📖 - सन्त मत्ती का सुसमाचार

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अध्याय 28

1) विश्राम-दिवस के बाद, सप्ताह के प्रथम दिन, पौ फटते ही, मरियम मगदलेना और दूसरी मरियम कब्र देखने आयीं।

2) एकाएक भारी भुकम्प हुआ। प्रभु का एक दूत स्वर्ग से उतरा, कब्र के पास आया और पत्थर अलग लुढ़का कर उस पर बैठ गया।

3) उसका मुखमण्डल बिजली की तरह चमक रहा था और उसके वस्त्र हिम के सामान उज्ज्वल थे।

4) दूत को देख कर पहरेदार थर-थर काँपने लगे और मृतक -जैसे हो गये।

5) स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा, "डरिए नहीं। मैं जानता हूँ कि आप लोग ईसा को ढूँढ़ रही हैं, जो कू्रस पर चढ़ाये गये थे।

6) वे यहाँ नहीं हैं। वे जी उठे हैं, जैसा कि उन्होंने कहा था। आइए और वह जगह देख लीजिए, जहाँ वे रखे गये थे।

7) अब सीधे उनके शिष्यों के पास जा कर कहिए, ’वे मृतकों में से जी उठे हैं। वह आप लोगों से पहले गलीलिया जायेंगे, वहाँ आप लोग उनके दर्शन करेंगे’। यही आप लोगों के लिए मेरा सन्देश है।"

8) स्त्रियाँ शीघ्र ही कब्र के पास से चली गयीं और विस्मय तथा आनन्द के साथ उनके शिष्यों को यह समाचार सुनाने दौड़ीं।

9) ईसा एकाएक मार्ग में स्त्रियों के सामने आ कर खड़े हो गये और उन्हें नमस्कार किया। वे आगे बढ़ आयीं और उन्हें दण्डवत् कर उनके चरणों से लिपट़ गयीं।

10) ईसा ने उनसे कहा, "डरो नहीं। जाओ और मेरे भाइयों को यह सन्देश दो कि वे गलीलिया जायें। वहाँ वे मेरे दर्शन करेंगे।"

11) स्त्रियाँ जा ही रही थीं कि कुछ पहरेदार नगर आये। उन्होंने महायाजकों को सारा हाल कह सुनाया।

12) महायाजकों ने नेताओं से मिल कर परामर्श किया और सैनिकों को एक मोटी रकम दे कर

13) इस प्रकार समझाया, "तम लोग यही कहो कि रात को जब हम लोग सोये हुये थे, तो ईसा के शिष्य आये और उसे चुरा ले गये।

14) यदि यह बात राज्यपाल के कान में पड़ गयी, तो हम उन्हें समझा कर तुम लोगों को बचा लेंगे।"

15) पहरेदारों ने रुपया ले लिया और वैसा ही किया, जैसा उन्हें सिखाया गया था। यही कहानी फैल गयी और अब तक यहूदियों में प्रचलित है।

16) तब ग्यारह शिष्य गलीलिया की उस पहाड़ी के पास गये , जहाँ ईसा ने उन्हें बुलाया था।

17) उन्होंने ईसा को देख कर दण्डवत् किया, किन्तु किसी-किसी को सन्देह भी हुआ।

18) तब ईसा ने उनके पास आ कर कहा, "मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।

19) इसलिए तुम लोग जा कर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।

20) मैंने तुम्हें जो-जो आदेश दिये हैं, तुम-लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और याद रखो- मैं संसार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।"



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