चालीसा-काल की चुनौती

follow_me राख बुधवार के दिन अपने माथे पर राख लगा कर हम चालीसा-काल में प्रवेश कर चुके हैं। हर साल काथलिक पूजन-पध्दति हमें परहेज, भिक्षादान, प्रार्थना तथा मन-परिवर्तन का यह समय प्रदान करती है ताकि हम प्रभु के करीब आ सकें। मत्ती के सुसमाचार 6:1-18 में प्रभु हमें सिखाते हैं कि हमें प्रार्थना, भिक्षादान तथा उपवास को किसी को दिखाने के लिए नहीं, बल्कि गुप्त रूप में करना चाहिए ताकि “तुम्हारा पिता, जो अदृश्य को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा” (मत्ती 6:18)। तो क्या माथे पर राख लगा कर चालीसा-काल शुरू करना ठीक है? क्या हम अपने माथे पर राख लगा कर दूसरों के सामने अपने इन धार्मिक कार्यों को प्रकट कर प्रभु की शिक्षा के विरुध्द नहीं जा रहे हैं? यहाँ पर हम व्यक्तिगत धार्मिक-कार्य तथा सामुदायिक धार्मिक-कार्यों का अन्तर देखते हैं। सारी कलीसिया परहेज, भिक्षादान, प्रार्थना तथा मन-परिवर्तन की इस अवधि में प्रवेश कर रही है।

योना 3:6-10 में हम पढ़ते हैं, कि योना का उपदेश सुन कर निनीवे के राजा ने “अपना सिंहासन छोड दिया, अपने वस्त्र उतार कर टाट पहन लिया और वह राख पर बैठ गया। इसके बाद उसने निनीवे में यह आदेश घोषित किया, "यह राजा तथा उसके सामन्तों का आदेश है : चाहे मनुष्य हो या पशु, गाय-बैल हो या भेड-बकरी, कोई भी न तो खायेगा, न चरेगा और न पानी पियेगा। सभी व्यक्ति टाट ओढ कर पूरी शक्ति से ईश्वर की दुहाई देंगे। सभी अपना कुमार्ग तथा अपने हाथों से होने वाले हिंसात्मक कार्य छोड दें। क्या जाने ईश्वर द्रवित हो जाये, उसका क्रोध शान्त हो जाये और हमारा विनाश न हो"। ईश्वर ने देखा कि वे क्या कर रहे हैं और किस प्रकार उन्होंने कुमार्ग छोड दिया है, तो वह द्रवित हो गया और उसने जिस विपत्ति की धमकी दी थी, उसे उन पर नहीं आने दिया।”

समस्त कलीसिया भी इसी तरह चालीसा-काल में प्रवेश कर रही है। हम स्थानीय कलीसिया के समुदाय के रूप में तथा विश्वव्यापी कलीसिया के रूप में इस विशेष काल में प्रवेश कर रहे हैं। यह शुध्दीकरण का समय है, मन-परिवर्तन का समय है, रुक कर अपनी बीती हुयी ज़िन्दगी पर एक नजर डालने का समय है। लूकस 9:23 में प्रभु येसु कहते हैं, “जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले”। प्रभु येसु के अनुयायियों को दो बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए – आत्मत्याग और प्रतिदिन अपना क्रूस उठाना। चालीसा काल में हम आत्मत्याग के कार्यों को बढ़ावा देते हैं। चालीसा-काल में हम कई भक्ति-कार्य सामुदायिक रीति से करते हैं और कई भक्ति-कार्य हम व्यक्तिगत रीति से या गुप्त रूप में करते हैं। प्रभु हमें रोज अपना क्रूस उठाने के लिए आह्वान करते हैं, दैनिक जीवन में आने वाली छोटी-मोटी यातनाओं को खुशी से झेलने की चुनौती देते हैं।

हम अपनी जीवन-शैली पर विचार करें। मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है? क्या मैं प्रभु येसु के शिष्य के रूप में जीवन बिताना चाहता हूँ? प्रभु किसी के साथ जबरदस्ती नहीं करते हैं। इसलिए वे कहते है, “जो मेरा अनुसरण करना चाहता है ... (मत्ती 16:24)” या "यदि कोई मेरे पास आता है ... “ (लूकस 14:26)। यह साफ है कि यह चुनौती सिर्फ उनके लिए है, जो येसु का शिष्य बनना चाहते हैं। क्या मैं इस चुनौती को स्वीकार करना चाहता हूँ?

✍ - फ़ादर फ़्रांसिस स्करिया


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Praise the Lord!