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वर्ष का तैंतीसवाँ इतवार

दानिएल 12:1-3; इब्रानियों 10:11-14,18; मारकुस 13:24-32

फादर आइजक एक्का


आज वर्ष का 33सवाँ इतवार है और पूजन विधि का दूसरा अंतिम इतवार है इस अंतिम सप्ताह में हमें अंतिम दिनों की घटनाओं के बारे में बताया गया है।

किसी गाँव में दो घनिष्ठ मित्र रहा करते थे, वे प्रतिदिन अपने-अपने अंतिम दिनों के जीवन के बारे में वाद-विवाद किया करते थे और यह जानना चाहते थे कि इस दुनिया में कौन ऐसा व्यक्ति है जो अपने जीवन के अंतिम क्षण को जान सके। उनमें से सबसे बुजर्ग ने कहा-’’मुझे पता नहीं, मैं अंतिम दिन तक अपने किताब रूपी जीवन को अच्छी तरह से लिख पाऊंगा या नहीं।’’

प्रिय विश्वासियों, आज के भौतिकवाद में हम भी कई बार अपनी मृत्यु और अंतिम दिन से भयभीत होकर जीवन जीते हैं। हम अपने आप में विश्वास नहीं कर पाते हैं और उस बुजर्ग के समान प्रश्न करते दिखाई देते हैं। लेकिन एक सच्चे ख्रीस्तीय जीवन बिताने वाले के लिए अंतिम दिन एक चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिसे आज के तीनों पाठों में विस्तृत रूप में दर्शाया गया है।

हम सभी को ज्ञात है कि हम सब एक न एक दिन इस संसार से विदा ले लेगें और हमारे लिए इस संसार का अंत हो जाएगा। हम भयभीत होकर इस सच्चाई से अपने को दरकिनार कर देते हैं। क्योंकि हम अंतिम दिनों का स्मरण विश्वास के साथ नहीं लेकिन डर कर करते हैं। आज के पाठों में बताया गया है कि हमारी मृत्यु एक सच्चाई है।

जब हम समाचार पत्रों में पढते, रेडियो में समाचार सुनते या टेलीविजन में समाचार देखते हैं तब हमें ज्ञात होता है कि इस संसार में तरह-तरह की विषमताएँ हैं। आज का पहला पाठ जो नबी दानिएल ग्रंथ से लिया गया है, मे बताया गया है कि उस समय समस्त राष्ट्रों में घोर संकट आ जाएगा। यह समय पुनरूत्थान का सूचक है। जो लोग पृथ्वी पर सो रहे हैं वे जाग जाएगें और सदा के लिए जीवित हो जाएगें और जो शापित हैं वे अनंत पाप के सागर में लिप्त हो जाएगें। यह सब अंतिम दिन की भविष्यवाणी है जब धर्मी मानव पुत्र के आने की राह देखेगें।

यह कहने पर अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज मनुष्य अपने मन मस्तिष्क के पाप और उसके दुषप्रभाव से अपने को अलग कर चुका है। उसके लिये पाप और पुण्य कोई महत्व नहीं रखता । वह ईश्वर पर भरोसा नहीं रखता। उसे तो केवल अपने स्वार्थ पूर्ण जीवन ही मायने रखता है। जब हम कलीसिया के इतिहास के पन्नों को पलट कर देखते हैं तो हमें पता चलता है कि ऐसे कई संत और धर्मात्मा अपने अंतिम दिनों को जान गये थे और वे संपूर्ण रूप से ईश्वर में लिप्त थे। हम सभी जानते हैं ईश्वर सबका उध्दार और मुक्ति चाहता है। वह अपने विधान को किसी के ऊपर नहीं थोपता, परन्तु उन्हें पूरी स्वतंत्रता देता है कि मनुष्य ईश्वर में विश्वास करे और जीवन जीये या उनसे अलग रहे।

आज का दूसरा पाठ हमें प्रभु येसु ख्रीस्त के एक मात्र समर्थ बलिदान के बारे में बताता है। वे एक ही बार बलिदान चढ़ाने के बाद सदा के लिए ईश्वर के दाहिने विराजमान हो गये हैं। प्रभु येसु ख्रीस्त ने अपनी मृत्यु और पुनरूत्थान द्वारा हमें पाप मुक्त कर दिया है। आज हमारे लिये चुनौती है कि हम किस प्रकार ईश्वर और अपने पड़ोसी से संबध रखते हैं? क्योंकि मनुष्यों का स्वार्थ और उसके दुषप्रभाव उसे ईश्वर से अलग कर देता है।

आज का सुसमाचार अंतिम दिन को जागरूक और सचेत होकर जीवन जीने के लिए आमंत्रण देता है। क्या यह हमारे जीवने को प्रभावित करता है? क्या हमें दुरदर्शी व्यक्ति बनने के लिये प्रेरित करता है? इन सभी घटनाओं का जिक्र हम पुराने विधान में विशेष करके नबी दानिएल के ग्रंथ में पाते हैं। नये विधान में प्रभु येसु ख्रीस्त जैतून के पेड़ के दृष्टांत द्वारा इसका निरूपण करते हैं और अपने शिष्यों को अगाह करते हैं कि उन्हें सभी प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए सदैव जागरूक और सर्तक रहना होगा।

तो आइए! आज के तीनों पाठों से यह शिक्षा लें कि जब भी हमें विपतियों या संकट का सामना करना पडे़, तो हम धीरज के साथ मानव पुत्र के साथ खडे़ होने के लिए अपने आप को तैयार कर सकें।


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