आचरण और बलिदान

काथलिक कलीसिया की पूजन-पध्दति में हर साल चालीसा-काल पश्चात्ताप और मेल-मिलाप का सन्देश लेकर आता है। यह हमारे आचरण और प्रार्थना में ताल-मेल लाने का समय है। पवित्र वचन और संस्कार हमें अपने आचरण को ईश्वर की आज्ञाओं के अनुसार बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। अगर अच्छे आचरण और प्रार्थना की तुलना होती है तो ख्रीस्तीय दृष्टिकोण के अनुसार अच्छा आचरण प्रार्थना से ज़्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है।

ईश्वर ने राजा साऊल को अमालेकियों पर छापा मार कर उनके पास जो कुछ है, उन सबका विनाश करने की आज्ञा दी थी (देखिए 1समुएल 15:3)। लेकिन साऊल और उसके लोगों ने ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करके “अगाग, सर्वोत्तम भेड़ों, गायें, मोटे-मोटे बछड़ो और मेमनों को -वह सब कुछ, जो मूल्यवान् था, बचा लिया; उनका संहार नहीं किया। उन्होंने केवल बेकार और रद्दी चीजों का विनाश किया।” (1समुएल 15:9)। राजा साऊल ने सर्वोत्तम भेड़ों, गायों, मोटे-मोटे बछड़ों और मेमनों को ईश्वर को बलिदान चढ़ाने के उद्देश्य से ले आया। इस पर नबी समुएल राजा साऊल से कहा, "क्या होम और बलिदान प्रभु को इतने प्रिय होते हैं, जितना उसके आदेश का पालन? नहीं! आज्ञापालन बलिदान से कहीं अधिक उत्तम है और आत्मसमर्पण भेड़ों की चरबी से बढ़ कर है; क्योंकि विद्रोह जादू-टोने की तरह पाप है और आज्ञाभंग मूर्तिपूजा के बराबर है। तुमने प्रभु का वचन अस्वीकार किया, इसलिए प्रभु ने तुम को अस्वीकार किया - तुम अब से राजा नहीं रहोगे।" (1समुएल 15:22-23)

जो ईश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करता है वह अपनी प्रार्थना ईश्वर द्वारा सुनी जाने की आशा कैसे कर सकता है? एक तरफ़ वह ईश्वर की अवहेलना करता है तो दूसरी तरफ़ ईश्वर की स्तुति करता है। यह विरोधाभास है!

प्रभु ईश्वर नबी यिरमियाह के द्वारा येरूसालेम के मंदिर में प्रवेश करने वाले इस्राएलियों से कहते हैं, “यदि तुम लोग मेरी बात नहीं सुनोगे और उस संहिता का पालन नहीं करोगे, जिसे मैंने तुम को दिया है; यदि तुम मेरे सेवकों की उन नबियों की बात नहीं सुनोगे, जिन्हें मैं व्यर्थ ही तुम्हारे पास भेजता रहा, तब मैं इस मन्दिर के साथ वही करूँगा, जो मैंने शिलो के साथ किया और मैं इस नगर को पृथ्वी के राष्ट्रों की दृष्टि में अभिशाप की वस्तु बना दूँगा।” (यिरमियाह 22:4-6) प्रवक्ता 35:1-5 में प्रभु कहते हैं “संहिता के अनुसार आचरण बहुत-सी बलियों के बराबर है। जो आज्ञाओें का पालन करता है, वह शांति का बलिदान चढ़ाता है। परोपकार अन्न-बलि लगाने के बराबर है। जो भिक्षादान करता है, वह धन्यवाद का बलिदान चढ़ाता है। बुराई का त्याग प्रभु को प्रिय होता है और अधर्म से दूर रहना प्रायश्चित के बलिदान के बराबर है।”

इसका मतलब हमें यह नहीं निकालना चाहिए कि बलिदान या प्रार्थना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि पवित्र वचन हमें समझाता है कि अगर हमारा आचरण पवित्र नहीं है, तो हम बलिदान चढ़ाने के योग्य नहीं हैं। ईश्वर पवित्र और उनके पास आने और उन्हें बलि चढ़ाने के लिए हमें अपने आप को पवित्र करना चाहिए। धर्मी ही ईश्वर के समक्ष बलिदान चढ़ा सकता है। इसलिए पापी को पश्चात्ताप कर मेल-मिलाप करने के बाद ही बलिदान चढ़ाना चाहिए। अन्यथा उसका बलिदान स्वीकार्य नहीं होगा। प्रभु येसु कहते हैं, “जब तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहे हो और तुम्हें वहाँ याद आये कि मेरे भाई को मुझ से कोई शिकायत है, तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ कर पहले अपने भाई से मेल करने जाओ और तब आ कर अपनी भेंट चढ़ाओ।” (मत्ती 5:23-24) प्रवक्ता 35:8-9 में प्रभु का वचन कहता है – “धर्मी का चढ़ावा वेदी की शोभा बढ़ाता है और उसकी सुगन्ध सर्वोच्च ईश्वर तक पहुँचती है। धर्मी का बलिदान सुग्राहय होता है, उसकी स्मृति सदा बनी रहेगी।” प्रभु येसु कहते हैं, “जो लोग मुझे ’प्रभु ! प्रभु ! कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं करोगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा” (मत्ती 7:21)।

चालीसा काल हमसे अपेक्षा करता है कि हम अपने जीवन में अच्छे आचरण करके ईश्वर के बलिदान चढ़ाने के योग्य बन जायें। लूकस 10:29-42 में भले समारी के दृष्टान्त के द्वारा प्रभु येसु प्रार्थना और बलिदान चढ़ाने वाले याजक और लेवी से ज़्यादा समारी यात्री को धर्मी मानते हैं क्योंकि उसका आचरण अच्छा था। हम भी धर्मी बन कर ईश्वर के समक्ष सुग्राह्य बलिदान चढ़ाना सीखें। यह चालीसा काल इस के लिए लाभदायक हो।

-फादर फ़्रांसिस स्करिया


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