📖 - यूदीत का ग्रन्थ

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अध्याय 11

1) होलोफ़ेरनिस ने उस से कहा, "भद्रे! धीरज धरो; तुम्हारा हृदय भयभीत न हो। मैंने कभी किसी भी ऐसे मनुष्य का बुरा नहीं किया है, जो सारी पृथ्वी के राजाधिराज नबूकदनेज़र की सेवा करने को तैयार हो।

2) यदि पहाड़ी प्रदेश में रहने वाली तुम्हारी जाति ने मेरा अपमान न किया होता, तो मैं उसके विरुद्ध अपना भाला न उठाता। इसका दायित्व उसी पर है।

3) अब तुम मुझे बताओ कि तुम उसके यहाँ से भाग कर हमारी शरण में क्यों आयी हो। तुम अपने प्राणों की रक्षा के लिए आयी होगी। ढारस रखो। तुम इस रात जीवित रहोगी और बाद में भी।

4) कोई भी तुम्हारी हानि नहीं करेगा। तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार किया जायेगा, जैसा मेरे स्वामी राजा नबूदकनेज़र के दासों के साथ किया जाता है।"

5) यूदीत ने उस से कहा, "अपनी दासी का कहना मानिए और यदि आपकी दासी को कुछ कहने की आज्ञा मिले, तो मैं इस रात श्रीमान् से कुछ झूठ नहीं कहूँगी।

6) यदि आप अपनी इस दासी की बात मानेंगे, तो ईश्वर आपके द्वारा अपनी योजना पूरी करेगा। स्वामी को जीवन भर अपने सब कामों में सफलता मिलेगी।

7) सारी पृथ्वी के राजा नबूकदनेज़र की जय, जिन्होंने आप को प्रत्येक प्राणी का कल्याण करने भेजा है, उनकी शक्ति की जय! क्योंकि आपके कारण न केवल मनुष्य, बल्कि जंगल के जानवर, घरेलू पशु और आकाश के पक्षी नबूकदनेज़र की सेवा करेंगे और वे आपके सामर्थ्य के प्रभाव से नबूकदनेज़र और उनके वंश की छत्रछाया में निवास करेंगे।

8) "हमने आपकी बुद्धि और व्यवहार-कुशलता के विषय में सुना है और सारी पृथ्वी पर यह चरचा हो रही है कि समस्त साम्राज्य में आप ही योग्य, ज्ञानी, शक्तिशाली और युद्धकला में निपुण हैं।

9) हम आपकी सभा में अहीओर के भाषण के शब्द सुन चुके है; क्योंकि बेतुलिया के लोगों ने उसे शरण दी है और उसने उन्हें वह सब बताया, जो उसने आपके सामने कहा था।

10) इसलिए स्वामी और प्रभु! आप उसके शब्दों की उपेक्षा नहीं करें; उन पर अवश्य ध्यान दें। वे सच हैं; क्योंकि हमारी जाति को तब तक न तो दण्डित किया जाता और न उसके विरुद्ध तलवार उठायी जाती, जब तक वह ईश्वर के विरुद्ध पाप न करे।

11) किन्तु अब मेरे स्वामी निष्फल और पराजित नहीं होंगे। मेरी जाति मृत्यु का शिकार होगी और एक महापाप के ेजाल में फँसेगी, जिसके द्वारा वह अपने प्रभु का क्रोध भड़कायेगी। ज्यों ही वह पाप करेगी, वह आपके द्वारा नष्ट हो जायेगी।

12) जब उसके यहाँ खाद्य का अभाव हुआ और पानी की कमी हो गयी, तो उसने ऐसे पशुओं को मारने और ऐसी चीजें खाने का निश्चय किया, जिन्हें ईश्वर ने अपनी संहिता में यहूदियों को खाने से मना किया है।

13) उन्होंने अनाज, अंगूरी और तेल का दशमांश, जो येरूसालेम में हमारे ईश्वर की सेवा करने वाले याजकों के लिए संचित किया गया है, खाने का निश्चय किया है, जबकि लोगों में किसी को भी उसे हाथ से स्पर्श तक करने का अधिकार नहीं है।

14) अब उन्होंने दूतों द्वारा येरूसालेम के नेताओं की समिति से वह सब खाने की अनुमति माँगी है; क्योंकि वहाँ के निवासियों ने भी वही किया है।

15) जिस दिन उसे अनुमति मिलेगी और वह उसका उपयोग करेगी, उसी दिन वह विनाश के लिए आपके हाथ दी जायेगी।

16) "यह सब जान कर कर मैं, आपकी यह दासी, उनके यहाँ से भाग निकली हूँ। ईश्वर ने मुझे इसलिए यहाँ भेजा है कि मैं आपके साथ ऐसे-ऐसे कार्य करूँ कि उन्हें सुन कर पृथ्वी के सब लोग दांँतों तले अंगुली दबायें।

17) आपकी दासी ईश्वर-भक्त है और दिन-रात स्वर्ग के ईश्वर की सेवा करती है। श्रीमान्! मैं अब आपके यहाँ रहना चाहती हूँ। आपकी यह दासी अब रात को घाटी जायेगी और वहाँ ईश्वर से प्रार्थना करेगी। वह मुझे वह समय बता देगा, जब उनके पाप का घडा़ भर जायेगा।

18) तब मैं आपके पास आ कर आप को सूचित करूँगी। इसके बाद आप सारी सेना ले कर निकलेंगे। उन में कोई भी आपका सामना नहीं कर पायेगा।

19) मैं स्वयं आप को यहूदिया प्रदेश से हो कर येरूसालेम ले चलूँगी। मैं आपका सिंहासन उसके बीचोबीच स्थापित करूँगी और आप उन्हें उन भेड़ों की तरह हाँकते जायेंगे, जिसका कोई चरवाह नहीं। आप पर कोई कुत्ता भी नहीं भोंकेगा। यह बात मुझ पर पहले से ही प्रकट की गयी और मैं इसलिए भेजी गयी कि आप को सूचित करूँ।"

20) होलोफ़ेरनिस और उसके सभी सेवकों को ये बातें पसन्द आयीं। उन्होंने उसकी बुद्धि पर चकित हो कर कहा,

21) "पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने तक कोई भी स्त्री इसके समान सुन्दर और अच्छी तरह बोलने वाली नहीं है।"

22) होलोफे़रनिस ने उस से कहा, "ईश्वर ने यह तो अच्छा किया कि उसने तुम्हारी जाति से तुम्हें निकाल कर यहाँ पहले ही भेज दिया, जिससे हमारी भुजाओं में बल आ जाये और मेरे स्वामी की निन्दा करने वालों का विनाश हो।

23) तुम सुन्दर हो और सुभाशिणी भी। जैसा तुमने कहा है, यदि तुम वैसा करोगी, तो तुम्हारा ईश्वर मेरा ईश्वर होगा। तुम राजा नबूकदनेज़र के महल में रहोगी और तुम्हारी कीर्ति पृथ्वी में फैलेगी।"



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