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03. आगमन का तीसरा इतवार_2017

इसायाह 61:1-2अ, 10-11; 1 थेसलनीकियों 5:16-24; योहन 1:6-8,19-28

फादर शैल्मोन अंथोनी


क्या आप गोलपोस्ट के बिना फुटबॉल खेल का अनुमान कर सकते हैं? कभी नहीं, क्योंकि गोलपोस्ट के बिना फुटबॉल खेलना अर्थहीन है। ठीक इसी प्रकार लक्ष्य हीन जीवन अर्थ शून्य है। दार्शनिक सुकरात (Socrates) ने कहा है कि चिंतन के बिना जीवन अधूरा है।

हमारे सृष्टिकर्ता प्रभु ने हमें सब कुछ दिया है। उन्होंने हमें अपना प्रतिरूप बनाया (उत्पत्ति 1:27), हमें अलग पहचान दी (स्तोत्र 139:14) और हमारे लिए एक अलग योजना भी बनायी है। (यिरमियाह 29:11) इतना ही नहीं, ईश्वर ने हमें सब कुछ पर अधिकार भी दिया हैं। (उत्पत्ति 1:28)

जीवन अनमोल है और अल्पकालिक है। इस बहुमूल्य जीवन को जीने के लिए सब को एक ही अवसर मिलता है। इसलिए हमें हमारी जिंदगी को जी भर के जीना चाहिए।

इस के लिए हमें यह खोजना चाहिए कि इस क्षणभंगुर जीवन को हम कैसे और किन कार्यो के द्रारा सार्थक बनाये। क्योंकि हमें अलग पहचान देने वाले ईश्वर ने हमें एक अलग काम भी जरूर सौंपा है। इस दुनिया को और सुन्दर बनाने में हमारी भी एक अलग भूमिका है। इसलिए हरेक को इस उद्देश्य का ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए हमें सृष्टिकर्ता प्रभु के पास जाकर प्रार्थना में समय बिताना होगा। तब हमे मालूम होगा कि हमारे लिए उनकी इच्छा क्या है?

आज के सुसमाचार में हम पढते हैं कि योहन बपतिस्ता से जब पूछा जाता है कि वह कौन है तो उनके पास जवाब देने के लिए एक स्पष्ट उत्तर है। योहन को पता है कि इस दुनिया में उनको करना क्या है। इसलिए वे कहते हैं “मैं हूँ –जैसे कि नबी इसायाह ने कहा है- निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज : प्रभु का मार्ग सीधा करो।” (योहन 1:23) प्रभु येसु भी हमें इस दुनिया में आने का उद्देश्य साफ-साफ बताते हैं। नबी इसायाह के ग्रन्थ से, जो आज का पहला पाठ है, पढते हुए येसु बताते हैं, “प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है, जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊॅ, बन्दियों को मुक्ति का और अन्धों को दृष्टिदान का सन्देश दूँ, दलितों को स्वतन्त्र करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ।” (लूकस 4:18-19) संत पौलुस कहते हैं कि प्रभु ने उनको गैर-यहूदियों में प्रचार करने का कार्य सौंपा है। (रोमि 11:13) और वे बडी उत्सुकता से उनके लक्ष्य की ओर दौड रहे हैं। (फिलिप्पि 3:14) इस बात का तात्पर्य यह है कि इन सबको यह जानकारी थी कि वे कौन हैं और इस जीवन में उनको क्या करना चाहिए। अब सवाल यह है कि यह जानकारी उनको कैसे प्राप्त हुई? इसे खोजने के लिए उन्होंने क्या किया?

संत योहन बपतिस्ता को यह जानकारी इसलिए प्राप्त हुई कि उन्होंने निर्जन प्रदेश में ईश्वर की संगति में अपना जीवन बिताया। प्रभु येसु ने भी उनके जीवन काल में पिता ईश्वर के साथ गहरा संबन्ध बनाया रखा। इसी प्रकार जितनों ने दुनिया से दूर रह कर प्रार्थना में अपना जीवन बिताया हो उन सबको यह पता चला कि उनके जीवन में ईश्वर की योजना क्या है। ईश्वर का वचन कहता है- “आप इस संसार के अनुकूल न बनें, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जायेंगे कि ईश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है।” (रोमियों 12:2) जब हम इस संसार से दूर और प्रभु के पास रहते हैं तो वे हमें समस्त प्रज्ञा तथा आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि प्रदान करते हैं जिस से हम उसकी इच्छा पूर्ण रूप से समझ पाते हैं। (कलोसियों 1:9) संत पेत्रुस विश्वासियों से कहते हैं कि आप लोग जो पहले सान्सारिक लोगों की जीवनचर्या के अनुसार जीवन बिता रहे थे। अब आप लोग येसु को जान गये हैं। इसलिए आप लोगों को शेष जीवन मानवीय वासनाओं के अनुसार नहीं, बल्कि ईश्वर की इच्छानुसार बिताना चाहिए। (1पेत्रुस 4:2-3)

जीवन में ईश्वर की इच्छा जानने के बाद हमें केवल वही कार्य करना चाहिए जिसके लिए प्रभु ने हमें बुलाया है। इसके अलावा हमें जीवन में केवल वही रिश्ते और चीजें रखनी चाहिये जो प्रभु के कार्य करने के लिए मददगार हो। संत पौलुस कहते है- “मैं जिन बातों को लाभ समझता था, उन्हें मसीह के कारण हानि समझने लगा हॅू। इतना ही नहीं, मैं प्रभु ईसा मसीह को जानना सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हॅू और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को हानि ही मानता हॅू। उन्हीं के लिए मैं ने सब कुछ छोड दिया है और उसे कूडा समझता हॅू, जिससे मैं मसीह को प्राप्त करूँ और उनके साथ पूर्ण रूप से एक हो जाऊॅ।” (फिलिप्पियों 3:7-9)

संसार की मोहमाया को त्याग कर एवं शरीर की वासनाओं को जो आत्मा के विरूध संघर्ष करती है, दमन करते हुए (1पेत्रुस2:11), ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन बिताने के लिए निरन्तर प्रार्थना करने की आवश्यकता है। प्रार्थना करने से हम ईश्वर की आत्मा से भर जाते हैं और जब वह सत्य का आत्मा आयेगा, वह हमें सब कुछ समझा देगा (योहन 14:26) और पूर्ण सत्य तक ले जायेगा। (योहन 16:13)

धन्य है वह जो इस प्रकार अपना जीवन बिता पा रहे हैं। क्योंकि वे अपना मन आत्मा तथा शरीर प्रभु ईसा मसीह के दिन के लिए निर्दोष रख पायेगे। ईश्वर का वचन कहता है- “संसार में जो शरीर की वासना, ऑखों का लोभ और धन-सम्पत्ति का घमण्ड है, वह सब पिता से नहीं, बल्कि संसार से आता है। संसार और उसकी वासना समाप्त हो रही है; किन्तु जो ईश्वर की इच्छा पूरी करता है, वह युग-युगों तक बना रहता है।” (1योहन 2:16-17)


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