📖 - आमोस का ग्रन्थ (Amos)

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 05

1) इस्राएल के घराने! मैं तुम्हारे विषय में यह शोकगीत सुना रहा हूँः

2) "कन्या इस्राएल गिर गयी है- अब वह उठ नहीं पायेगी। त्याग दी गयी कन्या अपनी ही भूमि पर पड़ी हुई हैं कोई उसे उठाने वाला भी नहीं है।"

3) यह प्रभु-ईश्वर की वाणी हैः "इस्राएल के घराने! यदि कोई नगर एक हजार सैनिक भेजेगा, तो उन में से एक सौ बच कर लौटेंगे; और यदि कोई एक सौ भेजेगा, तो उन में से दस बच कर लौटेंगे।

4) प्रभु-ईश्वर इस्राएल के घराने से यह कहता हैः "मुझ को ढूँढो और तुम जीवित रहोगे।

5) बेतेल की शरण मत जाना, गिलगान के पास न जाना, न बएर-शेबा जाने के लिए सीमा पार करना; गिलगाल तो अवश्य ही सुनसान हो जायेगा और बेतेल मिट्टी में मिल जायेगा।"

6) अतः जीवित रहने के लिए प्रभु-ईश्वर को ही ढूँढो। ऐसा न हो कि यह यूसुफ़ के घराने पर ऐसी आग की तरह लपक आये, जो उसे भस्म कर डालेगी और जिसे बेतेल में कोई नहीं बुझा सकेगा।

7) जिसने कृतिका और मृगशीर्ष बनाया, जो रात को उषा में बदल देता है, जो दिन से अंधेरी रात कर देता है, जो समुद्र के जल को आज्ञा दे कर पृथ्वी-तल पर बरसाता है, उसका नाम प्रभु-ईश्वर है।

8) वह शक्तिशालियों की शक्ति मिटा सकता है और गढ़ों का विध्वंस कर सकता है।

9) तुम, न्याय को चिरायते-सा कडवा बनाने वालो और धर्म को मिट्टी में मिलाने वालो!

10) तुम उस से घृणा करते हो, जो कचहरी में सच्चा न्याय करता है और सत्य बोलने वालों का तिरस्कार करते हो।

11) अच्छा तो, तुमने दरिद्रों का शोषण किया है और तुम ज़बरदस्ती से अनाज की वसूली करते हो, जो महल तुमने कटे-छँटे पत्थरों से बनाये हैं, तुम उन में नहीं रह पाओगे; और जो मनोहर दाखबारियाँ तुमने लगायी है, तुम उनकी अंगूरी नहीं पी पाओगे।

12) मैं तो जानता हूँ कि तुम्हारे अपराध बहुत हैं और तुम्हारे पाप भारीः तुम लोग धर्मियों को तंग करते हो; तुम घूस ले कर न्यायालय के द्वारा से ज़रूरतमन्दों को भगा देते हो।

13) ऐसे समय में, इतने बुरे दिनों को देख कर, समझदार व्यक्ति चुप ही रहता है।

14) बुराई की नहीं, बल्कि भलाई की खोज में लगे रहो। इस प्रकार तुम्हें जीवन प्राप्त होगा और विश्वमण्डल का प्रभु-ईश्वर तुम्हारे साथ होगा, जैसा कि तुम उसके विषय में कहते हो।

15) बुराई से बैर करो, भलाई से प्रेम रखो और अदालत में न्याय बनाये रखो। तब हो सकता है कि विश्वमण्डल के प्रभु-ईश्वर यूसुफ़ के बचे हुए लोगों पर दया करे।

16) अतः प्रभु, विश्वमण्डल का ईश्वर यह कहता हैः "सभी चैकों में विलाप होगा। और गली-गली में हाय-हाय मच जायेगी।

17) वे विलाप करने के लिए किसानों को बुलायेंगे और शोकगीत गाने के लिए गायकों को भी। सभी दाखबारियों में रोना होगा, क्योंकि मैं तुम्हारे बीच गुजरने वाला हूँ।" यह प्रभु की वाणी है।

18) उनकी आशाओं पर पानी फिरेगा, जो प्रभु के दिन के लिए तरसते हैं; तुम को प्रभु के दिन से कोई लाभ नहीं होगा। उस दिन प्रकाश नहीं, वरन् अन्धकार होगा। वह बुरा दिन होगा,

19) जैसे सिंह से कोई भाग कर भालू के सामने आता है; या घर पहुँच कर दीवार की टेक ले ले, तो उसे साँप डस दे।

20) प्रभु का दिन सचमुच अन्धकारमय होगा, प्रकाशमय नहीं; तिमिर में ज्योति की कोई किरण नहीं।

21) "मैं तुम्हारे पर्वों से बैर और घृणा करता हूँ। तुम्हारे धार्मिक समारोह मुझे नहीं सुहाते।

22) मैं तुम्हारे होम और नैवेद्य स्वीकार नहीं करता और तुम्हारे द्वारा चढाये हुए मोटे पशुओं के शांति-बलिदानों की ओर नहीं देखता।

23) अपने गीतों को कोलाहल मुझ से दूर करो। मैं तुम्हारी सारंगियों की आवाज़ सुनना नहीं चाहता।

24) न्याय नदी की तरह बहता रहे और धर्मिकता कभी न सूखने वाली धारा की तरह।

25) इस्राएल के घराने! क्या तुमने उन चालीस वर्षों में, मरुभूमि में कभी मुझे बलि और नैवेद्य चढाते थे? कदापि नहीं।

26) तुमने सक्कूत को अपना राजा और कैवान को अपना देवता बनाया है; अब तुम को तुम्हारी इन मूर्तियों को कन्धों पर चढा कर ले जाना पडेगा,

27) क्योंकि मैं दमिश्क के आगे तक तुम्हें निर्वासित कर दूँगा।" यह प्रभु की वाणी है। उसका नाम विश्वमण्डल का ईश्वर है।



Copyright © www.jayesu.com