चक्र व के प्रवचन

चालीसे का पहला इतवार

पाठ: उत्पत्ति ग्रंथ 9:8-15; 1 पेत्रुस 3:18-22; मारकुस 1:12-15

प्रवाचक: ब्रदर हेनरी तिग्गा (झाबुआ धर्मप्रान्त)


यदि हमें किसी स्कूल या कालेज की परीक्षा में शमिल होना होता है तो हम इसकी तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू करते हैं। हम कड़ी मेहनत और लग्नता के साथ पढ़ते हैं, दिन रात एक कर देते हैं तब कहीं अच्छा रिजल्ट प्राप्त करते हैं। इस सफलता हे पीछे कठिन परिश्रम, लग्नता, त्याग तपस्य जैसे चीजे छुपी हुई हैं। यही सफलता का रहस्य है।

इसी तरह पवित्र काथलिक कलीसिया भी कुछ मुख्य त्यौहार जैसे ख्रीस्त जयन्ती और पास्का पर्व को मनाने से पहले हमें आधयात्मिक रूप से तैयारी करने के लिए अवसर प्रदान करती है। पास्का के पर्व चालीसा काल ऐसे ही तैयारी का समय है हम प्रार्थना, व्याग, तपस्य व उपवास परहेज द्वारा अपने आपको आध्यात्मिक रूप से तैयार करते हैं। यह चालीसा काल हमारे लिए ईश्वर की ओर लौटने, बुरी आदतों को प्यागने और हृदय में परिवर्तन लाने का बहुत अच्छा अवसर हैं।

आज के सभी पाठ हमें बपतिस्मा के महत्व को समझने तथा इसके अनुसार जीवन जीने की शिक्षा देते हैं। आज के पहले पाठ में हम पाते है कि ईश्वर जल प्रलय के बाद एक विधान स्थपित करता है। वास्तव में जल प्रलय मनुष्य जाति के पापों के प्रति ईश्वरीय दण्ड का सशक्त प्रतीक था, परन्तु ईश्वर एक दयालु पिता होने के कारण लोगों का परित्याग नहीं किया बल्कि एक विधान स्थापित किया जो उसके अनन्त प्रेम एवं निष्ठा को प्रकट करता है इस विधान के द्वारा उसने यह प्रतिज्ञा की कि कभी मनुष्य जाति का सर्वनाश नहीं करेगा। यह विधान उसके प्रेम की ही निशानी है। हम सब पापी थे फिर भी अपना संतान माना तथा पापों को क्षमा करने की प्रतिज्ञा की। यदि ईश्वर हमारे पापों को क्षमा करने के लिए तैयार हैं तो हमें भी क्षमा मांगनी चाहिए यही पापों से मुख मोड़ने का एकमात्र रास्ता है।

दूसरे पाठ में संत पेत्रुस नोवा और उनके पुत्रों के प्रलय से सुरक्षित आने की तुलना बपतिस्मा से करते हैं। क्योंकि मानव जाति के लिए बपतिस्मा द्वारा ही मुक्ति संभव है। बपतिस्मा द्वारा हम येसु के मृत्यु और पुनरूत्थान में सहभागी होते है और पापों से मुक्त होते हैं। हम मानन जाति स्वाभाव से कमजोर हैं पाप में पड़कर ईश्वर से दूर चले जाते हैं सुसमाचार के माध्यम से येसु हमें आहवान करते हुए कह रहे हैं ”पश्चताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।“ यहाँ पश्चताप का अर्थ अपने मन और दिल को बदलना अर्थात सम्पूर्ण व्यकितत्व में बदलाव लाना और मन परिवर्तन कर ईश्वर से नया सम्बन्घ बनाना है।

सुसमाचार में हम पाते हैं कि येसु चालीस दिन और चालीस रात मरूभूमि में उपवास परहेज करते हैं जहाँ शैतान ने उसकी परीक्षा ली और येसु विजय पाते हैं। यह परीक्षा ईश्वर के इच्छानुसार हुई। यह पवित्र घटना ईश्वर की ही योजना थी। हमें भी चाहिए कि हम भी ईश्वर की योजनाओं को जानने का प्रयास करे इसके लिए हमें परीक्षाओं स गुजरना पडे़गा। शैतान हमें हर समय प्रलोभन देते रहते हैं उसमें हम आसानी से फंस जाते हैं। हमें चाहिए कि हम प्रार्थना उपवास परहेज व त्याग, तपस्य द्वारा बल प्राप्त करे, और शैतान की प्रलोभनों पर विजय पायें। यही पास्का पर्व मनाने के लिए सबसे अच्छी तैयारी होगी।


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