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27. पवित्र शुक्रवार

इसायाह 52:13-53:12; इब्रानियों 4:14-16:7-9; योहन 18:1-19,42

(ब्रदर संजीत टोप्पो - रायपुर)


ख्रीस्त में मेरे प्रिये भाइयों एवं बहनों, पुण्य शुक्रवार चालीसे का एक महत्वपुर्ण दिन है। यह दिन हमारे और ईश्वर के लिए बहुत ही खुषी के दिन के साथ-साथ बहुती बड़ी दुःख का दिन भी है। यह दिन खुषी का दिन इसलिए है, क्योंकि इस दिन येसु ख्रीस्त, ने स्वर्गीक पिता की इच्छा को पुरा करते हुए हमें पापों से मुक्त किया। यह दिन दुःख का दिन इसलिए है, क्योंकि, इस दिन येसु को अपने ही लोगो ने, जिन्हे उन्होंने अपने भाई बहन समझा, शिक्षा दी, प्यार एवं सेवा की, उन्हीं लोगो ने उनको को क्रूस पर चढ़ाया।

मेरे प्रिये भाईयों एवं बहनों ईश्वर ने मानव जाती को इतना प्यार किया, उस पर इतनी दया की, कि उसने, खुद ही एक मानव बनकर हमारे साथ निवास किया, और हमारी मुक्ति के लिए घोर अपमान एवं पीड़ा सहते हुए, क्रूस पर अपने प्राण अर्पित कर दिये। अरब देशों एवं रोमन राज्यकाल में क्रूस घोर अपमान, निंदा एवं पाप का प्रतीक था। लेकिन येसु ने ख्रीस्त उसी क्रूस के द्वारा हमें अनंत मृत्यु से बचाकर उसे प्रेम, दया एवं मुक्ति का प्रतीक बना दिया। आज लोग उसी क्रूस का आदर एवं सम्मान करते हैं, उस क्रूस को मूक्ति का साधन मानकर उसकी उपासना करते है, क्योकि यह क्रूस ईश्वर के अनन्त बड़े प्रेम एवं दया को व्यक्त करती है।

येसु ख्रीस्त ने अपनी शक्ति से नहीं बल्कि अपने असीम प्रेम एवं दया से हमारा उद्धार किया। इसी प्रेम एवं दया को येसु ने एक मानव शरीर धारण करके, हमारे बीच रहकर हमारे बीच व्यक्त किया और वे ईश्वर का पुत्र होते हुए भी मानव जाती के साथ एक हो गये। उसने हमारी मूक्ति के लिए, हमारे सभी प्रकार के पाप एवं गुनाह को अपने ऊपर ले लिया, फिर भी लोगों ने उन पर झूठा दोषारोपण करके उन्हें क्रूस पर मार डाला। रोज दिन येसु की बातें सुनने, उसके साथ रहने एवं उससे चंगाई पाने के लिए हजारों की भीड़ उसके पास उमड़ती थी। लेकिन क्रूस की दर्दनाक पीड़ा के समय, सब लोगों ने येसु को छोड़ दिया और एक अपराधी बराबस की रिहाई की माँग की। दयाहीन निष्ठूर एवं क्रूर सैनिक लोग येसु से भारी क्रूस ढूलवाकर उन्हें कोड़े लगाते हुए कलवारी पहाड़ की ओर जाते हैं और उन्हें क्रूस पर ठोंक देते हैं। चिलचिलाती धूप मे, खून से लतपथ, थके मांदे, भुखे प्यासे और दर्द से व्याकुल, निःसहाय होकर येसु क्रूस पर से चिल्लाकर कहते है, ”मेरे ईश्वर, मेरे ईश्वर तुने मुझे क्यों त्याग दिया“ यहाँ ऐसा प्रतीत होता है कि इस घडी उन्हें उनके स्वर्गीय पिता ने भी क्षण भर के लिये त्याग दिया है। इस क्रूस की भयानक पीड़ा के समय भी, मानव के प्रति उनका प्रेम एवं दया अडिग रही। उसने क्रूस की घोर पीड़ा सहते हुए, असमान और धरती के बीच लटक कर मरते समय, कोडों से उन्हें मारने एवं क्रूस पर चढ़ाने वाले सैनिकों को उन्होंने यह कह कर क्षमा कर दिया ”हे पिता इन्हें क्षमा कर दे, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे है।“ इस तरह से येसु ने न केवल प्रेम, दया, क्षमा एवं आज्ञापालन की शिक्षा दी, बल्कि, उसने अपने असीम प्रेम एवं दया के खातिर हमारे लिये खून बहाकर, अपने आप को क्रूस पर बलिदान करके हमें भी सबसे प्रेम करना सिखाया, तथा क्रूस की भयानक पीड़ा के समय, अपने विरोधियों को भी क्षमा करके हमें बेशर्त माफ करने का पाठ पढाया। येसू ने अपने जीवन में खुद की नहीं वरन अपने स्वर्गीय इच्छा को पूरा किया इस प्रकार हमें भी अपने जीवन मेंईश्वर की ईच्छा को पूरा करना सिखलाया। आज जब हम क्रूस के सामने खड़े होते हैं, तो क्रूस हमें न केवल अपने संबंधियों एवं मित्रों पन्रतु अपने दुश्मनों से भी प्रेम करने उन्हें क्षमा करने व उनके लिए प्रार्थना करने की शिक्षा देता है।

ख्रीस्त में मेरे प्रिये भाईयों एवं बहनों, पुण्य शुक्रवार को येसु ख्रीस्त ने क्रूस की दर्दनाक पीड़ा एवं दुःखों को केवल हमारी मुक्ति के लिए सहा, और हमे पाप एवं शैतान की दासता से मुक्त किया है। तो आइए हम भी हमारे प्यारे प्रभु येसु के लिए अपने दैनिक जीवन के छोट-बड़े सब दुःख तकलीफों को अपना क्रूस समझकर धैर्य पूर्वक सहते हुए उनके के मार्ग पर चलें और उनके द्वारा स्वर्ग राज्य की ओर आगे बढ़े।


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