📖 - कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र

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अध्याय 11

1) आप लोग मेरा अनुसरण करें, जिस तरह मैं मसीह का अनुसरण करता हूँ।

2) आप लोग हर बात में मुझे याद करते हैं और मुझसे जो शिक्षा मिलती है, उसमें दृढ़ बने रहते हैं। इसलिए मैं आप लोगों की प्रशंसा करता हूँ।

3) फिर भी मैं आप को यह बताना चाहता हूँ कि मसीह प्रत्येक पुरुष के शीर्ष हैं, पुरुष स्त्री का शीर्ष है और ईश्वर मसीह का शीर्ष।

4) जो पुरुष सिर ढक कर प्रार्थना या भविष्यवाणी करता है, वह अपने सिर का अपमान करता है

5) और जो स्त्री बिना सिर ढ़के प्रार्थना या भविष्यवाणी करती है, वह अपने सिर का अपमान करती है; क्योंकि वह उस स्त्री-जैसी है, जिसका सिर मूँड़ा हुआ है।

6) यदि कोई स्त्री अपना सिर नहीं ढकती, तो सिर मुँड़वा ले। यदि कटे हुए केश या मूँड़ा हुआ सिर स्त्री के लिए लज्जा की बात है, तो वह अपना सिर ढ़क ले।

7) पुरुष को अपना सिर नहीं ढकना चाहिए; क्योंकि वह ईश्वर का प्रतिरूप और उसकी महिमा का प्रतिबिम्ब है। जब कि स्त्री पुरुष की महिमा का प्रतिबिम्ब है।

8) पुरुष स्त्री से नहीं बना, बल्कि स्त्री पुरुष से बनी

9) और पुरुष की सृष्टि स्त्री के लिए नहीं हुई, बल्कि पुरुष के लिए स्त्री की सृष्टि हुई।

10) इसलिए स्वर्गदूतों के कारण स्त्री को अधीनता का चिह्न अपने सिर पर पहनना चाहिए।

11) फिर भी प्रभु के विधान के अनुसार स्त्री के बिना पुरुष कुछ नहीं है और पुरुष के बिना स्त्री कुछ नहीं।

12) यदि पुरुष से स्त्री की सृष्टि हुई, तो पुरुष का जन्म स्त्री से होता है और सब कुछ का मूलस्त्रोत ईश्वर है।

13) आप लोग स्वयं विचार करें- क्या यह उचित है कि स्त्री बिना सिर ढके ईश्वर से प्रार्थना करे?

14) क्या प्रकृति स्वयं आप को यह शिक्षा नहीं देती कि लम्बे केश रखना पुरुष के लिए लज्जा की बात है,

15) जब कि स्त्री के लिए यह गौरव की बात है, क्योंकि उसे आवरण के रूप में लम्बे केश मिले हैं?

16) यदि कोई इसके विषय में विवाद करना चाहे, तो वह यह जान ले कि न तो हमारे यहाँ कोई दूसरी प्रथा प्रचलित है और न ईश्वर की कलीसियाओं में ही।

प्रभु भोज

17) मैं ये आदेश देते हुए इस पर अपना असन्तोष प्रकट करना चाहता हूँ कि आपकी सभाओं से आप को लाभ से अधिक हानि होती है।

18) पहली बात तो यह है कि मेरे सुनने में आया कि जब आपके यहाँ धर्मसभा होती है, तो दलबन्दी स्पष्ट हो जाती है और मैं एक सीमा तक उस पर विश्वास भी करता हूँ।

19) आप लोगों में फूट होना एक प्रकार से अनिवार्य है, जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि आप में कौन से लोग खरे हैं।

20) आप लोग जिस तरह सभा के लिए एकत्र होते हैं, वह प्रभु-भोज कहलाने योग्य नहीं;

21) क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति झटपट अपना-अपना भोजन खाने में लग जाता है। इस तरह कोई भूखा रह जाता है और कोई ज़रूरत से ज्यादा पीता है।

22) क्या खाने पीने के लिए आपके अपने घर नहीं हैं? या क्या आप ईश्वर की कलीसिया का तिरस्कार करना और दरिद्रों को नीचा दिखाना चाहते हैं? मैं आप लोगों से क्या कहूँ? क्या मैं आपकी प्रशंसा करूँ? मैं इस बात के लिए आपकी प्रशंसा नहीं कर सकता।

23) मैंने प्रभु से सुना और आप लोगों को भी यही बताया कि जिस रात प्रभु ईसा पकड़वाये गये, उन्होंने रोटी ले कर

24) धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और उसे तोड़ कर कहा-यह मेरा शरीर है, यह तुम्हारे लिए है। यह मेरी स्मृति में किया करो।

25) इसी प्रकार, ब्यारी के बाद उन्होंने प्याला ले कर कहा- यह प्याला मेरे रक्त का नूतन विधान है। जब-जब तुम उस में से पियो, तो यह मेरी स्मृति में किया करो।

26) इस प्रकार जब-जब आप लोग यह रोटी खाते और वह प्याला पीते हैं, तो प्रभु के आने तक उनकी मृत्यु की घोषणा करते हैं।

27) इसलिए जो अयोग्य रीति से वह रोटी खाता या प्रभु का प्याला पीता है, वह प्रभु के शरीर और रक़्त के विरुद्ध अपराध करता है।

28) अपने अन्तःकरण की परीक्षा करने के बाद ही मनुष्य वह रोटी खाये और वह प्याला पिये।

29) जो प्रभु का शरीर पहचाने बिना खाता और पीता है, वह अपनी ही दण्डाज्ञा खाता और पीता है।

30) यही कारण है कि आप में बहुत-से लोग रोगी और दुर्बल हैं और कुछ लोग मर गये हैं।

31) यदि हम अपने अन्तःकरण की परीक्षा करते, तो हमें दण्ड नहीं दिया जाता;

32) किन्तु जब हमें प्रभु का दण्ड मिलता ही है, तो यह हमारे सुधार के लिए है, जिससे हम संसार के दण्ड के भागी नहीं बनें।

33) इसलिए, भाइयों! जब आप प्रभु-भोज के लिए एकत्र हों, तो एक दूसरे की प्रतीक्षा करें।

34) यदि किसी को भूख लगे, तो वह अपने यहाँ खाये, जिससे आपकी सभा आपके दण्ड का कारण न बने। आपके यहाँ आने पर मैं दूसरी बातों का निपटारा करूँगा।



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