📖 - लेवी ग्रन्थ

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अध्याय 26

1) ''तुम अपने लिए देवमूर्तियाँ न बनाओ, न मूतियाँ और न स्तम्भ। तुम पूजा करने के लिए अपने देश में उत्कीर्ण पत्थर नहीं स्थापित करोगे।

2) तुम मेरे विश्राम दिवस मनाओगे और मेरे पवित्र स्थान का सम्मान करोगे। मैं प्रभु हूँ।

3) यदि तुम मेरी विधियों के अनुसार आचरण करोगे और मेरे आदेशों का पालन करोगे।

4) तो मैं समय पर तुम को वर्षा प्रदान करूँगा, जिससे भूमि फसल और मैदान के पेड़ फल उत्पन्न करें।

5) तुम्हारे यहाँ अंगूर तोड़ने के समय तक दँवरी होती रहेगी और तुम बोने के समय तक अंगूर तोड़ते रहोगे। तुम भरपेट रोटी खा कर तृप्त रहोगे और देश में सुरक्षित जीवन बिताओगे।

6) मैं देश भर में शान्ति बनाये रखूँगा, जिससे तुम निर्भय हो कर सुख की नींद सो सको। मैं तुम्हारे देश में हिंसक जानवरों को निकालूँगा और युद्व की तलवार उसका विनाश नहीं करेगी।

7) तुम अपने शत्रुओं को भगा दोगे और उन्हें तलवार के घाट उतारोगे।

8) तुम्हारे पाँच उनके सौ को और तुम्हारे सौ उनके दस हजार को भगा देंगे। तुम अपने शत्रुओं को तलवार के घाट उतारोगे।

9) मेरी कृपादृष्टि तुम पर बनी रहेगी। मैं तुम को सन्तान प्रदान करूँगा और तुम्हारी संख्या बढ़ाऊँगा और तुम्हारे लिए निर्धारित विधान बनाये रखूँगा।

10) तुम पिछली फसल खाते रहोगे और नयी फसल रखने के लिए तुम को उसे निकालना पड़ेगा।

11) मैं तुम्हारे बीच निवास करूँगा और तुम से विमुख नहीं हो जाऊँगा।

12) मैं तुम्हारे बीच चलूँगा, मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा और तुम मेरी प्रजा होगे।

13) मैं प्रभु तुम्हारा वही ईश्वर हूँ, जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाया है, जिससे तुम मिस्रियों के दास नहीं बने रहो। मैंने तुम्हारी दासता के बन्धन तोड़े हैं, जिससे तुम अपना सिर ऊँचा रख सको।

14) परन्तु यदि तुम मेरी नहीं सुनोगे और मेरे सब आदेशों का पालन नहीं करोगे,

15) मेरे निर्णयों को अस्वीकार करोगे, मेरी विधियों से घृणा करोगे, मेरे सब आदेशों के अनुसार आचरण नहीं करोगे और इस प्रकार मेरा विधान भंग करोगे,

16) तो मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करूँगा : तुम्हारे ऊपर घोर विपत्तियाँ ढाहूँगा। क्षयरोग और तीव्र ज्वर तुम्हारी आँखों की ज्योति धुँधली और तुम्हारी जीवन-शक्ति क्षीण कर देंगे। तुम्हारे बीज बोना व्यर्थ जायेगा, क्योंकि तुम्हारे शत्रु तुम्हारी फ़सल खा जायेंगे।

17) मैं तुम पर अप्रसन्न हो जाऊँगा, जिससे तुम्हारे शत्रु तुम्हें पराजित करेंगे। तुम्हारे बैरी तुम पर शासन करेंगे। तुम उस समय भी भागोगे, जब कोई तुम्हारा पीछा नहीं करेगा।

18) यदि तुम इस पर भी मेरी नहीं सुनोगे, तो मैं तुम्हारे पापों के कारण तुम्हें सात बार दण्ड दूँगा।

19) मैं तुम्हारा घमण्ड और बल तोड़ दूँगा। मैं तुम्हारे ऊपर का आकाश लोहे-जैसा और तुम्हारे देश की भूमि काँसे-जैसी बना दूँगा।

20) तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ जायेगा, क्योंकि भूमि तुम को अनाज नहीं देगी और देश के वृक्ष फल नहीं देंगे।

21) यदि इस पर भी तुम मेरी नहीं सुनोगे और मेरे विरुद्ध आचरण करते रहोगे, तो मैं तुम्हारे पापों के कारण तुम्हारी विपत्तियों को सतगुना बढ़ाऊँगा।

22) मैं तुम्हारे पास हिंसक जानवर भेजूँगा, जो तुम्हारे बाल-बच्चों को छीन लेंगे, तुम्हारे पशुओं को फाड़ेंगे और तुम्हारी जनसंख्या इतनी कम करेंगे कि तुम्हारी सड़कें सूनी हो जायेंगी।

23) यदि इस पर भी तुम शिक्षा नहीं ग्रहण करोगे और मेरा विरोध करते रहोगे,

24) तो मैं तुम्हारा विरोध करूँगा और तुम्हारे पापों के लिए सतगुना दण्ड दूँगा।

25) मैं विधानभंग के कारण तुम्हारे पास तलवार भेजूँगा। यदि तुम नगरों में शरण लोगे, तो मैं वहाँ तुम्हारे बीच महामारी भेजूँगा और तुम अपने शत्रुओं के हवाले कर दिये जाओगे।

26) मैं तुम्हारी रोटी इतनी कम कर दूँगा कि दस-दस स्त्रियाँ एक ही चूल्हें पर रोटियाँ बनायेंगी और तुम्हें तौल-तौल कर रोटियाँ देंगी, जिन्हें खा कर भी तुम तृप्त नहीं होगे।

27) यदि इस पर भी तुम मेरी बात नहीं मानोगे और मेरा विरोध करते जाओगे,

28) तो मैं कुद्ध हो कर तुम्हारा विरोध करूँगा और तुम को तुम्हारे पापों के लिए सतगुना दण्ड दूँगा।

29) तब तुम अपने पुत्रों और अपनी पुत्रियों का मांस खाओगे।

30) मैं तुम्हारे पहाड़ी पूजा-स्थानों का विनाश करूँगा, तुम्हारी धूप-वेदियाँ तोड़ दूँगा और तुम्हारी ध्वस्त देवमूर्तियों पर तुम्हारे शवों के ढेर लगाऊँगा। मैं तुम से घृणा करूँगा।

31) मैं तुम्हारे चढ़ावों की सुगन्ध अस्वीकार करूँगा।

32) मैं देश को इस प्रकार उजाड़ बना दूँगा कि तुम्हारे शत्रु, जो वहाँ बसने आयेंगे, विस्मित हो जायेंगे।

33) मैं तुम्हें राष्ट्रों में बिखेर दूँगा और तुम्हारे विरुद्ध तलवार खींचूँगा। तुम्हारा देश उजाड़ और तुम्हारे नगर खँड़हर हो जायेंगे।

34) ''जब तक देश उजाड़ पड़ा रहेगा और तुम अपने शत्रुओं के यहाँ निवास करोगे, तब तक देश अपने विश्राम-वर्ष मनायेगा। तब देश विश्राम करेगा और अपने विश्राम-वर्ष मनायेगा।

35) जितने समय तक देश उजाड़ पड़ा रहेगा, वह विश्राम करेगा और इस प्रकार उन विश्राम-दिवसों की कसर पूरी करेगा, जब उसे तुम्हारे रहते समय विश्राम नहीं मिला था।

36) तुम लोगों में जो बच गये होंगे, मैं उन्हें उनके शत्रुओं के देश में इतना भयभीत कर दूँगा कि वे पवन द्वारा छितराये पत्तों की खड़खड़ाहट सुन कर भाग खड़े होंगे, मानो कोई तलवार लिये उनका पीछा कर रहा हो। वे मुँह के बल गिरेंगे, यद्यपि कोई उनका पीछा नहीं करता होगा।

37) वे एक दूसरे पर गिरते-पड़ते भागेंगे, मानो वे तलवार से भाग रहे हों, यद्यपि कोई उनका पीछा नहीं करता। तुम अपने शत्रुओं का सामना नहीं कर पाओगे।

38) तुम राष्ट्रों में नष्ट हो जाओंगे। तुम्हारे शत्रुओं का देश तुमको खा जायेगा।

39) तुम में जो शेष रहेंगे, वे अपने और अपने पूर्वजों के पापों के कारण अपने शत्रुओं के देश में क्षीण होते जायेंगे।

40) तब वे स्वीकार करेंगे कि उन्होंने और उनके पूर्वजों ने पाप किया, मेरे साथ विश्वासघात और बैर किया,

41) जिससे मैंने भी उन से बैर किया और उन्हें उनके शत्रुओं के देश में निर्वासित किया। जब उनका पापी हृदय इस प्रकार विनम्र हो जायेगा और वे अपने अपराधों के लिए प्रायश्चित करेंगे,

42) तो मैं याकूब, इसहाक और इब्राहीम के लिए निर्धारित अपने विधान का और देश का स्मरण करूँगा।

43) परन्तु इस से पहले उनका देश से निर्वासित किया जाना आवश्यक है, जिससे देश उनकी अनुपस्थिति में अपने विश्राम-दिवस मनाये और वे अपने पापों के लिए प्रायश्चित करें; क्योंकि उन्होंने मेरे आदेशों का तिरस्कार किया और मेरी विधियों को अस्वीकार किया।

44) लेकिन जब वे अपने शत्रुओं के देश में रहेंगे, तब भी मैं उनका इस तरह परित्याग नहीं करूँगा और उन से इतनी घृणा नहीं करूँगा कि मैं उनका सर्वनाश होने दूँ और उनके लिए निर्धारित विधान भंग करूँ। मैं प्रभु तुम्हारा ईश्वर हूँ।

45) मैं उनके पूर्वजों को राष्ट्रों के देखते-देखते मिस्र से निकाल लाया। मैं उनके लिए निर्धारित विधान का स्मरण करूँगा और मैं, प्रभु उनका अपना ईश्वर होऊँगा।

46) यही वे आदेश, विधियाँ नियम हैं, जिनके द्वारा प्रभु ने, मूसा के माध्यम से सीनई पर्वत पर इस्राएलियों के साथ अपना सम्बन्ध निर्धारित किया।



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