📖 - सन्त योहन का सुसमाचार

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अध्याय 03

निकोदेमुस के साथ सम्भाषण

1) निकोदेमुस नामक फरीसी यहूदियों की महासभा का सदस्य था।

2) वह रात को ईसा के पास आया और बोला, "रब्बी! हम जानते हैं कि आप ईश्वर की ओर से आये हुए गुरु हैं। आप जो चमत्कार दिखाते हैं, उन्हें कोई तब तक नहीं दिखा सकता, जब तक कि ईश्वर उसके साथ न हो।"

3) ईसा ने उसे उत्तर दिया, "मैं आप से यह कहता हूँ - जब तक कोई दुबारा जन्म न ले, तब तक वह स्वर्ग का राज्य नहीं देख सकता"।

4) निकोदेमुस ने उन से पूछा, "मनुष्य कैसे बूढ़ा हो जाने पर दुबारा जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश कर जन्म ले सकता है?"

5) ईसा ने उत्तर दिया, "मैं आप से कहता हूँ - जब तक कोई जल और पवित्र आत्मा से जन्म न ले, तब तक वह ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।

6) जो देह से उत्पन्न होता है, वह देह है और जो आत्मा से उत्पन्न होता है, वह आत्मा है।

7) आश्चर्य न कीजिए कि मैंने यह कहा- आप को दुबारा जन्म लेना है।

8) पवन जिधर चाहता, उधर बहता है। आप उसकी आवाज सुनते हैं, किन्तु यह नहीं जानते कि वह किधर से आता और किधर जाता है। जो आत्मा से जन्मा है, वह ऐसा ही है।"

9) निकोदेमुस ने उन से पूछा, "यह कैसे हो सकता है?"

10) ईसा ने उसे उत्तर दिया, "आप इस्राएल के गुरु हैं और ये बातें भी नहीं समझते!

11) मैं आप से यह कहता हूँ - हम जो जानते हैं, वही कहते हैं और हमने जो देखा है, उसी का साक्ष्य देते हैं; किन्तु आप लोग हमारा साक्ष्य स्वीकार नहीं करते।

12) मैंने आप को पृथ्वी की बातें बतायीं और आप विश्वास नहीं करते। यदि मैं आप को स्वर्ग की बातें बताऊँ, तो आप कैसे विश्वास करेंगे?

13) मानव पुत्र स्वर्ग से उतरा है। उसके सिवा कोई भी स्वर्ग नहीं पहुँचा।

14) जिस तरह मूसा ने मरुभूमि में साँप को ऊपर उठाया था, उसी तरह मानव पुत्र को भी ऊपर उठाया जाना है,

15) जिससे जो उस में विश्वास करता है, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे।"

ईसा, संसार का मुक्तिदाता

16) ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता हे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।

17) ईश्वर ने अपने पुत्र को संसार में इसलिए नहीं भेजा कि वह संसार को दोषी ठहराये। उसने उसे इसलिए भेजा कि संसार उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करे।

18) जो पुत्र में विश्वास करता है, वह दोषी नहीं ठहराया जाता है। जो विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहराया जा चुका है; क्योंकि वह ईश्वर के एकलौते पुत्र के नाम में विश्वास नहीं करता।

19) दण्डाज्ञा का कारण यह है कि ज्योति संसार में आयी है और मनुष्यों ने ज्योति की अपेक्षा अन्धकार को अधिक पसन्द किया, क्योंकि उनके कर्म बुरे थे।

20) जो बुराई करता है, वह ज्योंति से बैर करता है और ज्योति के पास इसलिए नहीं आता कि कहीं उसके कर्म प्रकट न हो जायें।

21) किन्तु जो सत्य पर चलता है, वह ज्योति के पास आता है, जिससे यह प्रकट हो कि उसके कर्म ईश्वर की प्रेरणा से हुए हैं।

योहन का अन्तिम साक्ष्य

22) इसके बाद ईसा अपने शिष्यों के साथ यहूदिया प्रदेश आये और वहाँ उनके साथ रहे। वे बपतिस्मा देते थे।

23) योहन भी सलीम के निकट एनोन में बपतिस्मा दे रहा था, क्योंकि वहाँ बहुत पानी था। लोग वहाँ आ कर बपतिस्मा ग्रहण करते थे।

24) योहन उस समय तक गिरफ़्तार नहीं हुआ था।

25) योहन के शिष्यों और यहूदियों में शुद्धीकरण के विषय में विवाद छिड़ गया।

26) उन्होंने योहन के पास जा कर कहा, "गुरुवर! देखिए, जो यर्दन के उस पार आपके साथ थे और जिनके विषय में आपने साक्ष्य दिया, वह बपतिस्मा देते हैं और सब लोग उनके पास जाते हैं"।

27) योहन ने उत्तर दिया, "मनुष्य को वही प्राप्त हो सकता हे, जो उसे स्वर्ग की ओर से दिया जाये।

28) तुम लोग स्वयं साक्षी हो कि मैंने यह कहा, ‘मैं मसीह नहीं हूँ’। मैं तो उनका अग्रदूत हूँ।

29) वधू वर की ही होती है; परन्तु वर का मित्र, जो साथ रह कर वर को सुनता है, उसकी वाणी पर आनन्दित हो उठता है। मेरा आनन्द ऐसा ही है और अब वह परिपूर्ण है।

30) यह उचित है कि वे बढ़ते जायें और मैं घटता जाऊँ।"

मसीह की श्रेष्ठता

31) जो ऊपर से आता है, वह सर्वोपरि है। जो पृथ्वी से आता है, वह पृथ्वी का है और पृथ्वी की बातें बोलता है। जो स्वर्ग से आता है, वह सर्वोपरि है।

32) उसने जो कुछ देखा और सुना है, वह उसी का साक्ष्य देता है; किन्तु उसका साक्ष्य कोई स्वीकार नहीं करता।

33) जो उसका साक्ष्य स्वीकार करता है, वह ईश्वर की सत्यता प्रमाणित करता हे। जिसे ईश्वर ने भेजा है, वह ईश्वर के ही शब्द बोलता है;

34) क्योंकि ईश्वर उसे प्रचुर मात्रा में पवित्र आत्मा प्रदान करता है।

35) पिता पुत्र को प्यार करता है और उसने उसके हाथ सब कुछ दे दिया है।

36) जो पुत्र में विश्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। परन्तु जो पुत्र में विश्वास करने से इनकार करता है, उसे जीवन प्राप्त नहीं होगा। ईश्वर का क्रोध उस पर बना रहेगा।



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