वर्ष -1, पहला सप्ताह, सोमवार

पहला पाठ : इब्रानियो 1:1-6

1) प्राचीन काल में ईश्वर बारम्बार और विविध रूपों में हमारे पुरखों से नबियों द्वारा बोला था।

2) अब अन्त में वह हम से पुत्र द्वारा बोला है। उसने उस पुत्र के द्वारा समस्त विश्व की सृष्टि की और उसी को सब कुछ का उत्तराधिकारी नियुक्त किया है।

3) वह पुत्र अपने पिता की महिमा का प्रतिबिम्ब और उसके तत्व का प्रतिरूप है। वह पुत्र अपने शक्तिशाली शब्द द्वारा समस्त सृष्टि को बनाये रखता है। उसने हमारे पापों का प्रायश्चित किया और अब वह सर्वशक्तिमान् ईश्वर के दाहिने विराजमान है।

4) उसका स्थान स्वर्गदूतों से ऊँचा है; क्योंकि जो नाम उसे उत्तराधिकार में मिला है, वह उनके नाम से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।

5) क्या ईश्वर ने कभी किसी स्वर्गदूत से यह कहा- तुम मेरे पुत्र हो, आज मैंने तुम्हें उत्पन्न किया है और मैं उसके लिए पिता बन जाऊँगा और वह मेरा पुत्र होगा?

6) फिर वह अपने पहलौठे को संसार के सामने प्रस्तुत करते हुए कहता है- ईश्वर के सभी स्वर्गदूत उसकी आराधना करें,


सुसमाचार : मारकुस 1:14-20

14) योहन के गिरफ़्तार हो जाने के बाद ईसा गलीलिया आये और यह कहते हुए ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार करते रहे,

15) "समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।"

16) गलीलिया के समुद्र के किनारे से हो कर जाते हुए ईसा ने सिमोन और उसके भाई अन्द्रेयस को देखा। वे समुद्र में जाल डाले रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे।

17) ईसा ने उन से कहा, "मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊँगा।"

18) और वे तुरन्त अपने जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।

19) कुछ आगे बढ़ने पर ईसा ने जेबेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को देखा। वे भी नाव में अपने जाल मरम्मत कर रहे थे।

20) ईसा ने उन्हें उसी समय बुलाया। वे अपने पिता ज़ेबेदी को मज़दूरों के साथ नाव में छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।

📚 मनन-चिंतन

संसार के मुक्तिदाता का जन्मदिन धूम-धाम से मनाने के बाद हम अब पूजन विधि के सामान्यकाल में प्रवेश करते हैं। आज हम प्रभु येसु द्वारा सुसमाचार की घोषणा का आरम्भ और अपने पहले शिष्यों का बुलावा देखते हैं। सुसमाचार दरिद्रों, अंधों, पद दलितों एवं पीड़ितों के लिए आशा का संदेश है, जैसा कि प्रभु येसु ने नाज़रेथ के सभागृह में घोषित किया था (लूकस ४:१८)। इस सुसमाचार को उचित रीति से ग्रहण करने के लिए और प्रभु के वचन को सुनने के लिए अपने पापों के लिए पश्चाताप करना होगा। प्रभु येसु अपने इस मिशन में सहयोग के लिए कुछ शिष्यों को बुलाते हैं।

हम अंदरियस और सिमोन दो भाइयों को देखते हैं जो प्रभु के बुलाने पर अपने जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लेते हैं। भाइयों की यह जोड़ियाँ हमें प्रभु येसु के शिष्य बनने के लिए कुछ ज़रूरतों को समझाते हैं। सिमोन और अंदरियस अपने जाल छोड़कर प्रभु के पीछे हो लेते हैं, उनके जान उनकी जीविका थे, उनकी सम्पत्ति, उनके कमाई और जीवन-यापन का साधन थे। वह सब कुछ छोड़कर प्रभु येसु को ही अपना जीवन बना लेते हैं। इसी तरह याकूब और योहन ना केवल अपने जाल छोड़ देते हैं बल्कि अपने पिता को भी छोड़ देते हैं, जिसका अर्थ है कि हमें प्रभु के शिष्य बनने के लिए अपने सगे-सम्बन्धियों को भी त्यागना पड़ेगा, क्योंकि ईश्वर ही हमारा परिवार बन जाते और अन्य शिष्य उनके सगे-सम्बन्धी बन जाते हैं। क्या मैं प्रभु येसु के मिशन कार्य में सहयोग देने के लिए उनके शिष्य बनने की क़ीमत पहचानता हूँ?

-फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

We now enter into ordinary season after celebrating birth of the saviour of the world. Today we see the beginning of proclamation of the good news by Jesus and calling of his first disciples. The good news is the news of hope for the poor, the blind, the downtrodden and the exploited, as stated by Jesus in the synagogue of Nazareth (Luke 4:18). In order to receive this good news and the kingdom of God, we need to prepare ourselves by repentance and paying heed to God’s word. Jesus calls his first disciples to help him in his mission.

We see two brothers Andrew and Simon when called by Jesus, leave their nets and follow Jesus. We also see two more brothers James and John, both sons of Zebedee, they leave their father and start following Jesus. These both pairs of brothers symbolise something needed for being true disciples of Jesus. Andrew and Simon left their nets, which were their living, their property, their source of earning and survival. They leave it behind and centre their life on Jesus. Similarly James and John not only leave behind their nets but also their father, symbolising the family and the relatives, God becomes their family, and followers become their brothers and sisters. Do I realise the cost of being Jesus’ disciple to contribute in his mission?

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!