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पास्का का तीसरा इतवार

प्रेरित चरित 3:13-15,17-19; 1 योहन 2:1-5अ; लूकस 24:35-48

ब्रदर सोनी आन्टणी (इन्दौर)


‘‘पवित्र ग्रन्थ की अज्ञानता ख्रीस्त की अज्ञानता है।’’ - संत जेरोम

आज हम पास्का के तीसरे रविवार में हैं। आज के पाठ द्वारा कलीसिया ये बताना चाहती है की हम प्रभु येसु के कितने करीब हैं, एवं क्या हम प्रभु येसु को भली-भाँति जानते हैं या फिर यहूदि लोगों के जैसे हम भी येसु के खिलाफ हमारे अज्ञान के कारण कार्य करते हैं। आज के पहले पाठ में हमने सुना की यहूदि लोगों ने अज्ञानता वष प्रभु येसु को इनकार किया और उन्हें क्रूस पर चढा। पवित्र सुसमाचार में हमने देखा की शिष्य ल¨ग येसु को पहचान नहीं पाये। अगर हमारी ज़िन्दगी में देखा जाये तो ऐसी कई सारे घटनायें हैं जहाँ हम अज्ञान के कारण, और ठीक से न समझने के कारण कई गलतियाँ कर बैठते हैं। कभी-कभी गलती से हम यह भूल जाते है कि हमें किस प्रकार से व्यवहार करना चाहिए, पर कभी-कभी हम जान बूझके भी ऐसा करते हैं।

संत थॉमस अक्विनास की तीन प्रकार की अज्ञानताओं के बारे में सिखाते हैं: पहली अज्ञानता हैं जिसे हम लाख कोशिशों के बाद भी नहीं मिटा सकते हैं। ऐसी गलतियाँ माफ की जा सकती है।

दूसरी अज्ञानता हैं, जिसे हम हमारी कोशिशों के द्वारा दूर कर सकते हैं, लेकिन हम कभी कोशिश नहीं करते। कई ल¨ग ऐसी गलतियों में जीवन बिताने का प्रयत्न करते हैं।

तीसरी अज्ञानता हैं जिसमें व्यक्ति खुद ये नहीं जानता है कि वह क्या कर रहा है, और अगर वह ये जानता भी हैं फिर भी वह वहीं गलती करता रहता है।

हमें जाँच कर के देखना चाहिए कि मेरे जीवन में मैं जब भी गलतियाँ या पाप करता हूँ तो, इन तीनों में से किस प्रकार की अज्ञानता के कारण करता हूँ।

आज के पहले पाठ में संत लूकस प्रेरित चरित 3:17- में कहते है, “मैं जानता हूँ कि आप ल¨ग नहीं जानते थे कि क्या कर रहे हैं जब आप लोगों ने ईसा को पिलातूस के हवाले कर दिया और जब पिलातूस उन्हें छोड देने का निर्णय कर चुका था, तो आप लोगों ने उन्हें अस्वीकार किया।“ आगे हम पढते हैं, इस अज्ञानता के द्वारा पिता परमेश्वर ने अपना कथन पूरा किया, जिसे उसने नबियों के मुख से घोशित किया था। पिता परमेश्वर कृपालू है, ताकि वह अज्ञानता वष की हुई सब गलतियों को माफ कर देता है। यद्यपि यहूदि लोगों ने येसु को क्रूस देने की वजह से बहूत बडी गलती की, फिर भी पिता परमेश्वर उन्हें स्वीकार करने के लिए इच्छुक है, एक शर्त पर कि वे पष्चाताप कर के उनके पास लौट आये।

ख्रीस्त में प्यारे भाइयों एवं बहनों, इस क्षण हम हमारे जीवन की जाँच करें व देखें कि, क्या हम हमारे सोच-विचार एवं बात-चीत के बारे में अवगत है। क्या हम अज्ञानता में दैनिक जीवन का कार्य करते हैं? अगर हम अज्ञानता से छुटकारा नहीं पायेंगे तो, एक के बाद एक कई गलतियाँ करते रहेंगे। जिस की वजह से हमारे मन की शाँति भंग हो जायेगी, भय और चिंता में जीना पडेगा। आईये थॉडी देर हम अज्ञानता को समझने कोशिश करें। लतीन भाशा में अज्ञानता को ”इग्नोरारे“ बोलते है। जिसका मतलब है किसी के बारे में अपरिचित होना य अनभिज्ञ होना। पुराने विधान में अज्ञानता का मतलब है भटक जाना, इब्रानी भाश्षा में इसका अनुवाद है ”शेगागाह“। नये विधान में अज्ञानता को ‘‘अग्नोया’’ बोलते हैं। इसका मतलब है, ज्ञान का आभाव। एफे 4:18-में हम पढते है, “अज्ञान के कारण ल¨ग ईस्वरीय जीवन से बहिष्कृत हो गये है।“ लेवि ग्रन्थ में हम देखते है, “अगर कोई अनजाने प्रभु के आदेषों का उल्लंघन करे तो उसे अपने पाप के कारण प्रायश्चित-बली के रूप में प्रभु को एक निर्दाष बछडा अर्पित करना चाहिए।“ (लेवी 4:2)। लेवि ग्रन्थ 5:15 में भी हम इसके बारे में देखते है।

लेकिन यदि हम पश्चाताप करेंगे तो प्रभु येसु हमारी अज्ञानता को अनदेखा कर देते हैं। प्रेरित चरित 17:30-हम देखते है ”प्रभु ने अज्ञानता का समय का लेखा लेना नहीं चाहा, परन्तु सभी मनूष्यों पश्चाताप करें।“ संत लूकस 23:34- प्रभु येसु उनके लिए प्रार्थना करते हैं जिसने उन्हें क्रूस दिया था, यह कह कर कि, ”हे पिता इन्हें क्षमा कर ! क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं“। आज का दूसरा पाठ और पवित्र सुसमाचार अज्ञानता दूर हटाने के बारे में बताते हैं। संत य¨हन उनके पहले पत्र में बताते हैं कि जब तक हम प्रभु येसु को ना समझे, या उनकी आज्ञाओं का पालन ना करे तब तक हम पाप के जाल में पडे रहेंगे। क्या हम प्रभु येसु को जानते है? क्या हम प्रभु येसु के साथ हमारा जीवन बिताते हैं? अगर इसका जवाब हाँ है तो हम ल¨ग क्यों हमारी गलतियों और पापों से मुक्त नहीं होते हैं? हम प्रभु येसु के करीब आकर उनसे विशेष कृपायें और शक्ति माँगे ताकि हम पापों से और गलतियों से मुक्त हो जायें। अगर कोई येसु को जानता है तभी वह उनकी आज्ञाओं का पालन करेगा, तब ही वह उनकी तरह एक जीवन जी सकता है। सवाल ये उठता है की हम प्रभु येसु को कैसे जानें?

इसका जवाब आज के सुसमाचार द्वारा हमें मिलता हैं। पहला है पवित्र परम प्रसाद और दूसरा है पवित्र वचन। संत लूकस 24 में प्रभु येसु ने अपने आपको र¨टी तोडते समय शिष्यों को प्रकट किया। आज प्रभु येसु ऐसा ही अनुभव हमें परम पवित्र संस्कार द्वारा प्रदान करते हैं। जब हम पवित्र परमप्रसाद में अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित करते हुए पूरे मन से भाग लेते हैं तो हम प्रभु येसु की उपस्थिति को पहचान सकते हैं। एक क्षण अपने आपको परख कर देखिये कि मैं कैसे पवित्र परम प्रसाद में भाग लेता हूँ, उसके लिए मैं कैसे तैयारी करता हुँ? क्या मैं पवित्र परम प्रसाद में उपस्थित प्रभु येसु को महसूस करने का प्रयास करता हूँ? अगर हमारी तैयारी में कमी हुई है तो पाप से या गलतियों से मुक्ति प्राप्त करना बहूत मुष्किल पड़ेगा। क्योंकि पवित्र यूख्रीस्त में सभी प्रकार के भय और मुसिबतों से छुटकारा मिलता है, सभी प्रकार की बीमारियों से चंगाई, और सभी प्रल¨भनों से विजय होने की शक्ति मिलती है। “क्योंकि प्रभु येसु के घावों द्वारा हम भले-चंगे हो गये हैं“ (1 पेत्रुस 2:24)।

प्रभु येसु को जानने व पहचानने के लिए दूसरा मार्ग हैं पवित्र वचन। येसु अपने शिष्यों से कहते है, “मेरे विषय में सब कुछ भजनों में, मूसा की संहिता में और नबियों द्वारा लिखा गया है“। अगर हम प्रार्थना और भाक्ति-भाव से पवित्र वचन पढने या समझने की कोशिश करेंगे तो, प्रभु येसु अपने आपको गहराई से समझने के लिए हमारे मन का अन्धकार दूर करेगा। क्या हम पवित्र वचन पढने में या समझने में समय बिताते हैं? क्या पवित्र वचन से प्रेरित होकर हमारे जीवन के कर्य-कलाप करते हैं?

ख्रीस्त में प्रिय भाईयों एवं बहनों, अक्सर हमारी गलतियों का मूल कारण अज्ञानता हैं। अज्ञानता से बचने के लिए हमको बहूत प्रयत्न करना आवख्रीक है। यदि हम प्रभु येसु को पहचानेंगे तो, वह हमारी गलतियों और पापों पर विजय पाने के लिए हमारी मदद ज़रूर करेगा। पुनर्जीवित प्रभु येसु अपने आपको पवित्र परम प्रसाद और पवित्र वचन द्वारा प्रकट करते हैं। यह पास्का काल हमारे लिए उस येसु को जानने, पहचानने एवं समझने का समय हो। हम येसु के साथ एक गहरा रिष्ता बनाने में व्यस्त रहें। आइये हम प्रभु येसु को गहराई से पहचानें व अनंन जीवन की राह पर आगे बढते जायें।


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