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35. प्रभु का स्वर्गारोहण

प्रेरित-चरित 1:1-11; एफ़ेसियों 1:17-23; मारकुस 16:15-20

(फादर फ्रांसिस स्करिया)


आज कलीसिया प्रभु येसु ख्रीस्त के स्वर्गारोहण की याद करती है। संत लूकस अपने सुसमाचार तथा प्रेरित-चरित में स्वर्गारोहण का वर्णन करते हैं। प्रभु ने अपने पुनरूत्थान के बाद 40 दिनों तक अपने शिष्यों को दर्शन दिये। उन्होंने यह प्रमाणित किया कि वे सचमुच जी उठे हैं। उसके बाद वे स्वर्ग में आरोहित किये गये। सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि अपने दुःखभोग के पहले येसु ने बेथानिया से यात्रा करके येरुसालेम में प्रवेश किया था। बेथानिया से लेकर कलवारी तक कई घटनाएं घटित हुई जिन्हें शिष्य आसानी से भूल नहीं पाते हैं। किसी ने उन्हें पकड़वाया, किसी ने उनको अस्वीकार किया, कई उनको छोड़कर भाग गये। शिष्य प्रभु को प्यार तो ज़रूर करते थे लेकिन जब उस प्यार की कीमत बढ़ गयी तो वे उसे चुकाने में असमर्थ साबित हुए। प्रभु ने खुद उन्हें सिखाया था कि जीवन की कुर्बानी प्यार का सर्वश्रेष्ठ प्रमाण है। परन्तु उनका प्रभु के प्रति प्रेम उस चरम सीमा तक नहीं पहुँचा था जब वे अपनी जान देकर भी प्रभु के प्रति अपने अटूट संबंध का प्रमाण दे सकें। इसलिये बेथानिया से लेकर कलवारी तक की यात्रा में कई दुःखद घटनाएं घटित हुई जो शिष्यों के हृदयों में घाव बन गयी। शायद उन घटनाओं की याद, अपनी कमज़ोरी तथा प्रभु के प्रति निष्ठा की कमी उन्हें बार-बार परेशान करती रही। अपने स्वर्गारोहण के पहले प्रभु अपने शिष्यों को वापस बेथानिया ले जाते हैं। जाते-जाते शिष्यों को अपनी-अपनी कमज़ोरियों का एहसास ज़रूर हुआ होगा। लेकिन अब पुनर्जीवित प्रभु उन घावों को चंगाकर उन्हें दृढ़विष्वास तथा नवस्फूर्ति प्रदान करते हैं।

प्रेरित-चरित 1:3 में हम पढ़ते हैं कि प्रभु अपने पुनरूत्थान के बाद 40 दिनों तक प्रेरितों को दिखाई देते रहें। इस प्रकार प्रभु ने शिष्यों के संदेहों को दूर किया, उन्हें यह समझाया कि वे सचमुच जीवित है। तब शिष्यों को यह ज्ञात हुआ कि प्रभु की मृत्यु उनके जीवन का विनाश नहीं, बल्कि विकास था। अपने मानवीय जीवन के दौरान जहाँ-जहाँ प्रभु येसु जाते थे, वहाँ लोगों ने उनको देखा, उनकी बातें सुनी और वे संतुष्ट हो गये। उनसे मिलने के लिए, उनकी बातें सुनने के लिए, उनसे चंगाई प्राप्त करने के लिए वे दूर-दूर से पैदल चलकर आते थे। कभी-कभी वे नाव में उनके पास पहुँचते थे। लेकिन पुनरूत्थान के बाद उनकी उपस्थिति का विस्तार हुआ। प्रभु से मिलने के लिए, उनकी बातें सुनने के लिए, उनकी चंगाई प्राप्त करने के लिए उन्हें कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है।

प्रभु के भक्त जहाँ कहीं भी हो, वे अपनी-अपनी जगह पर, अपने-अपने समय पर प्रभु का दर्शन कर सकते हैं- प्रार्थना के माध्यम से, शिष्यों की एकता के माध्यम से। अब प्रभु का अनुभव हर व्यक्ति हर वक्त कर सकता है। जब आप अपनी बीमार बेटी की सेवा में लगे हैं, अपनी नौकरी खो जाने के संकट से गुजरते हैं, प्रियजनों के बिछुड़ जाने के असहाय दुःख से पीडि़त है, किसी मुसीबत के समय मुँह लटकाकर खड़े हैं तब अगर आप पुनर्जीवित प्रभु को पुकारेंगे तो वे ज़रूर आप के पास आयेंगे। वे आप के दुख को समझने आयेंगे, आप के संकट का समाधान दिलाने आयेंगे, आप को सांत्वना देने आयेंगे, आपको शक्ति देने आयेंगे।

स्वर्गारोहण का पर्व हमें यह सिखाता है कि पुनर्जीवित प्रभु येसु की उपस्थिति असीमित है। आज के पहले पाठ में हमने सुना कि प्रभु येसु के स्वर्ग जाते समय प्रेरित आकाश की ओर एकटक देख ही रहे थे कि स्वर्गदूत उनसे बोले, ’’गलीलियों! आप लोग आकाश की ओर क्यों देखते रहते हैं?’’ शायद वे कह रहे थे, जब आप अपने मन मंदिर में और आप के अपने समुदाय में उनकी उपस्थिति को पहचान सकते हैं तो आप आकाश की ओर क्यों देखते रहते हो। आइए हम आज के मिस्सा बलिदान में, विश्वासियों के इस समुदाय में, अपने अपने परिवारों में पुनर्जीवित प्रभु को ढूँढे़ और पहचानें। देखिए संत लूकस क्या कहते है, ’’आशिष देते-देते वह उनकी आँखों से ओझल हो गये।’’ वे हमें आशिष देते रहते हैं हमें सिर्फ विश्वासी बन उस आशिष के योग्य बनना है।


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