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चक्र स - वर्ष का इकतीसवाँ रविवार

प्रज्ञा 11:22-12:2; 2 थेसलनीकियों 1:11-2:2; लूकस 19:1-10

फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


आज के तीनों पाठों के जरिये प्रभु एक बार फिर से अपना प्रेम व करूणामय चेहरा हमारे सामने पेश करते हैं। पहले पाठ से प्रज्ञा ग्रंथ 11:23 में लेखक कहता है - ‘‘तू सबों पर दया करता है, क्योंकि तू सर्वशक्तिमान है। तू मनुष्य के पापों को इसलिए अनदेखा करता है कि वह पश्चाताप करे।’’

पश्चाताप, हमारे पूरे मुक्ति-इतिहास के पीछे बस एक यही कारण है और यूँ कहें कि पूरे धर्मग्रंथ के लिखे जाने के पीछे यही उद्देश्य है - पश्चाताप। पिता ईश्वर के द्वारा अपने एकलौते को इस संसार में भेजने के पीछे भी यही कारण था। इसलिए संत मारकुस के सुसमाचार 1:14-15 में हम पढते हैं कि जब प्रभु येसु ने अपनी सेवकाई प्रारम्भ की तो उनके मुख से निकले पहले शब्द यही थे- ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।’’ संत लूकस 24-47 में वचन कहता है - ‘‘उनके येसु नाम पर येुरूसालेम से लेकर सभी राष्टों को पाप क्षमा के लिए पश्चाताप का उपदेश दिया जायेगा। पूरे धर्मग्रंथ का संदेश इसी विषय के ईर्द-गिर्द घुमता है।

इससे हमें यह समझ में आता है कि मनुष्य की सबसे बडी समस्या जो हैं, वो हैं उसका पाप। और उसका सबसे उत्तम समाधान जो हैं वो है पश्चाताप। पाप किस प्रकार से हमारी सबसे बडी समस्या है इसे संत योहन 8:34 के द्वारा समझा जा सकता है जहॉं प्रभु का वचन कहता है- ‘‘जो पाप करता है वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता, पुत्र सदा रहता है।’’ यहॉं पुत्र के घर में रहने की बात कही गयी है। पुत्र जो है वह हमेशा घर में रहता है। यहॉं पर कौन से घर की बात कही गई है? यह पिता का घर है जो स्वर्ग में है। तो जो पाप करता है वह इस घर में हमेशा नहीं रहता। वह इसे छोडर दूर चला जाता है जैसा कि हम खोये हुए बेटे के दृष्टांत में पढते हैं। छोटा बेटा जो कि अपने पिता के विरूद्ध पाप करता है, वह अपने घर से दूर चला जाता है। यही हमारे इस दुनियाई जीवन की वास्तविकता है। हम अपने पिता के घर से दूर आ गये हैं। जैसा कि संत पौलुस फिलिपियों 3:20 में कहते हैं - ‘‘हमारा स्वदेश तो स्वर्ग है।’’ तो हम उस स्वर्ग बहुत दूर आ गये हैं।

इन सब बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारी सब से बडी समस्या हमारा ईश्वर के घर से दूर हो जाना है। और परम पिता ईश्वर ने इस समस्या के समाधान हेतु अपने इकलौते बेटे को दे दिया है ताकि जो कोई उनमें विश्वास करें, उनका सर्वनाश न हो बल्कि वे अनंनत जीवन प्राप्त करें। परन्तु इस ओर एक कदम हमें भी बढाने की ज़रूरत है। जैसा कि आज के सुसमाचार में ज़केयुस ने किया। वह एक पापी था। उसने बेईमानी की कमाई से, गरीबों को लूटकर काफी धन जमा कर लिया था। लेकिन येसु को अपने घर में पाकर उसे अपनी गलती का एहसास हो जाता है। वह पश्चाताप से भर कर बोल उठता है - ‘‘प्रभु! देखिए, मैं अपनी आधी संपत्ती गरीबों को दूँगा और मैंने जिन जिन लोगों के साथ किसी भी बात में बेईमानी की है, उन्हें उसका चौगुना लौटा दूँगा।’’ तब प्रभु ने उससे कहा - ‘‘आज इस घर में मुक्ति का आगमन हुआ है...जो खो गया था मानव पुत्र उसी को खोजने और बचाने आया है।’’ दूसरे शब्दों में कहें तो, जो अपने पिता के घर से दूर हो गया था, उसी को वापस अपने पिता के घर ले जाने के लिए येसु इस दुनिया में आये हैं।

यह मुक्ति तभी संभव है जब हम येसु से मिलने के लिए बेताब हैं और ज़केयुस जैसे अपने जीवन में येसु को कार्य करने दें। उनकी कृपा के लिए हमारे जीवन के दरवाजे़ खोल दें। और सबसे महत्वपूर्ण यह कि हम हमारे पापों के ऊपर पश्चाताप करें। तब प्रभु येसु हमसे भी यही कहेंगे - आज इस घर में, इस पल्ली में, इस व्यक्ति के जीवन में मुक्ति का आगमन हुआ है।

आईये हम हमारी मुक्ति के स्रोत येसु को अपने जीवन में बुलाने में न हिचकें। और उनकी कृपा के लिए अपने जीवन के द्वार को खोल दें। ताकि हम जो अपने पिता के घर से दूर हो गये हैं प्र्रभु येसु के द्वारा, उनके साथ वापस अपने पिता के घर उस अनन्त निवास में लौट सकें, जहॉं हमारा स्वर्गिक पिता हम सब का इंतजार कर रहा है। आमेन।  


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