ईशवचन विषयानुसार

लालच / Greed


2 राजाओं 5:14-17 “इसलिए जैसा कि एलीशा ने उस से कहा था, उसने जा कर यर्दन नदी में सात बार डुबकी लगायी और उसका शरीर फिर छोटे बालक के शरीर-जैसा स्वच्छ हो गया। (15) वह अपने सब परिजनों के साथ एलीशा के यहाँ लौटा। वह भीतर जा कर उसके सामने खड़ा हो गया और बोला, ‘‘अब मैं जान गया हूँ कि इस्राएल को छोड़ कर और कहीं पृथ्वी पर कोई देवता नहीं है। अब मेरा निवेदन है कि आप अपने सेवक से कोई उपहार स्वीकार करें।’’ (16) एलीशा ने उत्तर दिया, ‘‘उस प्रभु की शपथ, जिसकी मैं सेवा करता हूँ! मैं कुछ भी स्वीकार नहीं करूँगा’’। नामान के अनुरोध करने पर भी उसने स्वीकार नहीं किया। (17) तब नामान ने कहा, ‘‘जैसी आपकी इच्छा। आज्ञा दीजिए कि मुझे दो खच्चरों का बोझ मिट्टी मिल जाये, क्योंकि मैं अब से प्रभु को छोड़ कर किसी और देवता को होम अथवा बलि नहीं चढ़ाऊँगा। (18) प्रभु आपके इस दास को केवल इस बात के लिए क्षमा करेंगे: यदि मेरा स्वामी मेरे हाथ का सहारा लिये रिम्मोन के मन्दिर में साष्टांग प्रणाम करने जायेगा और मुझे भी रिम्मोन के मन्दिर में उसके साथ-साथ साष्टांग प्रणाम करना पड़ेगा, तब इस बात के लिए प्रभु आपके इस दास को क्षमा कर देगा।" (19) एलीशा ने उसे उत्तर दिया, ‘‘सकुशल चले जाइए।’’ वह उसके पास से कुछ ही दूर गया था (20) कि ईश्वर-भक्त एलीशा के सेवक गेहज़ी ने सोचा, ‘देखो, मेरे स्वामी ने इस अरामी नामान को यों ही जाने दिया। उस से कुछ भेंट भी नहीं ली। प्रभु की शपथ! मैं उसके पीछे दौड़ जाऊँगा और उस से कुछ न-कुछ ले लूँगा।’’ (21) गेहज़ी नामान के पीछे दौड़ता गया। नामान ने उसे अपने पीछे दौड़ता देखा और रथ से नीचे उतर कर उस से मिला और पूछा, ‘‘सब कुशल तो है?’’ (22) उसने उत्तर दिया, ‘‘हाँ, सब कुशल है। मेरे स्वामी ने आप को यह कहलवाया है कि अभी-अभी इफ्ऱईम के पहाड़ी प्रदेश से नबी के शिष्यों में दो युवक मेरे यहाँ आये हैं। उनके लिए एक मन चाँदी और दो जोड़े वस्त्र दे दीजिए।’’ (23) नामान ने उत्तर दिया, ‘कृपा कर दो मन ले जाओ’’। उसने उन्हें ग्रहण करने के लिए उसे विवश किया। तब उसने दो मन चाँदी और दो जोड़े वस्त्र दो थैलियों में बाँध कर उन्हें अपने दो सेवकों पर लदवा दिया। वे उन्हें गेहज़ी के आगे-आगे ले गये। (24) जब वे ओफ़ेल के पास पहुँचे, तो गेहज़ी ने उन्हें उनके हाथों से ले लिया और घर में रख दिया। उसने उन सेवकों से लौट जाने के लिए कहा और वे चले गये। (25) तब वह भीतर अपने स्वामी के पास गया। एलीशा ने उस से पूछा, ‘‘गेहज़ी, तुम कहाँ से आ रहे हो?’’ उसने उत्तर दिया, ‘‘आपका दास कहीं नहीं गया था’’। (26) पर उसने उस से कहा, ‘‘क्या मेरा आत्मा उस समय तुम्हारे साथ नहीं था, जब कोई अपने रथ से उतर कर तुम से मिलने आया? क्या वस्त्र, जैतून वृक्ष, दाखबारियाँ, भेड़-बकरियाँ, बैल-गायें, दास-दासियाँ मोल लेने के लिए चाँदी लेने का यही उपयुक्त अवसर था? (27) इसलिए नामान के कोढ़ की बीमारी सदा तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को लगी रहे।’’ इस पर वह बर्फ़ की तरह सफे़द कोढ़ी हो गया और उसके सामने से बाहर निकल गया।“

1 तिमथी 6:6-10 “भक्ति से अवश्य बड़ा लाभ होता है, किन्तु केवल उसी को, जो अपनी धन-सम्पत्ति से सन्तुष्ट रहता है। (7) हम न तो इस संसार में कुछ अपने साथ ले आये और न यहाँ से कुछ साथ ले जा सकते हैं। (8) यदि हमारे पास भोजन-वस्त्र हैं, तो हमें इस से सन्तुष्ट रहना चाहिए। (9) जो लोग धन बटोरना चाहते हैं, वे प्रलोभन और फन्दे में पड़ जाते हैं और ऐसी मूर्खतापूर्ण तथा हानिकर वासनाओं के शिकार बनते हैं, जो मनुष्यों को पतन और विनाश के गर्त में ढकेल देती हैं; (10) क्योंकि धन का लालच सभी बुराईयों की जड़ है। इसी लालच में पड़ कर कई लोग विश्वास के मार्ग से भटक गये और उन्होंने बहुत-सी यन्त्रणाएँ झेलीं।“

मत्ती 6:19-21 “पृथ्वी पर अपने लिए पूँजी जमा नहीं करो, जहाँ मोरचा लगता है, कीडे़ खाते हैं और चोर सेंध लगा कर चुराते हैं। (20) स्वर्ग में अपने लिए पूँजी जमा करो, जहाँ न तो मोरचा लगता है, न कीड़े खाते हैं और न चोर सेंध लगा कर चुराते हैं। (21) क्योंकि जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वही तुम्हारा हृद्य भी होगा।“

मत्ती 6:24 “कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन-दोनों की सेवा नहीं कर सकते।“

मत्ती 19:16-22 “एक व्यक्ति ईसा के पास आ कर बोला, ’’गुरुवर! अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मैं कौन-सा भला कार्य करूँ?’’ (17) ईसा ने उत्तर दिया, ’’भले के विषय में मुझ से क्यों पूछते हो? एक ही तो भला है। यदि तुम जीवन में प्रवेश करना चाहते हो, तो आज्ञाओं का पालन करो।’’ (18) उसने पूछा, ’’कौन-सी आज्ञाएं?’’ ईसा ने कहा, ’’हत्या मत करो; व्यभिचार मत करो; चोरी मत करो; झूठी गवाही मत दो; (19) अपने माता पिता का आदर करो; और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो’’। (20) नवयुवक ने उन से कहा, ’’मैने इन सब का पालन किया है। मुझ में किस बात की कमी है?’’ (21) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ’’यदि तुम पूर्ण होना चाहते हो, तो जाओ, अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर गरीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी, तब आकर मेरा अनुसरण करो।’’ (22) यह सुन कर वह नव-युवक बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।

प्रवक्ता 5:1 “अपनी धन-सम्पत्ति पर भरोसा मत रखो और यह मत कहो, ’’मुझे किसी बात की कमी नहीं’’।

प्रवक्ता 11:10-20 “पुत्र! बहुत बातों के फेर में मत पड़ो: ऐसा करने पर तुम निर्दोष नहीं रहोगे। जिसका पीछा करोगे, उसे नहीं पकड़ पाओगे और जिस से भाग जाओगे, उस से नहीं बचोगे। (11) कुछ लोग परिश्रम और संघर्ष करते हुए दौड़ते हैं, किन्तु तब भी पिछड़ जाते हैं। (12) कुछ लोग कमजोर और निस्सहाय, साधनहीन और दरिद्र हैं, किन्तु प्रभु की कृपादृष्टि उन्हें प्राप्त है और वह उन्हें उनकी दयनीय दशा से ऊपर उठाता है। (13) वह उनका सिर ऊँचा करता और इस पर बहुतों को आश्चर्य होता है। (14) दुःख और सुख, जीवन और मृत्यु गरीबी और अमीरी- यह सब कुछ प्रभु के हाथ है। (15) प्रज्ञा, अनुशासन, संहिता का ज्ञान, भा्रतृप्रेम और परोपकार का मार्ग यह सब प्रभु का वरदान है। (16) भ्रम और अन्धकार पापियों का भाग्य है। जो बुराई को प्यार करते है, वे उसे बुढ़ापे तक नहीं छोड़ते। (17) भक्तों को प्रभु के वरदान मिलते हैं; उसकी कृपादृष्टि उनका सदा पथप्रदर्शन करेगी। (18) कुछ लोग परिश्रम और मितव्यय से धनी बनते हैं, किन्तु अन्त में उनका यह भाग्य होगा: (19) वे कहेंगे, ‘‘मुझे शान्ति प्राप्त हो गयी है। अब मैं अपनी सम्पत्ति का उपभोग करूँगा‘‘; (20) जब कि वे नहीं जानते कि उनकी घड़ी कब आयेगी। वे मर जायेंगे और अपनी सम्पत्ति दूसरों के लिए छोड़ देंगे।“

प्रवक्ता 31:1-8 “धन के कारण अनिद्रा मनुष्य को छिजाती है। सम्पत्ति की चिन्ता मनुष्य को सोने नहीं देती। (2) जीविका की चिन्ता आँख लगने नहीं देती, जिस प्रकार भारी रोग निद्रा हर लेता है। (3) धनी सम्पत्ति एकत्र करने में परिश्रम करता और यदि विश्राम करता, तो भोग-विलास में डूब जाता है। (4) दरिद्र जीवन-निर्वाह के लिए परिश्रम करता और यदि विश्राम करता, तो तंगहाल हो जाता है। (5) जिसे सोने का मोह होता है, वह धार्मिक नहीं रह पाता और जो लाभ के पीछे पड़ता, वह पथभ्रष्ट हो जोयगा। (6) सोने के कारण अनेकों का पतन हो गया और उनका अचानक विनाश हुआ है। (7) जो सोने के लालची हैं, वह उनके लिए फन्दा बनता है; बहुत-से मूर्ख उस में फँस जाते हैं। (8) धन्य है वह धनवान्, जो निर्दोष रह गया और सोने के पीछे नहीं दौड़ा!”

यिरमियाह 17:11 ”जो अन्याय से धन बटोरता है, वह उस तीतरी के सदृश हैं, जो दूसरों के अण्डे सेती हैं। उसकी सम्पत्ति उसके जीवन के मध्यकाल में उसका साथ छोड़ देती हैं और अपनी मृत्यु के समय वह मूर्ख प्रमाणित होगा।“

प्रेरित-चरित 5:1-11 “अनानीयस नामक व्यक्ति ने अपनी पत्नी सफीरा के साथ परामर्श करने के बाद एक खेत बेच दिया। (2) उसने अपनी पत्नी के जानते उसकी कीमत का एक अंश अपने पास रखा और दूसरा अंश ला कर प्रेरितों के चरणों में रख दिया। (3) इस पर पेत्रुस ने कहा, ’’अनानीयस! शैतान ने क्यों तुम्हारे हृदय पर इस प्रकार अधिकार कर लिया है कि तुम पवित्र आत्मा से झूठ बोल कर खेत की कीमत का कुछ अंश दबा ले रहे हो? (4) बेचे जाने से पहले क्या वह खेत तुम्हारा अपना नहीं था? और इसके बाद भी क्या उसकी कीमत तुम्हारे अधिकार में नहीं थी? तुमने ऐसा काम करने का विचार अपने हृदय में क्यों पाला? तुम मनुष्यों से नहीं, बल्कि ईश्वर से झूठ बोले हो। (5) अनानीयस ये बातें सुन कर गिर पड़ा और उसके प्राण निकल गये। सब सुनने वालों पर बड़ा भय छा गया। (6) कुछ नवयुवकों ने उठ कर उसे कफन में लपेटा और बाहर ले जा कर दफना दिया। (7) लगभग तीन घण्टे बाद उसकी पत्नी भीतर आयी। वह इस घटना के बारे में कुछ नहीं जानती थी। (8) पेत्रुस ने उस से यह प्रश्न किया, ’’मुझे बताओ, क्या तुमने वह खेत इतने में ही बेचा था?’’ उसने उत्तर दिया, ’’जी हाँ, इतने में ही’’। (9) इस पर पेत्रुस ने उस से कहा, ’’तुम दोनों पवित्र आत्मा की परीक्षा लेने के लिए क्यों सहमत हुए? सुनो! जो लोग तुम्हारे पति को दफ़नाने गये थे, वे द्वार पर आ रहे हैं और अब तुम को भी ले जायेंगे।’’ (10) वह उसी क्षण उसके चरणों पर गिर गयी और उसके प्राण निकल गये। नवयुवकों ने भीतर आ कर उसे मरा हुआ पाया और उसे ले जा कर उसके पति की बगल में दफ़ना दिया। (11) सारी कलीसिया पर और जितने लोगों ने इन बातों की चर्चा सुनी, उन सबों पर बड़ा भय छा गया।“

लूकस 12:15-21 “तब ईसा ने लोगों से कहा, ’’सावधान रहो और हर प्रकार के लोभ से बचे रहो; क्योंकि किसी के पास कितनी ही सम्पत्ति क्यों न हो, उस सम्पत्ति से उसके जीवन की रक्षा नहीं होती’’।“ (16) फिर ईसा ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया, ’’किसी धनवान् की ज़मीन में बहुत फ़सल हुई थी। (17) वह अपने मन में इस प्रकार विचार करता रहा, ’मैं क्या करूँ? मेरे यहाँ जगह नहीं रही, जहाँ अपनी फ़सल रख दूँ। (18) तब उसने कहा, ’मैं यह करूँगा। अपने भण्डार तोड़ कर उन से और बड़े भण्डार बनवाऊँगा, उन में अपनी सारी उपज और अपना माल इकट्ठा करूँगा (19) और अपनी आत्मा से कहूँगा-भाई! तुम्हारे पास बरसों के लिए बहुत-सा माल इकट्ठा है, इसलिए विश्राम करो, खाओ-पिओ और मौज उड़ाओ।’ (20) परन्तु ईश्वर ने उस से कहा, ’मूर्ख! इसी रात तेरे प्राण तुझ से ले लिये जायेंगे और तूने जो इकट्ठा किया है, वह अब किसका ह़ोगा?’ (21) यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं है।’’

लूकस 12:33-34 ’’अपनी सम्पत्ति बेच दो और दान कर दो। अपने लिए ऐसी थैलियाँ तैयार करो, जो कभी छीजती नहीं। स्वर्ग में एक अक्षय पूँजी जमा करो। वहाँ न तो चोर पहुँचता है और न कीड़े खाते हैं; (34) क्योंकि जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वहीं तुम्हारा हृदय भी होगा।“


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