📖 - गणना ग्रन्थ

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अध्याय 30

1) इसके बाद मूसा ने इस्राएलियों को ये आदेश सुनाये, जिन्हें प्रभु ने उसे दिया था।

2) मूसा ने इस्राएलियों के वंशजों के मुखियाओं से कहा,

3) प्रभु ने मुझे यह आदेश दिया है। यदि कोई प्रभु के लिए मन्नत या शपथ खा कर कोई दायित्व स्वीकार करता है, तो वह अपना वचन भंग न करे, बल्कि अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उसका ठीक-ठीक पालन करे।

4) यदि कोई कन्या, कुमारी अवस्था में अपने पिता के घर में रहती हुई, प्रभु के लिए मन्नत करती या कोई दायित्व स्वीकार करती है,

5) और उसका पिता यह जान जाता और चुप रहता है, तो उसे अपनी मन्नत या स्वीकृत दायित्व का पालन करना होगा।

6) किन्तु यदि पता लगने पर उसका पिता उसी दिन उस पर आपत्ति करता है, तो उसकी मन्नतें और उसके द्वारा स्वीकृत दायित्व अमान्य होगा। प्रभु उसे क्षमा कर देगा, क्योंकि उसके पिता ने आपत्ति की है।

7) यदि वह मन्नत करने या बिना सोचे विचारे कोई दायित्व स्वीकार करने के बाद विवाह करती है

8) और पति यह जान जाता और चुप रहता है, तो उसे अपनी मन्नत या स्वीकृत दायित्व का पालन करना होगा।

9) किन्तु यदि पता लगने पर पति उस पर आपत्ति करता है, तो वह उसकी मन्नत या बिना सोचे विचारे स्वीकृत दायित्व रद्द करता है। प्रभु उसे मुक्त करेगा।

10) यदि कोई विधवा या परित्यक्ता मन्नत करती है या कोई दायित्व स्वीकार करती है, तो उसे अपनी मन्नत या दायित्व का पालन करना होगा।

11) यदि कोई स्त्री अपने पति के घर में मन्नत करती या शपथ खा कर कोई दायित्व स्वीकार करती है

12) और पता लगने पर उसका पति कुछ नहीं कहता, तो उसे अपनी मन्नत या स्वीकृत दायित्व का पालन करना होगा।

13) किन्तु यदि पता लगने पर उसका पति उसी दिन उसे रद्द करता है, तो उसकी मन्नतें और उसके द्वारा स्वीकृत दायित्व अमान्य होगा। प्रभु उसे मुक्त करेगा।

14) उसका पति उसकी कोई भी मन्नत या स्वीकृत दायित्व मान्य या अमान्य कर सकता है।

15) यदि पति दूसरे दिन कुछ नहीं कहता, तो उसने सब मन्नतें और स्वीकृत दायित्व मान लिये। उसने उन्हें इसलिए मान लिया कि पता लगने पर उसने कुछ नहीं किया।

16) यदि वह बाद में उन्हें रद्द करता है, तो वह अपनी पत्नी के अपराध का दोषी है।

17) पुरुष और उसकी पत्नी तथा पिता और पिता के घर में रहने वाली अविवाहिता कन्या के विषय में यही नियम है, जिन्हें प्रभु ने मूसा को दिया था।



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