Smiley face

चक्र स - 43. वर्ष का बारहवाँ इतवार

2 जकर्या 12:7-10,13; गलातियों 3:26-29; लूकस 9:18-24

(फादर वर्गीस पल्लिपरम्पिल)


अमेरिका के प्रसिद्ध महाधर्माध्यक्ष फुलटन जे. षीन अपनी आत्मकथा में हर ख्रीस्तीय विश्वासी के जीवन एवं सारी कलीसिया में क्रूसित प्रभु येसु की और उनके पवित्र क्रूस की महानता के बारे में समझाते हुए एक घटना का वर्णन करते हैं। घटना इस प्रकार है। एक बार बिशप षीन के एक दोस्त ने जो ईसाई नहीं था और जो चाँदी का व्यापारी था, बिशप को अपनी दुकान में आमंत्रित किया। बिशप अपने दोस्त की दुकान पर गये और दोनों बहुत देर तक बातें करते रहें। कुछ देर बाद व्यापारी अपनी दुकान से कुछ छोटे-छोटे पुराने क्रूस बिशप स्वामी के सामने लाया और आग्रह किया कि वे उन्हें खरीद ले। यह पूछे जाने पर कि उसे यह सब कहाँ से मिले तो व्यापारी का यह जवाब था कि एक काॅन्वेंट की सिस्टरों से उसने ये प्राप्त किये। व्यापारी ने आगे कहा कि कुछ दिन पहले तक इन क्रूसों को एक काॅन्वेंट के सिस्टर लोग पहनती थी लेकिन अभी वे ये क्रूस नहीं पहनना चाहती क्योंकि उनके अनुसार क्रूस पहनने से उन्हें लोगों से मिलना जुलना मुश्किल हो रहा था। सिस्टर होने की अलग पहचान के कारण या क्रूस पहनने के कारण लोग उन से दूर रहते थे। लोगों से आसानी से मिलने जुलने के लिए उन्होनें क्रूस पहनना छोड़ दिया है और उन्हें व्यापारी को दे दिया।

तत्पश्चात् व्यापारी ने बिशप से पूछा, ‘‘बिशप स्वामीजी, आपकी कलीसिया में यह क्या हो रहा है? बहुत सारे लोग कलीसिया छोड़कर जा रहे हैं, कई लोग ईसाई होते हुए भी पापमय जीवन बिता रहे हैं और अनेक लोग तो बपतिस्मा ग्रहण करने के बाद भी गिरजा घर में या किसी प्रार्थना सभा में नहीं जाते हैं। यह सब क्यों हो रहा है?’ अपने दोस्त के इन प्रश्नों को सुनकर बिशप थोड़ी देर चुप रहे और अपने सामने पडे़ उन पुराने क्रूसों की ओर इशारा करते हुए कहा, ”इन सबका कारण यही है’’। जब कोई ईसाई, चाहे वह पुरोहित, धर्म बहन या लोकधर्मी हो, जब पवित्र क्रूस को भूल जाता है तो वह प्रभु के शिष्य होने से वंचित रह जाता है।

क्रूस को भूलना हमारे विश्वास की नींव तथा आधार को भूल जाना है। हमें अच्छी तरह से मालूम है कि हमारे धर्म की नींव इस पर आधारित है कि मनुष्य को उनके पापों से मुक्त करने के लिए ईश्वर ने मानव बनकर और असहनीय दुख-तकलीफें झेलकर क्रूस पर अपना जीवन कुरबान किया हैं। संत पौलुस कुरिन्थियों के नाम लिखे पहले पत्र में कहते है, ”मसीह हमारे पापों के प्रायश्चित् के लिए मरे, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है“ (15:3)। हमारा विश्वास इस पर आधारित है।

पवित्र क्रूस हमारे पापों की क्षमा के लिए प्रभु येसु के पवित्र बलिदान का चिन्ह है। वह हमारे लिए ईश्वर के प्रेम और क्षमा का प्रतीक है। इसलिए क्रूसित प्रभु येसु को और उनके पवित्र क्रूस को भूलना या उसको अस्वीकार करना येसु द्वारा जो कार्य ईश्वर ने हमारे लिए किया है या जो प्यार येसु के द्वारा ईश्वर ने प्रकट किया है उन्हें भूलने के समान है।

आज के सुसमाचार के पहले भाग में हमने सुना कि प्रभु येसु अपने दुखभोग, मृत्यु एवं पुनरुत्थान के बारे में भविष्यवाणी करते हैं। ईश्वर होते हुए भी येसु ने दुख सहा। उन्होंने हमारी मुक्ति के लिए अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित किया। प्रभु येसु ने यह सब इसलिए किया कि उसने हमें प्यार किया था। यदि प्रभु येसु ने हमें प्यार नहीं किया होता तो वह हमारे लिए अपने आप को क्रूस पर बलिदान नहीं करते।

प्रभु येसु ख्रीस्त का जीवन जो क्रूस मरण में संपूर्ण होता है हमारे लिये एक उदाहरण है। इसलिये प्रभु अपने शिष्यों को चुनौती देते हैं कि वे दैनिक जीवन के अपने-अपने क्रूस उठाकर उनके पीछे हो लें। पुराने विधान के विधि-विवरण ग्रंथ के अनुसार जो क्रूस पर टंगा रहता है वह ईश्वर द्वारा शापित है। इसी शाप के चिन्ह को प्रभु येसु ने अपनाया और उसी क्षण सभी शापों को अपने ऊपर लेकर क्रूस को मुक्ति के चिन्ह में बदल डाला। जिस प्रकार मरुभूमि में साँपों द्वारा काटे गये लोग कांसे के सँाप जिसे परम ईश्वर के कहने पर मूसा ने बनाया था, की ओर दृष्टि दौड़ाकर मुक्ति पाते हैं, इसी प्रकार विश्वासियों के लिये क्रूस शाप का नहीं बल्कि मुक्ति का चिन्ह है। पाप के साँप से काटे गये लोग क्रूस की ओर दृष्टि दौड़ाकर पाप के ज़हर से छुटकारा पा सकते हैं। इसी कारण हममें से हर एक व्यक्ति को क्रूस से नफ़रत, घृणा या लज्जा नहीं रखना चाहिये बल्कि उसपर गर्व करना चाहिये। इसलिये संत पौलुस गलातियों को लिखते हुए कहते हैं ‘‘मैं केवल हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के क्रूस पर गर्व करता हँू। उन्हीं के कारण संसार मेरी दृष्टि में मर गया है और संसार की दृष्टि में मैं’’ (गलातियों 6:14)। जो क्रूस की वास्तविकता को समझते हैं वे ही उसपर गर्व कर सकते हैं। वे ही सांसारिक या दुनियावी बातों से ऊपर उठकर आलौकिक सच्चाईयों में सुख-षांति प्राप्त करते हैं। संत पौलुस बहुत ही साफ शब्दों में कहते हैं कि ‘जो विनाश के मार्ग पर चलते हैं वे क्रूस की शिक्षा को ‘मूर्खता’ समझते हैं। लेकिन हम लोगों के लिये जो मुक्ति के मार्ग पर चलते हैं वह ईश्वर का सामथ्र्य है’’ (1कुरिन्थियों 1:18)। कई लोग इस बात को समझने में असमर्थ हैं कि किस प्रकार एक व्यक्ति जो क्रूस पर चढ़ाया जाता है और असहाय बनकर प्राण त्याग देता है दूसरों को जीवन दे सकता है!

इसलिये वे क्रूस को मूर्खता तथा दुर्बलता का प्रतीक मानते हैं। शायद इन लोगो की गलती इतनी ही है कि वे मानव की मूर्खता तथा ईश्वर की ‘मूर्खता’ में अंतर समझ नहीं पा रहे हैं। संत पौलुस उनसे कहना चाहेंगे कि ‘‘ईश्वर की मूर्खता’’ मनुष्यों से अधिक विवेकपूर्ण और ईश्वर की ‘दुर्बलता’ मनुष्य से अधिक शक्तिशाली है’’ (1 कुरिन्थियों 1:45)।

दूसरों के सामने सिर झुकाना, दूसरों को अपने से अधिक सम्मान देना, उनकी प्रषंसा करना आदि बातें हमारे आज के युग में दुर्बलता मानी जाती हैं। लेकिन जो महान है वही विनित है। कहा जाता हैं जिस वृक्ष पर ज्यादा फल लगते है उसकी डालियाँ झुकी हुई रहती हैं। जो महान व्यक्ति होते हैं उनकी महानता शालीनता एवं विनम्रता में प्रकट होती है। दुनिया के जाने-माने नेता महात्मा गाँधी, अब्राहम लिंकन, मदर तेरेसा आदि इस तथ्य के प्रमाण हैं। इन लोगों के साथ हमारे समाज का व्यवहार इस बात को दर्षाता है कि ऐसे लोगों को सच्चे ईश्वर भक्त ही महान मान सकते हैं। प्रभु आज के सुसमाचार में आह्वान करते हैं कि हम अपने क्रूस उठाकर उनके पीछे हो ले। यह बात तो स्पष्ट है कि प्रभु यह नहीं चाहते कि हम किसी भी बढ़ई की मदद से बड़े से बड़े क्रूस बनवाकर उसे गले में टांगकर हमारी गली-गली में घूमें। इसलिये यह अनिवार्य हो जाता है कि हम सबसे पहले अपने क्रूस को पहचानें। प्रभु दैनिक जीवन के क्रूस के बारे में बात करते हैं। क्रूस मुक्ति का साधन है। मेरा क्रूस मेरे लिये तथा मेरे समुदाय के लिये मुक्तिप्रद है। मेरे जीवन की छोटी-मोटी कठिनाईयाँ, दूसरों के द्वारा गलत समझा जाना, मेरी बीमारी, पारिवारिक समस्याएं इत्यादि मेरा क्रूस है। सवाल यह है कि क्या मैं इन कठिनाईयों, परेशानियों और मुसीबतों में ‘परम पिता ईश्वर की मूर्खता’ जो ज्ञानी मनुष्य के विवेक से बढ़कर है को पहचान सकता हूँ या नहीं। हम विश्वासियों के लिये वर्तमान जीवन ही क्रूस का रास्ता है। क्या मैं इस मुक्तिदायक क्रूस को मेरे जीवन में खुषी के साथ झेलने के लिये तत्पर हूँ? आईये हम प्रभु के क्रूस के नीचे नतमस्तक होकर इसी कृपा वरदान के लिये विनती करें।


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