📖 - तिमथी के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र

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अध्याय 05

विश्वासियों से व्यवहार

1) बड़े-बूढ़े को कभी नहीं डाँटो, बल्कि उससे इस प्रकार अनुरोध करो, मानो वह तुम्हारा पिता हो। युवकों को भाई,

2) वृद्धाओं को माता और युवतियों को बहन समझ कर उनके साथ शुद्ध मन से व्यवहार करो।

विधवाएँ

3) उन विधवाओं का सम्मान और सहायता करो, जो सचमुच ’विधवा’ है।

4) यदि किसी विधवा के पुत्र-पौत्र हों, तो वे यह समझें कि उन्हें सब से पहले अपने निजी परिवार के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करना और इस प्रकार माता-पिता का प्रत्युपकार करना चाहिए, क्योंकि ईश्वर यही चाहता है।

5) किन्तु जो सचमुच विधवा है, जिसके कोई भी नहीं, वह ईश्वर पर भरोसा रख कर दिन-रात प्रार्थना तथा उपासना में लगी रहती है।

6) जो भोग-विलास का जीवन बिताती है, वह जीते हुए भी मर चुकी है।

7) तुम इसके सम्बन्ध में उन्हें चेतावनी दो, जिससे उनका चरित्र निर्दोष बना रहे।

8) जो अपने सम्बन्धियों की, विशेष कर अपने निजी परिवार की देखरेख नहीं करता, वह विश्वास को त्याग चुका और अविश्वासी से भी बुरा है।

9) विधवाओं की सूची में उसी का नाम लिखा जाये, जो साठ वर्ष से कम की न हो, पतिव्रता पत्नी रह चुकी हो

10) और अपने भले कामों के कारण नेकनाम हो- जिसने अपने बच्चों का अच्छा पालन-पोषण किया हो, अतिथियों की सेवा की हो, सन्तों के पैर धोये हों, दीन-दुःखियो की सहायता की हो, अर्थात् हर प्रकार के परोपकार में लगी रही हो।

11) कम उम्र की विधवाओं का नाम सूची में न लिखा जाये। कारण यह है कि जब उनकी वासना उन्हें मसीह से विमुख करती है, तो वे विवाह करना चाहती हैं

12) और इस प्रकार अपना व्रत तोड़ कर दोषी बनती हैं,

13) इसलिए घर-घर घूमना उनकी आदत हो जाती है और वे बेकार ही नहीं रहतीं, बल्कि बकबक करतीं, दूसरों के काम में दखल देतीं और अशोभनीय बातों की चर्चा करती हैं।

14) इसलिए मैं चाहता हूँ कि कम उम्र की विधवाएँ विवाह करें, माता बनें, अपने घर का प्रबन्ध करें और विरोधी को हमारी निन्दा करने का अवसर न दें;

15) क्योंकि कुछ शैतान के मार्ग पर चल कर भटक चुकी हैं।

16) यदि विश्वासियों में किसी के यहाँ विधवाएँ हैं, तो वह उनकी सहायता करे, जिससे उनका भार कलीसिया पर नहीं पड़े और कलीसिया उन्हीं की सहायता कर सके, जो वास्तव में विधवाएँ हैं।

अध्यक्ष के साथ व्यवहार

17) जो अध्यक्ष नेतृत्व करने में सफलता प्राप्त करते हैं, वे दुगुने समय के योग्य समझे जायें-विशेष रूप से वे, जो सुसमाचार के प्रचार और शिक्षा-कार्य में लगे हुए हैं;

18) क्योंकि धर्मग्रन्थ कहता है- तुम दँवरी करते बैल के मुँह पर मोहरा मत लगाओ और मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है।

19) जब तक दो या तीन गवाह उसका समर्थन न करें, तब तक किसी अध्यक्ष के विरुद्ध कोई अभियोग स्वीकार मत करो।

20) जो आप करते हैं, उन्हें सबों के सामने चेतावनी दो, जिससे दूसरे लोगों को भी पाप करने में डर लगे।

21) मैं ईश्वर, ईसा मसीह और कृपा-पात्र स्वर्गदूतों को साक्षी बना कर तुम से आग्रह के साथ यह अनुरोध करता हूँ कि तुम पूर्वाग्रह से मुक्त होकर और किसी के साथ पक्षपात किये बिना इन बातों का पालन करो।

22) तुम उचित विचार किये बिना किसी पर हस्तारोपण मत करो और दूसरों के पापों के सहभागी मत बनो। अपने को शुद्ध बनाये रखो।

23) तुम अब से केवल पानी मत पियो, बल्कि पाचन-शक्ति बढ़ाने के लिए और बारम्बार अस्वस्थ रहने के कारण तुम थोड़ी सी अंगूरी का सेवन करो।

24) कुछ लोगों के पाप न्यायिक जाँच से पहले की प्रकट हैं और कुछ लोगों के पाप केवल बाद में प्रकट होते हैं।

25) इसी प्रकार, कुछ लोगों के सत्कर्म प्रकट हैं और यदि नहीं है, तो भी देर तक छिप नहीं सकते।



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