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चक्र स - 07. ख्ऱीस्त जयन्ती (प्रभात की मिस्सा)

इसायाह 62:11-12; तीतुस 3:4-7; लूकस 2:15-20

(फादर शैलमोन अंथोनी)


ईश्वर की भाषा प्रेम है। ख्रीस्त जयंती वही भाषा है जिसके द्वारा ईश्वर हमसे बोले है। ईश्वर जो प्रेम हैं, मनुष्य को ईश्वर जैसे बनने का निमंत्रण देने के लिये मनुष्य बन गये हैं (मत्ती 5:48)।

परन्तु यदि हम मनन् करते हुए पवित्र बाइबिल पढे़ंगे तो हम पायेंगे कि कुछ लोगों को यह निमंत्रण स्वीकार्य नहीं था। वास्तव में बेथलेहेम में भी जहाँ प्रभु येसु ने जन्म लिया था, दो प्रकार के लोग थे। एक वे जो येसु के जन्म के इंतजार में थे, दूसरे वे जो उनके जन्म लेने का विरोध करते थे। पहले प्रकार के लोगों में मरियम, यूसुफ, चरवाहे और तीन राजा थे और दूसरे प्रकार के लोगों में राजा हेरोद, पुरोहितगण और शास्त्री (मत्ती 2:4) और सैनिक। चरवाहे अपने सहज भोलेपन में मुक्तिदाता मसीह को खोज रहे थे। तीन राजा सत्य को खोजते-खोजते येसु तक पहुँच गये। हेरोद और उसके सैनिक भी मसीह को ढूँढ रहे थे परन्तु उनकी हत्या करने के लिये। वे भेड़ के वेष में भेड़िया थे। क्योंकि वे दूसरा राजा नहीं चाहते थे। येसु का जन्म उनके पद और शक्ति के लिए खतरा था।

ऐसी परिस्थिति न सिर्फ हम बाइबिल में पाते हैं बल्कि यह हमारे समाज में भी विद्यमान है। हम ऐसे लोगों को देखते हैं जो नहीं चाहते कि प्रभु येसु का जन्म उनके हृदय में हो और वे दूसरों के हृदय में उनके जन्म को रोकने के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं। उनके हाथों कई मिशनरियों ने अपनी जान गंवाई हैं। अतः वे हमारे देश में ईश्वर का राज्य फैलाने में बाधक हैं। आज ख्रीस्त जन्मोत्सव में हमें उनके लिये भी नन्हें येसु से प्रार्थना करनी चाहिये कि वे उनके हृदयों को भी जीत लें।

प्रभु येसु ने हमें सिखाया है कि परमपिता के समान पूर्ण बनने के लिये हमें मानवीय गुणों को अपनाना चाहिये। अपने बल पर परिपूर्ण बनना हमारे लिये असंभव है। सभी ख्रीस्तीय परिपूर्णता की राह पर सहयात्री है। जब उनके हृदय में ख्रीस्त जन्म लेते है तभी परिपूर्णता की ओर हमारी यह यात्रा संभव है। दूसरे पाठ में हम संत पौलुस को तीतुस से कहते सुना कि ईश्वर ने हमें हमारे किसी अच्छे कार्य के कारण नहीं अपितु अपनी दया के कारण बचाया है। ईश्वर हमारे हृदयों, परिवारों और समाज में सदा ही जन्म लेना चाहते हैं। ईश्वर हमारे हृदय में जन्म लेने के लिये हमेशा तैयार रहते हंै चाहे हमारा हृदय कितना ही मैला क्यों न हो। उन्होंने बेथलेहेम की गौषाले में जो गोबर, गंदगी और बदबू से भरा था, जन्म लेना स्वीकार किया। उसी प्रकार वे किसी भी पापी को कभी नहीं ठुकराते। वे उनके पत्थर के हृदय में जन्म लेना चाहते हैं ताकि वे उसे रक्त-मांस का हृदय बना सकें। वास्तव में वे पापियों को ही बुलाने आये हैं, जो खो गये थे उन्हें ढूँढ़ने आये हैं। इस धरती पर उनके जीवन में हम देखते हैं कि वे पापियों और नाकेदारों के साथ उठते-बैठते और खाते-पीते थे।

एक मशहूर प्रचारक ने साधना कर रही धर्मबहनों से कहा, ‘‘जब हम मिशन शब्द सुनते हैं तो हम दूसरे लोगों के बारे में सोचते है विशेष करके जिन्होंने येसु को अभी तक नहीं स्वीकारा है। परन्तु हकीकत यह है कि हम स्वयं भी मिशन की परिभाषा की विषय वस्तु है। हमारे हृदय का बडा भाग अभी भी येसु से अछूता है। अगर इस दृष्टिकोण से देखा जाये, तो हम में से कोई भी पूर्ण ख्रीस्तीय नहीं है। हमारे हृदय को भी वचन से भरने की और शुद्ध करने की आवश्यकता है।

प्रभु येसु हमारे हृदय में जन्म लेने को तैयार हैं बशर्ते हम हृदय को उनके लिये खोलें (प्रकाशना 3:20)। हम जो कुछ हैं वह उन्हें दिखायें और वे हमें यह दिखायेंगे कि हमें क्या बनाना चाहिये। हम फ़रीसियों की तरह कभी न बनें जो अपने को न्यायी ठहराते और सच्चे मानते थे। बल्कि हम अपना वास्तविक रूप स्वीकार करें और अपने को प्रभु येसु को समर्पित करें। पवित्र बाइबिल में हम देखते हैं कि फ़रीसियों ने येसु के लिए अपने हृदय के द्वार बंद कर दिये। परिणामस्वरूप प्रभु येसु उन्हें प्रभावित नहीं कर पाये। दूसरी तरफ फरीसी भी येसु की शक्ति का अनुभव नहीं कर पाये जिन्हें पापियों ने अनुभव किया। हम जैसे हैं वैसे ही अपने को समर्पित करने से क्या तात्पर्य है? इसका अर्थ है परम पावन ईश्वर के सामने अपने आपको नम्र बनाना, अपने हृदय को बेथलेहम की चरनी के समान बनाना। हेरोद के महल के समान के हृदयों में येसु जन्म नहीं ले सकेंगे। मरियम ने अपने आप को दीन-हीन बनाया और कहा, ‘‘मैं प्रभु की दासी हूँ’’। फलस्वरूप वह बालक येसु को ग्रहण कर पायी।

ख्रीस्त जयंती काल नींद से जागने का सबसे उचित समय है, पुराने स्वभाव को त्यागने तथा नये स्वाभाव को धारण करने का। हम जानते हैं प्रभु येसु के जन्म ने संसार के इतिहास को दो भागों में बाँट दिया, ठीक उसी प्रकार हमारे हृदय में जन्म लेकर वे हमारे जीवन को भी दो भाग में बाँट देंगे। संत पौलुस और संत अगुस्तीन का जीवन इसका उत्तम उदाहरण है। प्रभु येसु अपने आगमन पर हमारे शरीर को जो पवित्र आत्मा का मंदिर है उसकी सारी अशुद्धताओं से शुद्ध कर करेंगे। हमारे परिवारों को नाज़रेत के पवित्र परिवार के समान बनने में आने वाली बाधाओं को वे दूर करेंगे। हमारे समाज में ईश-राज्य की स्थापना में आने वाली बुरी शक्तियों को परास्त करेंगे। स्मरण रहे हमारे हृदयों में प्रभु येसु का जन्म एक संघर्षपूर्ण चुनौती है। वे हमारे जीवन में हस्तक्षेप करेंगे। मरियम और यूफुस का जीवन फूलों की सेज नहीं था। ईश्वर की इच्छा के प्रति स्वीकारोक्ति के प्रथम क्षण से ही उनका संघर्ष प्रारंभ हो गया था। हम न केवल उनके प्रशंसक बने बल्कि उनके समान भी बनें। इस्राएल में प्रभु येसु के जन्म ने वहाँ उथल-पुथल मचा दी थी, क्योंकि प्रभु येसु ने उस समाज में प्रचलित बुराईयों के विरुद्ध आवाज़ उठा कर उन्हें चुनौती दी थी। आखिरकार इस्राएल ने उनसे छुटकारा पाकर ही दम लिया। इसलिये हम जो अपने हृदय को येसु के जन्म के लिये तैयार कर हैं उसे चुनौतियों से जूझने के लिये भी तैयार करें।

यदि हम थोड़ा सा भी उनके समान न बन पायें और थोड़ा सा ईश्वर का प्रेम अपने चारों ओर न फैला पायें तो ख्रीस्त जन्मोत्सव मनाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। यह कैसे सम्भव है? संत लूकस के सुसमाचार अध्याय 19 में हम ज़केयुस के बारे में पढते हैं। उसके घर में प्रभु येसु की उपस्थिति उसमें प्रत्यक्ष परिवर्तन लाती है। ज़केयुस कहता है कि मैं अपनी आधी सम्पत्तिा गरीबों को दे दूँगा और जिनसे धोखे से कुछ लिया है उन्हें चार गुणा लौटा दूँगा। यह है हमारे परिवार में प्रभु येसु के जन्म का प्रमाण। वर्षा का प्रमाण है भीगीं धरती, आग का प्रमाण है धुंआ, उसी प्रकार हमारे परिवार में प्रभु येसु के जन्म का प्रमाण वह कार्य हैं जो हम अपने ज़रूरतमंद पड़ोसियों के लिये करते हैं। ख्रीस्त जयंती हमें अपने पड़ोसियों के लिये कुछ करने का आह्वान करती है। परन्तु एक बात हमेशा ध्यान में रखें, ख्रीस्त जन्मोत्सव की सार्थकता इसमें नहीं है कि हमने अपने पड़ोसियों के लिये कितना किया, अपितु उसे किस तरह से किया। कहावत है, कोई भी इतना दरिद्र नहीं है कि वह दूसरों को कुछ न दे सकें। एक भिखारी भी अपनी अल्पता में से कुछ दे सकता है और जिसे हम नगण्य समझते ईश्वर की दृष्टि में महान है। इसलिये हम अपने परिवारों में निर्णय लें कि इस ख्रीस्त जयंती को सार्थक बनाने के लिये अपने पड़ोसियों के लिये क्या करेंगे ताकि प्रभु येसु हमसे भी कह सकें, ‘‘आज इस घर में मुक्ति का आगमन हुआ है’’।


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