📖 - प्रेरित-चरित

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अध्याय 08

1) साऊल इस हत्या का समर्थन करता था। उसी दिन येरूसालेम में कलीसिया पर घोर अत्याचार प्रारम्भ हुआ। प्रेरितों को छोड़ सब-के-सब यहूदिया तथा समारिया के देहातों में बिखर गये।

2) भक्तों ने, स्तेफ़नुस पर करुण विलाप करते हुए, उसे कब्र में रख दिया।

3) साऊल उस समय कलीसिया को सता रहा था। वह घर-घर घुस जाया करता और स्त्री-पुरुषों को घसीट कर बन्दीगृह में डाल दिया करता था।

समारिया में फ़िलिप

4) जो लोग बिखर गये थे, वे घूम-घूम कर सुसमाचार का प्रचार करते रहे।

5) फि़लिप समारिया के एक नगर जा कर वहाँ मसीह का प्रचार करता था।

6) लोग उसकी शिक्षा पर अच्छी तरह ध्यान देते थे, क्योंकि सब उसके द्वारा दिखाये हुए चमत्कारों की चर्चा सुनते या उन्हें स्वयं देखते थे।

7) दुष्ट आत्मा ऊँचे स्वर से चिल्लाते हुए बहुत-से अपदूतग्रस्त लोगों से निकलते थे और अनेक अर्ध्दांगरोगी तथा लंगड़े भी चंगे किये जाते थे;

8) इसलिए उस नगर में आनन्द छा गया।

जादूगर सिमोन

9) सिमोन नामक व्यक्ति उसके पहले ही उस नगर में आ गया था। वह जादू के खेल दिखा कर समारियों को चकित करता और महान् होने का दावा करता था।

10) छोटों से ले कर बड़ों तक, सभी लोग उसकी बात मानते थे और कहते थे, "यह ईश्वर का वह सामर्थ्य है, जिसे महान् कहते हैं"।

11) उसने बहुत दिनों से अपनी जादूगरी द्वारा लोगों को चकित कर रखा खा, इसलिए वे उसकी बात मानते थे;

12) किन्तु तब वे फिलिप पर विश्वास करने लगे, जो ईश्वर के राज्य तथा ईसा मसीह के नाम के सुसमाचार का प्रचार करता था, तो चाहे पुरुष हों या स्त्रियाँ, सबों ने बपतिस्मा ग्रहण किया।

13) सिमोन ने भी विश्वास किया। बपतिस्मा ग्रहण करने के बाद वह फिलिप का साथ नहीं छोड़ता और चिह्न तथा महान् चमत्कार होते देख कर बड़े अचम्भे में पड़ जाता था।

14) जब येरूसालेम में रहने वाले प्रेरितों ने यह सुना कि समारियों ने ईश्वर का वचन स्वीकार कर लिया तो उन्होंने पेत्रुस और योहन को उनके पास भेजा।

15) वे दोनों वहाँ गये और उन्होंने समारियों के लिए यह प्रार्थना की कि उन्हें पवित्र आत्मा प्राप्त हो।

16) पवित्र आत्मा अब तक उन में से किसी पर नहीं उतरा था। उन्हें केवल प्रभु ईसा के नाम पर बपतिस्मा दिया गया था।

17) इसलिए पेत्रुस और योहन ने उन पर हाथ रखे और उन्हें पवित्र आत्मा प्राप्त हो गया।

18) सिमोन ने यह देखा कि प्रेरितों के हाथ रखने से लोगों को पवित्र आत्मा प्राप्त हो जाता है। इसलिए उसने उनके पास रुपया ला कर

19) कहा, "मुझे भी यह सामर्थ्य दीजिए कि मैं जिस पर हाथ रखूँ, उसे पवित्र आत्मा प्राप्त हो जाये"।

20) किन्तु पेत्रुस ने उत्तर दिया, "नरक में जाये तुम्हारा रुपया! और तुम भी! क्योंकि तुमने ईश्वर का वरदान रुपये से प्राप्त करने का विचार किया।

21) इस बात में तुम्हारा न तो कोई भाग है और न कोई अधिकार; क्योंकि तुम्हारा हृदय ईश्वर के प्रति निष्कपट नहीं है।

22) तुम अपने इस पाप पर पश्चाताप करो और ईश्वर से प्रार्थना करो, जिससे वह तुम्हारा यह विचार क्षमा कर दे।

23) मैं देख रहा हूँ कि तुम पित्ता की कड़वाहट से कूट-कूट कर भरे हो और अधर्म की बेडि़यों से जकड़े हुए हो।"

24) सिमोन ने उत्तर दिया, "ईश्वर से मेरे लिए प्रार्थना कीजिए, जिससे आपने जो बातें कही हैं, उन में एक भी मुझ पर न बीते"।

25) प्रेरित प्रभु की शिक्षा का साक्ष्य देने तथा उसका प्रचार करने के बाद येरूसालेम लौटे और उन्होंने इस यात्रा में समारियों के बहुत-से गाँवो में सुसमाचार सुनाया।

ख़ोजे का बपतिस्मा

26) ईश्वर के दूत ने फि़लिप से कहा, "उठिए, येरूसालेम से गाज़ा जाने वाले मार्ग पर दक्षिण की ओर जाइए"। यह मार्ग निर्जन है।

27) वह उठ कर चल पड़ा। उस समय एक इथोपियाई ख़ोजा, येरूसालेम की तीर्थयात्रा से लौट रहा था। वह इथोपिया की महारानी कन्दाके का उच्चाधिकारी तथा प्रधान कोषाध्यक्ष था।

28) वह अपने रथ पर बैठा हुआ नबी इसायस का ग्रन्थ पढ़ रहा था।

29) आत्मा ने फि़लिप से कहा, "आगे बढि़ए और रथ के साथ चलिए"।

30) फि़लिप दौड़ कर उसके पास पहुँचा और उसे नबी इसायस का ग्रन्थ पढ़ते सुन कर पूछा, "आप जो पढ़ रहे हैं, क्या उसे समझते हैं?"

31) उसने उत्तर दिया, "जब तक कोई मुझे न समझाये, तो मैं कैसे समझूँगा?" उसने फि़लिप से निवेदन किया कि वह चढ़ कर उसके पास बैठ जाये।

32) वह धर्मग्रन्थ का यह प्रसंग पढ़ रहा था-

33) वह मेमने की तरह वध के लिए ले जाया गया। ऊन करतने वाले के सामने चुप रहने वाली भेड़ की तरह उसने अपना मुख नहीं खोला। उसे अपमान सहना पड़ा, उसके साथ न्याय नहीं किया गया। उसकी वंशावली की चर्चा कौन कर सकेगा? उसका जीवन पृथ्वी पर से उठा लिया गया है।

34) खोजे ने फि़लिप से कहा, "आप कृपया मुझे बताइए, नबी किसके विषय में यह कह रहे हैं? अपने विषय में या किसी दूसरे के विषय में?"

35) आत्मा ने फि़लिप से कहा, "आगे बढि़ए और रथ के साथ चलिए"।

36) (36-37) यात्रा करते-करते वे एक जलाशय के पास पहुँचे। खोजे ने कहा, “यहाँ पानी है। मेरे बपतिस्मा में क्या बाधा है?“

38) उसने रथ रोकने का आदेश दिया। तब फिलिप और खोज़ा, दोनों जल में उतरे और फि़लिप ने उसे बपतिस्मा दिया।

39) जब वे जल से बाहर आये, तो ईश्वर का आत्मा फि़लिप को उठा ले गया। खोज़े ने उसे फिर नहीं देखा; फिर भी वह आनन्द के साथ अपने रास्ते चल पड़ा।

40) फि़लिप ने अपने को आज़ोतस में पाया और वह कैसरिया पहुँचने तक सब नगरों में सुसमाचार का प्रचार करता रहा।



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