Walter Lakra

चक्र स - 12. प्रभु प्रकाश पर्व

इसायाह 60:1-6; एफे़सियों 3:2-3अ, 5-6; संत मत्ती 2:1-12

ब्रदर वॉल्टर जोसफ लकरा (अंबिकापुर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्यारे भाईयो और बहनों, आज माता कलीसिया प्रभु प्रकाश का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाती है। प्रभु प्रकाश का अर्थ है ईश्वर का मानव के रूप में इस धरती पर प्रकट होना। हमें पूर्ण विदित है कि प्रभु ईसा मसीह का जन्म 25 दिसम्बर को हुआ था। और इस जन्मोत्सव को सारे संसार मे बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। पुराने समय में प्रभु प्रकाश के समारोह में विभिन्न घटनाओं को याद किया जाता था जैसे ख्रीस्त के जन्म का स्मरणोस्तव, ज्योतिषियों को प्रकटीकरण, प्रभु येसु का बपस्तिमा और काना के विवाह भोज में येसु का पहला चमत्कार आदि। वर्तमान समय में इस पर्व समारोह में ज्योतिषियों की आराधना की घटना को विषेष रूप से मनाया जाता है। उन्हें त्रिकोणीय तारे के बारे में पूर्वविदीत था जो मूसा नबी के जन्म के पहले हुआ था। यह साबित करता है कि पूर्वउदीत तारा यहूदी भूमि में महान व्यक्ति के जन्म लेने का चिन्ह था। आज सारा विश्व उस नक्षत्र को चमत्कारी तारा मानता है। यह तारा येसु के जन्म का प्रतीक है। येसु के जन्म स्थान तक पहुँचने में तीन ज्योतिषियों को यही पूर्व दिशा का तारा पथ प्रदर्शक बना था। इस प्रकार यह तारा येसु के जन्म के संदेश के साथ साथ अंधकार को भी दूर करता है। अतः येसु ने अपने जन्म के द्वारा संसार को ज्योति दिखाई। आज के सुसमाचार में संत मत्ती चार मुख्य बातों पर जोर देते है।

1. ज्योतिषियों द्वारा येसु की खोज-

राजा हेरोद के दरबार में पढे लिखे अफसर केवल विद्वान थे, विवेकी नही। उनमें सच्चे ज्ञान के स्रोत और ज्ञान दाता ईश्वर को जानने की उत्कण्ठा की कमी थी। जबकि पूर्व के ज्योतिषी वास्तव में विवेकी थे। वे विद्वान होने पर भी वे नई बातों को स्वीकार कर ईश्वर की खोज में लगे रहने के लिए सदा तैयार रहते थे। उन्होंने जब तक ईश्वर को नहीं पाया तब तक वे अपने में बेचैनी महसूस करते रहे। ज्योतिषियों को यात्रा करने में बहुत कठिनाई हुई। उन्हें नदी-नाले, पहाड़-पर्वत, नगर-गाँव आदि पार करने पडे। उन्हें कई संकटो से जूझना पड़ा, फिर भी वे ईश्वर की खोज में लगे रहे। प्यारे भाईयो और बहनों आज हमारे जीवन में भी कई प्रकार की विपत्तियाँ आती हैं और हमारे जीवन रूपी रास्ते पर कांटे ही कांटे रहते हैं। हमें कई प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पडता है। क्या हम ऐसी विषम परिस्थितियों में भी ईश्वर की खोज में लगे रहने के लिए सदा तत्पर है? क्या हम ईश्वर को नहीं पाने पर कमी महसूस करते हैं? क्या हम हेरोद के दरबारियों के समान ज्ञान के स्रोत और ज्ञान के दाता ईश्वर को जानने में उदासीनता रखते हैं? आज हम अपने आप की जाँच कर देखें। जिस तरह ज्योतिषी तारे को देखकर उसकी खोज में निकल पडे उसी तरह हमको भी विश्वास के साथ येसु ख्रीस्त को अपने जीवन एवं बुलाहट मे खोजते रहने चाहिए है।

2. नक्षत्र का मार्ग दर्शन -

हम देखते हैं कि तारे के मार्ग-दर्शन द्वारा तीनों ज्योतिषियों ने सबसे पहले येसु की खोज राजा हेरोद के दरबार में की। पर येसु को वहाँ न पाकर उन्हें आश्चर्य और निराशा हुई क्योंकि हेरोद एक खूंखार व्यक्ति था उसके पास शक्ति थी तथा वह वो हिंसात्मक राजा था जिसने दो वर्ष तक के सभी इस्राएली बच्चों को मार डाला था। उसमें हिंसात्मक सोच कूट-कूट कर भरी थी। सभी लोग उनके पास जाने से डरते थे। वह भोगविलास का जीवन व्यतीत करता था। उसके पास चल-अचल सम्पती, बडे-बडे महल एवं सब प्रकार का सांसारिक वैभव था। लेकिन येसु उन विलासमय महलों में नहीं मिलते हैं। आज यह हमारे लिए एक संकेत तथा चेतावनी है कि अगर हम येसु की खोज करते हैं तो हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम उन्हें उन स्थानों में नहीं पा सकते हैं जहाँ यश, शक्ति सम्पन्नता पद-पद्वी आदि बातों को प्रधानता दी जाती है बल्कि हमें उन स्थानों पर खोजना चाहिए जहाँ गरीब-दरिद्र, दीन-हीन, रोगी, तिरस्कृत और अभाव ग्रस्त लोग रहते हैं। जो शांति, प्रेम, ईश्वरीय आनन्द की खोज में लगे रहते है तथा जिनमें अहिंसा तथा न्याय की भावना होती है। ऐसे लोगों में ही येसु का चेहरा प्रतिबिम्बित होता है।

3. चरनी में प्रकाशन-

चरनी में बालक येसु के सामने ज्योतिषियों की खोज का अन्त हुआ। यह गौरतलब बात है कि प्रभु येसु का जन्म उस राजा हेरोद के महल में नहीं हुआ और न ही उनका जन्म धनी-संमपन्न परिवारो में। उनको जन्म देने के लिए माता मरियम एवं युसूफ को घर की भीख माँगने पडी। अन्त में घर नहीं मिलने पर एक छोटे से गोशाले में उनका जन्म हुआ। यह प्रकृति की विडबंना ही थी जिस गौशाले में कभी दीया भी नहीं जला होगा उस गौशाले में संसार की ज्योति का जन्म हुआ था। जिस गौशाले में बहुत सारा कूडा कचरा, मकडियों के जाले और पशुओं की गंदगी आदि थी उसमें शुद्धता के स्रोत का जन्म हुआ था। आज वही प्रभु येसु हमारे हृदय रूपी गौशाले में जन्म लेना चाहते हैं। वे जानते हैं कि हमारे हृदय में शायद अज्ञान एवं भ्रम का अंधकार है, बुराईयों एवं पापों की गंदगी है लेकिन इसलिए तो प्रभु का जन्म हुआ है। क्या हम प्रभु येसु ’संसार की ज्योति’ के लिए अपने दिल रूपी चरनी में जगह देने के लिए तैयार है? प्रभु को जन्म लेने के लिए कुछ भी नहीं चाहिए, वे केवल हमारे हृदय में स्थान एवं स्वागत चाहते हैं।

4. उपहारो का चढावा-

संत मती 2:10 में वचन कहता है ’’वे (ज्योतिषी) तारा देखकर बहुत आनन्दित हुए।’’ विश्वास आत्मा को खुशी से भर देता है अर्थात जो ख्रीस्त की ज्योति के पीछे चलता है वह सदा आनंदित होता है। ज्योतिषी भी बालक येसु को पाकर बहुत आनंदित हुए तथा उन्होंने घुटने टेक कर उसको अपना भेंट चढ़ायी। उन्होंने साष्टांग प्रणाम कर शिशु येसु की आराधना की। उन्होंने शिशु येसु को भेंट के रूप में सोना, लोबान और गंधरस दिया। यह भेंट कीमती और उचित थी। कीमती सोना येसु के राजा होने का संकेत है, लोबान उनकी दिव्यता का तथा गंधरस उसकी मानवता का संकेत है। येसु ने इन उपहारों को स्वीकार कर हम सबको स्वीकार किया क्योंकि ये तीनों गैर यहूदी प्रज्ञावान ज्योतिषी हम सबका प्रतिनिधित्व करते थे। इस प्रकार आज हमें भी भेंट के रूप में अपने आप को प्रभु येसु को सौपने की आवश्यकता है।

ख्रीस्त में प्यारे भाईयो और बहनों हमने सुसमाचार की चार मुख्य बातों पर विस्तृत रूप से मनन किया। ये सभी आज के पर्व की महत्वपूर्ण बातें हैं। इस प्रकार आज येसु स्वयं को सारी सृष्टि, समस्त प्रजातियों के मुक्तिदाता और मसीह के रूप में प्रकट करते है। अतः आइये हम ज्योतिषियों के साथ मिलकर येसु से मिलने आये तथा अपने आप को उपहार के रूप में भेंट करें। आमेन।


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