरह लाल क्यों न हों, किरमिज की तरह मटमैले क्यों न हो, हम उनको प्रभु के पास लाए क्योंकि प्रभु के पास लाने से वे हिम की तरह उज्ज्वल हो जायेंगे और वे ऊन की तरह श्वेत हो जायेंगे। (इसायाह 1:18) ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है (लूकस 1:37) उनके कहने पर सूखी हड्डियों में जीवन आ सकता है। (एज़ेकिएल 37:1)


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