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10. ईशमाता मरियम का महापर्व

गणना 6:22-27; गलातियों 4:4-7; लूकस 2:16-21

(फादर लुल्लु मेनेजे़स)


कलीसिया वर्ष का पहला दिन ही ईशमाता मरियम का त्योहार मनाते हुए हमें यह अहसास करने के लिये मज़बूर करती है कि ईश्वर की मुक्ति-योजना में मरियम की कितनी अनोखी भूमिका है।

लेकिन क्या हम मरियम को ईश्वर की माता कहकर पुकार सकते हैं? क्या यह मरियम को ईश्वर से भी ज्यादा महत्व देना नहीं है? मरियम को ईश्वर की माता पुकारना इसलिये उचित और सार्थक है कि उससे जो पुत्र उत्पन्न हुआ, वह खुद ईश्वर ही है।

पाँचवीं सदी में नेस्तोरियुस नामक एक धर्माध्यक्ष ने यह मानने से इंकार किया कि हम मरियम को ईशमाता कह सकते हैं। उनका यह कहना था कि प्रभु ख्रीस्त में दो व्यक्ति हैं- ईश्वरीय व्यक्ति और मानवीय व्यक्ति। नेस्तोरियुस के अनुसार मरियम सिर्फ मानवीय येसु की माता है, ईश्वरीय येसु की नहीं। इसलिए मरियम को ईशमाता कहना उचित नहीं है।

सन् 431 में धर्माध्यक्षों ने एफ़ेसुस की महासभा में इस पर गहराई से अध्ययन तथा विचार-विमर्श करने के बाद नेस्तोरियुस की शिक्षा की निन्दा की तथा यह सिखाया कि येसु ख्रीस्त में एक ही व्यक्ति- वह है ईश्वरीय व्यक्ति। महासभा ने यह सिखाया कि मरियम ने इस ईश्वरीय व्यक्ति को मानव-स्वभाव प्रदान किया। इस प्रकार मरियम ने ईश्वर के पुत्र का प्रसव किया और इसी कारण वह ईशमाता कहलाती है।

यह माँ हमें हमारी आध्यात्मिक माता के रूप में दी गई है। जो भी बच्चा जन्म लेता है उसे माँ के लालन-पालन की ज़रूरत होती है क्योंकि वह अपने को असहाय पाता है। उसकी अपनी भाषा है जिसे माँ के अलावा दूसरे लोग शायद ही समझ पाते हैं। सबसे अधिक उसे माँ की ममता की ज़रूरत होती है। यह हमारे आध्यात्मिक जीवन की भी सच्चाई है। हमने पुनर्जीवित प्रभु से कृपा का जीवन ग्रहण किया है। पवित्र आत्मा इस आध्यात्मिक जीवन को बढ़ाते हैं। कलीसिया इस आध्यात्मिक जीवन को संस्कारों तथा ईशवचन के द्वारा पोषित तथा विकसित करती है। इस जीवन में एक माँ का योगदान भी ज़रूरी है। इसलिए अपनी मृत्यु के पूर्व येसु ने अपनी माँ को हमें प्रदान करते हुए अपनी माँ से कहा, ’’भद्रे, यह है तेरा पुत्र’’ और योहन से कहा, ’’यह है तेरी माता’’। (योहन 19:26) अपनी माँ को संत योहन के सुपर्द करते हुए प्रभु ने हम में से हरेक विष्वासी को अपनी माँ का संरक्षण प्रदान किया। कलीसियाई धर्माचार्यों का यह कहना है कि हालाँकि माता मरियम ने येसु को जन्म देते हुए प्रसव-पीड़ा का अनुभव नहीं किया, फिर भी हमारी माँ बनते-बनते उन्हें बड़े दुःखों को झेलना पड़ा। अपने पुत्र के क्रूस के नीचे खड़ी होकर उन्होंने असीम पीड़ा का अनुभव किया। मरियम हमारी सच्ची माँ है।

जब एक महिला गर्भधारण करती है, उसी क्षण ईश्वर उस अण्डाणु को एक आत्मा प्रदान करते हैं। मातृत्व के तीन तत्व हैं। पहला, माँ एक संतान को जन्म देती है जो अपने आप में पूर्ण है। इसलिए कोई भी व्यक्ति ’’मेरी माँ’’ कहता है न कि ’’मेरे शरीर की माँ’’ या ’’मेरे माँस की माँ’’। दूसरा, प्रजनन में बच्चा अपने जनक-जननी के शरीर का ही एक हिस्सा ग्रहण करता है। इसलिए जिस बच्चे को एक स्त्री गोद लेती है, उसे वह वास्तव में जन्म नहीं देती है।

येसु ख्रीस्त का एक मानव स्वभाव है जिसे उन्होंने माता मरियम से ग्रहण किया था। इसी कारण वे अन्य मनुष्यों के समान मनुष्य थे, हालाँकि उनका व्यक्तित्व ईष्वरीय था। वे दो स्वभावों (ईष्वरीय तथा मानवीय) में बने रहने वाले ईश्वरीय व्यक्ति थे। उन्होंने अपना ईश्वरीय स्वभाव पिता ईश्वर से ग्रहण किया तो अपना मानवीय स्वभाव माता मरियम से। माता मरियम को हम ईशमाता इसलिए कह सकते हैं कि उनसे प्रभु येसु ने अपना मानवीय स्वभाव प्राप्त किया। एक माँ का अपने बच्चे से संबंध व्यक्ति और व्यक्ति का संबंध है हालाँकि माँ अपने बच्चे का समग्र (total cause) कारण नहीं है।

माता मरियम का मातृत्व अन्य मातृत्व से इसलिए भिन्न नहीं है कि वे अन्य माताओं की अपेक्षा कुछ ज्यादा कार्य करती है, बल्कि इसलिए कि उनसे जो बच्चा उत्पन्न हुआ, वह स्वयं ईश्वर है। ईश्वर अन्य माताओं के गर्भ में उत्पन्न होने वाले बच्चों को मानवीय व्यक्तित्व प्रदान करते हैं, तो माता मरियम के गर्भ में उत्पन्न होने वाले शिशु को उन्होंने अपना ही ईश्वरीय व्यक्तित्व प्रदान किया।

सन् 1931 में विष्व पत्र में संत पापा पीयुस ग्यारहवें ने सारी दुनिया में ईशमाता मरियम का पर्व मनाने का आह्वान करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि नेस्तोरियुस ने यह गलती की थी कि उन्होंने सिखाया था कि ईष्वरीय शब्द ने शरीर धारण नहीं किया था और येसु ख्रीस्त ईश्वर नहीं थे बल्कि नबियों तथा संतो के समान एक साधारण मानव थे जिस में कुछ मात्रा में ईश्वरीय कृपा प्रकट हुई थी।

ईशशास्त्री मरियम के ईश्वरीय मातृत्व को विश्वास का मूलतत्व मानते हैं। माता मरियम हमारी माँ है। वे हमारा ख्याल करती है। यह उचित है कि हम बार-बार उनकी दुहाई दें-विशेषतः दुःख-संकट तथा प्रलोभनों के अवसर पर। जब कभी हम उनकी शरण में जाते हैं तो वे हमें अपने पुत्र की ओर ले चलती हैं। संत मरिया, परमेष्वर की माँ प्रार्थना कर हम पापियों के लिए अब और हमारे मरने के समय आमेन्।

आज जब हम ईशमाता कुँवारी मरियम का त्योहार मना रहे हैं तो आइए हम अपनी परेशानियों तथा चिन्ताओं को, अपने वर्तमान तथा भविष्य को, विशेषकर इस नववर्ष को उन्हीं के दुःख दर्द के साथ ईश्वर को चढ़ाये। हम भी प्रभु को वहन करने तथा प्रदान करने की उनकी खुषी को अपने-अपने हृदय में प्रभु को ग्रहण करते हुए अपनायें। हम अपनी-अपनी माताओं को भी याद करें जिन्होंने हमें इस दुनिया का प्रकाष देखने दिया और उनके लिये प्रार्थना करें।


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