ईशवचन विषयानुसार

घमण्ड (अहंकार)


प्रवक्ता ग्रन्थ 3:19-21”पुत्र! नम्रता से अपना व्यवसाय करो और लोग तुम्हें दानशील व्यक्ति से भी अधिक प्यार करेंगे। तुम जितने अधिक बड़े हो, उतने ही अधिक नम्र बनों इस प्रकार तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओगे। बहुत लोग घमण्डी और गर्वीले हैं, किन्तु ईश्वर दीनों पर अपने रहस्य प्रकट करता है। प्रभु का सामर्थ्य अत्यधिक महान् है, किन्तु वह विनम्र लोगों की श्रद्धांजलि स्वीकार करता है।“

प्रवक्ता ग्रन्थ 10:14-15 “मनुष्य का घमण्ड इस से प्रारम्भ होता है कि वह ईश्वर का परित्याग करता और अपने सृष्टिकर्ता से विमुख हो जाता है; क्योंकि हर पाप घमण्ड से प्रारम्भ होता है। जो पाप करता है, वह अभिशप्त है।

प्रवक्ता ग्रन्थ 3:30 “ अहंकारी के रोग को कोई इलाज नहीं है, क्योंकि बुराई ने उस में जड़ पकड़ ली है।“

सूक्ति ग्रन्थ 16:18-19 “घमण्ड विनाष की ओर ले जाता है और अहंकार पतन की ओर। (19) घमण्डियों के साथ लूट बाँटने की अपेक्षा विनम्रों के साथ दरिद्रों की संगति अच्छी है।

1 कुरिन्थियों 4:7 “ कौन आप को दूसरों की अपेक्षा अधिक महत्व देता है? आपके पास क्या है? और यदि आप को सब कुछ दान में मिला है, तो इस पर गर्व क्यों करते हैं, मानो यह आप को न दिया गया हो?”

लूकस 18:9-14 “कुछ लोग बड़े आत्मविश्वास के साथ अपने को धर्मी मानते और दूसरों को तुच्छ समझते थे। ईसा ने ऐसे लोगों के लिए यह दृष्टान्त सुनाया, (10) ''दो मनुष्य प्रार्थना करने मन्दिर गये, एक फ़रीसी और दूसरा नाकेदार। (11) फ़रीसी तन कर खड़ा हो गया और मन-ही-मन इस प्रकार प्रार्थना करता रहा, 'ईश्वर! मंं तुझे धन्यवाद देता हूँ कि मैं दूसरे लोगों की तरह लोभी, अन्यायी, व्यभिचारी नहीं हूँ और न इस नाकेदार की तरह ही। (12) मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ और अपनी सारी आय का दशमांश चुका देता हूँ।' (13) नाकेदार कुछ दूरी पर खड़ा रहा। उसे स्वर्ग की ओर आँख उठाने तक का साहस नहीं हो रहा था। वह अपनी छाती पीट-पीट कर यह कह रहा था, ÷ईश्वर! मुझ पापी पर दया कर'। (14) मैं तुम से कहता हूँ-वह नहीं, बल्कि यही पापमुक्त हो कर अपने घर गया। क्योंकि जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा; परन्तु जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।''

प्रेरित-चरित 12:21-23 “निश्चित किये हुए दिन, हेरोद राजसी वस्त्र पहने सिंहासन पर बैठा और लोगों को संबोधित करता रहा। (22) जनता चिल्ला उठी, ''वह मनुष्य ही नहीं, किसी देवता की वाणी हैं!'' (23) उसी क्षण र्ईश्वर के दूत ने उसे मारा, क्योंकि उसने ईश्वर की महिमा अपनानी चाही। उसके शरीर में कीड़े पड़ गये और वह मर गया।“

पेत्रुस 5:5 “ आप सब-के-सब नम्रतापूर्वक एक दूसरे की सेवा करें; क्योंकि ईश्वर घमण्डियों का विरोध करता, किन्तु विनम्र लोगों पर दया करता है।“


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