📖 - शोक गीत (Lamentations)

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अध्याय 04

1) कैसे सोना मलिन हो गया, कैसे शुद्ध सोना परिवर्तित हो गया! पवित्र पत्थर हर रास्ते के नुक्कड़ पर बिखरे पड़े हैं।

2) सियोन के लाड़ले, जिनका वजन शुद्ध सोने के बराबर था, कैसे कुम्हार द्वारा बनाये मिट्टी के बरतनों-जैसे समझे जा रहे हैं!

3) सियारिनें भी अपनी छाती खोलकर अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं, लेकिन हमारे देश की पुत्री मरुभूमि की शुतुरमुर्गियों-जैसी निर्दय हो गयी हैं।

4) दुधमुँहे बच्चे की जीभ प्यास के कारण उसके तालू में चिपक जाती है। बच्चे रोटी माँगते हैं, लेकिन उन्हें कोई कुछ नहीं देता।

5) जो लोग कभी स्वादिष्ट भोजन करते थे, वे अब सडकों पर मर रहे हैं। जिनका पालन बैंगनी वस्त्रों में होता था, वे अब घूरे पर पडे हैं।

6) हमारे देश की पुत्री का दण्ड सोदोम के दण्ड से भी भारी था, जो किसी के हाथ लगाये बिना ही क्षण भर में नष्ट कर दिया गया था।

7) उसके युवक हिम से भी अधिक उज्जवल, दुग्ध से भी अधिक श्वेत थे। उनके शरीर मूँगे से भी अधिक लाल थे, उनका रूप नीलम-जैसा सुन्दर था।

8) अब उनका मुख कालिख से भी अधिक काला हो गया है, वे अब सड़कों पर पहचान में नहीं आते। उनकी चमड़ी उनकी हड्डियों से चिपक गयी है, वह लकड़ी की तरह सूख गयी है।

9) तलवार से मरने वाले भूख से मरने वालों से कहीं अच्छे थे, जो खेत की उपज के अभाव में छीजते-घुलते गये।

10) करुणामयी नारियों ने अपने ही हाथ से अपने बच्चों को उबाला। हमारे देश की पुत्री के विनाश के समय वे उनका आहार बन गये।

11) प्रभु ने अपना कोप अच्छी तरह उतारा; उसने अपना जलता हुआ क्रोध बरसाया और उसने सियोन में ऐसी आग लगायी, जिसने उसकी नींव जला डाली।

12) पृथ्वी के राजाओं को यह विश्वास नहीं था, न ही संसार के किसी निवासी को कि अत्याचारी और बैरी येरूसालेम के फाटकों में प्रवेश कर पायेंगें।

13) यह उसके नबियों के पापों और उसके याजकों के अपराधों के कारण हुआ, जिन्होंने उसके बीच धर्मियों का रक्त बहाया!

14) वे रक्त से अपवित्र हो कर सड़कों पर अन्धों की तरह भटकते थे और कोई व्यक्ति उनके वस्त्र तक नहीं छूता था

15) लोग चिल्ला कर उन से कहते थे, “दूर हो, अशुद्ध! हटो-हटो, मत छुओ!’ जब वे भगोड़े और घुमन्तू बन गये, तो राष्ट्रों के लोग कहते थे, “वे हमारे यहाँ कभी नहीं रह सकते।“

16) स्वयं प्रभु ने उन्हें छितरा दिया है। अब वह उनकी चिन्ता कभी नहीं करेगा। न तो याजकों के प्रति कोई सम्मान दिखाया गया और न वृद्धजनों पर कोई दया की गयी।

17) व्यर्थ ही सहायता की राह देखते-देखते हमारी आँखें धुँधला गयी, हम एक ऐसे राष्ट्र की प्रतीक्षा करते रहे, जो हमारी रक्षा नहीं कर सका।

18) लोग हमारे कदमों का पीछा करते थे, जिससे हम अपने चैकों पर भी नहीं चल सकते थे। हमारा अन्त समीप आ गया, हमारे दिन पूरे हो गये; क्योंकि हमारा अन्त आ गया था।

19) हमारा पीछा करने वाले आकाश के गरुड़ों से भी तेज थे। वे पर्वतों पर हमारा पीछा करते थे; वे मरुभूमि में हमारे घात में रहते थे।

20) हमारी प्राणवायु- प्रभु की अभ्यंजित उनके फन्दे में पड़ गयी थी- वह, जिसके विषय में हमने कहा था, “हम उसकी छाया में राष्ट्रों के बीच जीवित रहेंगे।“

21) आनन्द मनाओ और प्रसन्न हो, एदोम की पुत्री! ऊस देश-निवासिनी! वह प्याला तुम्हारी ओर भी बढ़ाया जायेगा! मतवाली हो कर तुम अपने वस्त्र उतार दोगी।

22) सियोन की पुत्री! तुम्हारी दुष्टता का दण्ड पूरा हो गया है, वह तुम्हें अब और निर्वासन में नही रखेगा। किन्तु एदोम की पुत्री! तुम्हारी दुष्टता के लिए वह तुम्हें दण्ड देगा, वह तुम्हारे पाप प्रकट करेगा।



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